Balloons of politics

गुब्बारा फट गया

बचपन से हम गुब्बारों के साथ खेलते आये हैं।रंग-बिरंगे गुब्बारे सभी को आकर्षित करते हैं।सजावट की यह सामग्री काफी अनोखी होती है, इसे फुलाने में भी आनन्द आता है।जब तक यह फूली हुई हो उसे लेकर बच्चे खेलते हैं, सजावट के लिये भी प्रयोग में लाये जाते हैं।किसी बच्चे के जन्मदिन पर तो इसे विशेष रूप से सजाया जाता है,लेकिन उछालते, खेलते या फुलाते वक्त अगर यह फट्ट की आवज से फटता है तो गुब्बारे से सम्बंधित व्यक्ति चाहे वह बड़ा हो या बच्चा! का चेहरा देखने लायक होता है।चेहरे के स्वतः प्रदर्शित भाव की व्याख्या करना अत्यंत कठिन है। गुब्बारों का उपयोग चाँद पर सेटेलाइट की सुरक्षित लैंडिंग के लिए भी की जाती है, जिसके कारण महत्वपूर्ण यंत्र क्षतिग्रस्त होने से बच जाते है। मुख्यतः गुब्बारे के अंदर की हवा ही एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है, परन्तु फटने के बाद ये बेकार रबर हो जाते हैं।

हमारे नेता भी गुब्बारों की तरह फूले-फूले जहाँ-तहाँ चुनाव से पहले घूमते रहते हैं, वोट के लिए अनेकों प्रकार के वादे करते हैं।जनता भी लुभावने वादों पर मोहित हो कर कभी किसी पार्टी को तो कभी किसी अन्य पार्टी को अपने मत देकर तो कभी अपने मत बेच कर अपने भाग्य का निर्माण करती रहती है। देश की परिस्थितियों एवं कार्यों से अनभिज्ञ या आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर पार्टियों को सत्ता पर आसीन या सत्तारहित करती रहती है। जनता भी गारंटियों और वायदों को देख-सुन गुब्बारों से फूल जाते हैं परन्तु चुनाव जीतने के बाद 'नेता-कुनबा' लगायी गई 'चुनावी पूंजी' की सूद सहित वसूली में लग जाते,जनता की उम्मीदों का गारंटर और गारंटी का गुब्बारा फट्टाक हो जाता है। नेताओं द्वारा पाले हुए गुण्डों-मवालियों की बल्ले-बल्ले हो जाती और जनता नेताओं और गुण्डों के बीच घुन के समान पिसते रहते हैं।

भारत में जहाँ हिन्दुओं का उद्देश्य रोटी-पानी-विद्युत या मुफ्त के वादों की उम्मीद तक सीमित रह गया है, वहीं मुसलमानों के प्रत्येक संरचनात्मक, संयोजन एवं कार्यात्मक कदम गजवाये हिन्द एवं हिन्दुओं के खात्मे की ओर बढ़ रही है। मुस्लिम की चालबाजी में पिछड़ी जातियाँ एवं जनजातियाँ बहुत आसानी से आ जाती हैं, भीम-मीम का नारा, हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई का नारा, कुछ दारू की बोतलें या अस्थायी सम्मान पिछड़े जातियों को इतना रोमांचक लगता है कि वे मुस्लिम के अलताकिया चालों को नहीं समझ पाते हैं। इनकी अज्ञानता का फायदा उठा मुस्लिम इन्हें स्वजातीय एवं सवर्णों के खिलाफ भड़काते हैं। अंबेडकर के विचारों का आधा ज्ञान दे कर इन्हें गुब्बारों की तरह फुला-फुला कर इनका इस्तेमाल स्वयँ का स्वार्थ साधने के लिए करते हैं।हर दोस्ती को इस्लामी एजेंडे के तहत इस्तेमाल किया जाता है। स्वयँ के पक्ष में मत हासिल कर मुसलमानों के लिए काम करने वाले नेताओं के जीतते ही अनुसूचित जातियों के बच्चे-स्त्री-युवा जिहादियों के शिकार बनने लगते हैं।

कुरान की एक विचार धारा कि काफिरों से दोस्ती कर उसका भरपूर फायदा उठाओ, उसे अपने दीन की तरफ आने अर्थात इस्लाम अपनाने के लिए समझाओ, बाध्य करो,अन्यथा उन्हें इस्तेमाल करने के बाद मार डालो, न काफ़िर जिंदा रहेगा न ही तुम पर उसका कोई एहसान रहेगा। भाई-चारे का नारा भी छत्तीस का आंकड़ा है इसे सिर्फ इस्लाम और इस्लामियों के लिए ही फायदेमंद होना तक ही सीमित रखा गया है अन्यथा यही नारा मुस्लिम भाई द्वारा हिन्दुओं एवं अन्य गैर इस्लामियों को चारा बना कर चबाने में तब्दील हो जाता है।

मुसलमानों के वोट से जीत हासिल करने वाली सरकार जहाँ मुसलमानों को खुश करने में लगी होती है वहीं वोट और टैक्स देने हिन्दुओं के सताए जाने पर वह आंखें मूंदे पड़ी होती है। इसका जीता-जागता उदाहरण राजस्थान, हैदराबाद, कर्नाटक,बिहार,कर्नाटक,तमिलनाडु, केरल,महाराष्ट्र, पंजाब, झारखंड,बंगाल के सवर्ण हिन्दू, अनुसूचित जाति एवं जनजातियाँ है, जिनके घर के बच्चे, बेटियाँ, पत्नी तक भी सुरक्षित नहीं हैं। मुल्लों को आये दिन नए-नए संवैधानिक अधिकार, आरक्षण, जमीनें सौंपने वाले एवं हिन्दुओं से गद्दारी करने वाले, हिन्दू नेता ही हिन्दुओं के दुश्मन बन जाते हैं।
स्वतंत्रता के बाद से आये दिनों हिन्दुओं के संवैधानिक अधिकारों को निरंतर कम किया जाता रहा है। कोंग्रेसी हिन्दू नेताओं द्वारा किये जाने वाले कुठाराघात के कारण आधी हिन्दू एवं वैदिक धर्म-संस्कृति सत्तालोलुप नेताओं के कारण लुप्तप्राय परिस्थितियों की ओर जा रहा है। एक ओर जहाँ कोंग्रेस निरंतर रोहिंज्ञाओं एवं बांग्लादेश के मुसलमानों को बसाने ,सुविधाओं से सम्पन्न करने में लगे हुए हैं वहीं हिन्दू धर्म के अनुयायी पाकिस्तानी शरणार्थियों को संविधान द्वारा स्वीकार किये जाने के बाद भी उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। पार्टियों ने उनकी सुरक्षा से आँखें मूंद ली है।

गहलौत सरकार का अत्याचार चरम पर है, पीड़ितों को न्याय दिलवाना तो दूर की बात पुलिस को 'प्रथम दृष्टव्य सूचना' लिखने की भी मनाही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी द्वारा फुलाये गए जनता का भी यही हाल है।स्त्री-सुरक्षा की गारंटर खेजरीवाल निर्देशित भगवन्त मान द्वारा सुरक्षा कवच के गुब्बारों की हवा निकल चुकी है। दिल्ली में भी लड़कियों की बेदर्दी से की गई हत्याएँ सुर्खियों में होती हैं। पुलिस वसूली चलान बनाती रहती है और कुछ ही मीटर दूर पंजाब की सड़क आतंकी बीच सड़क पर महिला को तलवार से दो टुकड़े में काट,मोटर साइकिल पर सवार हो सामने से चला जाता है। मानवता को शर्मसार करने वाले पंजाब पुलिस ही नहीं राजस्थान ,कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु एवं बंगाल के पुलिस भी हैं।

हिंदुस्तानियों के मानवाधिकार के गारंटर ,सुप्रीम कोर्ट के जज जो महीनों पहले नोटिस भिजवाने के बावजूद अवैध कब्जे वाले हल्द्वानी रेलवे जमीन को रोहिंज्ञा अप्रवासियों से खाली करवाने के प्रावधान पर 'रोक लगा' दिए वे राजस्थान के जैसलमेर, जयपुर आदि अनेक जगहों पर निर्ममता पूर्वक पाकिस्तानी प्रताड़ित हिन्दुओं की संपत्ति पर बुलडोजर एवं उनके जीने के अधिकार का भी हनन होते शान्ति से देखते रहे हैं। यह निर्विकार एवं वाशिन्दों के प्रति दोहरा व्यवहार-भाव जजों के भी बिके हुओं का सबूत देती है। हिन्दुओं के वोट और टैक्स के पैसों से मुस्लिमों एवं इस्लाम के लिये काम करने वाली ईसाई स्त्री द्वारा निर्देशित पार्टियाँ हिंदुस्तान में हिन्दुओं का खात्मा कर रहे हैं। इस तथ्य की गंभीरता को जातियों और विभिन्न विचार धाराओं में बंटे हिन्दू एवं मूर्ख हिन्दू गुब्बारे नेता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। मूर्खता के पर्याय ये दुत्कारने योग्य नेता अपनी चरम स्वार्थी बेहूदगी का परिचय देते हैं। अगर बागेश्वर धाम वाले बाबा की तरह कोई संत हिन्दुराष्ट्र के लिए हिन्दुओं को जगाने की कोशिश करता है तो प्रोत्साहित करने के बजाय ये इतालवी और मुल्लों के पत्तल चट्टू उन्हीं के खिलाफ बयानबाजी करने लगते हैं। संतों की हत्याओं पर मुँह न खोलने वाले दोगले नेताओं ने हमेशा ही हिन्दुओं के विभिन्न तबकों को एक-दूसरे खिलाफ भड़का कर व्यक्तिगत स्वार्थ साधा है। अनुसूचित जातियों को भीम-मीम एवं हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई,मनुवादियो बाहर जाओ आदि विरोधी नारों का बहुसंख्यक गुब्बारा गुच्छा पकड़ाया है जो एक-एक कर फटता जा रहा है। कितना हास्यप्रद है कि हिन्दुओं के वोट, टैक्स,मंदिर के चढ़ावे के पैसों से मुस्लिम समुदाय को सुविधाएं देने वाले,हिन्दुओं को कुचलने वाले, हिन्दुओं के अपने द्वारा चुने जाने ज्यादातर हिन्दू नेता ही हैं ।

ये जीतने के बाद गुब्बारे जैसे सेकुलर मतदाता हिन्दुओं की हवा निकालने में लग जाते हैं। अंधेरे को लक्ष्य बना कर चलने वाले मोदी विरोधी पार्टियों को वोट देने वाले हिन्दू कई राज्यों में प्रताड़ना झेलने के बावजूद भी संगठित हो कर स्वयँ के बच्चों के भविष्य के प्रति सचेत नहीं हो पा रहे हैं। इनकी राजनीतिक निर्णय लेने की क्षमता भी खत्म होती जा रही है। ऐसी स्थिति में यह सोचना कि सब कुछ मोदी जी करेंगे एवँ हिन्दुओं को भी वही सुरक्षित रखेंगे,एक खयाली पुलाव पकाने की तरह है। बकरों की तरह हलाल होते हिन्दू नीतीश, लल्लू-पुत्र,गहलौत, स्टालिन, जगन रेड्डी,अखिलेश, खेजरीवाल पिनारायी, ममता, ओवैसी ऐसे नेताओं के कट्टे तले मुर्गे की तरह एक को कटते देख थोड़ी देर कुड़कुड़ाते हैं, फिर सबकुछ भूल कर दाना चुगने में लग जाते हैं। ये लोग अपनी बारी का इंतजार करते हुए स्वयँ का,अपने बच्चों का, देश का, भविष्य खतरे में ढकेल कर भी बेशर्मी से टोपी लगा बिरियानी खा रहे हैं।

वस्तुतः हिन्दुओं की यादाश्त बहुत कमजोर है, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कश्मीर,बांग्लादेश, बंगाल के अलावे बहुत जगहों पर होने वाली नृशंस हत्याएँ भूल जाते हैं।भागने की आदत पड़ चुकी है। स्वार्थी एवँ चालबाज इन्हें एकजुट होने नहीं देते हैं,न ही ये होना चाहते हैं। कर्नाटक चुनाव ने साबित कर दिया है कि आम नागरिकों को भी नृशंस लुटरे ही पसन्द हैं, जहाँ प्रतिदिन एक-एक हिंदू बाणासुर के आहार बनते हुए अपनी बारी का इंतजार करना चाहते हैं। हिन्दुओं की घटती जनसंख्या, मुसलमानों की बढ़ती तादाद, राजनेतृत्व की कलुषित प्रवृत्तियों ने शायद हिन्दुओं की सुरक्षा कवच के गुब्बारे को फोड़ दिया है। स्वाभाविक रूप ये अपने दुर्भाग्यपूर्ण भविष्य को राजस्थान, बंगाल, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पंजाब के हिंदुओं की तरह ही आमंत्रित कर चुके हैं। संतावन इस्लामिक देशों से हिन्दू लुप्त हो चुके हैं अतः हिन्दुओं को यह सोचना की आवश्यक है कि निरंतर मूढ़ता से सरकार चुन कर इस्लामी एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहयोग देने के बाद हिंदुस्तान से भाग कर कहाँ जाना है।

कर्नाटक में कोंग्रेस अपनी इतालवी राजमाता एवं मुसलमानों को खुश करने के चक्कर में वादे के अनुसार हनुमानजी का मंदिर बनाना तो दूर ,बने हुए पुराने मंदिरों को सुरक्षित भी रख सकें तो भी बहुत बड़ी बात है। ऐसे भी कई जगहों पर शांतिदूत आतंकी इस्लामियों के हिन्दुओं पर हमले,जहाँ-तहाँ हिन्दुओं के घर दुकानों को आग के हवाले करने का कार्यक्रम बेकॉफ होने लगे हैं।। गलती तो हिन्दुओं की ही है कि वे कुपात्रों को मत देते हैं।

धर्म के ठेकेदार मठों के साधु-संतों को भी हिन्दूधर्म के लिए प्रचार-प्रसार के लिए समाज में विस्तारित होते कम ही देखा हैं। ज्यादातर मठ वासी भविष्य के खतरों को नजरअंदाज कर मठ में बैठे तोंद बढ़ाने में लगे होते हैं। अगर गाहे-बगाहे कुछ लोग हिन्दुओं को प्रवचन देने या संस्कार, संस्कृति के प्रति जागृति फैलाने निकलते भी हैं तो वे या तो मार दिए जाते हैं या कोंग्रेस के छद्मनीतियों के शिकार हो जाते हैं। जब धर्म-संस्कृति-सनातनियों को बर्बाद करने वाले अपने ही हों तो शिकायत किससे किया जा सकता है।

दारू के नशे में चूर 'आम आदमी' एवं कोंग्रेस पार्टी के नेता (भगवंत मान,डी. के.शिवकुमार) खुद को ही अपने पाँव पर नहीं संभाल पा रहे हैं तो वे प्रदेश को कैसे संभालेंगे, स्वाभाविक है कि ऐसे नेता कर्नाटक को बर्बाद ही करेंगे। संक्षिप्त में यही कह सकते हैं कि मेहनतकश उपार्जन करके टैक्स देने वाले हिन्दू एवं मुस्लिम के एक वर्ग जाने कितने मौलवियों, नेताओं, आततायियों, मुफ्तखोरों,गुन्डों, देश के, समाज के दुश्मनों एवँ सजायाफ्ताओं का खर्च उठाने के लिए बाध्य हैं। नेताओं की करस्तानियाँ मजबूर मेहनतकश लोगों के उम्मीदों का भी गुब्बारा फोड़ कर उन्हें धराशायी कर देते हैं। आम नागरिक विशेष रूप से गरीब हिन्दुओं की जिंदगी पुनः भृष्टाचारियों, कट्टरपंथी मौलवियों, दगाबाज नेताओं एवं मूर्ख मतदाताओं के बीच रोजी-रोटी के चक्कर में अपने उम्मीदों के फटे गुब्बारों का टुकड़ा समेटती एड़ियाँ घिसती नजर आती हैं।

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