हिज़ाब के फायदे
आज-कल भारत में बुरका-विवाद काफी छाया हुआ है,मुस्लिम औरतों के मौलिक अधिकारों की बातों को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिशें जोर-शोर से जारी है।आंदोलन-प्रदर्शन तो धरणाजीवी सम्प्रदाय की जीविका होने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर धर्म-विशेष के समुदायों की ओर ध्यान आकर्षित करने तथा दबदबा कायम करने की कोशिशों का हथियार बन गया है। आतंकी मानसिकता से परिपूर्ण मुस्लिम समुदाय जहाँ अपनी मज़हबी कट्टरता द्वारा, येन-केन-प्रकारेण चोरी-दंगे-लूट-बलात्कार-हत्याएँ-आगजनी आदि समाजविरोधी कार्यों में लिप्त रह किसी भी देश के लिए मवादयुक्त कोढ़ बन जाते हैं, वहीं इन कार्यों में मुस्लिम औरतें भी पूरी तल्लीनता से उनका साथ देती हैं।
हिजाब में रहने वाली औरतों को रेगिस्तानी गर्मी में धूल, सर्दी में ठंड से राहत तथा दलदली इलाकों में मख्खियों- मच्छरों, कीड़ों-मकौडों से राहत जरूर मिलती होगी। परन्तु हिंदुस्तान में इसकी जरूरत और इसके समर्थन में आंदोलन के पीछे कुछ देशविरोधी तथा हिन्दू विरोधी खुराफाती तत्व हैं। कुछ कारणों से इस पर पूर्ण पाबंदी की आवश्यकता देश तथा जनता की सुरक्षा के लिए जरूरी है। कई घटनाओं से साबित होता है कि हिज़ाब इनके लिए पहचान छुपा कर गलत कार्य करने के लिए एक हथियार की तरह होता है।
परीक्षा में अक्सर ये हिज़ाब की आड़ ले अपनी कानों में कोर्डलेस लगा कर मुन्नाभाई स्टाइल में कॉपी करतीं हैं। क्लास में गाने या जिहादी भाषण सुनते हैं। दुकानों में नकाब की आड़ में चोरी करके समान बुर्के में छुपाये जाते हैं। पकड़े जाने पर अपने गुण्डे दोस्तों को बुला कर हंगामा करते हैं। कैमरे में भी नकाब के कारण इन्हें पहचान पाना अत्यंत कठिन होता है। चुनाव के समय ये एक-दूसरे के नाम पर वोट डालते हुए,बुर्का न हटाने के कारण पहचाने नहीं जा सकते हैं। ऐसे गलत एवं अनैतिक काम करते हुए पकड़े जाने पर, हंगामा मचाने, तोड़-फोड़ करने,भागने तथा मार-पीट करने में आसानी होती है जिसमें अपराधी मानसिकता वाले मुस्लिम उनकी सहायता करते हैं। कई बार तो मुस्लिम पुरुष भी स्त्रियों से बदतमीजी करने के लिए, चोरी करने के लिए, बुर्का पहन कर स्त्रियों के लिए आरक्षित जगहों, बसों, ट्रेन के डब्बों में घुस जाते हैं। पकड़े जाने के बाद ही उनका मन्तव्य सामने आ पाता है।
एग्जाम हॉल या पोलिंग बूथ की ड्यूटी पर आमतौर पर मुस्लिम औरत/मर्द के होने पर वोटरों के बुर्के-हिज़ाब के अन्दर के चेहरे की जाँच-कार्य को नजरअंदाज किया जाता है। प्रश्न उठाने पर मज़हबियों द्वारा आपराधिक मामलों को टालने की कोशिश भी की जाती हैं। मुस्लिम औरतों और मर्दों के बीच ड्यूटी करते हुए ही इन बातों का भी अनुभव होता है कि इस्लामियों के गलत कार्यों का आँख मूँद कर समर्थन करना ही इनका मज़हबी फर्ज है।
गैरइस्लामियों के साथ ये लोग सिर्फ अपने ही फायदे लिए दोस्ती करते हैं।इनका वफादारी या उदारता भी सिर्फ अपने कौमी इस्लामी भाइयों के लिए ही होता है। मीठा व्यवहार ,झूठी दोस्ती उन्हें अपना ग्रास बनाने के क्षेत्र में पहला कदम है जो मौका मिलते ही गला रेतने में आसानी के लिए किया जाता है। जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं जहाँ इन्होंने अपने आश्रय दाता, खाना खिलाने, पढ़ाई के लिए फीस भरने वालों का ही गला रेत दिया है।
बकरीद में हलाल करने से पहले बकरे को बड़ी ही हिफाज़त और प्यार से सहलाया जाता है कुछ यही होता है छद्मवेशी दोस्तों के दोस्ती की जो अन्ततः हिन्दुओं और उसके परिजनों के धन-मान-सम्मान के लिए खतरनाक बन जाता है। दिल्ली,कश्मीर,बंगाल,केरल,तमिलनाडु आदि कई जगहों पर वर्तमान में ज्वलंत उदाहरण भरे पड़े है।
अनेकों आपराधिक कार्य, पुलिस की नजरें बचा कर,बुर्के ही आड़ में पहचान छुपा कर, किये जाते हैं। हिन्दू औरतें जो इस्लामिक गुण्डों द्वारा अगवा करवाई या की जातीं हैं उन्हें भी पहचानना तथा ढूंढना अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है। मुँह पर बँधी पट्टी के कारण बुर्के के अंदर से भीड़ में भी अपहृत प्राणी चीख नहीं पाते हैं। सतर्कता से देखें तो पायेंगे कि बुर्का नसीन अपराधी पुलिस को आसानी से गुमराह करते हैं जिस पर पाबंदी आवश्यक है। जाने कितने आतंकी, नशे एवं स्वर्ण-तस्कर अवैध सामग्री, हथियारों तथा बॉम्ब के तस्करी करते हुए बुर्का-पहनावे में पकड़े गए हैं। हाल ही में श्रीनगर में बुर्के में छुपा लाये गए बॉम्ब को सीमा-सुरक्षा बल के जवानों पर फेंकते हुए आतंकी गिरफ्तार किये गए हैं।
मुस्लिम औरतों को बचपन से हिजाब के फायदे समझाए जाते हैं जैसा कि एक लड़की बता रही थी कि लड़कियाँ हीरा होतीं हैं। हीरे को छुपा कर रखना चाहिए इसीलिए वे हिज़ाब पहनती हैं। परन्तु इसी हीरे को पिता या करीबी रिश्तेदार पैसों के लिए किसी को भी बेच देते हैं। इसी हीरे का बचपन में ही खतना करा कर ; शारिरिक संपूर्णता के मौलिक अधिकार से वंचित कर देते हैं। इसी हीरे का हलाला कराया जाता है। इसी हीरे को तीन तलाक देते हैं। इस हीरे का व्यापारी एवं बलात्कारी;उसका बाप भी हो जाता है फिर भी ये जुबान नहीं खोलतीं हैं। विडंबना ही है कि अनेकानेक अनैतिक कृत्यों तथा रिश्तों की अहमियत या मर्यादाओं को ताखे पर रख कर अत्यंत करीबी रक्तसंबंधों के बीच निकाह करते हुए भी ये अपनी सड़ी-गली रूढ़ियों को सर्वश्रेष्ठ बताते हैं।
नई पीढ़ी की जन्मदात्री हीरा एवं मासूम बच्चियों को तराशने की जगह ,उनके बाप,भाई एवं तालीम देने वाले मौला आदि भी उन्हें बुर्के में कैद कर,मानसिक-शारीरिक रूप से गुलाम बना,अपने कट्टरपंथी गन्दे रिवाजों को उन पर जबरन लादते हैं। इनके गंदगी से भरे कचड़े के डब्बे जैसे खोपड़े में तर्क एवं प्रश्नों पर विचार करने की न तो कोई आजादी है और न ही करना चाहते हैं।
कुरान नामक खतरनाक किताब का ज्ञान इनके पास है जिसका अलतकिया प्रयोग करने की हिदायत इन्हें दिन में पाँच बार दी जाती है। साम-दाम-दण्ड भेद के द्वारा ये गैरइस्लामी समाज की औरतों को शिकार बनाने का काम करते हैं। अपनी कट्टरपंथी सोच गन्दीरूढ़ियों को थोपने की कोशिशें ये निरंतर जारी रखते हैं। अलतकिया मानसिकता वाले मज़हबी समुदाय अन्य धर्मों की बुराई करते हुए इस्लाम की बुराइयों को छुपाने एवं इसको श्रेष्ठ साबित करने के प्रयास में कुतर्क और झूठ के सहारा लेते हैं। तर्कपूर्ण ढँग से भी मुसलमानों को इस्लाम या मोहम्मद जिसे वे अपना पैगम्बर कहते हैं, की काली करतूतों का बेपर्दा होना स्वीकार नहीं होता है। ईशनिंदा के नाम पर हत्याएँ करना इनका प्रिय शगल है। हाल ही में पाकिस्तान में ईश-निंदा का सपना देख कर बुर्का नशीनों ने एक बेगुनाह बुर्का नसीन शिक्षक की भी हत्या कर दी है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार एवं उनकी हत्या तो मामूली बात है ही, व्यक्तिगत दुश्मनी की आड़ में की जाने वाली हत्याओं के लिये भी ईशनिंदा-संवैधानिक लाइसेंस वाला हथियार है।
ये तो तय है कि मदरसे से उत्पादित कट्टरपंथी मुस्लिम कभी किसी गैरइस्लामी व्यक्ति या समुदाय के सच्चे, वफादार दोस्त नहीं हो सकते हैं। परन्तु ग़ैरइस्लामी स्त्रियों के लिए ये किसी खुंखार रक्तपिपासु वहसी जानवर से भी ज्यादा खतरनाक हैं। अतः किसी भी प्रकार से औरतों को ये कट्टरपंथी मुस्लिम हीरा नहीं, बल्कि अपनी हवस पूर्ति का साधन समझते हैं। बुर्के के फायदे का बखान बखूबी उन्हीं औरतों द्वारा करवाया जा रहा है जिसे स्वतंत्र हृदय से सोचने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है।
पाठक ही सोचें कि यदि तलाक मर्द देता है तो हलाला औरतों का क्यों करवाया जाता है? सोचने की बात है! जहाँ औरतों को दोयम दर्जे की माना जाता है, अय्यासी के लिये चार-चार औरतें रखी जाती है, औरतों को पत्थरों या हंटर की चोट से सजा दे कर जान ली जाती है वहाँ मौलिक अधिकारों की या किसी भी अधिकार की बातें सिर्फ छलावा या साजिश नहीं तो और क्या है? सम्भवतः आतंकवादियों, तस्करों, बेश्यावृति में लिप्त महिलाओं, अर्थपूर्ती के लिये बच्चियों का अस्थायी निकाह, बदनामी से बचने, खुद को छुपाने के लिए निश्चित ही हिज़ाब फायदेमंद होगा। हैरानी होती है सोच कर कि बुर्का-समर्थन में चिल्लाने वाले लोग या फ़िल्मी अभिनेता-अभिनेत्रियाँ कभी इन स्त्रियों का खतना,पत्थरों-हण्टरों की बौछारों से होने वाली मौत, हलाला, मुत्ताविवाह, करारी विवाह, बेमेल विवाह,या बहुविवाह के रूढ़ियों में बेबसी से पिसती-लुटती हीरा जैसी लड़कियों की इज्जत एवं उसके सामान्य मौलिक मानवीय अधिकारों के लिये आवाज़ नहीं उठाते हैं। सच्चाई तो यह है कि इस्लाम, नमाज़, बुर्का और हिज़ाब की आड़ में मुस्लिम लड़कियों को मानसिक तौर से अपंग बनाया जाता है कि वे मौलानाओं और घर के ही मर्दों के लिए इस्तेमाल होने वाली वस्तु तथा बच्चे पैदा करने वाली मशीन बन कर रह जातीं है।
कश्मीर में तो आतंकी बुर्के वालियों तथा इनके बच्चों को भी सामने रख कर पीछे से पुलिस के जवानों तथा फौजियों पर गोलीबारी करते हैं। बलात्कारियों तथा हत्यारों की संख्याओं में भी मदरसा छाप जिहादियों का ही वर्चश्व है।
वैदिक संस्कृति तथा धर्म के प्रति नफरत, हिंदुस्तान में रह कर पाकिस्तान के प्रति आत्मिक-मज़हबी लगाव, हठवादिता,झूठ तथा आधी-अधूरी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कला,अरब तथा अन्य इस्लामिक देशों का महिमामंडन,भारत देश को टुकड़े-टुकड़े करने की आकांक्षा,स्वयं को हिंदुस्तान में प्रताड़ित दिखा कर दुनियाँ भर से सहानुभूति हासिल करने की कला तो कोई भारत के नाटकबाज, कट्टरपंथी और देशद्रोही मुसलमानों से सीखे। इनके अनेकों देशविरोधी उत्पातों को नजरअंदाज करना आसान नहीं है। बुरका प्रदर्शन भी उन्हीं देशविरोधी साज़िशों को अंजाम देने के लिये कट्टरपंथियों द्वारा जिहाद की समुन्नति के लिए रखा जाने वाला आधारशिला है।
वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत आदि पढ़ने और समझने के पश्चात; वर्णित तथ्यों के आधार पर विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि राक्षसी प्रवृतियों के पोषक तथा राक्षसी संस्कृतियों के संवाहक क्रमशः मुस्लिम और इनका इस्लामी मझहब है, जिसका खात्मा कठिन है। रामायण में मेघनाद रावण से कहता है कि राक्षसी प्रवृति तथा राक्षसी संस्कृति कभी खत्म नहीं हो सकती है। परन्तु जब राक्षसों के अत्याचारों से आर्तनाद करते हुए भक्तजन, देवगण, साधु-सन्त सुरक्षा हेतु भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे तो उत्तर में कृपासिन्धु के उदभाष ये थे कि "पापियों और अत्याचारियों के विनाश का बीज भी उन्हीं के पापी क्रूर-कुकृत्यों के अन्दर से प्रस्फुटित होता है" I अतः धैर्य रखें! प्रतीक्षा करें,किसी लोकहितैषी विष्णु के और बानर-भालुओं के सैन्यकर्मियों की जो बर्बर,खुंखार, हत्यारे, बलात्कारी, पापी राक्षसों का विनाश कर सकें।