Helpless

आह तो लगनी ही थी

कहा जाता है कि बेबसों की तड़प से निकली आह! लोहे को भी भष्म कर देती है। कबीर ने भी कहा है:-

"दुर्बल को न सताइये,जाकी मोटी हाय। बिना जीव के श्वांस से,लौह भष्म हो जाय।"

कुछ तो सत्य है इस कथन में कि किये गए अत्याचार, क्रूरता, झूठ का नकाब ओढ़ कर बर्बरतापूर्ण कुकर्म करने वाले एक-एक कर या तो धराशायी हो गए हैं या अपने ही कुकर्मों का फल भोगने के लिए अश्वस्थामा की तरह घिसट-घिसट कर अमर्त्य जीवन का अभिशाप ढो रहे हैं। अनेक लम्बी कथाओं का वर्णन तो कठिन है; परन्तु मात्र कुछ वाक्यों में बहुत से आम प्रचलित प्राचीन-नवीन कथाओं के सार तत्वों का उल्लेख ही आज की परिस्थितियों के परिपेक्ष्य को उजागर करने हेतु सक्षम है।

अफगानिस्तान तो गान्धारी के शाप से ग्रसित होने के कारण महाभारत युध्द के पश्चात कभी भी शान्त प्रदेश नहीं बन पाया। मातृभूमि के भक्त, विद्वान चाणक्य को अपमानित करने का परिणाम मगध नरेश ने भुगता ही, वर्तमान में भी गुंडों, गद्दारों एवं विदेशियों के जमावड़े का केन्द्र बनता बिहार पतन की ओर जा रहा है।

बेबसों पर अत्याचार और धोखे से किये जाने वाले अन्याय पूर्ण अतिक्रमण के दुःखद परिणाम से सिकन्दर भी अछूता नहीं रहा । अनुमान कीजिए कि काल के गाल में समाते हुए, दयनीय अवस्था में इस सच्चाई से साक्षात्कार कितना कड़वा रहा होगा कि मनुष्य अपने साथ, अपने कर्म के लेखे-जोखे के सिवाय कुछ नहीं ले जा सकता है। ये तो पुरानी बातें हैं, परन्तु आज भी मनुष्यों को पैसे और सत्ते की हवस, उसमें बने रहने की महत्वाकांक्षा ने भारत के अनेकानेक नेताओं से जाने कितने पापपूर्ण कृत्य करवाये हैं, गिनती करना भी असंभव है।

परिवारवाद की नीति पर चलने वाले कोंग्रेसी या गाँधी-नेहरू परिवार की बातें करें तो सता में बने रहने की ख्वाहिश के तहत इन्होंने अनेक छ्द्मपूर्ण कार्य किये गए हैं। अपनी कुटिलता के कारण जनता को ठगने वाले नेता अंत्येष्टि तक पहुँच चुके हैं।हिन्दू एवं सनातन धर्म विरोधी कानून बनाने जैसे कार्यों के अतिरिक्त आर्थिक घोटाले, हिन्दुओं, ब्राह्मणों, साधुओं, सिख्खों पर किये गए अमानवीय अत्याचारों एवं सामुहिक हत्याओं की चर्चा रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं।

विदेशियों के कठपुतले कोंग्रेसियों एवं विपक्षी दलों के नेता वर्तमान सरकार की नीति पर टिप्पणियाँ तथा झूठे धर्मनिरपेक्षता एवं मानवाधिकार की आड़ ले कर क्रूर एवं दंगाई सम्प्रदाय की वकालत करते रहते हैं। ऐसे दोहरी मानसिकता वाले मोदी विरोधी समूह भारत की मिट्टी के सच्चे सपूतों तथा सनातनी वैदिक शैली के अनुसार जिंदगी बिताने वालों के लिए अभिशाप की तरह हैं।

नेहरू और जिन्ना की हर माँग को स्वीकार करने वाले, स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे रशीद को भाई कह उसे बचाने वाले आज चंद्रशेखर, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोष, लक्ष्मी बाई जैसे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के प्रशंसकों के हृदय में नफरत के पात्र बन गए हैं। साजिश के तहत करवाये गए अनेक आक्रामक दंगों में मारे गए निहत्थे गरीब हिन्दुओं एवं उनके परिजनों की हाय और भटकती आत्माओं ने प्राकृतिक आपदाओं के रूप में भी हत्यारे मानसिकता के लोगों पर कहर ढाया है; परन्तु किये गए पापों की तुलना में ये कहर कोई सजा नहीं है।

गाँधीजी की मृत्यु के पश्चात गोड्से की आड़ लेकर लाखों चितपावन ब्राह्मणों की, इंदिरा की मृत्यु के पश्चात सिख्ख समुदाय की, जिहाद के नाम पर कश्मीरी हिन्दुओं की सामुहिक हत्यायें 'बीती ताहि बिसारिये', वाली बातें हो गयी हैं जिसके बारे में चर्चा करने से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय भी कतराती है। बार-बार गुजरात दंगे पर सवाल उठाने वाले लोग भूल से भी गोधरा काँड में मुसलमानों द्वारा जिंदा जलाये गए निहत्थे साधुओं, स्त्रियों, बच्चों के प्रति किसी मानवाधिकार या मुसलमानों की नृशंसता बारे नहीं बोलना चाहते है।

अफसोस है कि कुछ नेताओं के लिए एक विशेष मज़हबी कट्टरपंथी मुस्लिम समुदाय के क्रूर कुकृत्यों पर पर्दा डालना, उन्हें महिमा मंडित करना, उनके राजनीतिक जीवन का खाद-पानी है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश राजस्थान के अलावा भी जहाँ कहीं मोदी-विरोधी दलों की सरकार है वहाँ परिवारवादी राजनीति तथा फासिस्टवादी मानसिकता की जड़ें मजबूती से जम रहीं हैं। जनतांत्रिक व्यवस्था, अभिव्यक्ति की आजादी, सनातनियों के त्योहारों पर उत्पात, हमले, मंदिरों की लूट, वैदिक संस्कार,धार्मिक जीवन शैली आदि पर बेदर्दी से कुठाराघात हो रहा है। कितना शर्मनाक है कि महाराष्ट्र और बंगाल में जयश्री राम के नारे लगाना या हनुमान चालीसा का पाठ करना अपराधों की श्रेणी में गिना जा रहा है।

सऊदी अरब जैसे कट्टरपंथी हिन्दू विरोधी इस्लामिक देशों में धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है, साथ ही इस्लाम के अलावे किसी धर्म के प्रति न ही कोई सम्मान की भावना है। फिर भी किस आधार पर समूची दुनियाँ में कुकर्म और क्रूरता पूर्ण दहशत गर्दी फैलाने वाले ये कट्टरपंथी मुस्लिम समुदाय चाहते हैं अनेक पाप और घृणित कुकर्म से परिपूर्ण इस्लाम की ,कुरान की या मोहम्मद की जिसे ये अपना आराध्य मानते हैं, उसकी इज्जत की जाये? जबकि उनका व्यक्तित्व एक फासिस्टवादी मानसिकता और क्रूर हत्यारा के अलावे कुछ भी नहीं रहा है, न ही उनके अनुयायीयों का (जिसमें अनगिनत आतंकियों, अत्याचारियों और पापियों का ही समूह है)व्यक्तित्व ही सम्मान जनक है।

हिंदुस्तान में भी जहाँ कहीं मुसलमानों को खुश करने वाले नेता हैं, हनुमान भक्त, रामभक्त, मोदी-प्रशंसकों पर किसी न किसी प्रकार से कहर बरसाये रहे हैं। लोकतंत्र, भीड़तंत्र याआतंकी तंत्र में परिवर्तित हो चुका है। सोनियाँ, पवार, उद्धव, पिनाराई, राहुल गाँधी, विभिन्न प्रकार के तस्करों एवँ वसूली करने वालों का भंडाफोड़ करने वालों को जेल में डालने, उनके घरों को तोड़ने, उनकी हत्या-प्रताड़ना आदि करने का अनुचित कार्य सरकार द्वारा देश के गद्दारों एवं माफियाओं के इशारे से संचालित हैं।

स्वाभाविक है कि इन निर्दोषों और बेबसों के दिल से निकलती आहें कहीं तो अन्यायियों पर भी असर करेगी ही ; चाहे वो पुलिस के सामने मारे गए पाल घर के साधू जन हों या उनकी हत्या का मुकदमा लड़ने वाले ट्रक से कुचले जाने वाले वकील अथवा अन्य अनगिनत निर्दोष। अनेकराज्यों में ये अनगिनत पिसते हुए बेबस, अमानवीय अत्याचार करने वालों से लोहा नहीं ले पाते हैं; परन्तु उनके दिल से अत्याचारियों के लिए बददुआ तो निकलती ही होगी! जो आज नहीं तो कल उन्हें उन्हीं के पाप की अग्नि में जलायेगी। बेबसों का शाप तो शाप ही है! असर दिखाएगी।

कहा जाता है कि गौ रक्षा हेतु धरना देने वालेस्वामी करपात्री के नेतृत्व में निहत्थे बेबस साधु समूह पर गोलियाँ चलवाने वाली इंदिरा को भी दुःख से द्रवित हृदय वालों ने साधुओं की लाशें उठाते हुए (कोंग्रेस एवं इंदिरा को) शाप ही दिया था जो कोंग्रेस के नाश का कारण बनी है। राम जन्मभूमि हेतु धरना प्रदर्शन करने वाले बेबस निहत्थे साधुओं पर गोली चलवाने वाली मुलायम की सरकार हो या ट्रेन में बेबस साधुओं, बच्चों, स्त्रियों को जलवाने वाली आतंकी समूह, शाप के कारण ही दुःखद अन्त को प्राप्त करेंगी ऐसी आशा है!

अपने अंतपथ की पथगामिनी बनी हुई सपा, बसपा, अघाड़ी, उद्धव-सेना, पिनाराई, दिग्विजय, गहलौत, ओवैसी एवं खेजड़ीवाल के अलावे भी बहुत से दोहरे चेहरे वाले अत्याचारी नेताओं को किसी बेबस के हृदय की तड़प या उनकी हाय देर-सबेर उनके विनाश को आमंत्रित करेंगे। कुछ ऐसे नेता जो रावण, कंस तथा भष्मासुर की तरह स्वयँ को अजेय और अमर समझ बैठे हैं, उन्हें समझना चाहिए कि समयचक्र निरंतर गतिशील है। ऐसे नेताओं को किसी सुराप्रेमी नर्तकी के सम्मोहन में ग्रसित हो भष्म हो जाना अवश्यम्भावी ही है। देर- सबेर पाप का घड़ा तो फूटना ही है।

राजनीतिक तथा आर्थिक घोटालाधर्मी, फसाद, भड़काऊ भाषणबाजी करने वाले अराजक, अन्यायपूर्ण कृत्यों को करने में तल्लीन रहने वाले नेता को महत्वाकांक्षा रूपी नृत्यांगना ही अनैतिक राहों पर चलने के लिए बाध्य कर रही है; परन्तु वे भूल गए हैं कि उनके पापों का भागीदार अनेक प्रकार के लाभ लेने वाले उनके परिवार भी नहीं होते हैं। कुकर्मों की सजा व्यक्ति को स्वयँ ही भुगतनी होती है फिर क्या आज के राक्षसी-राक्षसों एवं दानवों को भी सजा मिलेगी ? सम्भव है मिले!

सम्भव है मोदी-विरोधी, देश-विरोधी, सनातन-वैदिक-हिन्दू धर्म विरोधी नेताओं को विदेशी नृत्यांगना भस्मासुर की उत्कट नृत्यावस्था तक पहुँचा कर उन्हें अपने ही वरदान से भष्म होते देखेगी। भ्रमजाल में फँसे नेताओं की अंत्येष्टि क्रिया स्वतः ही सम्पन्न हो रहे हैं; परन्तु बुराई की जड़ का सर्वनाश तो तभी सम्भव है जब धर्म रक्षा हेतु सर्वस्व त्याग कर महान तपस्वी श्रीराम के, समान ही अत्याचारियों का सर्वनाश करने का व्रत ले।

अतः हिन्दुओं को अत्याचारी राक्षस और राक्षसियों के लाखों अत्याचारों को झेल कर भी निरंतर संघर्ष शील रहते हुए, गीता का यह श्लोक भी याद रखना ही होगा--

" यदा-यदा ही धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य, तदात्मानं सृजाम्यहम।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्मसंस्थापनार्थय संभवामि युगे युगे।।

याद रहे… हर अधर्म और अधर्मियों का विनाश निश्चित है।

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