सम्पादकीय: आये दिन हत्याएँ, फिर भी इस्लाम शांतिपूर्ण !
ध्यान से देखा जाए तो शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा जिस दिन मज़हबी उन्माद के कारण किसी न किसी की हत्या की खबर किसी न किसी समाचार पत्रिका में छपी होती है। इन हत्याओं में ज्यादातर या यूँ कहें कि निन्यानबे प्रतिशत हत्यारे, दंगाई या आतंकी, विशेष कट्टरपंथी मज़हबी समुदाय इस्लाम के अनुयायी होते हैं। बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नाइजीरियाही नहीं, किसी इस्लामिक देश में मानवाधिकार का मुद्दा उठाने वाले भी मानव की तरह जिंदा नहीं रह पाते हैं। यहाँ मनुष्यों को जिसे मुस्लिम काफिर कहते है, यहाँ के राक्षसों और दानवों द्वारा अपनी दर्दनाक अन्तिम यात्रा कर चुके होते हैं। पश्चिमी देशों, योरोप में भी अपनी उदारतावादी नीतियों के कारण, जिहादी राक्षसों की क्रूरता के शिकार हो रहे हैं। यहाँ की मूल जनता के हित में बनाये गए संविधान को राक्षसी समुदाय ने ताखे पर रख अपनी दानवी संस्कृति को फैलाना आरम्भ कर दिया है।
हालाँकि इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि जिन योरोपियनों ने हिन्दुओं को भारत में सताने तथा देश को लूटने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और मुसलमानों प्राथमिकता दी; आज वे अपनी कर्मों का फल भोग रहे हैं। वर्तमान समय में भारत में शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता है कि मुसलमानों के हैवानियत की खबर सुर्खियों में न आती हो ! किसी न किसी बहाने प्रायः रोज ही कहीं न कहीं किसी निर्दोष हिन्दू को बड़ी ही बर्बरता से मौत के घाट उतारा जा रहा है। घरों को जलाया या फिर भीड़तंत्र का सहारा ले दंगा कराया और किया जा रहा है। पकड़-धकड़ भी होती है, हत्यारा जेल भी जाता है, पुनः जमानत पर या किसी न किसी तरीके से बाहर आ कर पूर्ववत अपराधी कृत्यों में लिप्त हो जाता है।
इन अपराधियों की वकालत करने वाले मौलवी, इमाम,ओवैसी ऐसे नेता हर प्रकार से सामान्य हिन्दुओं और प्रशासनिक ओहदे पर न्युक्त लोगों पर दोषारोपण करने में अपनी बदजुबानी के साथ लग जाते हैं। ओवैसी का कथन कि जेलों में मुस्लिम युवक भरे जा रहे हैं एक प्रकार से हिन्दुओं के विरुद्ध कट्टरपंथी मुस्लिम जमातों को भड़काने तथा उन्हें आपराधिक कार्यों को करने की उत्प्रेरणा देते हैं। एक प्रश्न सहज ही पूछा जाना चाहिये कि अपराध यदि मुस्लिम कर रहे हैं तो जेल में क्या हिन्दुओं को डाला जाएगा ?
ऐसे कोंग्रेसियों के गठबंधन से बनी सरकारों में यही होता था कि अधिकांश अपराधों का ठीकरा हिन्दुओं पर ही फोड़ा जाता था और अभी भी गैर बीजेपी शासित प्रदेशों में प्रायः यही हो रहा है। हिन्दुओं के विरुद्ध कानून बनाना, हिन्दुओं की आवाज को कुचलने की कोशिशें, बजरंग दल, गोरक्षकों, आर एस,एस, बीजेपी तथा मोदीजी को बदनाम करने की जी तोड़ कोशिश की जा रही है।
कभी साधु, कभी कमलेश तिवारी, कभी अंकित, कभी कश्मीर की शिक्षिका तो कभी कन्हैया ऐसे निर्दोषों को, इन जिहादी राक्षसों द्वारा दी गई घृणित बर्बर मौत क्या कभी इस्लाम को शांतिप्रिय धर्म की संज्ञा प्रदान करता है ? कदापि नहीं। यह तो वह राक्षसी संस्कृति है जिसे एक क्रूर, बर्बर महादानव ने मनुष्यों को लूटने के लिए, अपनी क्रूर हवसी प्रवृत्ति की भूख को सदैव जागृत रखने के लिए बनाये गए युद्धनीति के तहत आता है जो अवश्य ही घृणा का पात्र और हेय है।
अगर गूगल जुबैर की तरह ही आधे-अधूरे झूठे खबर की तरफदारी नहीं करते हैं तो सही-सही आँकड़े दें कि ईशनिंदा या काफ़िरोफोबिया के शिकार मृतकों की संख्या क्या है? साथ ही इस बर्बर,घृणित पाप से परिपूर्ण राक्षसी संस्कृति का विश्वस्तर पर तिरस्कार कर, पापियों को कटघरे में खड़ा कर कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान क्यों नहीं किया जाए ताकि इंसानियत सुरक्षित रह सके।