Chief Editor Dr Sumangala Jha

सम्पादकीय : 'एक समस्या खत्म नहीं,कि दूजा हुआ शुरू'

दो हज़ार बीस का दसक कुछ ऐसा आरम्भ हुआ है कि कहा जा सकता है 'एक समस्या खत्म नहीं, कि दूजा हुआ शुरू'।

भारत के अंदरूनी हालात तो किसी से छुपे ही नहीं है। सी. ए.ए. के विरोध के कारण धरणा प्रदर्शन आगजनी, हत्याएँ, तोड़-फोड़ लगभग पूरे साल चलता रहा,गाँधी जी तथा सेक्युलरिज्म के नाम पर देश के अंदरूनी दुश्मनों ने अपने काले कारनामों पर से और हिन्दुओं के प्रति चुपचाप घात करते जाने वाली हरकतों पर से स्वयँ ही पर्दा हटा दिया। दिल्ली और बंगाल चुनाव के बाद जिस प्रकार से हिन्दू मोहल्लों को निशाना बना कर हत्याएँ और आगजनी की गई, दोहरे चेहरे वाले सेक्युलर के नाम सेलेक्टेलिज़्म की राजनीति करने वाले नेताओं, वकीलों आदि के कालिख पुते चेहरे की चमक ने अर्धनिन्द्रित, दुविधा में पड़े हिन्दुओं की दुविधाओं को दूर कर दिया है। देशव्यापी इन आंदोलनों के दौरान किसी ने ये आवाज़ नहीं उठाई कि अवैध रूप रहने वाले मुस्लिम बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, रोहिंज्ञाओं को भी देश से निकाला जाए। अजीब विडंबना हैं, जहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं वहाँ उसे बहुसंख्यक इस्लामी भेड़ियों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है तथा जहाँ हिन्दू बहुसंख्यक हैं वहाँ कोंग्रेसियों की गलत नीतियों के कारण इस्लामी अल्पसंख्यक के द्वारा सताये जाते हैं।

कोरोना का संकट यदि नहीं आया होता तो पता भी नहीं चलता कि मरकज़ में इतने सारे विदेशी घुसपैठिये देश के अंदर दंगे-फसाद-आगजनी और हिन्दुओं की हत्याओं के लिए जमे बैठे हैं। चीन ने भी आक्रामक रुख हमारी सीमा पर कब्जा करने की कोशिश कर बहुत से भारतीय सिपाहियों को आहत किया जिसका घाव भरना मुश्किल है। इससे जी नहीं भरा तो कोरोना द्वारा सभी देशों में लाखों की संख्या में दोस्तों एवं दुश्मनों को समभाव से वीसा-पासपोर्ट की प्रतिबद्धता के झंझटों के बिना ही यमराज के पास भेज दिया है। कोरोना के रूपांतरित प्रकोप ने पूरी दुनियाँ को हिलाने के बाद भी अभी तक पीछा नहीं छोड़ा है कि समयान्तराल में अफगानिस्तान के तालिबानियों ने अपना करिश्मा दिखा कर एकाएक पूरी दुनियाँ का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इस दौरान भी भारत के अंदरूनी दुश्मनों के वक्त्व मुखरित हो गए।

कितना हास्यप्रद है कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले तथा आतंक फैलाने वाले देश और समुदायों के पास घातक हथियारों को खरीदने के लिए पैसों की कमी नहीं होती है, लेकिन खाना और दवाई इन्हें विश्व समुदाय से मुफ्त में चाहिए होता है। लाखों का हथियार कंधों पर लिए ये तालिबानी-आतंकी, दुनियाँ को मानवता का ज्ञान देते हुए वहाँ के नागरिकों के लिए खाद्यान्न तथा अन्य चीजों की उपलब्धता कराने का ज्ञान भी दे रहे हैं। वहाँ के भागते हुए नागरिकों के प्रति उनके क्रूर व्यवहार के भयावह दृश्य ने दुनियाँ के ह्रदय में वहाँ के बेगुनाह नागरिकों कर प्रति सहानुभूति की भावना जगाई तो वहीं तालिबानियों की असभ्यता, बर्बरता के प्रति क्रोध भी जगाया। उनके जाहिलता भरे हास्यप्रद व्यवहारों के दर्शन करा कर खूब हँसाया भी है।

क्या तमाशा है ? कहीं लोगों को बीमारियों और भुखमरी से बचाने के लिए विश्व स्तरीय मानव कल्याण संस्थाओं द्वारा खाद्यान्न तथा अन्य जरूरी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाता है वहीं कुटिल नीतियों के तहत युध्द ,छद्मयुद्ध की आड़ में आतंकियों द्वारा बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा जाता है। युद्ध चाहे अज़रबैजान एवं अर्मेनिया का हो, तालिबान एवं अफगानिस्तान का हो, इरान एवं इराक हो या सीरिया के अंदर कुर्दिश या यज़दियों के सामुहिक नर संहार का हो; दानवों की रक्तपिपासु जिह्वा संतुष्ट नहीं हो पाती है। फिलहाल चलने वाले रूस और यूक्रेन के युध्द हमारे सामने हैं जिसमें मरने-मारने वाले के परिजनों का क्या कसूर जो युध्द तथा युध्द के बाद के परिणामों को झेलते रहने को मजबूर होंगे।

भारत में भी खालिस्तानी, जिहादी, वैश्विक भ्रष्टाचारियों तथा छद्मवेशी आतंकी समुदायों ने कभी किसान आंदोलन के नाम पर, कभी हिज़ाब के नाम पर तो कभी किसी अन्य बहाने से अशांति फैलाने का काम किया है। अमेरिका अपने हित के लिए, चीन अपने विस्तार के लिए तथा जिहादी इस्लाम की संप्रभुता कायम करने के लिए पूरे विश्व में अराजकता फैलाने में लगे रहते हैं। अमेरिका की चालबाजियाँ, चीन की विस्तारवादी नीतियाँ तथा इस्लाम की आतंकवादी नीतियों के कारण शांतिप्रिय देशों के टुकड़े-टुकड़े हो रहे हैं। शांतिप्रिय धार्मिक समुदाय, बेगुनाह इन्सान यमराज के निवाले बन रहे हैं। दुनियाँ की महाशक्तियों की स्वार्थी तथा बर्बरता की चालों के बीच भारत और रूस के कई टुकड़े हो चुके हैं। मजबूत देश कमजोर हो चुके हैं। दोहरीकरण, दगाबाजियाँ, कथनी करनी के बीच का अंतर, विश्वासघात के साथ घातक प्रहार की शतरंजी चाल में बिसात पर ज्यादातर कमजोर देशों को ही शिकार बनाया जाता है। इन देशों में भी बर्बर समुदायों द्वारा मारे जाने वाले ज्यादातर शान्तिप्रिय, उदारहृदय, कमजोर और बेबस समुदाय ही होते हैं। जोर-जोर से शान्ति के लिये शोर मचाने वाले आतंकियों के समर्थक देश ही प्रायः चोरी-छुपे अचानक घातक प्रहार करते हैं जैसा कि पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद भारत के लिए तथा पेलिस्तान का घातक हमास समुदाय इज्रराइलीयों नासूर बना हुआ है।आज यूक्रेन की स्थिति पर शोर मचाने वाले देश स्वयँ के कृत्यों पर दृष्टिपात किये बिना ही शान्ति का ज्ञान बाँट रहे हैं। दुनियाँ दो विश्व युद्धों के घातक परिणाम को झेलने के बाद भी सुधरने के लिये तैयार नहीं है। विभिन्न अवसरों पर भारत के विरुद्ध मतदान करने वाला यूक्रेन आज भारत से युद्ध रोकने तथा शान्ति लागू करने के लिये गुहार लगा रहा है। क्या दुनियाँ फिर से विश्वयुद्ध के मुहाने पर खड़ा होकर मानवता, विश्व कल्याण, ज्ञान-विज्ञान,कला-मनोरंजन, आत्मिक विकास आदि के लिये सोच सकता है? कदापि नहीं।

आज के युग में भी वस्तुतः वैदिक सनातन धर्म, ज्ञान-विज्ञान तथा हजारों पुरातन पुस्तकें वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, भगवत गीता आदि ग्रंथों को पढ़ने की आवश्यकता है जिसमें शान्ति, सद्भावना, विश्वकल्याण, आध्यात्मिक उन्नयन, समानता और मानव कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने का उपाय भरा हुआ बता सकती है। प्रगतिशील जीवन के लिए उदारहृदय, उदरचरित्र, शान्ति प्रिय, वेदमंत्रों का प्रवाह होना आवश्यक है। मनुष्यों की समानता से संबंधित निम्नलिखित श्लोक आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पुरातन काल में थे।

"सह्रदयं सांमनस्यमविद्वेषं कृणोमि व: | अन्यो अन्यमभि हर्यत वत्सं जात्मिवाघ्न्या ||"
(हे मनुष्यों ! हम आपके लिए हृदय को प्रेमपूर्ण बनाने वाले तथा सौमनस्य बढाने वाले कर्म करते हैं. आप लोग परस्पर उसी प्रकार व्यवहार करें, जिस प्रकार गौ अपने बछड़े से स्नेह करती है.)

"येन देवा न वियन्ति नो च विद्विष्ते मिथ: | तत कृन्मो ब्रह्म वो गृहे संज्ञान पुरुषेभ्य: ||"
(जिसकी शक्ति से देवगण भी विपरीत विचार वाले नहीं होते और आपस में द्वेष नहीं करते है. उस सामान विचार को सम्पादित करने वाले ज्ञान को हम आपके घर के मनुष्यों के लिए प्रयुक्त करते हैं.)

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