Tejaswi & Nitish as Demons of Bihar

बिहार में रावण रूपी राक्षस का बढ़ता प्रकोप

बिहार को किसी की शाप लगी है।एक समय था जब यहाँ से लोगों और उनके प्रतिनिधित्व करते नेताओं का प्रबुद्ध व्यक्तित्व अपनी प्रखरता से देश और दुनिया को उजागर करते थे।प्राचीन बिहार में एक तरफ जहाँ मिथिला की प्रगाढ़ आध्यात्मिक सोच हुआ करती थी, वहीं पाटलिपुत्र और मगध की बौद्धिक सम्पदा तथा नालंदा में बुद्ध और बौद्ध का शान्ति भण्डार था ।पूरे राज्य में किसी भी चीज की कमीं नहीं थी।हाँ ! मध्य काल में हम कुछ हद तक असभ्य और क्रूर मुस्लिम शासक के हाथों सदियों प्रताड़ित हुए और तत्पश्चात अंग्रेजों की गुलामी।लेकिन ये यातनाएँ लगभग पूरे देश ने साथ-साथ सहा था ।स्वतंत्रोत्तर बिहार सुख और शान्ति का द्योतक रहा। अधिकाँश लोग छल कपट से दूर, मासूम, शांतिप्रिय थे और सादगी में विश्वास रखते थे। अधिकाँश लोग गरीब थे फिर भी कबीर के दोहे पर ज्यादा विश्वास रखते थे "साईं इतना दीजिए जा में कुटुम समाय; मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाय"। लोग कम आमदनीं में ही अपना जीवन यापन कर लेते थे।

पूर्वी पाकिस्तान से सटा क्षेत्र थोड़ा संवेदनशील अवश्य था लेकिन राज्य में मुसलमानों की आबादी बहुत कम थी और कमोवेश सौहार्दपूर्ण बातावरण था।हाँ ! १९४६ के बंगाल में मुसलमानों की हाथों नोवाखाली के हिन्दू नरसंहार के पश्चात बिहार के मुंगेर में मुसलमानों को प्रतिक्रिया झेलनी पडी थी जिसके उपरान्त बहुत सारे मुसलमान बंगाल पलायन कर गए थे जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना। बिहार में मुस्लिम वाहुल्य इलाकों में इक्के दुक्के हिन्दू प्रताड़ना की खबर आती थी जिसकी प्रतिक्रया १९६६ के भागलपुर दंगे में फिर से देखने को मिला था।पूर्णियाँ जिला में भी कुछ मुस्लिम वाहुल्य ब्लॉक थे लेकिन कोई बड़ा अशांत क्षेत्र नहीं था। पूर्वी पकिस्तान में चल रहे इस्लामी उत्पात और सेना के दमन के विपरीत बिहार में शान्ति थी।

स्वतन्त्रता उपरान्त बिहार की राजनितिक स्थिरता कोई ख़ास सुदृढ़ नहीं थी।हमनें छोटी छोटी अवधि के लिए बहुतेरे मुख्य मंत्री देखे।उन्होंने विकास के कोई दीर्घकालीन प्लान नहीं बनाए और बिहार आर्थिक व औद्योगिक पथ पर पिछड़ता गया।श्रीकृष्ण सिन्हा के १३ साल की अवधि में कुछ प्रगति देखने को अवश्य मिली थी लेकिन १९६१ में उनके जानें के बाद राजनैतिक उठा-पटक व अस्थिरता में बिहार धीरे-धीरे पिछड़ता ही चला गया I इन वर्षों में बिहार का लगभग सर्वांगीण ह्रास हुआ था । विकास के लिए कोई नयी परियोजना नहीं शुरू की गयी, कोई नया उद्योग नहीं आया।शिक्षा तथा लोगों का जीवन स्तर गिरता गया और लोग गरीबी रेखा के नीचे आते चले गए (पढ़ें "बिहार कहाँ था, कहाँ है और कहाँ जा रहा है ?”, https://thecounterviews.com/articles/development-of-bihar/) ।

फिर गरीब घर में जन्मे एक छात्र नेता लालू प्रसाद यादव, जो जयप्रकाश आंदोलन के दिनों निखरा, १९९० में बिहार का मुख्यमंत्री बना जिस पर बिहार को काफी उम्मीदें थीं। शुरू के सालों में उसने पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कुछ कल्याणकारी कदम भी उठाए लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षा में उसने स्वयं एवं अपनी पत्नी रबड़ी देवी के मार्फ़त बिहार को पिछड़ापन की तरफ धकेलता चला गया ( पढ़ें "लालू कुनबा और बिहार का दुर्भाग्य", https://thecounterviews.com/articles/lalu-yadav-misfortune-of-bihar/) । उसकी एवं पत्नी रबड़ी की भी दस सिरों वाले रावण-सुरसा जैसी ही राक्षसी वृत्ति थी। उसने राक्षसी प्रवृत्ति अपनानें वाले वर्ग ‘रूढ़िवादी इस्लामियों’ से अपनी साँठ-गाँठ कर ली थी (पढ़ें "इस्लाम और राक्षसी प्रवृत्ति", https://thecounterviews.com/articles/islam-demonic-culture/) और अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षा साधनें के लिए मुस्लिम - यादव (M-Y) फर्मूला बनाकर बिहार में दमन शुरू कर दिया था। इस दौरान बिहार भ्रष्टाचार, चोरी-डकैती, अपहरण व फिरौती तथा पिछड़ापन का प्रतीक बन गया था। ये सारी कुरीतियाँ रावण के दस सिरों का प्रतीक थीं। उन दिनों बिहार का शासन जंगलराज जैसा माना जाता था।इस दौरान बिहार में मुसलमानों की जनसंख्याँ में अप्रत्याशित वृद्धि हुई जिसमें अनगिनत अवैध बांग्लादेशी भी थे। इस रावण रूपी दानव का दमन आवश्यक था जो २००५ में नितीश कुमार के आने से हुआ। उस रावण व उसके परिवार पर अनेकों भ्रष्टाचार के आरोप लगेऔर वह कारागार में सलाखों के पीछे गया।उसने तरह तरह के भ्रष्टाचार कर हजारों करोड़ की संपत्ति इकट्ठा किया था जिनमें UPA सरकार में रेल मंत्री के दौरान "जमीन के बदले नौकरी" घोटाला भी शामिल था जिसका जाँच अभी भी चल रहा है। अब तो ऐसा माना जानें लगा है कि ऐसा कोई भ्रष्टाचार नहीं जो लालू या उसके कुनबे ने न की हो।

नितीश कुमार का बीजेपी के साथ मिलकर २००५ में बनाया सरकार एक स्वर्णिम समय था जब बिहार अप्रत्याशित रूप से कुछ क्षेत्रों में आगे बढ़ा था लेकिन बाद में नितीश में भी राजनैतिक महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी और अल्पमत में रह कर भी मुख्यमंत्री बने रहने के लिए वे ‘पल्टूराम’ के नाम से विख्यात होते गए।जब भी उन्हें अपनी कुर्सी या छवि अपने से दूर जाती दिखी, उन्होंने पलटी मारी और रावण रूपी राक्षसी प्रवृत्ति वाले दल से समझौता कर लिया ( पढ़ें "नितीश ने ली पलटी मार, फिर से आया जंगलराज", https://thecounterviews.com/articles/u-turns-in-bihar-nitish-govt/) । नितीश ने अपने राजनैतिक मूल्यों (जिसे सुशासन बाबू की संज्ञा दी जाती थी) एवं अंतरात्मा से भी समझौता कर लिया है जिसमें कुर्सी की लालच में वे अत्याचारी रावण और व्यभिचारी राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों के आगोश में चले जा रहे हैं जो किसी भी मामले में लकड़बग्घों से कम नहीं हैं (पढ़ें "बिहार के गड़ेरिये, भेड़ एवं लकड़बग्घे",https://thecounterviews.com/articles/tainted-politicians-of-bihar/)। गत वर्ष जब नितीश ने पलटी मारी तो उनकी सिर्फ प्रतिष्ठा ही नहीं गयी बल्कि वे उस रावण रूपी राक्षस के हाथ के खिलौना भी बन गए हैं।अब बिहार के शासन पर उनका अधिपत्य नहीं रहा।परोक्ष रूप से राक्षस-रावण-तंत्र चल रहा है।

Attacks on Hindu festivals in Bihar

साधुओं पर हमले, रामनवमी या अन्य पूजा और उत्सवों में बिहार में हिन्दुओं पर तरह तरह का राक्षसी आक्रमण चल रहा है; वह चाहे हाल के महीनों में बिहार के अन्यान्य जिलों, बिहार शरीफ हो या सीतामढ़ी, चम्पारण हो या सिवान। जहाँ भी मुसलमानों की प्रतिशत संख्याँ 10-11 % से ज्यादा होती है, ये राक्षसी आक्रमण बढ़ने लगते हैं।

Increasing Muslim% causing attacks on Hindu festivals

राक्षसी उत्पात तो चल ही रहा है; अराजकता, भ्रष्टाचार, ह्त्या, फिरौती का धंधा फिर से चल पड़ा है और विरोध प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस द्वारा प्रतारण आम बात हो गयी है चाहे वह छात्रों द्वारा प्रदर्शन हो या बीजेपी का विरोध। अभी हाल ही में शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं पर तो इस कदर पुलिस की बर्बरता की गयी है कि एक की मौत भी हो गयी है जिसके लिए रावण रूपी राजतंत्र को कोई ग्लानि नहीं है। 

A BJP worker killed by barbarism of Bihar police

अब रावण-तन्त्र नितीश को प्रधानमंत्री बनने का मृगतृष्णा दिखाकर दूध की मक्खी के तरह उठाकर फेंकनें की फिराक में है ताकि बिहार में सीधी रूप से पुनः ‘जंगल राज’ या ‘रावण राज’ स्थापित कर सके। इस रावण तंत्र का खात्मा भी अत्यावश्यक हो गया है चाहे वह प्रजातंत्र के दायरे में हो या रामनवमी उपरान्त रावण दहन।

Burning of Ravan

प्रजातांत्रिक पथ मुश्किल सा ही लग रहा है क्योंकि १० लाख सरकारी नौकरी देने का प्रलोभन देकर रावण-दल बिहार में सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी के रूप में उभरी है ।अब, जब ‘रावण रूपी राजतंत्र’ को १० लाख सरकारी नौकरी देने का चुनावी वादा पूरा करने के लिए कहा जा रहा है तो शासन तंत्र राक्षसी प्रवृत्ति दिखाने लगती है।

Bihar CM & DyCM running away from promised 10 lakh job

प्रादेशिक स्तर पर सबसे कम सरकारी नौकरी देने में बिहार सबसे ऊपर है जैसा संलग्न टेबल में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि प्रादेशिक सरकारी नौकरी में बिहार महाराष्ट्र की आधी से भी कम है। यहाँ तक कि कांग्रेस, समाजवादी व बहुजन समाजवादी पार्टी की अराजकता वाली सरकारों से त्रस्त UP आज ‘योगी राज’ में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रही है लेकिन बिहार जड़वत वहीं का वहीं है, वही “ढाक के तीन पात”I आज देश का कोई राज्य नहीं जहाँ बिहार के नागरिक मजदूरी के लिए मजबूर न हों। यहाँ तक कि वे श्रीनगर में जिहादियों द्वारा तथा तमिलनाडु में वहाँ के रूढ़िवादी मुख्यमंत्री के इशारे पर तथाकथित ईसाई कट्टरपंथियों द्वारा मौत के घात उतारे जा रहे हैं।

State employment in Bihar is the least in India

उपर्युक्त डाटा २०१७ के अंत का है।आज के दिन बिहार में लगभग ३.२ लाख सरकारी नौकरी रह गयी है।इसके अलावे बिहार में अन्यान्य मुख्यमंत्रियों की अनमनस्यता के कारण कोई निजी कंपनी निवेश करने से कतराती है कि कौन मरे उस रावण तंत्र और जंगल राज में। यही कारण है कि बिहार में सबसे अधिक बेरोजगारी है और लोग दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए ही सही, पलायन को मजबूर हैं चाहे वहाँ उनकी हत्याएँ ही क्यों न हो रही हो।

पिछले कुछ महीनों से बिहार के मुख्यमंत्री अपनी मृगतृष्णा की तलाश में बिहार को अपनी दुर्गति में छोड़, देश के तथाकथित सारे महाचोरों को इकट्ठा करने में लगे है कि किसी तरह मोदी जी को हराया जाय और वे प्रघान मंत्री बन सकें।आजकल तथाकथित VIP चोरों का गठबंधन बनाने की खबर जोर शोर पर है जिसमें एक से बढ़कर एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति अपनीं अभिलाषा पूरा करने की फिराक में लगा है।

ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आने वाले महीनों और सालों में ये रावण रूपी राक्षसी ताकतें बिहारी नागरिकों का दमन करेंगी क्योंकि यह उनके M-Y फर्मूले में है। मेरा अररिया जो ६० - ७० के दशक में १७ % मुसलमानों से साथ लगभग शांत था आज के दिन लगभग ४५ % मुसलमानों के साथ जिहादी रास्ते पर चल पड़ा है।आए दिन खबरें आतीं हैं कि मस्जिदों में बम बनाए जा रहे हैं।एक मुल्ला सायकिल पर बम लिए जा रहा था जिसके फटने से वह घायल हो गया।जिहादियों, मस्जिदों में बने हथियार को वहाँ की सरकार मुट्ठी भर मुसलमान वोटों के लिए अनदेखी क्यों के रही है ? किशनगंज आज मुस्लिम वाहुल्य हो गया है और हिन्दुओं को वहाँ से पलायन करने को वाध्य होना पड़ रहा है। यही हाल कटिहार का भी है।आखिर बिहार किस ओर जा रहा है ? बिहारियों की दुर्गति वहीं की सरकार क्यों कर रही है ? वहाँ की जनता को प्रण लेना होगा कि जहाँ तक हो सके, रावण रूपी राक्षसी ताकत को हराना ही होगा।बिहार को शाप चाहे जिसकी भी लगी हो, उससे मुक्त होने के लिए हम बिहारियों को रावण रूपी राक्षस से निपटना ही होगा।

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