Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय: नेताओं के रंग

बड़े बड़े नेताओं के, गिरगिटी रंग हैं,
डगरे के बैगन से, पलटू पतंग हैं।
भ्रष्टाचारी ढंग से चोर सारे दंग हैं,
इ डी, सी बी आई, हुए दबंग हैं।
चूहों के साम्राज्य में मचाये हुरदंग हैं।
आतंकी नक्सलियों ने खोदे सुरंग हैं।

उपर्लिखित चार पंक्तियाँ अपने भारत देश की राजनितिक परिस्थियों का एक संछिप्त सांकेतिक दर्पण है जिससे आम जनता पशोपेश में है कि आखिर चुनें तो किसे अपना नेता चुने, जिसको चुनते हैं, वही जनता को निचोड़ने में लग जाते हैं एवं मौका मिलते ही गिरगिट की तरह रंग बदल, पलटी मार लेते हैं। गुलाटी मारना सिर्फ बंदरों को ही नहीं आता है हमारे नेता भी इसमें पारंगत हैं।
कुछ नेताओं द्वारा आतंकियों और नक्सलियों को ख़त्म करना तो दूर की बात वे नेताओं के नुमाइंदे तथा वोट बैंक बन जाते हैं। चूहों द्वारा सुरंग बनाना तो आम बात है, इतिहास में खदान वाले, तथा नागरिक सुरक्षा के लिए सुरक्षा सैनिक सुरंग बनाते थे, अब यहाँ भी आतंकियों तथा नक्सलियों का बोलबाला है। चूहे भी सोचते होंगे कि मनुष्य यहाँ भी पहुंच गए तो चूहे बिचारे कहाँ जाएँ? आतंकियों और नक्सलियों के कारण चूहे भी तो पिसते ही होंगे।

जनता तो उम्मीदों की चबेने चबाते -चबाते परेशान है कि आखिर क्या करें, किसे चुनें ? गरीबों की गरीबी दूर करने के लिए तथा भ्रष्टाचारियों के भ्र्ष्टाचार को रोकने के लिए मोदीजी की सरकार कितना भी प्रयास क्यों न कर ले भ्रष्टाचारी अपना तोंद भरने का रास्ता निकाल ही लेते हैं और आतंकी आतंक फ़ैलाने का बहाना ढूँढ ही लेते है। यद्यपि भारत में आतंकी आजकल भूमिगत हो गए प्रतीत होते हैं परन्तु कब सक्रिय हो जाएं कह नहीं सकते हैं।

यह सर्वविदित सत्य है कि मनुष्य जन्म के समय सबसे ज्यादा निरीह प्राणी होता है परन्तु मष्तिष्क का स्वामी होने के कारण वह संसार पर राज्य करता है। सोचने-समझने एवं बुद्धि के धनी होने के कारण ही मनुष्य, मनुष्य कहलाता है। मेधा शक्ति के साथ सुसंस्कारों का होना ही उन्हें परिवार,समाज, देश, संसार प्रकृति सबों के हित में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। अच्छे विचार एवं संस्कारों के अभाव में मनुष्य जानवरों से भी बदतर, खूंखार, चरित्रहीन एवं जीवमात्र के लिए अभिशाप हो जाता है।

आज दुनियाँ भर के इंसान बुद्धिमान बर्बर आतंकियों के समूह, आतंकियों को ख़त्म करने के लिए सभ्य बुद्धिमान आतंकियों के समूह एवं बेबस पिसने वाले लोगों के समूहों में बंट चुके हैं। युद्ध चाहे देश के भीतर का अंदरूनी कलह हो या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध (रूस -यूक्रेन, हमास -इज्राएल, या अन्य कोई भी देश) मानवता का हनन होना अवश्यम्भावी है। खतरनाक तो वो लोग हैं जो युद्ध को उत्प्रेरित कर वैचारिक रूप से गुटेरेस की तरह आतंकवाद, बर्बरता, घृणा फ़ैलाने वाले तत्वों का समर्थन करने के साथ-साथ अनगिनत हथियारों से लैस बर्बर आतंकियों को भोजन या अन्य मानवीय सहायता पहुँचा, उन्हें और भी ज्यादा मजबूत बनाते हैं। आतंक परस्त देशों में जब आम नागरिक भी आतंकियों का साथ दे रहे हों तो संसार में शांति की स्थापना मुश्किल ही नहीं असंभव प्रतीत होता है। (...पेलेस्टाइन-हमास, कश्मीरी मुस्लिम का जिहादी पाकिस्तानियों का साथ, पाकिस्तानियों का आई एस आई तथा अन्य आतंकी तंजीमों का साथ, अफगानिस्तान का तालिबानियों का साथ सीरिया, इराक, यमन, सूडान, तुर्की आदि। ...)

एक समय था जब यू एन एवं उसके एजेंसीज जनहित तथा विश्वकल्याण में रत रहते थे वहीं एक नया सिलसिला चल पड़ा है जिसमें यू एन आर डब्लू ए जैसी संस्थायें मानवता को शर्मशार करने वाली जिहादियों का भरणपोषण कर रही है। इनके दोहरे रवैये, जिहादी गतिविधियाँ और इस्लामी देशों में चल रहे गैर इस्लामियों के नरसंहार के प्रति अक्षमता और उदासीनता चिंता का विषय है। कई मामलों में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से श्रेष्ठ ओहदेदारों के अटपटे बयान अनैतिक अत्याचारी आतंकवादियों का समर्थन कर उनके मनोबल को बढ़ा रहे हैं।

एक ओर वैज्ञानिक अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज कर रहे हैं आने वाली मानवीय पीढ़ी को समृद्ध-सुरक्षित विरासत देने के लिए, प्रकृति संरक्षण करने की गुहार लगा रहे है। इस पृथ्वी पर जहाँ - तहाँ मानव तथा जीव मात्र की सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक तथा अन्य प्राकृतिक साधनों को विकसित करने के लिए राष्ट्रिय, अंतरराष्ट्रिय स्तर पर बड़े-बड़े विद्वत समूहों की बैठकें भी हो रहीं हैं। संसार में अति आधुनिक तकनीकों को मानवीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपनाया जा रहा है वहीँ मानवता के दुश्मन उन्हीं आधुनिक तकनीकों की सहायता से जगह -जगह अराजकता, बर्बरता, घृणा जिहाद आदि तत्वों द्वारा मानव एवं समृद्ध विरासत को बर्बाद कर समूची पृथ्वी को ही बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं। भगवान ही जाने कि बड़े-बड़े जिम्मेदार विश्वनेताओं के साथ क्या मज़बूरी है कि उन्हें इस तरह की विडंबनाएँ नहीं दिखाई दे रहीं हैं, शायद वे देखना ही नहीं चाहते हैं।
इस स्थिति में मासूम और बेबस करें क्या : "जिस विधि राखे राम, सेहि विधि रहना"।अत्यंत दुःखद है परन्तु सत्य है कि अति प्रतिप्ष्ठित पदों पर आसीन मानवता के संरक्षक कहे जाने वाली आज की यू एन की सस्थायें मानवता विहीन होती जा रही है।

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