सम्पादकीय : कृतज्ञता
इस महीनें हमारे और आपके मासिक पत्रिका "प्रतिमत" के पाँच साल हो गए। अनेक उतार -चढ़ाव को झेलते हुए इसने अपने-आप अकेले चलने का इरादा जारी रखा है। वैज्ञानिक तथ्यों, अंतर्राष्ट्रीय विषयों, राजनितिक तथा सामाजिक विषयों पर बेबाकी से अपने विचार, विश्लेषण एवं तर्क को शब्दबद्ध करने में पत्रिका यथासंभव सफल रही है।
यह पत्रिका पाठकों के दृष्टिकोण एवं विचारों से भी अनभिज्ञ नहीं है। बिना किसी आर्थिक उपार्जन या उसके लोभ से परे यह निर्विकार भाव से जनजागृति के लिए प्रयत्नशील है एवं आगे भी इसी हेतु अपने कर्तव्यपथ पर चलने के लिए प्रतिबद्ध है। हम उन सभी पाठकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होनें पत्रिका के लिए अपने आलेख लिखे एवं इसमें निहित आलेख में अपनी रुची रख हमें समय -समय पर उत्साहवर्धक विचार प्रेषित करते हैं। हम उनके प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिन्होंने इसमें कभी कभार आए कुछ त्रुटियों को उजागर कर हमें इसमें सुधार लाने की प्रेरणा देते हैं।
चलते चलते रविंद्रनाथ की इन पक्तियों को याद करते हुए कि :-
" जो तोमार डाक सुनै कोई नाय , आसे तोबे एकला चलो रे।" के साथ -साथ कबीर की इन पँक्तियों को भी याद करते हैं -"निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ,
बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय।"