Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय: इस मई महीने की गर्मी

मई महीने की गर्मी और उमस का प्रभाव सम्पूर्ण दुनियाँ पर है।पर्यावरण के साथ-साथ देश-विदेश के वातावरण में भी सामाजिक, राजनीतिक गर्मी और उमस में जानलेवा वैचारिक विषाणुओं के कारण मानवीय भावनाओं की अंत्येष्टि करने की पूरी कोशिश जारी है। अफगानिस्तान जहाँ बाढ़ की चपेट में है वहीं पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर के क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलियां चलाये जाने के कारण वहाँ के नागरिक कुरान की दी गयी तालीम के अनुसार ही अपने पत्थर फेंकने की कला का जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं। ये सब उनके अल्लाह का ही फ़जल है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूक्रेन-रूस या इज़रायल-हमास युद्ध तो बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर भी मानवीय सहायतार्थ के खर्च का बोझ बढ़ता जा रहा है। इन युद्ध-विभीषिका की अग्नि में घी डालने का कार्य इस्लामिक एवं योरोपीय देशों द्वारा भी किया जा रहा है।इस्लामिक देशों द्वारा जहाँ खुलेआम आतंकियों को सहयोग दिया जा रहा है वहीं योरोपीय देश अन्य देशों को हथियार तथा भोजन सामग्री की सहायता पहुँचा कर अपने ही देश के नागरिकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट अपनी गरिमा, मानवीयता, श्रेष्ठता खो कर दोहरेपन का चरित्र अपनाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से इस्लामिक आतंकियों के प्रति उदारता जताते हुए आतंकवादी गतिविधियों को विश्व-स्तर पर बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक का कार्य कर रहा है। यह युद्ध बन्द करने के लिये इजरायल पर दबाव डाल रहा है परन्तु इजरायल के बंधक नागरिकों की रिहाई या हमास द्वारा किये गए अमानवीय कृत्यों की भत्सर्ना करने से बचता नजर आ रहा है। बड़े पैमाने पर पेलेस्टाइन के पक्ष में खड़े हो कर नारे लगाने वाले लोगों ने हमास के कुकर्मों पर शर्मिंदगी भी महसूस न कर अपने अमानवीय चरित्र को ही उजागर किया है। कुछ स्वार्थी प्रवृत्तियों के नेता जिसमें स्पेन के मिनिस्टर भी हैं अपने राजनीतिक लाभ के लिए बर्बर जाहिल आतंकियों द्वारा प्रताड़ित इजरायल के नागरिकों एवं बंधकों की परवाह न करते हुए इजरायल को ही भला-बुरा कह रहे हैं जबकि उनके अपने भी देश में बर्बरतापूर्ण इस्लामिक आतंकी गतिविधियों ने जड़ें जमानी आरंभ कर दी है।

जहाँ तक भारत की बात है तो यह सदैव से शांति, उदारवादी विचारों से ग्रस्त होने के कारण अपने ही देश में सुप्तआतंकी समूहों, देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त देशद्रोहियों तथा पाकिस्तान एवं चीन समर्थक कीटाणु बमों का भरण-पोषण भारतीय करदाताओं के पैसों से कर रहा है। अपनी स्वार्थी प्रवृत्तियों में लिप्त लुटेरे नेताओं एवं घोटाले बाजों ने शायद ही कोई क्षेत्र या लूटने का तरीका छोड़ा है। जमीन,बैंक, गोबर कफ़न और भी अनगिनत क्षेत्रों में घोटालेबाजी करते चले गए हैं। अगर लुटेरों और घोटालेबाजों का ठीक से सर्वे किया जाए तो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में बहुत से नेताओं का नाम आ जायेगा।

चुनावी-चुनौतियों, सरगर्मियों, बेशर्म बयानबाजियों के साथ भी हम भारतीयों में विशेष रूप से हिन्दुओं में खूबियों की भरमार है, वे सिर्फ आज के आनंद में जीते हुए क्रिकेट का लुत्फ उठा रहे हैं। पद्मपुरस्कार के विजेताओं के कार्यक्रम देख रहे हैं। मुफ्त की रेवड़ी के लोभ में झाँसा देने वाले झूठे, देशद्रोही, देश की सनातन संस्कृति-धर्म को गालियाँ देने वाले, घुसपैठियों एव आतंकियों को समर्थन देने वाले नेताओं को वोट दे कर अपनी बर्बादी को आमंत्रित कर रहे हैं।

राजकोट में गेम जोन की आग हो या दिल्ली के अस्पताल की आग, रोने वाले तो मृतकों की माताएँ एवं सगे-संबंधी ही होते हैं। प्रत्येक चुनाव के आसपास की ऐसी दर्दनाक घटनाएं हृदय को झकझोर देती है। विद्यालय आदि तो सुरक्षित स्थान माना जाता है परन्तु कर्नाटक कॉलेज के तर्ज पर ही पटना यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी की हत्या यह सोचने को मजबूर करती है कि इन आतंकी गुण्डों का मनोबल अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो किस घर का चिराग भला सुरक्षित रह पायेगा और पुलिस किस काम की रह जायेगी? मौत के बाद की खोज-बीन या किसी भी प्रकार का मुआवजा किसी माँ की उजड़ी गोद का दर्द तो कम नहीं कर सकता है?

इस दौरान कुछ नेताओं, खेजरीवाल, उनकी पत्नी सुनीता, संजयसिंह, स्वाती मालीवाल, राघव चड्डा,
सौरभ भारद्वाज, अभयदूबे, आतिशी मार्लेना आदि बहुत से इंडी ठगबंधन के नेताओं की बयानबाजी ने जनता का अच्छा मनोरंजन भी किया है। ऐसे फ्री की रेवड़ी मिल जाए तो देशविरोधी भावनाओं को पुष्टि देने वाले नेताओं के दोस्त बन उन्हीं आतंकियों, नक्सलियों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने लगते हैं। एक प्रश्न स्वतः ही उठता है कि आखिर सेकुलरिज्म का कीड़ा सिर्फ हिन्दुओं के दिमाग में क्यों घुसता है? उन्नीस सौ चौरासी का सिक्ख नरसंहार, कश्मीरी पंडितों का नरसंहार, पश्चिम बंगाल का डायरेक्ट एक्शन डे में हिन्दुओं का नरसंहार, केरल में हिन्दुओं का नरसंहार(मोपाला काण्ड), महाराष्ट्र में ब्राह्मणों का नरसंहार, नोवाखली, संदेशखली आदि इतनी जल्दी भूल कैसे जाते हैं?

ऐसे उमस भरे चुनावी मौसम में भारतीय उत्सुक जनता परिणाम की प्रतीक्षा कर रही है कि उनका भविष्य देशभक्त कुशल सेवक के हाथ में सुरक्षित रहेगा या देशद्रोहियों,गद्दारों, लुटेरों, घोटालेबाजों के हाथों की कठपुतली बन उन्हें नर्क के द्वार की ओर अग्रसर करेगा। ऐसे भी प्रतीक्षा तो करनी ही है क्योंकि "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन''।

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