सम्पादकीय : तस्कर के लश्कर
तीन ओर रत्नाकर से घिरे भारतवर्ष में आक्रांताओं और घुसपैठियों का सामना हमारे पूर्वजों ने बहुत ही बहादुरी से किया है जिसके प्रति कृतज्ञ और श्रद्धानत रहना प्रत्येक भारतीय के लिये गौरव का विषय है। इतिहास में देशभक्ति को अविस्मरणीय गौरवशाली बनाने में देशभक्तों के योगदान को सराहने के साथ ग़द्दारों की गद्दारी का प्रकटीकरण भी आवश्यक है। दैविक प्रवृत्तियों को महसूस करने के लिए दानवी वृत्तियों का ज्ञान जरूरी है।
आज के भारत में दैवीय तथा दानवी प्रवृत्तियों के संवाहक लोग बड़ी तादाद में उभर कर आम नागरिक के समक्ष आ रहे हैं। हत्याएँ, आगजनी, दंगे, तस्करी, देश को नुकसान पहुँचाने हेतु विरोध प्रदर्शन, अराजकता सामान्य घटनाओं की तरह हो गई है। कहीं-कहीं प्रदर्शन कर्ताओं पर लाठीचार्ज, आँसू-गैस यहाँ तक कि गोली-गोला बारूद आदि का प्रयोग भी हो रहा हैजो दुःखद है। कोंग्रेस, वामपंथी, कम्युनिस्ट शाषित पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के अतिरिक्त अन्य कई राज्यों की राजनीति तथा शासन व्यवस्था में होने वाली उथल-पुथलआम नागरिकों को झकझोरने या डराने वाली होती है।
महाराष्ट्र के अंतर्गत पालघर साधुओं की हत्या, सुशान्त राजपूत का पार्थिव शरीर का पाया जाना, कँगना रानाउत के बयान की प्रतिक्रिया में उसके ऑफिस का तोड़ा जाना, जया भादुड़ी का 'थाली में छेद करने जैसा का वक्तव्य' आदि ने जाने कौन सा गुल खिलाया कि आये दिन नए सनसनीखेज खबरों का अम्बार लग गया है।
कोरोना के प्रति लापरवाह सरकार, हत्यारी सरकार, गुण्डों की सरकार, वसूली सरकार, दोषियों को फरार कराने में माहिर सरकार के बाद एक नई पदवी से विभूषित है-'ड्रग, हथियारों तथा तस्कर गैंग’ की रहनुमाई करने वाली सरकार।
ऐसा लगता है कि नारकोटिक्स विभागों के अफसरों को सिर्फ नाम के लिए शक्तिशाली कहा जाता है। दिन-रात जान जोखिम में डाल कर जब कुछ अफसर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तस्करों को पकड़ते हैं तो तस्करों की रहनुमाई करने वालों के लश्कर चारों ओर से इन ईमानदार अफसरों पर आक्रामक हो जाते हैं।केरल, राजस्थान, मणिपुर, तमिलनाडु, मुंबई, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के नूंह का इलाका, लगभग प्रत्येक राज्य में ड्रग्स, सोना और हथियारों का अवैध व्यापार बहुत बड़े स्तर पर चल रहा है। बी एस एफ के जवान, पुलिस, बड़े-बड़े नेता, अभिनेता, अभिनेत्रियों आदि का भी इन तस्करी में शामिल होना शर्मनाक होने के साथ-साथ नवीन पीढ़ी के युवाओं के लिए घातक भी है। किसी अमीर और शक्तिशाली नेताओं के रिश्तेदार तस्कर या अपराधियों के पकड़े जाने पर देश के जाने माने नेताओं और वकीलों की फौज भी उसके बचाव में आ जाते हैं। ऐसा लगता है कि पूरा का पूरा शासनतंत्र ही ड्रग्स, सोना, हथियारों तथा अन्य चीजों की अवैध तस्करी में संलिप्त है। जो लोग संलिप्त नहीं हैं वे भी अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की भावना के कारण गाँधी जीके तीन बंदरों जैसे है जिन्हें समाज में व्याप्त बुराई को देखना, सुनना या बोलने की मनाही है।
संचार साधनों की कमी के कारण तस्करी की खबरें प्रायः आम नागरिकों की जानकारी में नहीं आती थी परन्तु आज-कल ये सबसे ज़्यादा सनसनीखेज खबरों में से एक होता है। तस्करों के पकड़े जाने पर उसके बचाव पक्ष के लोगों की बयानबाजी से प्रकट होता है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए देश के और मासूम नागरिकों के दुश्मन देश में ही भरे पड़े हैं। बुद्धिजीवी, सफेदपोश नेताओं, गुण्डों, हत्यारों,कुछ सत्ताधारी लोग, प्रशासन के अंतर्गत के कुछ छुछुन्दर, तथा अमीरजादे-शक्तिशाली लोगों के द्वारा बनाया गया तस्करों का चक्रव्यूह बहुत ही पेचीदा, खतरनाक और जानलेवा है। कुटिल कौरवों की क्रूरता, अर्जुन की अन्यत्र स्थान पर युद्ध-विवशता के बीच किसी भी साहसी अभिमन्यु का इन तस्कर-लश्कर-चक्रव्यूह से लोहा लेना जान लेवा ही है। फिर भी बहादुर ईमानदार अफसरों की सतर्कता के कारण विभिन्न प्रकार के ड्रग्स, हथियारों का जखीरा, शराबों की तस्करी, गायों के तस्कर, मजबूर इंसानों तथा लड़कियों के कुशल तस्कर गिरोह आये दिन पकड़ में आ ही जाते हैं जिनकी सतर्कता की प्रशंसा में कहा जा सकता है-
"जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा, मोर आहार जहाँ लगी चोरा"।