Politico-Religious assassinations of Mahatma, Indira & Rajiv Gandhis

तीन गांधी, तीन हत्याएँ, तीन प्रतिक्रियाएँ

आज देश में मोदी के बीजेपी को एक हिन्दू संगठन का तगमा दिया जा रहा है और आर एस एस उसके सहयोगी हैं इसीलिए राजनैतिक विरोधी पूरे महकमें को महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे से जोड़ने से नहीं हिचकिचाते। वहीं इंदिरा के हत्यारे बियंत-सतवंत को गुरुद्वारों में शहीद की संज्ञा दी गयी है और राजीव के हत्यारे धानु का सम्बन्ध DMK,पार्टी प्रमुख करुणानिधि, वहाँ के कुछ चर्च तथा खालिस्तानियों से होने के बावजूद कोई सिखों या ईसाईयों पर उंगली नहीं उठाता। भारत में ही ऐसा क्यों है कि यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दुओं को कोई भी हीन या नीचा दिखाने से नहीं चूकता ? किसी और देश में बहुसंख्यकों पर कोई इस तरह की लांछना लगाए तो देखे परिणाम क्या होता है।

राजनीति के दृष्टिकोण कितने संकुचित या कितने व्यापक हो सकते हैं कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता है। देश में चहुमुखी विकास को देखते हुए आज मोदी जी के गरीबोन्मुख तथा देशोन्मुख व्यापक सुधारों को लेकर कुछ लोग उन्हें 'कल्कि अवतार' की संज्ञा तक दे देते हैं I एक नहीं वल्कि अनेकों फोरम से ऐसी आवाजें आ रहीं हैं कि मोदी में आंशिक रूपेण ही सही दैविक गुण हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि शान्ति के उपासक हिन्दू आज देश की आसुरी शक्तियों पर पहली बार भारी पड़ते प्रतीत हो रहे हैं।

Modi as Kalki Avtaar ?

अनेकानेक लोगों का यह मानना है कि उन्होंने “असुरी एवं राक्षसी शक्तियों” का ह्रास करना आरम्भ किया है वो चाहे वह जिस भी रूप में पनप रहे हो। ये राक्षसी प्रवृत्ति वही हैं जो शान्ति के उपासकों का सदियों से उपहास व ह्रास करते रहे हैं। वहीं अगर राहुल गांधी, ममता बनर्जी एवं कुछ मुसलमान नेताओं का बस चले तो घृणा से लिप्त वे आत्मघाती "इस्लामी जैकेट" लगा उनके समीप अपना विस्फोट तक कर लें। यह तो एक राजनैतिक दृष्टिकोण है जिससे शायद सबलोग सहमति न रखते हों।

आज मोदी जैसे विश्व नेता विश्व पटल पर अपनी महत्वपूर्ण साख बनाए हैं और यह बहुतों को रास नहीं आ रहा। राहुल और कांग्रेस को इस बात का क्रोध है कि देश कांग्रेस मुक्त होता जा रहा है। ममता और मुसलामानों को इस बात की मिर्ची लगी है कि विपक्षियों के “जिहादी और भारत विरोधी एजेंडे” लोगों के सामने आते जा रहे हैं I इसी बात का गुस्सा मुसलामानों के तलवे-चट्टू यादवों के 'सपा और राजद' पार्टियों को भी है। शायद यही कारण है कि राजनैतिक विरोधियों का स्वर मोदी और उसकी पार्टी के विरोध में कुछ भी करने को तैयार है।

अब आइये तीन गांधी, तीन हत्याएँ और तीन प्रतिक्रियाओं की बात करें। महात्मा गांधी का व्यक्तित्व ख़ास और विशिष्ट था। अतः अन्य दो “छद्म गांधी” को उनके श्रेणी में रखना एक तरह से उनका अपमान है।

Feku Gandhis

लेकिन अभी हम जिन समस्याओं की बात करने जा रहे हैं उसमें तीनों की सख्सियत एक जैसी है कि वे किसी न किसी के इतने अधिक घृणा के पात्र बन गए कि उनकी ह्त्या कर दी गयी। महात्मा की गोडसे द्वारा; इंदिरा की बियंत-सतवंत सिंह द्वारा और राजीव की धानू द्वारा।

गोडसे एक हिन्दू था जिसका कभी आर एस एस से संपर्क था।महात्मा से उसकी घृणा का कारण था उनका मुसलामानों के प्रति अनैतिक प्रेम। यह जानते हुए कि देश का विभाजन मुस्लमानों के लिए अलग पाकिस्तान देश की मांग से हुआ था, वे मुसलामानों के प्रति कुछ ज्यादा ही सहानुभूति रखते थे चाहे उसमें देश के हिन्दुओं का अहित ही क्यों न होता हो। बहुतेरे हिन्दुओं को गांधी में "तुष्टीकरण की नीति" दिखती थी चाहे वह जिन्ना की बात मानने की हो, कश्मीरी हिन्दुओं की पाकिस्तानी मुसलमानों के हाथों सामूहिक नरसंहार के बावजूद पाकिस्तान को ५५ लाख रुपये अनुदान देना हो या फिर पाकिस्तान में हिन्दुओं तथा सिखों के कत्लेआम के बावजूद भी भारत में मुसलमानों को संरक्षण देना शामिल हो । ये सिर्फ कुछ कारणों की ही गिनती है।

Reasons for Mahatma's assassination

वैसे बहुतेरे हिन्दुओं के दिलों में मुसलामानों द्वारा “मोपला नरसंहार” के बावजूद भी गांधी जी का खामोश रहना किसी विश्वासघात से कम नहीं था। हालाँकि यह घटना १९२१ की थी फिर भी यह करोड़ों हिन्दुओं के लिए एक नासूर बन चुका था। अतः स्वतंत्रोत्तर वे जब भी हिन्दुओं की अवहेलना कर मुसलामानों की तरफदारी करते, हिन्दुओं के कुछ वर्ग इससे बहुत ही क्षुब्ध थे। यद्यपि गांधीजी की ह्त्या को देश नीति या देश हित में उचित नहीं ठहराया जा सकता फिर भी गांधीजी के जान का खतरा तो अवश्य था। अगर गोडसे नहीं तो कई और भी गांधी जी के विरुद्ध खड़ा हो जाता चाहे उसका जो भी औचित्य होता।

१९४८ से आज तक मुसलामानों की तुष्टीकरण में लिप्त हर राजनैतिक व धार्मिक गुट गोडसे से घृणा के वजह हिन्दुओं से या हिन्दुओं के प्रति श्रद्धा रखने वालों से ही घृणा करने लगते हैं। आज भी अगर कोई गोडसे के विचारधारा का औचित्य ठहराने का प्रयत्न भी करता है तो पूरा देश उसके विरुद्ध खड़ा हो जाता है। राजनैतिक विद्वेष रखने वाले कुछ लोग तो बीजेपी, आरएसएस व हिन्दुओं के लिए यहाँ तक कह जाते कि "बापू हम शर्मिंदा हैं, तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं"। लेकिन यही बात इंदिरा गांधी या राजीव गांधी के हत्यारे सिखों व ईसाइयों के प्रति लागू नहीं होता। वही लोग कुछ भी कहने से बचते हैं।

बियंत-सतवंत सिंह दोनों ही सिख पंथ से था और “अकाल तख़्त” की विचारधारा से ताल्लुक रखता था। अकाल पंथ, अकाल तख़्त तथा कुछ अन्य गुट भी इंदिराजी के हत्यारों की साजिश में लिप्त थे। उन हत्यारों को अकाल तख़्त ने शहीद घोषित किया था तथा हर ३१ अक्टूबर को “शहीदी दिवस” के रूप में मनाते है लेकिन देश में कोई भी सिखों या अकाल तख़्त की निंदा नहीं करता। यह एक कटु सत्य है कि जहाँ गोडसे को लोग एक कातिल आतंकी हिन्दू बताकर पूरे जाति विशेष को अपमानित करने से नहीं चूकती वहीं बियंत और सतवंत को सिख पंथ के शहीद की संज्ञा दिए जानें पर भी कोई आवाज नहीं उठाता। वह रे भारत का प्रजातंत्र। याद रहे कि इंदिरा जी ने स्वर्ण मंदिर परिसर में खेमा जमाए, अस्त्र शास्त्रों का भण्डार जमा किए एक आतंकी भिंडरावाले एवं उसके चरमपंथी साथियों का सफाया किया था जिसनें हज़ारों देश वासियों की जानें ली थी, जिनमें हिन्दू सबसे अधिक मारे गए थे। दोनों कातिलों की याद में सिखों का 'अकाल तख़्त' ३१ अक्टूबर को"शहीदी दिवस" मनाता है।

Sikhs of India calling assasins as martyres

उधर थेनमोझी (धानु) राजरत्नम एक तमिल ईसाई महिला थी जिसके ताल्लुकात श्रीलंका के LTTE गुट, तामिलनाडु के DMK, कुछ तमिल नेता तथा अतिवादी चर्च से भी जुड़े थे। उन्होंने राजीव गांधी का क़त्ल इसलिए किया था कि उन्हों ने राष्ट्रनीति के तहत श्रीलंका सरकार से संधि की थी और जाफना में किए जा रहे अलगाववादी गतिविधि में लिप्त आतंकी तमिल गुट LTTE के खिलाफ भारतीय शान्ति सेना को लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात किया था। LTTE देश के सिंघली बौद्ध के खिलाफ आतंकी तथा अलगाववादी गतिविधियों में लिप्त था। आज जब LTTE आतंकवादियों और चरमपंथियों की चर्चा होती है तो “हिन्दू गोडसे” की तरह कोई तमिलों या ईसाईयों को देशद्रोही या आतंकियों की संज्ञा नहीं देता। बड़ा ही अनोखा है हमारा देश और हमारे देशवासी।

Thenimozji, killer of Rajiv Gandhi

इस आलेख का अभिप्राय मात्र इतना है कि एक महात्मा एवं दो छद्म गांधियों की कुछ सांप्रदायिक कारणों से तीन अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा हत्याएँ की गयी हैं। जहाँ महात्मा के हत्यारे गोडसे से किसी भी तरह की वैचारिक सहानुभूति व्यक्त करने वालों से ज्यादातर लोग हीन-भाव तथा धृणा की दृष्टि रखते हैं वहीं इंदिरा गांधी के हत्यारों को सिख पंथ द्वारा शहीदों की गिनती में रखा जाता है और कोई भी सिख पंथ के खिलाफ नहीं बोलता। उधर राजीव गांधी जी के हत्यारों तथा तमिल ईसाई गुटों को कोई जिम्मेदार नहीं ठहराता। इसे भारतीय राजनीति की एक बड़ी बिडम्बना ही मानना चाहिए।

तीन गांधी, तीन हत्याएँ और तीन प्रतिक्रियाएँ एक कटु सत्य है।

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