सम्पादकीय : बाबा बैद्यनाथ
पवित्र देवस्थान की महिमा मनुष्य की आस्था से संबंधित है न कि उसके रख-रखाव से। बचपन से बैद्यनाथ धाम की महिमा को सुनते मिथिलांचल के लोग बड़े होते आये हैं।समयान्तराल में अगर कुछ अंतर आया है तो सिर्फ यह कि आसपास के इलाकों में जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव से मंदिरों के आस-पास में एवं शिवगंगा नामक तालाब में कचड़े की मात्रा, खास कर पॉलीथिन, बढ़ी हुई है।
उपनयन संस्कार, वैवाहिक संस्कार करवाने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है; परन्तु उसी अनुपात में किसी भी प्रकार का विकास या यात्रियों के लिए रहने की समुचित व्यवस्था नहीं हो पायी। समूचे भारत में बिजली प्रबंधन का सहयोगी झारखंड बैद्यनाथ धाम ऐसे पौराणिक धर्मस्थल पर चौबीसों घंटे बिजली मुहैया कराने में असमर्थ है। जलस्रोतों को स्वच्छ रखने का सरकार एवं जन साधारण के कार्य यहाँ कोई अर्थ नहीं रखता है। "जल ही जीवन है" या "जल संरक्षण" आदि कई जुमले यहाँ मन्दिर एवं परिसर प्रबंधकों की लापरवाही को दर्शाती है। अमीर-गरीब सभी बाबा बैद्यनाथ के द्वार पर भिखारी बने होते हैं परन्तु इस स्थान की महत्ता को महत्वपूर्ण ढंग से सँवारे जाने की जरूरत किसी ने महसूस नहीं की है I अगर कुछ किया जा रहा है तो वह सिर्फ यहाँ के स्थानीय पंडा आदि के द्वारा किया जा रहा है।
आये दिनों मस्जिदों एवं चर्च को विकसित करने हेतु चंदा देने वाली संस्थायें कभी मंदिरों के विकास पर ध्यान नहीं दे रही है। ज्यादातर मंदिरों के चढ़ावे का पैसा सरकार अपने खाते में लेती है, परन्तु खर्च वह गैर-हिंदुओं के संस्थानों एवं मस्जिदों एवं चर्च के रख-रखाव पर अप्रत्यक्ष रूप से करती है। कब तक हिन्दुओं एवं हिन्दू धार्मिक स्थलों के साथ भारत में ही सौतेला व्यवहार किया जाता रहेगा पता नहीं? चर्च एवं मस्जिदों के करोड़ों के बिजली बिल के भुगतान का बकाया रहने पर भी निरंतर उदासीनता बरतने वाली राज्य सरकारें मंदिरों से चारगुना बिजली के दाम वसूली करके भी उसे नियमित रूप से पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराने में उदासीन होती है।
यह भारत के हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही है कि उदारता, शांति सहनशीलता और भाई-चारे के पाठ सिर्फ हिन्दुओं को ही पढ़ाया जाता रहा है जिसके कारण हिन्दुओं को अपने ही देश में असुरक्षित कर गैर-हिंदुओं की उदर-पूर्ति एवं सुविधाएं प्रदान करने हेतु साधन मात्र बना कर रख दिया गया है। दक्षिण भारत के मंदिरों को राज्य सरकारें खुलेआम लूट रही है; परन्तु हमारे हिन्दू भाइयों को सेकुलरिज्म का ऐसा पाठ पढ़ाया गया कि वे हलाल होने तक गहरी नींद में सोते ही रहना चाहते हैं।आज ज्ञानव्यापी मस्जिद, जो निश्चित रूप से ज्ञानव्यापी शिवमंदिर तथा ज्ञानव्यापी केंद्रित स्थान पर आततायियों द्वारा अवैध कब्जा कर बनाया गया है, चर्चा का विषय बना हुआ है।
मुसलमानों को खुश करने के लिए, कोंग्रेसियों के काले कारनामे वाले कानून जो हिन्दुओं, उनके धार्मिक स्थलों को लूटने तथा संस्कृतिक विरासतों खत्म करने के लिए समय-समय संविधान में जोड़े गए हैं उन्हें खत्म करने का समय आ गया है। हिन्दुओं के विरूद्ध हिंदुस्तान में (जो धर्म के नाम पर ही विभाजित हुआ है) जितने भी कानून बनाए गए हैं उसे यदि संविधान से हटाया नहीं गया तो पाकिस्तान की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं तथा सनातन धर्म का अस्तित्व जिहादी राक्षसों द्वारा खत्म कर दिया जाएगा। राजनीतिज्ञों को भी सोचना आवश्यक है कि जब तक हिन्दू और सनातन धर्म हिंदुस्तान में मौजूद है तभी तक सेकुलरिज्म या इंसानियत यहाँ मौजूद है।अन्यथा तालिबानी, पाकिस्तानी तथा जिन्ना मानसिकता के जिन्न, राक्षसनियों, राक्षसों की यहाँ कमी नहीं है।अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई में सिर्फ सबल ही सुरक्षित रह सकते हैं।
हिन्दुओं को दलगत अलगाव वादी विचारों से ऊपर उठ अपने धर्म, धार्मिक स्थलों तथा सनातन संस्कृति की रक्षा के लिये एकजुट होना आत्मरक्षा की दृष्टि से भी अतिआवश्यक है। प्रत्येक धर्म-स्थलों को स्वच्छता एवं आवास सुविधाओं के साथ विकसित करना,पर्यटकों को बढ़ावा देना तथा मलेच्छों से मुक्त करना साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए भी जरूरी है। सेकुलरिज्म का निर्वहन प्रत्येक समुदाय की जिम्मेदारी बनती है न कि सिर्फ हिन्दुओं की है अतः मंदिरों एवं उसकी जमीन का अवैध अतिक्रमण गैर-हिन्दू समुदाय को स्वेच्छा से बिना किसी बहस के हटा लेना चाहिए।