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“भारत जोड़ो”: कितना मिथ्या कितना सत्य ?

लगता है कांग्रेस और इसके ‘राहुल गांघी खेमा’ मोदी जी की कई लोकप्रिय जनहित नारों से बहुत प्रभावित हुआ है और अब स्वयं के कुछ नारों से अपना मतलब साधनें की कोशिष कर रहा है। मोदी जी ने सत्ता में आते ही नारा दिया था 'सबका साथ सबका विकास' और उसपर सफलता पूर्वकअनवरत काम किया और करते ही जा रहे हैं। उनका 'जन धन बैंक खाता' देश के बड़े गरीब तबके को देश की बैंकिंग सिस्टम से जोड़ दिया । फिर उन्होंने हरियाणा में बेटियों के घटते अनुपात को देखकर 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नारा दिया और समाज पर इसका बहुत ही अच्छा और सकारात्मक प्रभाव पड़ा। उनके 'स्वच्छता अभियान' पर तो मानो पूरा देश उनके साथ चल पड़ा। आजकल मोदीजी के किसान सम्मान निधि, आयुष्मान भारत, आत्मनिर्भर भारत और गरीब कल्याण अन्न योजना उफान पर है। यही सब शायद कांग्रेस और राहुल जी के सम्प्रति 'भारत जोड़ो' नारा के प्रेरणा श्रोत हैं I

आज कल कांग्रेस और उसके नेता गण सोशल एवं टीवी मीडिया और समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर "भारत जोड़ो" से छाए हैं । ट्विटर पर तो ३६ कोंग्रेसियों ने एक ‘टूलकिट’ बनाया है और किसी भी ट्वीट को ३६ बार दोहराते हैं। झूठ और दुष्प्रचार काभी बाजार गर्म रखते हैं। "भारत जोड़ो" एक ऐसा अभियान लगता है जिसमें कांग्रेस के पूरा का पूरा महक़मा लगा हुआ है कि यह किसी भी कीमत पर सफल हो। इसके ठीक पहले कांग्रेस ने भ्रष्टाचार में लिप्त अपने आका सोनिया गांधी जी को प्रवर्तन निदेशालय के सवालों से बचाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सड़क पर लाकर तोड़-फोड़ करने का नारा दिया था "सत्यमेव जयते" जिसे देश की जनता ने "भ्रष्टमेव जयते" समझ कर अनदेखा कर दिया था। इससे पहले प्रियंका गांधी जी ने भी यूपी चुनाव में नारा दिया था "बेटी हूँ लड़ सकती हूँ" लेकिन इसे भी जनता ने चुनावी एजेंडा कह कर नकार दिया थाI एक तरफ तो प्रियंका राजस्थान में बेटियों पर होते अत्यधिक बलात्कार पर चुप्पी साधे रहती है वहीं पंजाब में बेटियों के हक़ के लिए अपने सरकार के १० सालों में भी कुछ नहीं किया। एक और जहाँ हाथरस में हुए बलात्कार को राजनीति का अड्डा बना लिया वहीं उन्ही दिनों बलरामपुर में मुसलामानों द्वारा एक दलित लड़की के बलात्कार और ह्त्या को अनदेखी कर चुप्पी साध ली । यह कांग्रेस की घृणित राजनीति थी। अतः वह नारा भी खोखला निकला और कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हारी। बहरहाल आइए हम कांग्रेस के ‘भारत जोड़ो’ अभियान की चर्चा करते हैं।

कोई भी ‘जोड़ने’ का अभियान तभी हो सकता है जब कुछ ‘टूट गया हो’ और आज भारत टूटा कहाँ है ? सन १९४७ में भारत को तोड़ने का ज्यादातर श्रेय यहाँ के मुसलमान समर्थित जिन्ना को तथा प्रधानमंत्री पद के लालायित नेहरू जी को जाता है (पढ़ें “विभाजन विभीषिका”https://articles.thecounterviews.com/articles/partition-of-india-fallout-of/)। उसके बाद तो देश नहीं टूटा है। हाँ साल १९७५ में कांग्रेस द्वारा आपातकाल घोषणा के बाद यहाँ की जानता काफी आहात थी। फिर बीच में दक्षिणवर्ती राज्यों ने भाषा के आधार पर देश को बाटनें का प्रयत्न किया गया था। हाँ, मोदीजी के २०१९ चुनावी विजय के वाद विपक्षी नेताओं में असुरक्षा की भावना अवश्य आ गयी है लेकिन इससे कुछ टूटा नहीं वल्कि अप्रत्याशित रूप से जुड़ा ही है। पहले जो राजनितिक पार्टियाँ एक दूसरे को आँखों नहीं भाती थी, मोदीजी के भय ने उन्हें आपस में "जोड़ना शब्द तो गलत होगा" लेकिन चिपका अवश्य दिया है। आज के समय राहुल, सोनियां गांघी, ममता, मेहबूबा, नितीश, लल्लू, अखिलेश, ओवैसी, अब्दुल्ला,KCR आदि विपक्षी नेतागण “मोदी-भय” नामक फेविकोल से चिपके, समय-कुसमय ही सही, साथ-साथ मिलकर चुनाव में मोदीजी को हराने की बात करने लगे हैं क्योंकि इनमें से किसी के पास इतना दम नहीं कि उन्हें सक्षम चुनौती दे सके।

कांग्रेस जो कर रही है वह भारत जोड़ो तो कदापि नहीं है। पहले मिशनरियों से बातें कर रहे थे कि हिन्दू देवी देवता कुछ नहीं वल्कि जीसस ही असली देवता है। फिर केरल आते ही जहाँ पिछले पाँच सालों में दर्जनों RSS कार्यकर्ताओं का PFI जिहादियों और कम्युनिस्टों के हाथों क़त्ल किया गया था और राज्य सरकार हाथ पर हाथ रखकर देखती रही, कांग्रेस ने RSS के प्रतीक 'निकर' में आग लगाकर अपनी घृणा का ही सबूत पेश किया है। उधर केरल में १८ दिन यात्रा और यूपी में २ दिन को लेकर कम्युनिस्ट ने राहुल गांधी पर चुटकी ली है। यह सब तो यही दिखाता है कि कांग्रेस भारत जोड़ो नहीं वल्कि घृणा की राजनीति से भारत तोड़ो का काम कर रही है।

हाँ ! हाल के वर्षों में एक विघटनकारी प्रवृत्ति अवश्य प्रकाश में आ रही है और वह है छिटपुट मुसलमान नेताओं द्वारा देश के पुनर्विभाजन की धमकी ।मोदीजी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद भारत में ‘हिन्दू जागरण’ हो रहा है।कांग्रेस पार्टी के विगत की ‘हिन्दू-विरोधी’ या ‘मुस्लिम-परस्त’ नीति से लोग अवगत होते जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मुसलामानों की विघटनकारी षड्यंत्रों का पर्दाफ़ाश होता जा रहा है। दर्जनों भूमिगत इस्लामिक कट्टरवादी संस्थाएँ प्रकाश में आईं हैं। १९८०s का कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद अब देश के अन्य भागों में भी चोरी-छुपे चल रही है। यहाँ के मुसलमान अब खुले आम एक और जहाँ पाकिस्तान / बांग्लादेश से आए प्रताड़ित हिन्दुओं को नागरिकता देने का विरोघ कर रहे हैं वहीं अवैध मुस्लिम घुसपैठियों और तालिबानी मानसिकता का साथ देने लगे हैं। वे NRC के खिलाफ हैं। कट्टरवादी भारतीय मुसलामानों का 'गद्दार स्वरुप' उजागर होता जा रहा है। लेकिन मुसलामानों के इन बढ़ती विकृतियों से कांग्रेस या राहुल गांधी को कोई फर्क नहीं पड़ता। वे एक बार भी इन अतिवादी गतिविधियों की चर्चा नहीं करते। तो फिर क्या राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो’ का नारा लगाकर देश की जनता को बेवकूफ बनाने की कोशश कर रहे हैं ? सरसरी नजर पर तो यही लगता है; लेकिन इसके कई और पहलू भी हैं। कांग्रेस राहुल गांधी को बार-बार रष्ट्रीय पटल पर नेता के रूप में पहचान देने की कोशिश करती रही है लेकिन वे बारम्बार नाकामयाब रहे हैं। अब जबकि कांग्रेस के अंदर से ही बागी स्वर प्रखर होती जा रहीं हैं, पार्टी पर राहुल के वर्चस्व दिलाने का यह एक प्रयत्न लगता है। उधर कांग्रेस को यह डर भी सता रहा है कि G-२३ कहीं पार्टी के विभाजन का कारण न बन जाए। दूसरी तरफ आज हर विपक्षी नेता के मन में अगला प्रधानमंत्री बननें की लौलुपता बढ़ रही है I वहाँ कमजोर पड़ती कांग्रेस अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए संघर्ष कर रही है।

अभी ४ सितम्बर को रामलीला मैदान की रैली में एक और बात सामने आयी है। यह 'भारत जोड़ो' अभियान कांग्रेस और राहुल गांधी के वही पुराने चोंचले हैं जिन पर संसद में चर्चा से पार्टी और नेतृत्व भागती रही है ।महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती साम्प्रदायिकता और कथित रूप से सरकार द्वारा संस्थाओं का दुरूपयोग। देश में महंगाई दर 7% के आसपास है जो मोदी सरकार के मापदंड पर अवश्य ज्यादा है लेकिन कांग्रेस के UPA दिनों के 13% से लगभग आधा। इस महंगाई को अगर लोगों के आय के परिपेक्ष में देखें तो FY२०१३ में आय (Per Capita Income) $1450 था जो FY 2021 में तेजी से बढ़कर $2277 हो गया है । अतः महंगाई पर कांग्रेस का रोना यथार्थ नहीं है। महंगाई का एक कारण ईंधन की कीमत भी है जो अत्यधिक टैक्स के चलते बढ़ा हुआ है। इसके लिए राज्य सरकारें भी उतनीं ही जिम्मेवार है जितनी केंद्र सरकार। केंद्र सरकार चाहती है इसे GST के दायरे में लाया जाए लेकिन विपक्षी राज्य सरकारें इसके लिए सहमत नहीं है। अगर कांग्रेस चाहती है कि पेट्रोलियम और गैस का दाम कम हो तो वो अपने शासित राज्यों में टैक्स कम क्यों नहीं कर देती। यह भी कांग्रेस की सिर्फ वयानवाजी ही लगती है।

अभी केंद्र सरकार के बहुतेरे ऐसे कार्यक्रम चल रहे हैं जिनमें खर्च का भरमार सा है। तो सरकार को या तो ये कार्य बंद करने पड़ेंगे या फिर कहीं न कहीं से टैक्स तो लेना ही पडेगा। उम्मीद की जा सकती है कि निकट भविष्य में गरीब कल्याण अन्न योजना जिसमें पिछले २ सालों से ८० करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन बाँटा जा रहा है, कोविड टीकाकरण आदि योजनाएँ महामारी के नियंत्रण में आने के बाद शायद बंद या कम किया जाए।

जहाँ तक बेरोजगारी की बात है तो कोरोना काल में असंगठित क्षेत्र अप्रत्याशित रूप से प्रभावित हुई थी, कारोबार लगभग ठप्प सा हो गया था जो गत वर्ष के अंत तक संभल गया था। हाँ मोदी सरकार ने एक बड़ा कार्य किया है जिसमें स्वरोजगार के लिए लगभग ३५ करोड़ लोगों को ‘मुद्रा ऋण’ आवंटित किया है। यह जीविकोपार्जन का एक बड़ा श्रोत सावित हुआ है, वैसे यह बात और है कि भारत में लोग सरकारी नौकरी की ताक में लगे रहते हैं और जब भी कहीं नौकरी का विज्ञापन निकलता है वहाँ ये स्वरोजगारी भी आवेदन करते हैं। कोरोनाकाल में ज्यादा निजी या बहुराष्ट्रीय उपक्रम नहीं खुले हैं। पूरा विश्व इससे त्रस्त है और सिर्फ भारत सरकार को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।रोजगार सृजन के लिए राज्य सरकारें भी उतनी ही जिम्मेवार हैं लेकिन कुछ कर धर नहीं रहीं हैं I क्या राहुल गांधी और कांग्रेस बता सकती है कि अपने शासन काल में हाल के ५ वर्षों में किस राज्य में कितना रोजगार सृजन कर कितनों को सरकारी नौकरी दी है ? ठन ठना ठन। कुछ भी नहीं। (पढ़ें “विपक्षी राज्य सरकारें निकम्मी हैं; मोदी सबको रोजगार दे” https://articles.thecounterviews.com/articles/incompetent-opposition-ruled-state-govt-modi-to-give-employment/)। कांग्रेस शासित राजस्थान में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है। रोजगार पर कांग्रेस बिलकुल थोथा वयानवाजी कर रही है और करती कुछ नहीं। इन्हीं सब कारणों से कांग्रेस इन मुद्दों पर संसद में बहस से भागती रही है जो चर्चा के लिए उपयुक्त स्थान है।

देश में धार्मिक कट्टरता और असहिणुता बढ़ रहीं है जिसका मुख्य दो कारण हैं। एक तो बहुत तेजी से मुसलामानों की जनसंख्याँ वृद्धि इस कदर हो रही कि भारत का धार्मिक सांख्यिकी में खौफनाक परिवर्तन हो रहा है। हम भुगत चुके हैं जब मुसलामानों का प्रतिशत बढ़ता है तो हिन्दुओं पर किस तरह की प्रताड़ना होती है जिसका जीता जागता उदाहरण कश्मीर, बंगाल, असम और केरल है। मुसलामानों में कट्टरवाद, अतिवाद, आतंकवाद और असहिष्णुता का कारण कुरान की वो ६० आयतें हैं (पढ़ें “60 hateful and intolerant verses of Quran” https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-1/)। भारत में हिन्दुओं की इस दयनीय स्थिति के लिए सिर्फ कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति रही है। इस्लामी कट्टरवाद से कांग्रेस का साँठ-गाँठ पुराना है । कांग्रेस इन अतिवादियों से सम्वन्ध बनाए रखने के लिए किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकती है (पढ़ें “Congress loses conscience, allies with Radical Muslims” https://articles.thecounterviews.com/articles/congress-rahul-radical-muslims-furfura-iuml-kerala-assam-bengal/)।इन अतिवादियों और आतंकवादियों के खिलाफ कांग्रेस कुछ भी बोलने से परहेज करेगी और इनसे कुछ भी उम्मीद रखना बेकार है। अभी मुस्लिम कट्टरवाद और असहिष्णुता के खिलाफ भारत में ही नहीं वल्कि दुनिया भर में प्रतिशोध प्रतिक्रिया चल पड़ा है। यह भरोसा दिलाना होगा कि भारत जहाँ हिन्दुओं की उत्पत्ति हुई है, उनके धार्मिक सांख्यिकी में परिवर्तन नहीं होने दिया जाएगा या फिर भारत को "हिन्दू राष्ट्र" घोषित कर दिया जाए। लेकिन कांग्रेस अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के कारण कभी ऐसा करने के लिए तैयार नहीं होगी।

जहाँ तक देश के संस्थानों के दुरूपयोग का सवाल है तो यह सदैव से विवाद का विषय रहा है और कांग्रेस के सत्ता के दौरान ही उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि कुछ जाँच एजेंसी पिंजड़े की चिड़िया जैसी हो गयी है। मोदी सरकार आने के वाद पहली बार ऐसा हुआ है कि भ्रष्ट नेताओं को जेल जाना पड़ा है और उनके मन में डर बस रहा है। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मारे गए अनगिनत छापों में अवैध रूप से अर्जित धन टाल के टाल मिले हैं तो कांग्रेस उनपर क्यों उंगली उठा रही है। वह शायद इसलिए कि उनके अपने और देश के अधिकतर भ्रष्ट नेताओं के सपनें में कारागृह दीख रहा है। नीचे दिया गया चित्र यही दिखाता है।

यह ‘भारत जोड़ो’ नारा जो कांग्रेस या राहुल गांधी की ओर से आया मोदीजी के जनकल्याण के बहुतों नारों का नक़ल मात्र है, भारत के लिए नहीं अपितु कांग्रेस को टूटने से बचाने तथा राहुल गांधी के वर्चस्व को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयत्न लगता है।इसके बहाने कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती साम्प्रदायिकता और कथित रूप से सरकार द्वारा संस्थाओं का दुरूपयोग का मुद्दा उठाकर सिर्फ मोदी सरकार पर उंगली उठाने का तथा एक सुनियोजित रूप से झूठ व दुष्प्रचार फैलाने का प्रयत्न करेगी । कांग्रेस यह भी प्रयत्न करेगी कि कुछ विपक्षी दल भी इस प्रदर्शन से जुड़ें जिससे राहुल गांधी से ज्यादा सशक्त विपक्षी नेताओं को यह सन्देश जाए कि आने वाले वर्षों में प्रधान मंत्री पद के वे भी एक उम्मीदवार हैं। कांग्रेस नेताओं का "भारत जोड़ो" का यह पूरा क्रम सत्य कम मिथ्या ज्यादा लगता है।

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