Editorial

सम्पादकीय : "होई है सोई जो राम रचि राखा"

'राम चरित मानस जिसने भी पढ़ा है, वे निराशाजनक स्थिति में अक्सर यह बोलते सुने जाते हैं :-

"होई है सोई जो राम रचि राखा, को करि तरक बढ़ावहि साखा।'

आजकल प्रायः हर क्षेत्र में जिहादियों की घुसपैठ, मासूम निरीह गैरइस्लामी इन्सानों पर उनके राक्षसी अत्याचारों और बर्बरता को देख-सुन कर लगता है कि इस्लाम के रूप में राक्षसी धर्म हमारे बीच मौजूद है।इनमें एक ओर जहाँ रावण जैसे कुछ मतिभ्रष्ट, पथभ्रष्ट विद्वान् और विभिन्न नामों-संज्ञाओंसे युक्त नरभक्षी दुराचारी जिहादी हैं वहीं विभीषण जैसे अनेकों देशभक्त और शांतिप्रिय नागरिक भी हैं। आज जिस तरह विश्व भर में चारो ओर इन जिहादियों ने मार काट मचा रखा है, ऐसा लगता है कि इस्लाम का शांतिप्रिय तत्व लगभग पूर्णतया गौण हो गया है।अब जितनीं आवाजें आ रही हैं वो मात्र राक्षसों ओर दैत्यों के हैं।एक ओर जहाँ इस्लाम से ज्यादातर राक्षसी-कृत्यों की चीत्कार आ रही हैं वहीं कुछ अन्य धर्मावलम्बी भी ऐसी ही वृत्ति में संलग्न दीखते हैं, लेकिन इनकी संख्याँ बहुत ही कमहै। इन पापी मजहबी राक्षसों के नाश के लिए स्वयँ विष्णु भगवान को पुनः देहधारण करना ही होगा, लेकिन पता नहीं यह कब होगा?

विभीषण और रावण के वंशज लंकावासी आज शांतिपूर्ण ढंग से बुद्ध के बताये शान्तिपथ पर चल पड़े हैं। निशाचरों और राक्षसों के संहार के बारे में भविष्य वाणी करने वाली लंकिनी भी स्वर्गलोक जा बसी है, फिर उनका संहार भला कब और कैसे होगा ? राक्षसों का सँहार करने वाली 'माँ दुर्गा', 'काली' और रक्तबीज का रक्तपान करने वाली 'भयंकरी' भी जाने किस तपस्या में लीन, शिव में समाहित हो गयी हैं कि बेबसों की पुकार भी उन्हें सुनाई नहीं दे रही है।

हिन्दुओं, दलितों और महादलितों पर पाकिस्तान, बांग्लादेश, बंगाल और हाल में बिहार में भी अत्यधिक अत्याचार हो रहे हैं। भीम मीम का नारा लगाने वाले दलित नेता रावण, लल्लू परिवार, लोकल नेता, लोकल पुलिस, जनता की सुरक्षा से उदासीन अपनी तन्द्रा की उबासियाँ ले रहे हैं। जिहादी लगातार हिन्दुओं की हत्या, उनके घरों को लूट रहे है, उन्हें उनके पुरखों की जमीन से बेदखल कर भगा रहे हैं। उत्पीड़ित प्रदेश के हिंदू नेता अन्धे-बहरे-गूंगे बन अभी भी सेक्यूलर और गंगा-जमुनी तहजीब का ढोल बजाते हुए अपनी, हिन्दुओं की, हिंदुत्व की, हिंदुस्तान की कब्र खोदने में कश्मीरी पंडितों, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के हिन्दुओं की तरह ही लगे हुए हैं।

सभी जानते हैं कि 'इस्लाम' कोई धर्म नहीं है, यह सिर्फ मझहब है, पापी-जिहादीयों को इंसानियत से कोई मतलब नहीं है। इस्लाम के नाम पर अधर्म के पथ पर चलने वाला बर्बरता, पाप से परिपूर्ण ऐसा मझहब जो क्रूर पापियों, बलात्कारियों, बर्बर हत्यारों को गैर इस्लामियों के साथ क्रूरता करने की तालीम देता है। यह लुटेरों-डाकुओं द्वारा प्रतिपादित नियमावली है जो सिर्फ बर्बर-राक्षस, गुलामों को पाप-पथ पर चलने के लिए, इंसानियत के खात्मे के लिये, एक जाहिल पापी गुलाम जो अपने ही मालिक का हत्यारा, मालकिन का बलात्कारी और सभी प्रकार के राक्षसी वृत्तियों से परिपूर्ण था, उसी के द्वारा फैलाया गया है। पुराणों में राक्षसों की व्यख्या निम्नलिखित है-

"करही उपद्रव असुर निकाया, नाना रूप धरहिं कर माया।

जेहिं विधि होहिं धर्म निर्मूला, सो सब करहिं वेद प्रतिकूला।

जेहिं-जेहिं देस धेनु द्विज पावहिं, नगर गाँव पुर आग लगावहिं।“

शास्त्रों में जैसा वर्णन राक्षसों के लिए किया गया है, कुछ इसी तरह के लक्षण इस्लामी कट्टरवादियों में भी मिलते हैं।जब इस्लामी आतताइयों का भारत पर आक्रमण हुआ था, वे अकारण की ब्राह्मणों और क्षत्रियों को मारते थे।कुरआन और हदीथ में दूसरे धर्मावलम्बी मनुष्यों का मांस-भक्षण का प्राविधान है जैसे राक्षस मनुष्यों, खासकर ब्राह्मण का भक्षण करते थे।ये पर नारी का ऐसा ही अपहरण करते हैं जैसे राक्षस करते थे। अतः इनके बहुतेरे लक्षण दानव और राक्षस के मिलते जुलते हैं। कुछ ऐसे ही आचरण जिहादियों और मुस्लिमों के द्वारा प्रायः हर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में किये जा रहे हैं, जिसके कारण उन्हें राक्षस कहना उचित ही है।

हिन्दू के नाम से सुशोभित उद्धव ठाकरे, कमलनाथ,खेजड़ीवाल, शिशोदिया, जगन रेड्डी के लिए सिर्फ इतना ही कहना उनके चरित्र को प्रकट कर देता है-

"सुभ आचरण कतहुँ नहीं कोई, देव विप्र गुरु मान न कोई।

नहिं हरि भगत जग्य तप ग्याना, सपनेहुँ सुनिअ न वेद पुराण।"

राक्षसों के इशारों पर नृत्य करने वाले अखिलेश यादव और मायावती के लिए भी उनके प्रसाशन के अंतराल में जो कुकर्म हुए हैं उसके लिए कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-

"बाढ़ै खल बहु चोर जुआरा, जे लम्पट परधन परदारा।

मानहिं मातु पिता नहिं देवा, साधुन्ह सन करवावहिं सेवा।

जिन्ह के यह आचरण भवानी,से जानेहु सब निशिचर प्राणी।“

इन सभी उद्धरण की व्यख्या तो ज्ञानी व्यक्ति स्वयँ ही समझ जायेंगे I अब आइए आपको रावण असुर पति की सभा में ले चलते हैं जहाँ के वक्तव्यों की व्यख्या आपको फुरफुरा शरीफ के मौलवी, ओवैसी या अमनुतुल्ला आदि नेताओं के वक्तव्यों की याद दिला कर उनके राक्षस जाति के होने का पुष्टिकरण करते हैं। ऐसे भी जिस तरह से जगह-जगह हिन्दुओं, साधुओं, दलितों की हत्याओं पर तथा किसान-आंदोलन समूह बीच स्त्रियों के बलात्कार परकोंग्रेसियों के नेता चुप लगाये बैठे हैं कि रावण के दरबार कादृश्य और दृष्टिकोण दोनों ही परिलक्षित हो रहे हैं।

कोंग्रेसियों का टूलकिट भी इन्हीं कुकर्मों को बढ़ावा देने का हिस्सा है।

"सुनहु सकल रजनीचर जूथा, हमरे बैरी विविध बरूथा।

ते सनमुख नहिं करही लड़ाई, देखि सबल रिपु जाहिं पराई।

तेन्ह कर मरण एक विधि होई, कहऊँ बुझाई सुनहु सब सोई।

द्विज-भोजन मख होम सराधा,सबकै जाइ करहु तुम बाधा।

राक्षस जाति अपने मंसूबों में दिन दूनी रात चौगुनी के फार्मूले के साथ एकजुट कार्यरत हैं। इस प्रकार निरंतर प्रताड़ित हिन्दुओं के लिए यह सोचना आवश्यक है कि वे किसी अवतार की प्रतीक्षा करने चाहते हैं या स्वयँ में ही राम, कृष्ण, परशुराम की शक्ति का आवाहन कर स्वयँ की रक्षा हेतु 'अहम ब्रह्मास्मि' के मन्त्रों का अर्थ ग्रहण कर शास्त्रों में निहित शस्त्र धारण कर "धर्मो रक्षति रक्षतः' का पालन करते हैं।

हिन्दुओं की रक्षा के लिए कोई मानवाधिकार वाले सामने नहीं आ रहे हैं, न ही कोई नेता सामने आ रहे हैं, हमें स्वयँ एकजुटता से अपनी रक्षा करनी होगी, अन्यथा दोगले धोखेबाज नेताओं और राक्षसों के समूहों के बीच हम रोज ही उनके निवाले बनते जायेंगे।

अंततः .... भविष्यवाणी सत्यापित होने वाला है का ज्ञान रखने वाली-

" विकल होहिं जब कपि के मारे, तब जानहु निशिचर संहारे"

और श्रीराम का स्मरण कर हनुमानजी को आशीर्वाद देने वाली लंकिनी-

"प्रबिसि नगर कीजै सब काजा, हृदय राखि कौसलपुर राजा"

अभी कलयुग में अवतरित नहीं होने वाली हैं।

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