बुर्का-हिज़ाब,घूँघट, बिकनी
कुछ दिनों में अचानक ही हिज़ाब की आवश्यकता ने कुछ ऐसा तूल पकड़ा कि मुस्लिम लड़कियों ने हिज़ाब की हिफाजत के लिए स्कूलों-कॉलेजों से लौटना बेहतर मान लिया। सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास घूँघट, बुर्का-हिज़ाब, बिकनी विवाद पर अटक गया है।
दूसरी बार मोदी जी के पी एम बनने के बाद से विपक्षी विरोधी पार्टियों का उद्देश्य और अभियान मोदी हटाओ तक ही सीमित रह गया है। मोदीजी और भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदनाम करने के लिए अनेकानेक देशविरोधी कारनामों में धारा 370, 35A विरोध, राम मंदिर विरोध, सी.ए.ए.विरोध, किसान आंदोलन, हिज़ाब प्रदर्शन भी शामिल है। देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त प्रतिबंधित संगठनों ने असन्तुष्ट सत्ता विहीन राजनीतिक पार्टियों तथा नेताओं को ढाल बना कर मनमानी आरम्भ कर दी है। हिज़ाब-विवाद का बीजारोपण तीन साल पहले जमातियों को इकट्ठा करने के लिये संचार साधनों के द्वारा सक्रिय ढँग से उत्प्रेरित किया गया जो मुख्यतः कट्टर इस्लामिक संगठनों द्वारा चलाये जाने वाले विश्व स्तरीय जिहाद का ही हिस्सा है। संदेहास्पद तथा अनुमानित तौर पर इसे कोंग्रेसियों द्वारा चलाये गए मोदीविरोधी सजिशी हथियारों (टूलकिट) का प्रायोगिक स्वरूप कहा जा सकता है।
जहाँ तक हिज़ाब का सवाल है मध्यएशिया के इस्लामिक देशों में इसे पहनने की मजबूरी अनेक कारणों से है।रेगिस्तानी धूल,अत्यधिक गर्मी, पुरुषों से हीन समझी जाने के साथ-साथ औरतें पुरुषों के लिये शारीरिक संतुष्टी की सामग्री एवं बच्चों को पैदा करने वाली उपकरण मात्र मानी जाती हैं। बहुविवाह, नजदीकी रिश्तों में विवाह, तलाक, पुनर्विवाह आदि कुप्रथाएँ समाज में गहराई से मौजूद हैं। औरतों का अकेले घर से निकलने पर बंदिश होने के कारण वे मौलानाओं एवं संरक्षकों द्वारा तय किये गये करारी विवाह, मुत्ताविवाह आदि अनेक कुरीतियों की शिकार बनी हुई हैं, जिसके बारे में या प्रतिकार में कुछ भी बोलने की उन्हें इजाजत नहीं है। कई देशों में अनैतिक कार्यों में लिप्त औरतों के लिए हिज़ाब पहचान छुपाने का साधन है। पुरुष प्रधान बर्बरता के उपासक इस्लामी समाज में बुर्का विहीन होना प्रतिबंधित है परन्तु बहु विवाह, पुत्री की उम्रदराज लड़कियों या दत्तक पुत्री के साथ पिता के निक़ाह को यही समाज गलत नहीं बताती है। सच्चाई यही है कि मझहब के नाम पर घृणित मानसिकता, अमानवीय संस्कार, असभ्य संस्कृति तथा कुकर्मों का ठीकड़ा औरतों के सिर फोड़ना ही ये पुरुषार्थ या मर्दानगी समझते हैं।
कम उम्र के बच्चों को लोभ, लालच या धमकी देकर उन्हें मानसिक गुलामी में बाँध पर-धर्म से घृणा, नफरत सिखा उन्हें आतंकी गतिविधियों में प्रवीण करना आसान होता है।बच्चों के कोमल तथा अपरिपक्व मानसिकता का फायदा स्वार्थी तथा अनैतिक कार्यों में लिप्त मौलवी, नेता या कट्टर पंथी संगठन ही लेते हैं। जैसा कि तालिबानियों द्वारा अफगानिस्तान में तथा अन्य आतंकी संगठनों द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलावे अन्य इस्लामिक देशों में दिखाई दे रहा है।
भारत के मौसम, तापमान, प्राकृतिक संतुलन के आधार पर प्रत्येक प्रान्त तथा समाज में परिधान भी अत्यधिक संतुलित हैं। सामाजिक, नैतिक एवं पारंपरिक संस्कारों के तहत किसी भी क्षेत्र में अर्धनग्नता या पूर्णरूप से काले पिटारे में बन्द होना, भारतीयों के लिये आवश्यक नहीं है; अतः स्वाभाविक रूप से हिजाब और बुर्का अस्वीकार्य होना चाहिए।
दोहरीकरण की मानसिक विकृति के शिकार लोग घूँघट, पगड़ी या हिज़ाब पर उटपटांग बयान दे कर खुद को तीसमारखाँ समझते हैं। इन्हें इनके बीच के अंतर और सांस्कृतिक गहराइयों को समझना चाहिए। घूँघट अपने बड़ों के प्रति सम्मान प्रदर्शन के भाव से जुड़ा तथ्य है जिसे नासमझों ने पिछड़ों और गुलामी की निशानी बताया है जबकि काला हिजाब औरतों पर इसलिए लादा गया ताकि पुरुषों की गलत नीयत से बचा जा सके। इस्लामी संस्कृति में जहाँ औरतें मात्र भोग्या हैं, रिश्तों की अहमियत आदर्शहीन तथा परिवर्तनशील भी हैं तो पर्दा स्त्री-सुरक्षा से ज्यादा कुरीतियों को सुरक्षित रखने के लिए उपयोगी है।
काफी नारे सुनने में आये हैं- "औरतें हिज़ाब में रहें, दुनियाँ औकात में रहेगी।"
कोई यह क्यों कहता है कि "दुनियाँ औकात में रहें तो औरतों को हिजाब की जरुरत ही नहीं होगी।"
मज़हबी मानसिक विकृत लोगों के घृणित कुकर्मों का पर्दाफाश तो आये दिन होता ही रहता है तो क्या प्रत्येक मादाजीवों को बुर्का पहनाया जाना चाहिए ?
इस मझहब विशेष के मानसिक रोगी को स्वयँ को सुधारने की अत्यधिक आवश्यकता है। इनके मदरसों से मिलने वाली तालीम ने इन्हें जानवरों सा असभ्य और बर्बर बना दिया है। उपरोक्त कथन का तात्पर्य यह नहीं है कि प्रियंका वाड्रा की तरह मैं भी किसी संस्थान या नागरिक स्थानों पर बिकनी या फटे पोशाकों के समर्थन में हूँ, कदापि नहीं। हमारी भारतीय संस्कृति में पली-बढ़ी स्त्रियाँ किसी भी अतिवादिता का समर्थन नहीं करती हैं। बिकनी या बुर्का-हिजाब दोनों ही आयातित विदेशी संस्कृति की देन है जो हमारी सुसंस्कृत, शालीन सभ्यता के लिए नासूर है। जिन्नावादी भी जिन्ना के साथ मुस्लिम लड़कियों के बिना हिजाब वाले फोटोग्राफ देख सकते हैं। बहुत से इस्लामिक देशों में भी विद्यार्थियों के लिए विद्यालय द्वारा नियोजित हिजाब विहीन पोशाकों की अनिवार्यता का पालन किया जा रहा है तो भारत में बुर्का या हिज़ाब के लिये जिद क्यों है ?
भारत की स्त्रियों को सार्वजनिक स्थानों पर इन दोनों ही विदेशी आयातित परिधानों ( बिकनी एवं बुर्का-हिजाब) का विरोध कर अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहिए। मौसम के अनुरूप सुरुचिपूर्ण सुंदर शालीन परिधान के साथ स्वतंत्र-अनुशाषित जीवन शैली तथा वैचारिक उदारवादी प्रगतिशीलता को मानवकल्याण के लिये अपनाना ही हमारी सभ्यता है।
87% मुस्लिम जनसंख्या वाले देश में भी हिजाब स्कूली परिधान का हिस्सा नहीं है। 26/11 के आतंकी हमले के गुनहगार आतंकवादियों को पनाह देने वाले मास्टरमाइंड अबू जिंदाल के घर में 'पहले हिज़ाब फिर किताब' के पोस्टर लगे हैं जो स्त्रियों के प्रति उसकी मानसिकता को दर्शाता है।