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भ्रष्ट पार्टी की बीमारी से संक्रमित 'झा'?

यद्यपि मेरा नाम भी झा है लेकिन मैं कई नेताओं जिसका नाम 'झा' उपाधि से जुड़ा है उनकी आलोचना करने की हिमाकत कर रही हूँ। सदियों से उपाध्याय का कार्य करते हुए विद्या के सभी क्षेत्रों में 'झा'(ब्राह्मण) ज्ञानार्जन एवं ज्ञानदान करते रहे हैं। वे राजा-महाराजाओं को राजनीति के अलावे अन्य क्षेत्रों में भी निःस्वार्थ भाव से प्रजा के हित में उचित सलाह दिया करते थे। राजनीति में सलाहकार के तौर पर सदैव से ब्राह्मणों को प्रतिष्ठित किया गया है। चाहे रामायण काल हो, महाभारत काल हो, जैन काल हो या बुद्ध का युग हो; ब्राह्मणों को महामंत्री, राजनीतिक सलाहकार के रूप में प्रतिष्ठित करना राज्यों, प्रजा एवं राजाओं के लिए हितकर रहा है। प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्री चाणक्य एवं भगवान बसवेश्वर को भला कौन नहीं जनता है जिन्होंने गणतांत्रिक भारत के राजनीती की दशा एवं दिशा बदलने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है। आज भी उनके लिखित उद्धरण उदाहरण के रूप में शिक्षा जगत के सभी क्षेत्रों में (राजनीति, अर्थशास्त्र, तर्कशास्त्र,गणित,औषध, वास्तुशास्त्र, व्याकरण, ज्योतिष, हस्तरेखा, नक्षत्रों का ज्ञान, युद्ध आदि बहुत से क्षेत्र) उद्धृत किये जाते हैं। अपने स्वाभिमान, ज्ञान, देशभक्ति, जन - जागृती के प्रति कर्तव्यपरायण रह, वे समाज में सदा आदरणीय रहे हैं।

परंतु आजकल राजनीति में मौजूद अनेक ब्राह्मण एवं 'झा' उपाधि से विभूषित महानुभाव ने जगहँसाई में भी काफी नाम कमाया है। कुछ तो उदाहरण के लायक बन गए हैं। इनमें एक हैं "संजय झा' । पार्टी से निष्कासित किये जाने के बाद भी कोंग्रेस शहजादे के गुणगान में लगे रहते हैं। नेहरू खानदान की अनगिनत घोटालों, हिन्दू विरोधी कारनामों के ज्ञाता होने के बावजूद भी नेहरू-खान-गाँधी-माइनो परिवार के प्रति उनकी वफादारी सराहनीय है। कोंग्रेसी नेताओं द्वारा किये गए अनेकों असभ्य व्यवहार, अनगिनत हिन्दू विरोधी टिप्पणियों, वक्तव्यों के बावजूद वे अपने स्वाभिमान का त्याग कर, जाने किस लगाव से अभी भी कोंग्रेस एवं उनके शहजादे के लिए ही दिलो-जान लुटाने में लगे हैं। कभी भी अनर्गल एवं झूठे वक्तव्यों के विरोध में आवाज उठाने की या कोंग्रेस के शहजादे को कुछ समझाने की कोशिश नहीं की है। कोंग्रेस नेताओं के देश विरोधी, हिन्दू विरोधी, सनातन धर्म विरोधी अनुचित कृत्यों के कारण चाहे किसी भी हिन्दू का आत्म सम्मान आहत होता हो, परन्तु चाटूकारिता के अभ्यस्त झा जी, जैसे नेता विवेकहीन राहुल गाँधी के वक्तव्यों को उचित ठहराने की जी तोड़ कोशिश में लगे रहते हैं।

मुगल आक्रामकों एवं अंग्रेजों के अत्याचार के बावजूद ब्राह्मणों ने भारत की संस्कृति, सभ्यता एवं ज्ञान को अपने पुरुषार्थ एव त्याग से सुरक्षित रखा है। बिहार अपने तक्षशिला, नालन्दा आदि विश्वविद्यालय के लिए विश्वप्रसिद्ध रहा है। यहाँ की शिक्षा-शिक्षण, कला,समृद्धि, संस्कृति, अतिथि सत्कार, दानवीरता, सौंदर्य, बसंतोत्सव एवं अन्य त्योहारों के लिए ( जनक नंदिनी,दानवीर कर्ण,वैशाली) प्राचीन काल से प्रसिद्ध रहा है, जिसका स्पष्टीकरण विभिन्न ग्रन्थों में प्रमाण के तौर पर उपलब्ध हैं । सामाजिक एवं राजनीतिक क्रान्ति को देखें तो सबसे ज्यादा क्रांति का बिगुल भी यहीं से देश में फूका गया है। समयांतराल में कलुषित नेताओं के प्रकोप एवं अराजकता के कारण बिहार में बहूत कुछ बदल गया है। लल्लू यादव, उनके कुपुत्रों तथा उनके समर्थक नेताओं ने बिहार के नौजवानों के भविष्य के साथ तो खिलवाड़ किया ही है, वहाँ के सामान्य गरीब जनता का स्वाभिमान के साथ जीना भी मुश्किल कर दिया है। देश के प्रत्येक कोने में बिहारी मजदूर काम करते दिखाई दे जाते हैं। बाहर के राज्यों में उन्हें भाषाई, शारीरिक असुरक्षा आदि के अलावे भी अनेक अपमान जनक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जीवट एवं मेहनती होने के बावजूद नीतीश और लालू के शासनकाल में रोजगार के अभाव के कारण गरीब बिहारी अन्य राज्यों में पलायन के लिए मजबूर हैं। समाचार पत्रों में भले कुछ न लिखा जाए परन्तु बिहार में स्त्रियों एवं युवतियों की सुरक्षा अभी भी प्रश्नावली बनी हुई है।
यहाँ के नेता 'मनोज झा' जब मोदी जी की निंदा करते हैं , देश की बेरोजगारी, स्त्री सुरक्षा, अराजकता, भ्रष्टाचार एवं कई राजनीतिक मुद्दों पर उन्हें घेरने की कोशिश करते हैं तो उनकी बेशर्मी पर तरस आता है क्योंकि ये उसी पार्टी से संबंधित हैं जहाँ लूट, जबरन वसूली, घोटालों, स्त्रियों, बच्चों, व्यापारियों, सम्मानीय व्यवसायिकों को अगवा किये जाने का लंबा इतिहास रहा है। ( ज्वैलैर्स को लुटने, चारा घोटाला, घूसखोरी, रेलवे की नौकरी के लिए जमीन घोटाला एवं अन्य भी बहुत से) I RJD के "मनोज झा" दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर होते हुए भी चारा चोर की चाटुकारिता में इतने मगन हैं कि अपने व्यक्तित्व तक को भूल चुके हैं। चारा चोर एवं उसके नवी फेल कुपुत्र जो बिहार में जंगलराज की पुनर्स्थापना में लग्न हैं, के इर्द गिर्द मड़राते दीखते हैं। इनका हर वक्तव्य, हर शब्द उस चोर परिवार के गुण-गान में होता है चाहे वह सदन के पटल पर हो या टीवी के कैमरे के सामने। इनकी पार्टी चाहे ब्राह्मणों को गाली ही क्यों न दे रही हो, ये सब झेंप कर अपने मालिक के सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। किसी ने सच ही कहा है "चांदी के जूतों की मार खानें की बीमारी विचित्र होती है, बड़ों बड़ों को गुलाम बना देती है" ।

आम आदमी पार्टी के मुख्य-मुख्य तथाकथित ईमानदार कई नेता शराब घोटाला, दवाई घोटाला, ऑक्सीजन सिलिंडर घोटाला, दिल्ली की जमीन घोटाला, विकास के लिए दिए गए पैसों का घोटाला, राशनकार्ड एवं राशन घोटाला, दंगे करवाने आदि अनेक कारणों से जेल की हवा खा रहे हैं। कुछ नेता कोर्ट एवं प्रवर्तन निदेशालय के चक्कर लगा रहे हैं। यहाँ पर 'आम आदमी पार्टी' के सर्वश्रेष्ठ गुरु आई. आई. टी.के उत्पाद बड़े बजट वाले शीशमहल में आनंद मना रहे हैं। जब-तब प्रवर्तन निदेशालय के अफसरों को भी चकमा दे रहें हैं परन्तु उनके पालित नुमायिन्दों ने उनकी जगह मोर्चा संभाल लिया है। ये नुमाइंदे उन्हें कट्टर ईमानदार बताने के कर्तव्य पालन में लग गए हैं। ( यहाँ यह मुहावरा बिलकुल सटीक बैठता है " तू मेरी पीठ थपथपा मैं तेरी थपथपाता हूँ ) इनके पार्टी प्रवक्ता वफादार ''दीपक झा' अपनी इस पार्टी के घोटाले बाजों को ईमानदार साबित करने की कोशिश में बयानबाजी करते हुए एवं कई घिसे-पिटे मुद्दों पर मोदी जी के व्यक्तित्व पर प्रश्न उठाते हुए अत्यंत दयनीय एवं हास्यप्रद नजर आते हैं।
कम्युनिष्ट पार्टी के ''दीपक झा' को सलामी देना चाहिए जो देश की बर्बादी की जड़ कम्युनिष्ट पार्टी के समर्थन में देश की वास्तविकता एवं जनता की जमीनी हकीकत समझ कर भी नासमझ बन दलीलें एवं वक्तव्य देते रहते हैं।

बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा एवं सुप्रीमों दलित की बेटी की जगह दौलत की बेटी बन गयी हैं, उनके जन्मदिन मानाने के लिए भी आम जनता से जबरन वसूली की जाती थी। समाजवादी पार्टी के लिए कुछ भी कहना आफत को बुलावा देने के सामान है। मुलायम सिंह यादव एवं अखिलेश यादव के द्वारा हिन्दुओं, साधुओं, कार सेवकों पर किये गए अत्याचार को जनता द्वारा भुला दिया जाना असंभव है फिर भी कोशिश तो जारी है कि जनता उन्हें ही जंगल राज लाने के लिए सत्ता में वापस लायें। विकास के नाम पर समाज वादी पार्टी ने हज़ हाउस, कब्रिस्तान एवं अपने परिवार का ही विकास किया है तथा मायावती ने हाथियों की मूर्तियाँ । नौकरियों में हालात तो ऐसे हो गए थे कि सवर्णों एवं हिन्दुओं के हिस्से कुछ भी नहीं आता था। यद्यपि इस पार्टी के प्रवक्ता कोई "झा" नहीं हैं अन्यथा वे भी अखिलेश यादव एवं दौलत की बेटी के सारे कारनामों को जायज ठहराने में माहिर नजर आते।

अन्ततः लोकसभा की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले मास्टरमाइंड के रूप में 'ललित झा' ने अच्छा नाम कमाया है। जाने किस दबाव, कुण्ठा, निराशा या किसी और कारण से वे किसी देशविरोधी, मोदीविरोधी शातिर दिमाग वाले सियार के जालसाजी के जाल में फंस कर, अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर गए हैं। ये जिसके द्वारा प्रेषित हो, उनके द्वारा बनाये गए चक्रव्यूह के अन्दर भेजे गए अभिमन्यु हैं, उसका पता लगाना अतिआवश्यक है। इस चक्रव्यूह के सूत्रधार के जाल से शातिर खिलाड़ी तो निकल ही जाएंगे, धरणाजीवी सपना के लिए तो ये उनके रोजगार का ही हिस्सा है परंतु इन खुराफाती जवानों का खास कर ''अमित झा" का भविष्य जेल की सलाखों के अंदर ही होगा। उनकी सहायता के लिए, उसके परिवार से या उसे फँसाने वाला भी कभी उसे बचाने नहीं आएगा। ऐसे देशद्रोहियों एवं जालसाजों के चंगुल में फँसना ही ललित झा के लिए शर्मनाक है।

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