75 yrs of Amrit Mahotsav

सम्पादकीय 'अमृत महोत्सव'

आजादी का 'अमृत महोत्सव' प्रत्येक विभागों द्वारा लगभग सभी राज्यों में मनाया जा रहा है।लोगों में उत्साह की कमी नहीं है फिर भी कुछ सवाल ऐसे हैं जिस पर भारत सरकार को सोचना है।देश के आजाद हुए पचहत्तर साल होने को हैं परन्तु भारत में हिन्दुओं, हिन्दू तीर्थों, हिन्दू मन्दिरों तथा हिन्दू धर्म पर आतंकवादी काले बादल कुछ ज्यादा ही गहराते जा रहे हैं। स्वयँ को सर्वश्रेष्ठ साबित न कर पाने की कमी और जलन की भावनाओं ने अन्य विदेशी मज़हबियों और रिलिजन के अनुयायियों को आतताई शैतानों में परिवर्तित कर दिया है।जब जहाँ इन्हें मौका मिल रहा है हिन्दुओं,उनके बच्चों को उनके पूजास्थलों को खत्म करने में लग जाते हैं। कहीं-कहीं तो न्यायाधीशों के बेतुके बयानबाजी और उनके द्वारा किये गए न्याय, राज्यसरकार की न्यायिक प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह अंकित करती है।

राममंदिर बनाने के पक्ष में दिए गए न्याय के समय न्यायालय पर प्रश्रचिन्ह लगाने वाले समुदाय आज बहुत सी जगहों पर खुलेआम मंदिरों को तोड़ा जाना न्यायिक ठहरा रहे हैं। स्टालिन और जगनरेड्डी सरकार द्वारा अनेक पुराने मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा है जो हमारे धार्मिक स्थल होने साथ-साथ पुरातात्विक विभाग के अनमोल धरोहर भी हैं। कोर्ट के ऐसे जज का ये बयान कि 'भगवान को मंदिरों की जरूरत नहीं है' क्या कोई तर्क दे सकते हैं कि मशरूम की तरह बनाये जाने वाले चर्च और मस्जिदों की क्या आवश्यकता है? इसको भी क्यों नहीं तोड़ा जाना चाहिए? खास कर जब इन्हें मंदिरों की जमीनों पर जबरन बना दिया जाता है।

ज्यादातर राज्यों में जहाँ ईसाई और मुसलमानों की संख्या अधिक है या ये अधिक संख्या में सरकारी तन्त्र में मौजूद हैं, हिन्दुओं को आवाज उठाने पर या विरोध प्रदर्शन करने पर सजा दी जाती है। तमिलनाडु, केरल,बंगाल,राजस्थान आदि कई जगहों पर हिन्दुओं के ऊपर अत्याचारों का, दमन का सिलसिला जारी है,जिस पर वहाँ की सरकार चुप्पी साधे है। जिन्ना चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिश करने वाले देशभक्त को वहाँ की लोकल पुलिस के द्वारा पीटा गया है,तो क्या वहाँ की सरकार और स्थानीय लोगों ने जिन्नावादियों की गुलामी स्वीकार की हुई है?या यह जगह पाकिस्तान में है जहाँ राष्ट्रीय ध्वजारोहण नहीं हो सकता है?

जिन्ना ! जिसने बंगाल के लाखों बेकसूर हिन्दुओं को मुसलमानों द्वारा गाजर-मूली की तरह कटवाया-मरवाया, धर्म के नाम पर देश को विभाजित किया, किसी भी प्रकार से हिंदुस्तान में स्वीकार्य नहीं किया जाना चाहिए,फिर भी पाकिस्तान परस्त आंध्र के मुस्लिमों ने उनके नाम से चौक का नाम रखा है। पाकिस्तान समर्थकों, संविधान या गणतांत्रिक भारत की गरिमा का अपमान करने वालों को देश में रहने हक़ दिया जाना स्वतंत्र भारत का अपमान तो है ही, देश के अंदरूनी दुश्मनों को पालने के आर्थिक बोझ के समान भी है। ये भी दुःखद है कि कोई भी इस्लामिक देश हिंदुस्तान के मुसलमानों को नागरिकता का सम्मान नहीं देता है फिर भी देश के मुस्लिम अन्य इस्लामिक देशों के नुमाइंदे बने हुए,हिंदुस्तान में आतंकी गति-विधियों में लिप्त रहते हैं। आज देश के दुश्मन, जिन्नावादी मानसिकता के मुसलमान देश में खुलेआम इतने सक्रिय हैं कि लावण्या, पूजा, किशन, दिल्ली का दलित हीरालाल या अंकित सक्सेना ऐसे बहुत बेजुबान जिहादी मुसलमानों द्वारा अगवा किये जा रहे हैं, मौत के घाट उतारे जा रहे है। कई मस्जिदों के मौलाना हिन्दुओं कत्ल करने की, संविधान को पलटने की धमकियां ऐसे दे रहे हैं जैसे हिन्दुओं को पाकिस्तान तथा इस्लामिक देशों में दिया जाता है। किसान आंदोलन की आड़ में देशविरोधी गतिविधियों को हवा दी गयी है। कई बेकसूरों की जान आतंकियों द्वारा ली गयी,जिस पर सख्त कार्यवाही न होने के कारण आतंकियों का मनोबल बढ़ गया है।

'वसीम हज़रत मुल्ला' अपनी जिहादी मानसिकता की संतुष्टि के लिये बैंक में आग लगा देता है। शिक्षक के नाम पर कलंक आतंकियों का रहनुमाई करने वाला 'खान' अपने गैंग द्वारा देश के रेलवे-संपत्ति को नुकसान पहुंचता है।राष्ट्रीय सम्पत्तियों को जलाने वाले आतंकियों की रहनुमाई करने वालों के जिन्दा रहते, अमृत महोत्सव मनाने का उत्साह कितना फीका और बेमानी हो जाता है ये कोई भी देशभक्त महसूस कर सकता है।

बिके हुए नेता, दुश्मन देशों से मिले हुए पत्रकार,कुछ फिल्मी हस्तियाँ, आतताइयों के आत्मिक गुलाम हैं, जिसका कोई इलाज नहीं हो पा रहा है। यहाँ तक कि उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के कारनामों और वक्तव्यों ने शर्म और हया के सारे आवरण उतार कर अपनी गन्दी जिहादी मानसिकता का परिचय देकर करोड़ों हिंदुस्तानियों को शर्मसार कर दिया है। आश्चर्य नहीं है कि कोंग्रेसियों के गलत नीतियों के कारण ही ऐसे देशद्रोही लोग भारत के संवैधानिक पद पर आसीन रहे हैं। ऐसे लोग अगर कुछ और दिन संवैधानिक पद पर रहे तो कश्मीर,पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं की तरह भारत के हर कोने में हिन्दुओं की हत्याओं को बढ़ावा देकर हिंदुस्तान में भी हिन्दुओं को असुरक्षित कर देने में कामयाब हो जायेंगे। हिन्दुओं की कमजोरी है कि वे मुसलमानों और ईसाइयों पर सहजता से विश्वास कर लेते हैं। दोस्ती या उदारता के पीछे छिपे इनके जालसाजी को समझ नहीं पाते हैं। हिन्दुओं को एक जुट हो स्वयँ ही स्वधर्म, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए आगे आना आवश्यक है जो नहीं हो पा रहा है। आतंकवाद के समर्थक ईसाई मिशनरियों तथा इस्लामी जिहादियों से हिन्दुओं को मुक्ति पाना आवश्यक है अन्यथा हामिद,अब्दुल्ला, मुफ्ती तथा देवबंदी मौलानाओं के उकसाने पर कभी छिटपुट तो कभी सामुहिक रूप से कटते हुए समाप्त हो जाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

आजादी के बाद से अब तक में बहुत से राज्यों में हिन्दू न सिर्फ अल्पसंख्यक रह गए हैं बल्कि प्रताड़ित भी है। नेहरूजी की हिन्दू विरोधी मानसिकता द्वारा थोपे गए कानून भी हिन्दूओं को धोखे में रख सनातन संस्कृति, हिन्दूधर्म को खत्म करने के लिये बनाया गया। बिकी हुई विदेशी मीडिया कभी यह नहीं बताती है कि कश्मीर और बंगाल में मुसलमानों द्वारा, गोवा में ईसाइयों द्वारा,महाराष्ट्र में चितपावन ब्राह्मणों को तथा दिल्ली में सिख्खों को कोंग्रेसियों द्वारा लाखों की संख्या में किस बर्बरता से मारा गया है। गुजरात के दंगे की बात करने वाले गोधरा के ट्रेन में "बच्चों, औरतों और कार सेवकों को मुसलमानों ने जिन्दा ही जला दिया" जाने की बातें नहीं बताते हैं।

यूँ तो मुसलमानों को सुरक्षा देने की बातें करने वाले, उनकी वकालत करने वाले पश्चिमी देश खुद भी मुसलमानों की जिहादी बर्बरता भरे कारनामों- 'आगजनी,हत्याएँ,बलात्कार,स्त्रियों को जबरन देहव्यापार में धकेलने' जैसी समस्याओं को झेल रहे हैं फिर भी हिन्दुओं, हिन्दुत्व, हिन्दूधर्म और हिंदुगणतंत्र के विरोध में बेशर्मी से बोलने या लिखने में संकोच नहीं करते हैं।

ये दुनियाँ का दुर्भाग्य है कि वे हिंदुतीर्थों, हिन्दूधर्म,मानवता युक्त, हिंदुत्ववादी विचारों का सम्मान कर, उन्हें प्रसारित-प्रचारित कर विश्व शान्ति, विश्व बंधुत्व को स्थापित करने के स्थान पर जिहादी क्रूर इस्लामिस्टों को बढ़ावा दे रहे हैं। लोकसेवा, मानवतावादी, मानवाधिकार की भावनाओं का विकास सिर्फ हिंदुत्ववादी,वैदिक सनातनी विचार धाराओं के प्रवाहमान होने पर ही सम्भव है,क्योंकि अन्य रिलिजन या मझहब तो गुलामी छद्म और बर्बरता का पर्याय ही है,जिसके उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं।

आजादी का अमृत महोत्सव तो भारत ही नहीं सारी दुनियाँ को मनाना चाहिए परन्तु पाप के पर्यायवाची मज़हबियों और ढोंगी धूर्तों के चंगुल से मुक्ति पाने के बाद जहाँ किसी को मजबूरी या आतंकी के द्वारा विवश किये जाने पर स्वयं का धर्म परिवर्तन न करना पड़े। आजादी तो तभी है जब मनुष्य किसी बलात्कारी और दरिन्दे द्वारा चलाये गए, कत्लेआम द्वारा थोपे गए,शारिरिक रूप से विकृत किये जाने वाले,मानसिक रूप से गुलाम बनाये जाने वाले मझहब से मुक्ति पा अपने पूर्वजों के स्वतंत्र विचार धारा के परिपोषक हिंदुत्ववादी विचारधारा तथा चिरंतन सत्य सनातन धर्म को स्वेच्छा से स्वीकार कर ले। मानव कल्याण हित में अमृत महोत्सव मनाने के लिए अमृत तुल्य सत्य सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार-विस्तार विश्व स्तर पर होना आवश्यक है,तभी तो संसार विषैले आतंक से मुक्त होगा।

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