Chief Editor Dr Sumangala Jha

सम्पादकीय : 'हर हर महादेव'

काँवड़ यात्रियों के लिए अनेक अपशब्द का प्रयोग करने वाले कोंग्रेस एवं वामपंथी नेताओं के कड़वे वक्तव्यों के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में कांवर यात्रा जारी है।पुरानी परंपरा में सावन के महत्व को मधुरश्रावण, देवोपासना, नागपूजा के साथ देवाधिदेव शिव के जलाभिषेक से भी जुड़ा हुआ है।संगम का जल, उत्तराभिमुख गंगा का जल विशेष रूप ज्योतिर्लिंग के अभिषेक के लिए श्रावण मास में लाये जाते हैं जो स्थान-विशेष की महत्ता को भी विभिन्न कथाओं के साथ दर्शाते हैं। काँवड़ यात्रा विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए भक्तों का जमावड़ा है।महादेव के भक्तों को मिलने का एक दूसरों के साथ अपनत्व बढ़ाने का मौका भी हिन्दू समाज के लोगों को इस दौरान मिलता है।काँवर यात्रा के भक्तगण के बीच जातियों की दीवार नहीं होती, यहाँ सभी सद्भावना के साथ बोलबम की सेवा में लगे रहते हैं। यहाँ तक कि काँवरियों के दर्शन और सेवा के लिए आस-पास के इलाके लोग भी तत्परता दिखाते हैं। सिर्फ श्रद्धाभाव ही है जो इन्हें आपस में जोड़े हुए है।

सरकार के तरफ से इन्हें कोई सुविधा न प्रदान किये जाने के वाबजूद हज़ारों साल से ये यात्रा एवं ज्योतिर्लिंग के जलाभिषेक की परंपरा चली आ रही है। मंदिरों की हुंडी की करोड़ों की रकम सरकार के कब्जे में होने के वाबजूद हिन्दू तीर्थ स्थानों का विकास एवं यात्रियों के लिए सुविधाओं की उपलब्धता यथावत उपेक्षित ही रही है। मंदिरों में दर्शन हेतु उपलब्ध टिकट के पैसों का भी हिन्दुओं के लिए सदुपयोग नहीं हो पाता है, ज्यादातर पैसे कमिटी और नेताओं की जेब में चले जाते हैं। कई मंदिरों में तो टिकट का चलन हाल के दिनों में ही आरम्भ हुआ है अब ये चिन्ता का विषय है कि गरीब श्रद्धालुओं के पास देव-दर्शन के लिए पैसे कहाँ से आएंगे साथ ही पंक्तियों में घंटों भला कैसे खड़े रह पायेंगे?

सरकार द्वारा मंदिरों के चढ़ावों पर एक प्रकार असंवैधानिक कब्जा हिन्दुओं को आर्थिक रूप से निचोड़ने का एक नया तरीका बन गया है।ज्यादातर श्रद्धा से अर्पित चढ़ावे या दर्शन के टिकट से हिन्दुओं को इनकार नहीं है, परन्तु इसका उपयोग हिन्दुओं के लिए, हिन्दुवृद्धाश्रम के लिए, हिन्दुओं के गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए, सनातन वैदिक धर्म एवं तीर्थक्षेत्रों के विकास के लिए किया जाना चाहिए, जो नहीं हो रहा है। मंदिर व्यवस्थापकों के सदस्यों में सिर्फ हिन्दुओं का ही चयन होना चाहिए, अन्यथा सेक्युलर मानसिकता के लोग तो मंदिरों का पैसा भी ईसाइयत और इस्लाम के प्रचार-प्रसार और उनके दर्जनों मुफ्तखोरी करने वाले परिवार को अर्पित कर हिन्दुओं की जिन्दगी को मुसीबत में डालने का काम कर रहे हैं। वस्तुतः देवस्थान में अर्पित पैसे जो स्थानीय सरकार द्वारा लिए जाते हैं, सेकुलरिज्म की आड़ में मुसलमानों एवं ईसाइयों बाँट दिए जाते हैं, वे हिन्दुओं की जिन्दगियों को ही खतरे में डाल रहे हैं। एक तरह से देखा जाए तो हिन्दू अपनी ही संपत्तियों को सेक्युलरिज्म के नाम पर सरकार को अर्पित कर स्वयँ के लिए मौत खरीद रहे हैं। देवघर आदि कई स्थानों पर टिकट का प्रचलन हाल में ही आरम्भ हुआ है, साथ ही शिबू सोरेन के आते ही इस्लामिक गति-विधियाँ झारखंड में बढ़ गईं हैं अतः प्रत्येक हिन्दू को यह जानने का हक़ है कि उनके द्वारा लिए गए टिकट का पैसा जा कहाँ रहा है?क्या मंदिर के प्रबन्धकारिणी समिति में सिर्फ हिन्दू ही हैं या अन्य धर्म के सदस्य भी हैं?क्या पैसों का हिन्दुओं के लिए सनातन धर्म के विकास के लिए उपयोग हो रहा है?अगर नहीं तो क्यों? ऐसी जगहों पर जहाँ सरकार हिन्दुओं को,सनातन धर्म को उपेक्षित कर रही है वहाँ के मंदिरों को सरकारी रहनुमाओं से मुक्ति की आवश्यकता है। बजरंग दल एवं विश्व हिंदू परिषद को आगे आकर इन मंदिरों के रख-रखाव एवं अर्थव्यवस्था को अपने हाथ में लेकर हिन्दुवृद्धाश्रम, हिन्दू अनाथालय, वैदिक हिन्दू धर्म के अध्ययन विकास एवं विस्तार के लिए काम करना चाहिए। अन्यथा अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में हिन्दुओं की जिंदगी नित्यप्रति ही यमराज और राक्षसों का निवाला बनते हुए अन्तिम परिणति के पास पहुँच रही है।

Read More Articles ›


View Other Issues ›