Kangana sets some Chilli to the Political affiars at Maharastra

"मिर्ची" - The Burning State of Maharastra

दुनियाँ भर में लगभग चार सौ प्रकार के मिर्ची पाई जाती है। ज्यादातर लोग इसे भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग में लाते है। इसकी गुणवत्ता इसकी तीव्रता द्वारा माँपी जाती है, जो इसमें पाई जाने वाली पाई जाने वाली कैप्सेसिन नामक पदार्थ के कारण तथा रंग केप्सेन्थिन पदार्थ के कारण होता होता है। इन दोनों चीजों के पर्याप्त मात्रा में होने के अनुसार ही उनके दाम का भी निर्धारण किया जाता है। मिर्ची के पकौड़े, सब्जी, अचार, मसालों के रूप में प्रयोग में लाने की बातें तो प्रायः सभी जानते हैं परन्तु रोचक तथ्य यह है कि कुछ विशेष प्रकार की मिर्ची के प्रयोग हथियार के रूप में भी किये जाते हैं।

मिर्च की एक विशेष प्रजाति तो आँसू-गैस के गोले बनाने के लिए भी प्रयोग में लाये जाते हैं क्योंकि इसकी तीव्रता अविस्मरणीय होती है। इस मिर्च का नाम है "भूत-झलकौंन मिर्ची"। माना जाता है कि अगर इस मिर्च को खाया जाए या गलती से शरीर पर इसका रस लग जाये तो मनुष्य का बहुत ही बुरा हाल हो जाता है। ये "मिर्ची" असम, पश्चिमोत्तर क्षेत्रों के अलावे अन्य कई पहाड़ी क्षेत्रों में भी उपजाये जाते हैं। ऐसे भारतवर्ष में कुछ 'स्त्री-चरित्र' के लिए भी एक कहावत का उपयोग होता है कि.."ये पहाड़ी मिर्ची बड़ी तीखी है"..। आज जब हिमाचल की एक सामान्य सी पहाड़ी अभिनेत्री "कँगना रनौत" चर्चा का विषय बन गयी है तो मुझे इस 'मिर्च' का खयाल आया गया है।

समूची महाराष्ट्र सरकार अपनी पूरी ताकत "साम-दाम-दंड-भेद" के साथ, नीचता की हद पार कर जिस प्रकार के व्यवहार का प्रदर्शन कर रही है तो लगता है कि सञ्जय राउत, उद्धव ठाकरे, अबू आज़मी और उनके बहुत से मिनिस्टर ने "भूत-झलकौंन मिर्ची" चबा लिया है। उन्हें आगा-पीछा कुछ नहीं दिखाई दे रहा है इसलिये फुँफकार रहे हैं। "भूत-झलकौंन" मिर्च को चबाने का परिणाम महाराष्ट्र की राजनीतिक उथल-पुथल में अत्यंत रोचक, हास्यपद भी प्रतीत हो रही है।

महाराष्ट्र सरकार तथा सिने-जगत के अभिनेता और अभिनेत्रियों द्वार किये अनैतिक-कार्यों पर पूर्ववत पर्दा ही पड़ा रहता यदि ‘सुगठित सुंदर शब्दावलियों’ का लच्छेदार प्रयोग एवं आदान-प्रदान मुहावरे, उत्प्रेक्षा-अलंकार आदि के साथ सुप्रसिध्द लोगों द्वारा नहीं किया जाता। गजब की तानाशाही है ! ..गुण्डों, ड्रग्स्मग्लर, अबू आज़मी तथा दाऊद के इशारे पर नाचने वाली महाराष्ट्र-सरकार की बुराइयों पर कोई भी राष्ट्रवादी पत्रकार, कलाकार या व्यक्ति अपनी आवाज़ नहीं उठा सकता है। मासूम साधुओं-संतो के लिए आवज़ उठाने वाले मार दिये जा रहे है या किसी न किसी बहाने से जेल में डाले जा रहे हैं।

अर्नब गोश्वामी, सुदर्शन चैनल, करिश्मा भोसले पर दबंगई तथा पालघर-साधुओं की हत्या का केस लड़ने वाले वकील की हत्या साबित करती है कि प्रत्येक आवाज़ या तो दबाई गयी है या फिर इन संवेदनशील समाचारों को कुछ लिबरल और बिके हुए पत्रकारों द्वारा बदल कर दिखाया गया है।

गुण्डे, दंगाई, अवैध रूप से आये बांग्लादेशी, रोहिंज्ञाओं को सरकारी जमीन पर बसाने, बचाने, उन्हें राशनकार्ड, वोटरकार्ड, मेडिकल कार्ड आदि मुहैया कराने में मुस्लिम नेता लगे हुए हैं, जिन्हें हिजड़े-हिन्दू नेताओं का मजबूर समर्थन भी प्राप्त है। कितने ही अवैध रूप से मज़ार और मस्जिद सिर्फ सरकारी जमीनों पर ही नहीं, हिन्दुओं और मंदिरों की जमीन पर बनाये गए हैं। कोर्ट के 'स्टे-आर्डर' के बाद भी पुणेश्वर मंदिर की जमीन पर, मस्जिद का निर्माण कार्य जारी हैं। इन अवैध निर्मित मज़ारों, मस्जिदों, मकानों, झोपड़ियों को तुड़वाना तो दूर इसके संदर्भ में पत्रकारों एवं हिन्दुओं की विरोधी-आवाजों को भी माईनो समर्थित सरकार द्वारा दबा दिया जा रहा है। इसी प्रदेश में एक 'पहाड़ी लड़की' जो अपने दम पर अपने कार्य-क्षेत्र में आगे बढ़ी है, ड्रग-माफिया, अनैतिकता एवं 'मृतक-सुशान्त' के बारे बोलने के कारण न सिर्फ धमकाई गयी है, बल्कि उसे घोर आर्थिक क्षति भी पहुँचाई गयी है। मोदी को फ़ासिस्टवादी कहने वाले, अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने वाले, स्त्री-सम्मान और अधिकार पर भाषण देने वाले, अवॉर्ड वापस करने वाले, लिबरल पत्रकार गैंग सभी चुप्पी साधे हुए हैं। दाऊद-गिरोह, ड्रग-माफिया, संजय-राउत, अबू-आज़मी, उद्धाव ठाकरे की शर्मनाक कारस्तानीयों की बहुत सी कहानियाँ महाराष्ट्र की हवा को विषैला बना रही हैं।

शिवसेना,कोंग्रेस और शरद पवार जाने किस लोभ से महाराष्ट्र के हिन्दुओं का वोट लेकर भी हिन्दुओं को ही विभिन्न तरीके से प्रताड़ित कर, उन्हें नीचा भी दिखा रही है। मुस्लिम नेताओं की दबंगई, गुंडागर्दी और फ़ासिस्ट वादी सिद्धांतों को अमल में लाते हुए उद्धव सरकार, मराठियों के आत्मसम्मान को कुचलने से भी पीछे नहीं हट रही है। सरकार ने पालघर-साधुओं के हत्या काण्ड की तरह ही जब सुशांत की मौत को भी रफा-दफा करना चाहा तो जगह-जगह से आवाजें उठने लगी।

उद्धव सरकार का दोगलापन, बॉम्बे पुलिस की लापरवाही, साधुओं एवं वकील की सुनियोजित हत्या के बाद, भारत के लोगों के सामने महाराष्ट्र का कुशासन आ ही गया था, इसीलिए बिहार की जनता द्वारा सी.बी.आई.जाँच की माँग उठाई गई। अपनी मिट्टी पलीद होते देख महाराष्ट्र सरकार ने इसे रुकवाने की जी-तोड़ कोशिश भी की है... परन्तु ..च्च.. च्च....सौ प्रतिशत सफलता नहीं मिल पाई । सत्ता के नशे में मत्त, सत्तारूढ़ ये भूल गये कि बिहार, यू.पी.तथा हिमाचल में चुनाव भी है इसलिये कोई भी नेता महाराष्ट्र के इस अनैतिकता भरे कारनामों को निश्चित ही हवा दे कर लोंगों का जन समर्थन प्राप्त करना चाहेगी।

बिना सोचे-समझे ताकत-प्रदर्शन कर, इस बार महाराष्ट्र की 'त्रिकोणी माईनो समर्थित सरकार' ने एक तीखी-मिर्ची चबाने की कोशिश की है जिसे "भूत-झलकौंन मिर्ची” कहते हैं।....फुह.. फह..फुह...फ़ू.. फूं.... उफ्फ... इस बार दादागिरी करने वाली फासिस्टवादी, जुर्म से संपृक्त महाराष्ट्र सरकार ये नहीं समझ पायी कुछ मिर्चों का असर सिर्फ मुँह तक ही नहीं, बल्कि बहुत विस्तृत होता है। सम्पूर्ण शरीर में मस्तिष्क से लेकर तलवे तक अपना असर दिखाता है।

समय की नज़ाकत, चुनावों और चुनौतियों के दौर के अंतराल में "भूत-झलकौंन-मिर्च" चबाने का परिणाम पालघर साधु एवं उसके वकील के हत्याकांड के हत्यारों को छुपाने जैसा सहज नहीं रहा है। यह घटना सुशांत-हत्या काण्ड तक सीमित न रह कर, ड्रग्स्मग्लर, सिने-जगत के साथ-साथ राजनीति में भी कुनबापरस्ती, दो राज्यों के बीच पुलिस प्रशासन के अहं का टकराव, केंद्र-सरकार की सर्वोच्चता, राज्य सरकार द्वारा सत्ता का घातक दुरुपयोग, विभिन्न असंवैधानिक निर्माण एवं ध्वंसिकरण का कार्य, रोहिंज्ञा-घुसपैठियों को सुविधाओं के साथ बसाने की साजिशों को भी उजागर कर चुकी है।

जग-जाहिर है, संजय, उद्धव, अबू आज़मी और अन्य धूर्त-ग़द्दार नेताओं ने जिस "भूत-झलकौंन मिर्ची" को चबाया है उसे पचाना मुश्किल हो रहा है। यह "मिर्च" दोहरा-विस्फोटक, अग्निप्रसारक रॉकेट के रूप में भी काम कर, त्रिकोणीय, 'शरद-सोनियाँ-उद्धव' सरकार के पाचनतंत्र-प्रणाली को प्रभावित कर, अन्दर ही अंदर उन्हें दर्द और बबासीर की बीमारी दे कर, नाचने के लिए बाध्य कर दे रही है।

महाराष्ट्र सरकार का अराजकता से परिपूर्ण तानाशाही, गुंडागर्दी, सत्ता का दुरुपयोग, नीच-व्यवहार की कटिबद्धता के अहंकार ने वहाँ के हिन्दू-लोंगों को एवं अन्य राज्यों से आये कर्मियों को असुरक्षित-अपमानित महसूस कराया है, जिसे समय ही सुधार सकता है। आज सम्पूर्ण भारतीयों के बीच महसूस हो रहा है कि हिन्दुओं एवं शिवाजी की संतानों की स्वायत्तता की रक्षा के लिए, गुण्डों, रोहिंज्ञाओं और दाऊद-गैंग से वहाँ के साधारण लोगों, साधुओं, कलाकारों, प्रवासी-कर्मियों को बचाने के लिए महाराष्ट्र में इस अनैतिक-अयोग्य त्रिकोणी सरकार को हटा कर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए। प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, अनैतिकता, हत्यायें, एक्सटॉर्शन, ड्रग-माफिया, असंवैधानिक-भूमि अधिग्रहण आदि पर लगाम लगाने के लिये राष्ट्रपति-शासन महाराष्ट्र की आवश्यकता बन चुकी है।

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