सम्पादकीय: गांधी ज्ञान एवं यथार्थ
भारतवर्ष में गांधी जी को पूजनीय माना गया है। उनके कुछ उपदेश एवं उसे जीवन में प्रायोगिक रूप से ढालना सिर्फ हिंदुओं तक ही सीमित हैं। आज के सांसारिक वातावरण के संदर्भ में कुछ उपदेश विरोधभास लिये दुःखद एवं मनोरंजक हैं।
गांधी जी ने हिन्दुओं को पाठ पढ़ाया कि 'अहिंसा परमो धर्म:। हिन्दू सम्पूर्ण श्लोक के आधे हिस्से का पाठ पढ़ते-पढ़ते लुटते रहे, स्वयँ के धर्म से विलग होते-होते आज दयनीय परिस्थिति में पहुँच गए हैं। कोंग्रेसियों की कुटिल नीति ने संस्कृत और संस्कृति दोनों को खत्म करने की ऐसी चाल चली कि हिंदुओं ने पूरा पाठ 'अहिंसा परमो धर्म:,धर्म रक्षा तथैव च' या धर्मों रक्षति रक्षतः' पढ़ना छोड़ दिया है। धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे की आड़ में बिना सिसके ही पिसते रहे हैं क्योंकि अहिंसा इनके आचरण में गहराई से घुला हुआ है। अहिंसा के एकतरफा पाठ को आत्मसात कर ये आत्मत्याग से आत्महत्या की ओर स्वेच्छा से बढ़ते जा रहे हैं।
नेहरू की कुटिल नीतियों के कारण इस्लाम और ईसाइयों ने अपने मजहब एवं रिलीजन का प्रचार-प्रसार अनुसूचित जाति एवं जनजातियों में जारी रखा, लेकिन 'इनर लाइन तथा आउटर लाइन' के चक्कर में उत्तर पूर्व में एवं अन्य जगहों पर भी हिन्दू धर्म प्रचारकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।हिन्दु सहिष्णुता, आधुनिकता एवं धर्म निरपेक्षता के गलत प्रायोगिक वृत्तियों के शिकार हो स्वयँ के मूल धर्म से विलग हो आज दुनियाँ में अल्पसंख्यक हो गए हैं। राजनीतिक दृष्टिकोण से इनके पास अपना एक भी हिन्दूराष्ट्र नहीं है एवं भारत के मूल वाशिन्दे होने के बावजूद अपने ही देश में उपेक्षित एवं प्रताड़ित हो रहे हैं। विभाजन विभीषिका के दर्द और पलायन को झेलने के बाद आज भारत के कई राज्यों में इनकी स्थिति चिंता जनक है। कुछ सतर्क नेताओं द्वारा जागरूकता पैदा करने के बावजूद हिन्दुओं को अपने ही देश में अपनी स्वायत्तता, संस्कृति-धर्म एवं धर्मस्थल को बचाने के लिए विधर्मियों से संघर्ष करना पड़ रहा है।
गांधी जी का दूसरा बहुत ही सटीक ज्ञान था कि 'जब कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम अपना दूसरा गाल आगे कर दो' अर्थात पिटते रहो। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, ईरान एवं अन्य इस्लामिक देशों में सनातन वैदिक धर्म पर चलने वाले हिन्दू पिटते-पिटते, पलायन करते लुप्तप्राय हो गए हैं। भारत ऐसे गणतांत्रिक हिन्दू बाहुल्य देश में भी कूटनीति के शिकार ये वेदवेत्ता सनातनी एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन करते नज़र आ रहे हैं या अकारण ही मारे जा रहे हैं।
'एक गाल के बाद 'दूसरे गाल पर थप्पड़ खाने का ज्ञान' गांधी जी ने मुसलमानों को नहीं दिया और न ही वे गांधी जी द्वारा दिये गए किसी आत्मघाती ज्ञान को स्वीकार करते हैं।
वे तो अपने मुहम्मद जिसे वे अपना आदर्श और पैगम्बर मानते हैं, उनके ही बताए गए पाशविक जिहाद के रास्तों पर चल रहे हैं। जहाँ कहीं भी रहते हैं कत्लेआम, लूट-पाट, आगजनी, पत्थरबाजी, तबाही, बर्बरता, नृशंसता, बलात्कार की पाशविकता, मृत शरीर पर जङ्गली पैशाचिक नृत्य की धूम मचाते रहते हैं। गुरिल्ला युद्ध द्वारा लकड़बघ्घे की तरह ग़ैरइस्लामियों का शिकार करते रहते हैं। जब भी किसी सभ्य विचारक द्वारा इनके कुकर्मों एवं साजिशों का पर्दाफाश होता है तो ये उनकी हत्या कर देते हैं या हत्या करने की कोशिश करते हैं साथ ही 'स्वयँ को प्रताड़ना का शिकार बताते हुए समूचे संसार में हो-हल्ला मचाने लगते हैं। इनके द्वारा जिहादी इस्लाम के नृशंष दबदबे के विस्तार के लिए किसी देश के कानून,अंतरराष्ट्रीय कानून, प्रजातंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता कोष, मानवाधिकार, मानवीय कानून का गलत उपयोग करने की कला प्रशंसनीय है।
इनके चालों को जिन देशों ने समझ लिया है वे बेवकूफ हिन्दुओं एवं उदारवादी ईसाइयों की तरह एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे नहीं करते हैं वे एक थप्पड़ खाने के बाद इन्हें इतने थप्पड़-लात-घूँसे-जूते मारते हैं कि वे अल्लाहू हु अकबर भूल कर सिर्फ अल्लाह हू... ऊ... हू.... ऊ..…..का शोर मचाने लगते हैं। अपनी गलतियों पर शर्मिंदगी महसूस करने के स्थान पर 'ये' उसे येन-केन-प्रकारेण जायज ठहराते हुए, अपने कुकर्मों का दोष ग़ैरइस्लामियों पर मढ़ने की जी तोड़ कोशिश करते हैं। इस्लामी आतंकी उत्प्रेरक समूह शायद सभी देश के लोगों को हिंदुस्तान के हिन्दुओं की तरह ही सहनशील एवं अहिंसा के पुजारी समझ लेते हैं।
मानवता को शर्मसार करने वाले पाशविक प्रवृत्ति के बर्बर जिहादी आतंकी समूह जो कायरों की तरह स्त्रियों-बच्चों-बूढों एवं बीमारों को अपनी सुरक्षा कवच बनाते हुए उनके पीछे छिप कर ग़ैरइस्लामियों पर वार करते हैं, वे एवं उनके बेशर्म समर्थक, मानवीय कानून की दुहाई देते-दिलवाते हुए घृणित प्रतीत होते हैं। सामान्य नागरिकों का हताहत होना दुःखद है, बहुत ही दुःखद! परन्तु आतंकवादियों तथा आतंकतंत्र को समर्थन देने के लिए, विभिन्न स्थानों पर अराजकता फैला, सामुहिक प्रदर्शन द्वारा स्वयँ को विश्व स्तर पर हताहत बताना, इनके घिसे-पिटे हथियार बन गए हैं। आज दुनियाँ भी सोचने के लिए मजबूर है कि आये दिन पाशविक बर्बरता का उदाहरण पेश करने वाले, आतंकियों का समर्थन करने वाले इन समूहों का इस तरह रो-धो कर दुनियाँ से सहानुभूति एवं सहायता हासिल करने के पीछे का मकसद क्या है? क्यों है?एवं कहाँ तक उचित है?
सम्पूर्ण विश्व के लिये यह 'तथ्य' निश्चय ही विचारणीय है। किसी भी गैरइस्लामी देश के कानून की धज्जियाँ उड़ाने वाले, अंतरराष्ट्रीय कानून को अपने फायदे के हिसाब से तोड़ने-मोड़ने वाले, अंदरूनी कलह पैदा कर ग़ैरइस्लामियों के देशों में शरणार्थी के रूप में प्रवेश कर वहाँ के मूल वाशिन्दों के साथ बदतमीजी करने वाले ये मुफ्तखोरों की जमातें आज विश्वव्यापी जानलेवा महामारी की तरह फैल रहे हैं। इस्लामी देश इन्हें अपने देशों में शरण तो नहीं देते हैं परंतु शरण देने वाले प्रजातांत्रिक उदारवादी देशों में इस्लाम के नाम पर उत्पात मचाने के लिए पैसे एवं हथियार मुहैया कराने का काम अत्यंत तत्परता से करते हैं। गाजापट्टी में सुरंगों का जाल पेलेस्टाइन के लोगों की अज्ञानता में आकस्मिक तो नहीं बनाया जा सकता है ? परन्तु यह सत्य है कि वहाँ छिप कर आक्रमण करने के लिए अति आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न सुरंगें बनी हुई हैं।
आज जहाँ वैज्ञानिकों द्वारा नवीन ग्रहों की, अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज की जा रही है वहीं इस सुंदर पृथ्वी पर आतंकतंत्र की आग से, अंदरूनी कलह से लगभग समूची दुनियाँ युध्द में झुलस रही है। अज्ञानियों को ताड के पेड़ पर चढ़ा कर नीचे खजूर के काँटे नुमा पत्तियों को बिछा कर उपर से नीचे गिरने का तमाशा देखने वाले तमाशबीन देशों की कोई कमी नहीं है। यूक्रेन, पेलेस्टाइन, सीरिया, इराक,अजरबैजान, आर्मेनिया आदि में विनाश के बहुत से उदाहरण भरे पड़े हैं। मानवता के दुश्मन ही जब मानवीय कानून का ज्ञान बाँटने लगते हैं तो यह दोहरी प्रवृत्ति हास्यप्रद एवं दुःखद प्रतीत होती है।
सोचती हूँ आज गांधी जी होते तो शायद पहले की ही तरह जैसे उन्होंने हिन्दुओं को उपदेश दिया था इजरायल को भी उपदेश देते!... .."अगर मुस्लिम हिन्दुओं को मारते हैं तो उन्हें मृत्यु को स्वीकार कर लेना चाहिए, उन्हें प्रतिकार में भी हथियार नहीं उठाना चाहिए और न ही उन्हें कत्ल करने वाले मुसलमानों से नफरत करना चाहिए, मुसलमानों के हाथों मर कर भी उन्हें मुक्ति ही मिलेगी' एवं एक नए संसार की रचना होगी" ......आदि....आदि।
आज की ज्वलंत परिस्थितियों को देखते हुए यह सोचना सहज है!....कि अच्छा है! इजराइल को सामुहिक आत्महत्या के बेतुके ज्ञान देने वाला, उनके देश में कोई गांधीवादी यहूद नहीं है और न ही इजरायल ने संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष गुटेरश के द्वारा दिये गए गांधीवादी ज्ञान को बेवकूफ उदारवादी हिन्दुओं की तरह स्वीकार ही किया है"। शायद दुनियाँ में अल्पसंख्यक होने के बावजूद भी इसीलिए वे स्वाभिमान सहित सुरक्षित रह, पाशविक प्रवृत्ति के राक्षसी जिहादी मझबियों से लोहा लेने में स्वयँ को समर्थ पा रहे हैं। मानवता के दुश्मनों को उनके कुकर्मों का आईना दिखा कर सम्पूर्ण विश्व को उनके भविष्य की रक्षा के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। मानवतावादी उद्देश्यों को सही अर्थों में सुरक्षित रख समूची दुनियाँ को यह सोचने के लिए बाध्य कर रहे हैं कि आखिर मानवधर्म एवं मानवीय कानून क्या है?
बलात्कारी-बर्बर राक्षसों एवं उनकी क्रूरता पर आधारित विस्तारवादी विचारधारा को किस स्तर तक विश्व में पसरने के लिए प्रश्रय दिया जाए? यह सम्पूर्ण विश्व के लिए एक चेतावनी एवं चुनौती भी है। क्योंकि जहाँ ये मजहबी जिहादी अल्पसंख्यक हैं वहाँ अपने फायदे के लिए ये भाई-चारा निभाते हैं एवं ज्यों ही इनकी तादाद बढ़ती है, ये लकड़बघ्घे भाई (गुण्डे दादा) बन जाते हैं एवं ग़ैरइस्लामियों को अपना चारा (भोजन) बना लेते हैं। देश के देश निगल जाते हैं वहाँ के ग़ैरइस्लामियों का सफाया हो जाता है। वे सड़े हुए सरिया कानून वाले इस्लामिक देश बन जाते हैं जैसे कि मात्र डेढ़ हजार साल में अनेकों पुरानी संस्कृतियों को नेस्तनाबूत कर, करोड़ों मानव का नरसंहार कर वर्तमान में इस धरती पर सैंतालीस इस्लामिक देश बने हुए हैं। स्वहित, स्वाभिमान, स्वदेश, स्वधर्म की रक्षा का अधिकार कर्तव्यनिष्ठ प्रत्येक देश, प्रत्येक व्यक्ति एवं जीवमात्र को है।
गाँधीवादी ज्ञान तो बहुत से हैं परन्तु समय और संदर्भों के आधार पर इसके अर्थ बदल जाते हैं।