सम्पादकीय : "चित भी मेरी,पट भी मेरी"
कई खेलों में खेल से पहले सिक्का उछाला जाता है । खेल का आरम्भ सिक्के के पहलू को चयन वाले की किस्मत पर निर्भर होता है जिसके कारण टीम का नेता निर्णय अपने पक्ष में लेता है। यूँ तो इस कोरोना तांडव के बीच जिंदगी भी खेल ही लगने लगी है। कोरोना तांडव से पूरी दुनियाँ में हाहाकार मचा है।फिर भी लोग इन पंक्तियों को समझने की कोशिश भी नहीं करते हैं और विभिन्न मानवता विरोधी कार्यों में लिप्त रह रहे हैं।
"पानी के रा बुलबुला, अस मानव की जाती".......
"यह संसार चहर की बाजी, साँझ पड़े उठ जासी'.....
'कुछ भी साथ नहीं जाएगा, सब यहीं धरा रह जायेगा।......
ये सारे नीति और ज्ञान के दोहे बचपन से स्कूलों में पढ़ाये जाते है ताकि अच्छे मनुष्यों का निर्माण किया जा सके, परन्तु क्या अच्छे मानव का निर्माण हो रहा है ? या तोते की ही तरह रट रहे हैं कि" शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, लोभ से उसमें फँसना नहीं " और सभी जाल में फँसते जा रहे हैं।
बहुत सारे पढ़े-लिखे नेताओं और अमीरों के वक्तव्य, कार्यशैली तथा कार्यनामें देख कर लगता है कि इन्होंने अश्वत्थामा की तरह अमरता का वरदान पाया हुआ है।पापी नेताओं और अश्वत्थामा के बीच अंतर बस इतना है कि अश्वत्थामा अपने पाप के लिए शर्मिंदा था, उसने माफी भी माँगी थी।परन्तु अक्षम्य पाप के कारण वह दण्ड का अधिकारी था और उसे दण्ड मिला भी था। वह मणि छीने जाने पर निरंतर रक्त के रिसाव के साथ घिसटते हुए शापित और घृणित पात्र का जीवन जीने को मजबूर था या अभी भी है, (क्योंकि अश्वत्थामा अमर है)
आज अश्वत्थामा जैसे ज्ञानी नेता जगह-जगह भरे हुए हैं,जो निरीह जीवन को मौत के मुँह में धकेल कर सोचते हैं कि ईश्वर से उन्हें माफी मिल जाएगी। वे पापी नेता पाप कर्मों से उगाहे गए धन लेकर या तो अमरता को पायेंगे या शायद मृत्यु पश्चात भी साथ ही ले जायेंगे।ऐसे नेताओं को सिर्फ ईश्वर ही सजा दे सकते हैं या इन्हें वक्त ही सुधार सकता है।इन्हें जब कोर्ट की फटकार लगाती है तो दूसरों पर दोषारोपण कर, अपनी जिम्मेदारियों को दूसरों के कंधों पर डाल, अपने कंधों को हल्का कर लेते हैं फिर जजों को नए तरीके से घूस देकर खुश करने की कोशिश करते हैं।
इस तरह 'चित भी मेरी, पट भी मेरी' की कहावत को सत्यापित करने में लग जाते हैं।नाम लेना उचित नहीं है क्यों कि सार्वजनिक बदनाम चिफमिनिस्टरों के कारण उन राज्यों की निरीह जनता बेमौत मर रही है और ये नेता लोग न जाने अपनी कितनी पीढ़ियों की संतानों के लिए लूट-खसोट, काला-धंधा, भ्र्ष्टाचार कर धन इकट्ठा करने में लगे हैं।
एक व्यक्ति यदि भीष्म पितामह की तरह भारत के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षित रखने की कोशिश में जल-थल-नभ के मार्गों के द्वारा हर प्रकार की सुविधायें एकत्रित कर उसका आवंटन कर रहे हैं तो मानवता के दुश्मन, बिष-वमन करने वाले, दंगाजीवियों को तोड़-फोड़, लूट-पाट, काला-बाजारी, भृष्टाचार यहाँ तक कि ऑक्सीजन एक्सप्रेस की यात्रा में व्यवधान डालने के लिए रेलवे पटरियों को भी उखाड़ने में व्यस्त हैं।
वामपंथी, नक्सलियों और गुण्डों के संरक्षक नेताओं को देश की जनता के लिए न तो सुविधायें प्रदान करनी होती है न ही कुछ अनुदान करना होता है बस झूठ तथा जुबानी गन्दगी फैला कर, घटिया राजनीति कर, अराजकता, असुरक्षित वातावरण उत्पन्न करते रहते हैं।काम करने वालों को भी देश के ऐसे धूर्त, ग़द्दार और देश के दुश्मन नेता न सिर्फ हतोत्साहित करते हैं बल्कि कार्य को सुचारू रूप से सम्पन्न होने देने में कई प्रकार से बाधायेंउत्पन्न करते हैं।बाहर के देशों में अपने ही देश के प्रधानमंत्री तथा ईमानदारी से काम करने वाले देशभक्तों को बदनाम करने के लिए किसी भी हद तक नीचता भरे काम और विदेशी चैनल पर देश के खिलाफ वक्तव्य देते हुए घटियापन दिखाते हैं।
दुःखद एवं हास्यप्रद दृश्य तब होता है जब कि देशभक्त या निःस्वार्थ व्यक्तियों द्वारा लोक हित में कार्य सम्पन्न किये जाने के बाद ये दिखावे के लिए सामने आते हैं। दुमुँहा, दोहरे चेहरे वाले बेशर्म नेता अपनी पीठ थपथपाने का देशभक्तों द्वारा किये गए काम का श्रेय लेने की कोशिश में बड़ी ही तल्लीनता और बेशर्मी से कूद-कूद कर टी. वी. चैनल पर पैसे दे-दे कर स्वयँ के प्रचार के लिए आगे आ जाते हैं,ताकि मीडिया उन धूर्त नेताओं के कुकर्मों को उजागर नहीं करे। मीडिया भी आज्ञाकारी की तरह इनसे इनके निकम्मेपन या असफलता के बारे में कुछ नहीं पूछते हैं।
अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर येईमानदार व्यक्तियों की आवाजें दबा कर सिर्फ अपने स्वार्थपूर्ति के लिए निरंतर भोली-भाली, बेबस जनता को छलते रहते हैं।सत्ता एवं मीडिया का दुरुपयोग करने वाली राज्यों के नेताओं, बिके हुए मीडिया एवं पत्रकारों को जो गिद्धों की तरह लाशों की राजनीति से पैसे बना रहे हैं, अपनी प्रत्येक असफलता एवं लापरवाही को केंद्र सरकार पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं, क्या ये माफी के लायक हैं ? क्या झूठ फैलाने वाली मीडिया को, बिके हुए पत्रकारों को लापरवाही बरतने वाली भष्टाचारी नेताओं को सजा नहीं मिलनी चाहिए ?
यहाँ 'चित भी मेरी पट भी मेरी' की कहावत इसलिए कही गई है क्योंकि जहाँ बी जे पी की राज्य सरकारें हैं वहाँ विपक्षी सी.एम.को दोषी ठहराती है और जिन राज्यों में वामपंथी कोंग्रेसियों या अन्य पार्टियों की वामपंथी गठबंधन वाली सरकार है वहाँ अपने निकम्मेपन और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिये केंद्र सरकार और मोदी को दोषी ठहराने की कोशिश में लगी रहती है।
अर्थात कुकर्म कितने भी किये जायें पर वामपंथी होने के नाते हमारा कोई दोष नहीं है, क्योंकि गणतांत्रिक व्यवस्था में ईमानदारी से काम करने वाले पी.एम को गालियाँ दे सकते हैं, फौजियों को बदनाम कर सकते हैं, हिन्दुओं और राष्ट्रीय सेवक संघ को भी आतंकी कह सकते हैं परन्तु वामपंथी गुण्डों, देशद्रोहियों, आतंकियों, आतंकवाद के समर्थकों, तस्करों हत्यारों को कुछ नहीं कह सकते हैं। अजीब मानसिकता है, ऐसे लोग जो सभी अनैतिक बुरे काम काम के अलावे हत्याकांड तक को अंजाम देते हैं, उनकी भावनाओं को भी ठेश पहुँचती है।
सेक्युलरिज्म, अभिव्यक्ति की आजादी,मानवाधिकार, ये सभी सामान्य लोगों के लिए व्यंग्यात्मक तथ्य हैं और वामपंथी देशद्रोहियों के लिए हथियारों की तरह हैं। सत्ता में रहते हैं तो लूट कर देशवासियों को लाचार बनाते हैं, सत्ते से बाहर हों तो दंगे-फ़साद, लूट-पाट, खून-खराबा और जाति-पाँति, धार्मिक विभेदी करण, जिहादी वक्तव्यों द्वारा फूट डाल कर जनता को देश को बर्बाद करते हैं, लोगों को सताते हैं।