Chief Editor:Dr Sumangala Jha

सम्पादकीय : 'बदलाव'

"समय कभी ठहरता नहीं, किसी के रोके रुकता नहीं"… यह ऐसा कटु सत्य है जिसे हर किसी को स्वीकार करना ही होता है।लम्बी उम्र जीने वालों को सामाजिक, राजनीतिक, वैचारिक एवं तकनीकी परिवर्तनदेखने का भरपूर अवसर मिलता है। कभी किस्से-कहानियाँ, गप्पें, बातचीत, अड़ोस-पड़ोस से मिलना-जुलना हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हुआ करता था परंतु आज ज्यादातर लोग अपने आप में ही मस्त रहते हैं। प्रचार-प्रसार के अति आधुनिक यंत्रों ने जहाँ अपरिचित दुनियाँ को एक-दूसरे के करीब लाया है वहीं वैमनस्यता में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ आस-पास के लोगों के बीच दूरियाँ भी बढ़ गयी है।सामाजिक दूरियों पर कुछ असर तो कोरोना ने भी किया है जिसे इसी मंत्र से जानते है" दो ग़ज़ की दूरी, मास्क है जरूरी"। ओलिंपिक खेलों के लिए सभी लोगों में उत्साह है। कभी ऐसा समय था कि एक-दो खिलाड़ियों के नाम को दूरभाष या पत्रों के द्वारा प्रकाशित किये जाने पर ही जान पाते थे, आज उनकी शक्ल भी देख पाते हैं।

कोरोना के कारण आज ओलिंपिक के खेलों को देखने वालों की भीड़ स्टेडियम में नहीं दिखाई दे रही हैपरन्तु घर के टी.वी.स्क्रीन के कारण लोग उसका आनन्द ले पा रहे हैं।भारत से भी बहुत बड़ी तादाद में खिलाड़ियों को खेल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने का मौका मिला है जो प्रत्येक भारतीयों के लिए गौरव का विषय है।कभी खिलाड़ियों के पास जूते भी नहीं होते थे, आज उन्हें प्रत्येक सुविधायें प्रदान करने की हर सम्भव कोशिश की जाती है।प्रधानमंत्री भी उनके हौसले बढ़ाने के लिए बढ़-चढ़ कर आगे आते हैं। खेल के प्रति सामान्य लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आने के कारण सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं युवतियों ने भी अनेक खेलों में हिस्सा लिया है, मैडल जीत कर देशवासियों को गौरवान्वित भी किया है।

खिलाड़ियों के प्रशंसकों के अलावे कुछ वामपंथी पत्रकारों का चिड़चिड़ापन भी खुल कर सामने आया है। अपने देश की पारम्परिक संस्कृति के संरक्षण के साथ जिन लोगों की तस्वीरें हिन्दू देवी देवताओं के फोटो के साथ सामने आई हैं उस पर वामपंथियों के घृणित घटिया तंज अत्यंत निंदनीय हैं। तंज कसने वाले वही लोग हैं जो भारत और सनातन धर्मकी उदारता और महानता को स्वीकार करने के स्थान पर उसे नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। खुद की श्रेष्ठता साबित न कर पाने की चिढ़ में घटियापन प्रदर्शन करने वाले छद्मवेशी दुर्जनों की कमी नहीं रह गयी है। हिंदुस्तानी खिलाड़ियों का मनोबल भी तोड़ने के लिए कुछ पत्रकारों द्वारा ओछी बयानबाज़ी निंदनीय तो है ही, भारत के प्रति उनके हृदय की घृणा को भी दर्शाती है।

खेल प्रतियोगिताओं में हार-जीत तो होती ही रहती है, सर्वश्रेष्ठ योगदान महत्वपूर्ण है जो प्रत्येक खिलाड़ी यथासंभव दे रहे हैं। भारतीयों के लिये यह भी गौरव का विषय है कि हमारे बहुतायत खिलाड़ी भाग लेने लायक साबित हुए हैं अन्यथा एक समय था जबकि ओलंपिक खेलोंमें तो हमारे देश के खिलाड़ी भागीदारी भी नहीं निभा पाते थे। आज विभिन्न खेलों में औरतों की भी हिस्सेदारी हमारे लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय है, जबकि संकीर्ण मानसिकता वाले कई देशों से मात्र दो या तीन महिला खिलाड़ियों को भेजा गया है।

कुछ वामपंथी लोगों को तथा पत्रकारों को अगर भारतीय खिलाड़ियों में प्रतिभा की कमी और खेल में उनकी लापरवाही नज़र आती है तो उन्हें भी यह भी समझना चाहिये कि तंज करने वाले पत्रकार भी अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार नहीं हैं। शुरूआत में ही खिलाड़ियों के लिए कुछ अटपटे लिखना अनुचित है। बदलाव तो होते रहते हैं, खेल में हार जीत होती रहती है, बाजी पलटते देर नहीं लगती। आज एक रजत पदक मिला है, उम्मीद है कि आगे बहुत से अन्य पदक भी मिलेंगे।उम्मीद क्यों छोड़ी जाए तथा मैडल न लिए जाने पर तंज क्यों? भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी क्षमता अनुसार कोशिश तो की है। फिर खेलने वाले ही हारते या जीतते हैं न कि बैठे-बिठाए जुबानी तंज करने वाले।मोदीजी के आने के बाद भारतीय खिलाड़ियों को भी पहले की सरकारों की तुलना में बहुत ज्यादा सुविधाओं तथा पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान किये जाने का ही कारण है कि आज इतनी बड़ी संख्या में भारतीय खिलाड़ी टोकियो ओलिम्पिक में भाग ले पा रहे हैं। वामन्थियों को शायद मोदीजी द्वारा किये गए प्रत्येक अच्छे कार्य जो भारत एवं भारतीयों के हित हो, उससे तकलीफ होती है। बिलबिलाहट, चिड़चिड़ापन, देश-विरोधी बयानबाजी किसी न किसी प्रकार से बेशर्मी के साथ बेपर्द हो जाती है।

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