फिर कुछ और हैरान करने वाले दृश्य भी थे। एक जगह दिल्ली पुलिस के दर्जनों सिपाही सड़क पर बैठ कर ट्रेक्टर-दंगाइयों को रोकने की कोशिश कर रहे थे। वहीं कुछ ऐसे भी दृश्य सामने आए जहाँ दर्जनों दिल्ली पुलिस दंगाइयों के डर से भाग कर लाल किले के रेलिंग्स के पीछे छुप रही थी। कुछ जगह तो यह भी दिखा कि ट्रेक्टर चालक दंगाई-ट्रेक्टर से पुलिस को कुचलने की कोशिश कर रहा था। वहाँ दर्जनों पुलिस में से किसी के पास इतना हिम्मत नहीं था कि ट्रेक्टर के पीछे से चढ़कर ऐसे हिंसक चालकों को बस में करने की कोशिश करे। डेढ़ सौ से ज्यादा पुलिस कर्मी ज़ख़्मी हुए। किसी को लाठी से मार पडी थी तो किसी को तलवार से। महिला पुलिस कर्मियों तक को नहीं बक्शा उन दंगाइयों और आतंकियों ने। वह री दिल्ली पुलिस। दंगे की स्थिति में आप तो शान्ति की मूरत हैं। क्या यही ट्रेनिंग आपको मिलती है ? हमने जितने भी दृश्य देखे, अधिकांश कल्पना से परे थी कि क्या एक देश के राजधानी की पुलिस इतनी निकम्मी भी हो सकती है ? शर्म आनी चाहिए ऐसी संस्था को। लेकिन इसमें सारा दोष उनका ही नहीं है। कई बार उनके हाथ बाँध दिए जाते हैं। कुछ साल पहले की ही बात है कि दिल्ली के ही वकीलों के साथ उनकी झड़प में पुलिस कर्मियों को अपने ही अधिकारियों ने साथ नहीं दिया था जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने ही अधिकारियों के खिलाफ प्रदर्शन पर उतरना पड़ा था।
यह भी मानने वाली बात है कि कभी कभार दिल्ली पुलिस पर अत्यधिक राजनैतिक दवाब रहता होगा। हो सकता है कभी ऐसा आदेश भी आता हो कि अमुक अपराधी अमुक राजनितिक पार्टी का है इसलिए कार्यवाही नहीं करनी है। यह भी हो कि किसी संवेदनशील मौके पर कोई कड़ी कार्यवाही न करने की सलाह मिली हो। गत गणतंत्र दिवस पर भी शायद ऐसी ही कोई सलाह दी गयी हो, संभव है। अपने ही देशवासियों, किसानों पर गोली न चलाने का आदेश दिया गया हो, संभव है। लेकिन बिना गोली चलाए, बिना हताहत किए भी उग्र भीड़ पर संयम किया जा सकता था। बस कुछ सौ उद्दंड किसानों को हिरासत में लेकर, उनके ट्रैक्टर्स जब्त कर, दंगा पीड़ित इलाके में अल्पकालीन कर्फ्यू लगाकर... हालात को काबू में किया जा सकता था। पुलिस के पास ऐसे कितने ही साधन हैं जिनसे हालात पर काबू किया जा सकता था। 'प्लान बी या सी' का होना अत्यावश्यक था। इन उपायों के लिए दिल्ली पुलिस महानिदेशक को गृह मंत्री के पास जानें की शायद आवश्यकता भी नहीं पड़ती। इसलिए पुलिस से चूक हुई है इसमें कोई शक नहीं।
हर देश की क़ानून व्यवस्था वहाँ के पुलिस के हाथ होती है। फिर गणतंत्र दिवस वाली जैसी स्थिति में अगर पुलिस निकम्मी निकले तो आम नागरिक क्या करे ? पुलिस-तंत्र के हाथों में चूड़ी पहनाकर क़ानून अपने हाथों में ले ले ? दिल्ली देश की राजधानी है। यहाँ दसियों हज़ार अर्धसैनिक बल व पचास हज़ार से ज्यादा सेना है। फिर स्थिति को नियंत्रण में लाने में इतनी ढिलाई क्यों ? क्या गृहमंत्री अमित शाह कायर और डरपोक हैं ? ऐसा किसी भी तरह नहीं लगता। फिर उनकी ये बावसी क्यों ? क्या प्रधानमंत्री मोदी ने उनके हाथ बाँध रखे हैं ? यह तो कल्पना के परे है। क्या देश के गृह राज्य मंत्री कृष्ण रेड्डी और नित्यानंद राय निकम्में हैं ? तो उन्हें मंत्रीमंडल से निकाला जाय। क्या गृह सचिव नकारा है ? लगता तो नहीं। फिर एक चुस्त दुरुस्त प्रशासन में चूक कहाँ हो रही है ? समय रहते इन सारे पहलुओं पर विचार करना होगा। देश के दुश्मन चाहे पाकिस्तान हो या चीन, ऐसी ही अनहोनी घटनाओं की ताक में हैं। गृह मंत्री जागें और समस्याओं का निराकरण करें।
दिल्ली में पर्याप्त आपराधिक मामले आते रहते हैं। धोखाधड़ी, चोरी, ह्त्या, बलात्कार, आतंकवाद यहाँ आम बात है। देश की राजधानी होने के वजह दिल्ली में इतने अधिक आपराधिक मामले अस्वीकार्य हैं। विश्व के बहुतेरे शहरों और राजधानियों के वनिस्पत यहाँ की पुलिस अकुशल और अव्यवसायिक है। दिल्ली में जहाँ एक ओर मामूली चोर या गुंडा भी घातक हथियार लेकर चलता है वहाँ एक निहत्था या लाठी लिए पुलिस क्या का लेगा ? उसे तो अपनी जान पर ही बनी रहेगी। पुलिस की अकर्मण्यता के लिए एक और कारण है पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार ! पुलिस के कितने ही सेवा निवृत्त अधीक्षक कह चुके हैं कि भारत की पुलिस तंत्र भ्रष्टाचार से जर्जर है। यह घुन की तरह पुलिस तंत्र को खोखली करती जा रही है। यह भ्रष्टाचार इसलिए आ रही है कि लगभग हर पुलिस को अपनी भर्ती के समय अधिकारियों को घूस देना पड़ता है। हर हाई प्रोफाइल तबादले और पदोन्नति के लिए मोटी रकम भरनी पड़ती है। उनका बेतन तो ऐसे ही कम होता है। फिर हर पुलिस वाला घूस लेकर अपनी आस्था गिरवी न रखे तो क्या करे ? लेकिन ऐसी कोई भी दलील पुलिस का निकम्मापन को उचित नहीं ठहरा सकता। भारत को एक चुस्त दुरुस्त पुलिस रखना ही होगा अन्यथा बाहरी संकट की घड़ियों में हमारी आतंरिक क़ानून व्यवस्था ही हमें धोखा दे जाएगी और देश के अंदरूनी दुश्मन ही हमारे लाल किले पर दुश्मन का झंडा फहरा जाएंगे और हमारी पुलिस देखती रह जाएगी।
एक कामयाब पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वो ईमानदार हो। वो शारीरिक रूप से सक्षम हो और उपयुक्त हथियार से सुसज्जित भी । उसे सेना की तरह ही निडर रह कर सेवा करनी होगी अन्यथा वे पुलिस फाॅर्स में में शामिल न हों। उसे निष्पक्ष रहना होगा। अपराध कम या उन्मूलन के लिए उनका उचित प्रशिक्षण हो। तभी पुलिस कामगार हो सकती है। मोदी सरकार ने तो सशत्र सेना के लिए इतना कुछ किया है। अब उनसे पूरे देश की अपेक्षा है कि पुलिस को भी आधुनिक बनाएँ।