
सम्पादकीय: मिली जुली अनुभूति
महाशिवरात्रि तक चलने वाले महाकुंभ में सनातन संस्कृति के प्रति जो अगाध आस्था एवं विश्वास संपूर्ण भारतवर्ष में उत्साह के साथ दिखाई दिया उसका वर्णन शब्दों से परे है। कहावत है "गिरा अनयन नयन बिनु बानी'" अर्थात आँखें जो देखती हैं उसका वर्णन नहीं कर सकती है। बानी जो भी कहती है उसे बानी ने नहीं देखा होता है। यह महाकुंभ अन्यान्य लोगों के हृदय का अपनी संस्कृति और धर्म के प्रति प्रेम था जिसे जिहादी इस्लामिस्ट की पत्थर बाजी, टोटी चोर तथा हिंदुत्व विरोधी नेताओं की बदजुबानी भी नहीं रोक पायी।
गैर इस्लामियों खास कर हिन्दुओं की आस्था धर्म, धार्मिक उत्सवों पर जहर उगलने वाले, विरोधी एवं ओछी हरकतों से उत्सव को मातम में बदलने वालों की भारत में या अन्य देशों में भी कोई कमी नहीं है। ये भारत ही नहीं विदेशों में भी समय-समय पर सक्रिय होते रहे हैं, गैर इस्लामियों, ईसाइयों एवं हिन्दुओं की आस्था पर चोटें देते रहे हैं, उत्सव के वातावरण को मातम में बदलते रहे हैं।
किसी भी इस्लामिक देश, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान में तो अल्पसंख्यक गैर इस्लामियों खास कर हिन्दुओं एवं उनके परिवार का कोई त्योहार मानना कानूनी तौर पर अपराध हो गया है। इन इस्लामिक कट्टरवादियों के कारण उनकी की स्त्रियों एवं बच्चों का जीना भी मुश्किल हो गया है। भारत में भी कट्टरवादी दरिंदे जिहादी जानवरों की जड़ें गहराई से जम चुकी हैं। यहाँ सरकार यदि इन इस्लामिक दरिंदो को खत्म करने के लिए सख्त कानून नहीं लाती है तो यूरोप में जिस तरह आए दिन जिहादी हरकतें सक्रिय हैं, ग्रुमिंग गैंग शार्क की तरह औरतों बच्चियों को निगल रहे हैं उसी तरह भारत में स्थिति को संभाल पाना मुश्किल हो जाएगा। लड़कियाँ को अगवा करके एवं 'लव जिहाद' के नाम पर फंसाया जाना, उपभोग एवं बलात्कार के बाद उनकी बर्बर हत्या प्रतिदिन की दर्दनाक अप्रिय कहानी बन चुकी है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो युद्ध हो, गृहयुद्ध हो या अन्य प्रकार से घटित नृशंसता कांड इन सभी के मूल में कठिनाइयों, दुखों, विभिन्न प्रकार के घृणित अत्याचारों से प्रताड़ित होने वाले अधिकाश 'जन' स्त्री और बच्चे ही होते हैं। अवांछित शोषण पर प्रतिबंध भी तभी हो सकता है जब जिहादी आतंकवादियों से कड़ाई से निपटा जाए तथा युद्ध , गृहयुद्ध तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी शान्ति कायम हो।
इस परिपेक्ष्य में ट्रंप के आने के बाद युद्ध विराम के लिए जो भी पहल किए जा रहे हैं वे मानवीय तथा विकास के विनाश की गतिविधियों को रोकने के लिए आवश्यक ही है। शर्ते एवं समझौतों का स्तर चाहे जो भी हो, जिस भी विधि से इन्हें स्वीकृत हो परन्तु यह तो समूची दुनियाँ स्वीकार करती है कि युद्ध, बर्बरता, अबोधों के प्रति क्रूरता या पैशाचिक प्रवृति से कभी किसी का भला नहीं हुआ है इसलिए इस पर प्रतिबंध आवश्यक है।