Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय : नमूने भ्रष्टाचारी एवं उनके नौनिहाल


कहावत है "पूत के पाँव पालने में नजर आने लगते हैं।" शुरू में इसका अर्थ समझ में नहीं आता था जब समझ आने लगा तो पवनपुत्र हनुमान जी, श्रीराम जी, श्री कृष्ण जी की ,गौतम बुद्ध कथा तथा ऐसे महान व्यक्तित्व को पढ़ने सुनने के कारण कहावत के अर्थ सकारात्मक भाव के साथ मनो-मस्तिष्क में छाए हुए थे।समय के साथ महाराणा प्रताप,वीर शिवाजी एवं स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कुछ नामी-गिरामी राजनेताओं से सम्बंधित कथाएँ भी प्रेरणा दायी रही हैं। एक छवि मष्तिष्क में अंकित थी कि अच्छे खानदान,आर्थिक संपन्नता, अच्छी शिक्षा या डिग्रियों वाले लोग प्रेरणादायी, अनुकरणीय एवं स्वतः सम्मानीय होते हैं। परन्तु आज के समय में देखें तो उपर्युक्त कहावतें कुछ विरोधाभास के साथ दृष्टिगत होती हैं।

नामी-गिरामी विश्व विद्यालयों से ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ हासिल करने वाले नेताओं, उनके कुपुत्रों या नमूने नौनिहालों ने अपने कलुषित कारनामों से देश को शर्मसार करने का कार्य किया है, जो अक्षम्य अपराध हैं। विदेशी विश्व विद्यालयों से उपजे राजनीतिज्ञ तो अपने देश के लिये देशी अनपढ़ नेताओं से ज्यादा खतरनाक ,भ्रष्ट, संस्कृति विहीन मोर का पंख लगा कर मोर बने हुए कौवों की तरह लगते हैं। कई नामी-गिरामी, पढ़े-लिखे एवं कम पढ़े-लिखे भी लेकिन भ्रष्ट नेताओं के साथ-साथ उनके खानदानी भ्रष्ट तथा गुंडई प्रकृति के नौनिहाल भी राजनीति में आ गए हैं। पिता के द्वारा किये गए भष्टाचार से परिपूर्ण राजनीतिक पदचिन्हों पर चलते हुए, कुछ कदम आगे ही चल कर ज्यादा नाम कमा रहे हैं।

चिदम्बरम के पुत्र, ओवैसी के पुत्र, अब्दुल्ला के पुत्र, उद्धवपुत्र, पवारपुत्री, सोनियाँ के पुत्र-दामाद-नवासे और भी जाने कितने कैसे कुबेरपति बने बैठे हैं यह अनुसंधान का विषय है जिस पर कोई मीडिया या पत्रकार अनुसंधान करने की जुर्रत नहीं कर पाते हैं। लेकिन राजनीति में वंशागत परम्परा निभाने आते ही जनता को लूटने अराजकता फैलाने के नए तरीके ईजाद कर लेते हैं। लालू यादव के दोनों सुपुत्र विधानसभा क्या पहुँचे बिहार में जंगलराज की वापसी हो गई है। यह भारतीय जनता के लिए एक ज्वलंत उदाहरण है कि वे इससे सबक लें और जितने भी भ्र्ष्ट और जनता के खून-चूसक नेताओं ने अपने नौनिहालों को राजनीति में ससम्मान उतारा है, उनसे सावधानी बरतें, उन्हें वोट दे कर चोरों और भृष्टाचारियों की तादाद न बढ़ाएं! चोर, चोरी छोड़ भी दे तो वह हेरा-फेरी करने की आदत नहीं त्याग पाता है अतः भ्रष्ट नेताओं की वंशावली राजनेतृत्व से पीछा छुड़ा स्वयँ को मानसिक गुलामी से मुक्त कर संवैधानिक तौर से सच्चाई के साथ समाज में जनतंत्र कायम रखें। हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं ने अपने कुपुत्रों को जनता के भोलेपन का फायदा उठा उनका शिकार के लिए राजनीति में साम-दाम-दण्ड-भेद के मंत्र के साथ उतार दिया है।

फिर ये सभी, नोट-परिवर्तन, प्रवर्तन निदेशालय एवं खुफिया विभागों की सक्रियता के कारण अपना लूट का धन गँवाने वाले, चोट खाये जहरीले साँपों की तरह अन्य जहरीले साँपों से ज्यादा खतरनाक हैं। स्वाभाविक है कि इन सत्तारहित नेताओं के सुपुत्र/सुपुत्री यदि सत्तारूढ़ होते हैं तो जनता के लिए कोरोना की द्वितीय लहर की तरह ही बहुत ही ज्यादा खतरनाक और जानलेवा होंगे।

नकली गाँधी माइनो परिवार की हालत तो यह है कि वे समूचे देश और अपने कोंग्रेसी नेताओं को भी अपने अनुसार ही चलाना चाहते हैं। इनके लिए जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता या संविधान सभी स्वयँ के परिवार के व्यक्तियों के व्यक्तिगत स्वार्थ एवं सुविधाओं के लिए हित साधन के अनुसार ही बने होंने चाहिए। इनका तो इतिहास ही छल-प्रपंच, दंगा-हत्या, भ्रष्टाचार-लूट, झूठ और जालसाजियों पर आधारित रहा है, अतः जब तक यह परिवार बेरोकटोक मनमानी और लूटपाट, हत्याएँ-दंगा करवा पाए तो सारे प्रशाशनिक तन्त्र,नियम-कानून सही रहे हैं ; अन्यथा बेकार हैं।

इनके वक्त्वयों से यही जाहिर होता है कि ये स्वयँ को देश से, देश के संविधान से यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर समझते हैं। स्वयँ को भारत देश के मालिक एवं भारतीयों अपना गुलाम समझते हैं। यद्यपि यही मनोवृत्ति नेहरू, इंदिरा एवं राजीव गाँधी की भी थी,जिन्होंने अपनी सत्ता कायम रखने के लिए अनेकों अनैतिक एवं असंवैधानिक कार्य किए हैं। उस समय मीडिया की संख्या एवं सक्रियता का अभाव होने के कारण देश ज्यादातर जनता क्रूर एवं भ्रष्ट कारनामों से अनभिज्ञ थी। इनके परिवार के हाथों से प्रधानमंत्री की कुर्सी क्या छीनी गयी इनके परिवार के लोगों और चमचों के अनुसार उपरोक्त वर्णित सभी न्यायालय प्रशासन तंत्र संवैधानिक नियमावली,संविधान भी खतरे में आ गए हैं, क्योंकि की इससे पहले तक शायद सभी प्रतिष्ठानों, प्रशासन तंत्रों, न्यायालयों एवं संविधान को भी इन्होंने अपने व्यक्तिगत फायदे एवं सुविधा अनुसार ही तोड़ा-मोड़ा एवं चलाया है।

नेहरू,इंदिरा, राजीव गांधी,सोनियाँ, राहुल,प्रियंका द्वारा किये गए भ्रष्टाचार पर पर्दा ही पड़ा रहता यदि भाजपा सता में नहीं आती! कोंग्रेस के अन्य भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं का काम भी सिर्फ नेहरू गाँधी,-माइनो-वाड्रा परिवार विशेष के लोगों को एवं धर्म विशेष के लोगों को फायदा पहुंचाना ही रहा है। भृष्टाचारियों के समूह जैसे कोंग्रेस एवं अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को भले ही संविधान एवं लोकतंत्र खतरे में दिखाई दे रहा हो लेकिन सच्चाई यही है कि लोकतंत्र कोंग्रेस के सत्तारहित होने के बाद ही निखर पाया है।

दुनियाँ एवं लोगों को यह एहसास हो पाया है कि भारत में मुस्लिम के अलावे हिन्दू एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदाय भी रहते हैं, जिनके हितों की रक्षा करना भी सरकार का ही उत्तरदायित्व है जिसके हितों की चर्चा भी कोंग्रेस की सत्ता में रहते नगण्य रूप से ही होती थी। निरंतर बेगुनाहों के खून की होली खेलने वाले नेताओं और उनके गुर्गों ने देश में जिस जंगलराज एवं आतंकवाद के जाल को फैला कर आमनागरिकों की जिंदगी को दमघोंटू वातावरण में ला खड़ा किया था उससे छुटकारा दिलाने के लिये सत्ता परिवर्तन आवश्यक था।

अराजकता, आतंकवाद, भ्र्ष्टाचार, भृष्टाचारियों पर अंकुश लगाने का काम कुछ हद तक मोदी सरकार कर पाई है, परन्तु अभी बहुत से देशविरोधी कारनामों, आतंकी समूहों, भष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए मोदी-योगी जैसे नेताओं की देश को सख्त आवश्यकता है। भले ही सारे भष्टाचारियों का एकजुट समुदाय एक मंच पर आकर,मोदी विरोधी एवं मोदी हटाओ के नारे लगा रहे हैं, जनता को झूठ की चटनी चटाने की कोशिश में लगे हुए हैं परन्तु जनता सच्चाई से अनभिज्ञ नहीं हैं। मोदी विरोधियों के पास न तो जनता के हित के लिए कुछ परियोजना प्रणाली है और न ही देश के उत्थान के प्रति किसी प्रकार की दूरदृष्टि है। जो कुछ है! वह है जनता को ठगने के लिए रटे-रटाये खेजरिवाल द्वारा छोड़ा गया लोभ का बिच्छू या फ्री का फॉर्मूला। यह फ्री का फॉर्मूला भेड़ों के ही ऊन कतर कर ठंड में उन्हें(भेड़ों को) कम्बल देने के वायदे के समान है। टैक्स पेयर के पैसों से एक विशेष समुदाय को प्रसन्न करने के लिए क्षेत्र के विकास एवं अन्य जरूरी परियोजनाओं पर रोक कर घोटाले की प्रणाली को बहुआयामी ढँग से बढ़ाते हुए अपनी जेबें भरना भी इनका मुख्य उद्देश्य है।

जागरूक, शांतिप्रिय ढँग से जीने चाहत रखने वाली जनता को यदि शान्ति और सुकून चाहिए तो उन्हें मोदी-विरोधियों को धूल चटाना आवश्यक है। इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी अपने परिवार के लिए या अपने किसी संतान या नौनिहाल के लिए नहीं बल्कि वे देश के देशभक्ति से परिपूर्ण नौनिहालों, नवयुवकों एवं देश के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए सेवाभाव से राजनीति में आये हैं; जिन्हें दूषित मनोवृत्ति वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा दिए गए जहरीले झूठे बयानों, आरोंपों,जालसाजियों से बचाना किसी भी देशभक्त नागरिक का परम पुनीत कर्तव्य है।

अंततः यही कहना पर्याप्त है कि साधारण जनता को देश के भष्टाचारियों एवं उनके भ्रष्ट एवं नमूने नौनिहालों से बच कर रहना चाहिए। देश के सच्चे देशभक्त एवं कर्मठ नौनिहालों को बचाने के लिए विदेशी ताकतों के नुमाइंदों,छद्मबेषी नेताओं,उनके द्वारा दी गयी मुफ्त की रेवड़ियों, मूंगफलियों से बच कर नेता चुनने के मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए। हम तभी तक सम्मान सहित सुरक्षित हैं जब तक हमारा देश सुरक्षित है,देश का सम्मान सुरक्षित है अतः देश और उसके सम्मान को ही सर्वोपरि समझना हमारे देश और देशवासियों के लिए अवश्यम्भावी एवं परमपुनीत कर्तव्य रूप आत्मसात करना चाहिए।

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