Comedian politicians

हास्य नेताओं की चर्चा

हमारे कुछ लोकप्रिय नेता चलचित्रों के लोकप्रिय हास्य कलाकारों की तरह ही हैं जिन्हें देखते ही हँसीं छूटती है स्वभाविक रूप से इसे 'हंसीं की गुदगुदी' कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। कुछ ऐसे कलाकार जो कभी अभिनेता, कभी हास्य अभिनेता एवं कभी खलनायक की भूमिका भी सटीकता से निभाते हैं वैसे ही हमारे राजनेताओं में भी भरे पड़े हैं जो इन अभिनेताओं को धूल चटा सकते हैं। ये अपने जीवन में सच्चे मायने में अतिकुशल अभिनेता होते हैं।

कुछ रोमांटिक तबियत के बूढ़े नेताओं को देख कर तो जवानों को भी जलन हो जाती है। आये दिन एक नयी नवेली सुंदरी के उनके फोटो देख एक बन्दे ने तो यहाँ तक कह डाला कि- - -
" ऊपर वाले तू है कहीं तो एक सुरूर चढ़ा दे, उम्र कम ही दे मगर शशि थरूर बना दे"
बिहार का नाम आये तो लालू को भला कौन भूल सकता हैं जिन्होंने 950 करोड़ का चारा चुटकियों में निगल जेल में बैठ इत्मीनान से पागुर कर रहे हैं। जब गोमांस खाने का समर्थन कर महसूस करते हैं कि गड़बड़ हो गयी तो दलील देते हैं कि जीभ फिसल गई थी। ऐसे बिहार के पढ़े-लिखे लोगों को सौ तोपों की सलामी देनी चाहिए, जिन्होंने स्त्रियों को इतना सम्मान दिया कि पांचवीं फेल राबड़ी देवी को लालू के इशारे पर मुख्य मिनिस्टर की कुर्सी पर बिठा दिया।

बड़ा रोमांचक लगता है कि मोदीजी एवं स्मृति ईरानी के पढ़ाई पर सवाल उठाने वालों ने कभी भी सोनियाँ गाँधी एवं मुख्यमंत्री राबड़ी देवी,उनके दोनों सुपुत्रों एवं ऐसे बहुत से गुण्डे नेताओं की पढ़ाई की कुंडली खंगालने की चाहत भी प्रकट नहीं की। जब तक पढ़े-लिखे लोग इन जैसे गुण्डों को वोट देते रहेंगे तो ये कहावत तो चर्चा में होगी ही....अंधा पिसे कुत्ता खाये या जब तक रहेगा समोसे में आलू राज करेगा बिहार में लालू। लेकिन सोचने बात है जब खाने के लिए समोसा है उसने चारा क्यों खाया? पेट नहीं गड़बड़ होगा? ऐसे पलटुराम नीतीश के लिए लालू का कहना भी रोचक था..नीतीश जी हैं उसी के साथ जो दे उनको दही-भात।

ऐसे कोंग्रेस के घोटालों की लम्बी सूची है, उसमें तरोताजा खबरों में एक है गोबर घोटाला। भूपेश बघेल को इससे बेहतर चीज नहीं मिली खाने को? खाया भी तो खा लिया गोबर!....जो प्राश्चित करने की प्रक्रिया में इस्तेमाल होता है....चुटकी भर बालू और गोबर जीभ पर रख कर प्राश्चित किया जाता है। बघेल ने कौन सा प्राश्चित किया कि 290 करोड़ का गोबर गटक लिया?

कुछ बहुसंख्यक समूह जिसे अल्पसंख्यक कहा जाता रहा है उनमें अजन्मा एवं बुड्ढों को भी पढ़ाई करने के लिए सरकार स्कॉलरशिप देती है ये बात अलग है कि वह पैसा भी किसी चालू पुर्जे के जेब में चला जाता है। वहीं बहुसंख्यक कहे जाने वाले ऊँची जाती के करोड़ों मेधावी बच्चे जिन्हें न स्कॉलरशिप मिलता था और न रिर्जवेशन का कोई कोटा वे अव्वल दर्जे के नम्बर ला कर भी सरकार की अजीबोगरीब पॉलिसी के कारण अवशर विहीन भटकते रहते थे। रिजर्वेशन पॉलिसी योग्य युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ ही तो है ऐसा लगता है कि घोड़े और गधे को एक रेश में खड़ा कर दिया है दौड़ लगाने के लिए लेकिन घोड़े के पाँव को बाँध कर गधों को रेस जिताने में लगे हैं।

और अंततः कल सम्बितपात्रा के मुँह एक कहावत सुन कर मजा आ गया..... सूत न कपास,जुलाहों में लट्ठम लठ्ठा...
कहावत तो ठीक है परंतु जिस तरह उनकी अंगुलियों ने डांडिया डान्स किया.....वाह....क्या कहने मजा आ गया।
पर जो भी कहें अभी भी उच्च कोटि के हास्य अभिनेता,अधीररंजन चौधरी, राहुलगांधी एवं मानसिक विकृति के शिकार ममता बनर्जी को कोई मात नहीं दे सकता है, जो अपने आप में कॉमेडियन हैं एवं कॉमेडी की शृंखला बनाते हैं।

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