चलते-चलाते : "बोलता सन्नाटा"

यूँ तो छत पर सौम्य सन्नाटा है,

इमारतें दोपहर में निःशब्द हैं।

खुले-नीले विस्तृत आसमान में,

मंडराते दिखते कुछ परिंदे, चील,

कुछ सफेद रुई के फाहे से बादल।

सन्नाटा!मेरी ही सुप्त भावनाओं सी।

नीले विशाल समुद्र में मछुआरों की

सफेद पाल-तने नावों के बिखरे झुंड,

शुष्क मौसम की ठंडी हवाओं के झौंके,

भावनाओं में उतराना, बादलों सा बहना।

अनायास; तुलनात्मक स्फुरण का होना।

उत्तर भारत की असहनीय भीषण गर्मी,

बंगलोर का सुहाना मौसम, खिली धूप,,

फूलों पर तितलियाँ,उड़तीं छोटी चिड़ियाँ,

घनघोर बारिश में धुले चमकते नए पत्ते,

ख़ुशनुमा जिन्दगी पाने की उम्मीद सी।

अनन्त आसमान सा अप्रत्यक्ष,असहज शान्ति,

विशाल समुद्री लहरों की आवाज़ झंझावात सी,

ज्यों निःशब्द हृदय में सतत हिलोरें लेती शोर सी,

उफ़ानों सी उठती, निरंतर अतीत की आवाज सी।

किनारों का स्पर्श कर लहरों का टूटता बुलबुला,

क्षितिज से उठती, बहती, आसमान में खिसकती,

पुनः क्षितिज में जा समाती श्वेत बादलों के टुकड़े,

जैसे टूट कर,बिखरती हुई, सिमट कर खो गयी हो!

समाज में मानवीय अनुभूतियाँ, संवेदना,अपनापन,

प्रेम,कपटी-स्वार्थी-मतलबी लोगों के अनुबन्धन सी।

Iडॉ सुमंगला झा।

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