Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय : जोड़ो-तोड़ो और मरोड़ो

काफी पुरानी और प्रसिध्द कहावत है:-

'कहीं का कंकड़ कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा'

आज के राजनीतिक उथल-पुथल में इस पुरानी कहावत का प्रायोगिक स्वरूप कई राज्यों के चुनाव के दौरान प्रत्यक्ष परिदृश्य के साथ प्रस्तुत है। इन्हीं ज्वलंत समाचारों में एक है राहुल का भारत जोड़ो यात्रा। यह यात्रा उनके रहन-सहन,रख-रखाव की सुविधा व्यवस्था के साथ अत्यंत अपव्ययी है,जिसका खर्च भी आम नागरिक ही उठा रहे हैं।

पौराणिक काल में अनेकों ऋषि-मुनियों ने भी सम्पूर्ण भारत की पैदल यात्रा की है,परन्तु उनका ध्येय भारतीय संस्कृति एवं वैदिक ज्ञान का प्रचार- प्रसार था, इन ऋषियों के विश्राम स्थल आज भी हिन्दुओं के लिए तीर्थ स्थल के समान हैं। आधुनिक काल में भी जयप्रकाश के अलावे अन्य कई नेताओं ने उत्तर से दक्षिण तक की यात्रायें की हैं परन्तु इतनी अय्यासी किसी अन्य यायावर के विश्राम स्थलों में परिलक्षित नहीं हुए हैं,जितने राहुल की कंटेनर यात्रा में हैं।

राउल विन्ची की कंटेनर यात्रा के दरम्यान जमावरों में प्रायः उन्हीं लोगों का जमघट रहा है जिन्हें देशविरोधी कारनामों के लिए कोंग्रेस द्वारा प्रोत्साहित किया जाता रहा है।हिन्दुओं की संस्कृति,वैदिक सनातन धर्म को अपमानित करने वालों,गोहत्यारों,मंदिरों से जबरन धन की उगाही करने वालों, मंदिरों का विध्वंस कर चर्च या मस्जिद बनवाने वालों के अलावे मोदीजी के प्रति विषवमन करने वाले विभूतियों की संख्या बहुतायत में है।ऐसे तो राउल विन्ची को अपनी मूढ़ता प्रदर्शित करने में भी आनन्द आता है परन्तु यहाँ अपने पूर्वजों, मातोश्री एवं जीजा राजा के काले कारनामों पर लीपा-पोती करते हुए हिन्दू-विरोधी, मोदी-विरोधी, झूठ फैलाने की लत जो किसी अफीमची को अफीम की लत की तरह ही लगी हुई है,उसे कार्यन्वित कर रहे हैं। बार-बार झूठ फैलाने से भोली जनता तो भ्रम में पड़ ही जाती है ज्ञानियों को भी इतिहास के पन्ने पलटने का कष्ट करना पड़ता है जिसका प्रभाव भी जहाँ-तहाँ दिखाई दे जाता है। ऐसे सामान्यतः दक्षिण-भारत में अभिनेताओं एवं अभिनेत्रियों का भी स्वागत अत्यन्त गर्म-जोशी से होता है,विशेषतः यदि अभिनेता हास्य कलाकार हो! तो कुछ ऐसा ही दृश्य उपस्थित होता है जैसा कि राहुल गांधी उर्फ राहुल विंची के परिपेक्ष्य में भी परिलक्षित हुआ है। महसूस होता है कि नागरिकों का हुजूम अपने प्रिय हास्य कलाकार के साथ फोट खिंचाने खिंचते चले आते हैं।

ऐसे तो होश संभालते ही हमें सुनने में आया था कि कोंग्रेस के महत्वाकांक्षी नेता नेहरू जी ने निजी स्वार्थ हित भारत के तीन टुकड़े किये थे एवं कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय समस्या बना कर हिन्दुओं के साथ छल किया है,परन्तु कैसे ? इसे समझने में साधारण हिन्दुओं की ही तरह हमें भी दशकों लग गए हैं।आज भी जब हिन्दुओं के महत्वाकांक्षी नेता मुस्लिम तुष्टिकरण करण में लगे होकर हिन्दुओं के हितों की निरंतर उपेक्षा कर रहे हैं तो ऐसा लगता है कि सनातनी शान्ति प्रिय हिन्दू अपने स्वार्थी नेताओं के हाथों खिलौना बन स्वयँ ही अपनी समृद्ध विरासत,संस्कृति एवं जिंदगी को समाप्त करने के लिए कश्मीरी पंडितों एवं बिहार के यादव बेवकूफों की तरह लगे हुए हैं। हिन्दू समुदाय उनकी जड़, स्त्रियाँ, जमीन आदि अगर अपने देश में ही सुरक्षित नहीं हैं तो भला अन्य किस देश में सम्मान सहित सुरक्षित रहेंगे? क्या हिन्दू आत्मरक्षा हित हथियार उठा पाएंगे? उदासीन क्षेत्रीय सरकार के भरोसे आखिर ये कब और कहाँ तक भागेंगे? स्वार्थी नेताओं ने हिन्दुओं को टैक्स बैंक की तरह उपयोग में लाया है। येन-केन-प्रकारेण उन्हें निरंतर शोषित कर अन्य विदेशी मजहब एवं रिलिजन को आत्मसात करने वाले लोगों को विशेष सुविधाओं से सुसज्जित किया है।

कोंग्रेस लम्बे समयान्तराल में बड़े ही शातिराना अंदाज में हिन्दुओं एवं मंदिरों के चढ़ावों की उगाही कर देश का इस्लामीकरण एवं ईसाईकरण करते हुए हिन्दुओं को धोखा देती रही है। भृष्टाचारी, सत्तालोलुप कोंग्रेसियों के लिए धर्मनिरपेक्षता हिन्दुओं को खत्म करने का हथियार ही बनी रही है जहाँ मुस्लिम एवं ईसाई तुष्टिकरण के लिए विभिन्न कानून संविधान में जोड़े गए हैं। यदि बी जे पी सत्तारूढ़ न हुई होती तो बेजुबान हिन्दुओं को खत्म करने का सिलसिला बेरोक-टोक यूँ ही जारी रहता एवँ हिन्दुओं की उठती प्रत्येक आवाज को बेदर्दी से कारसेवकों की आवाज की तरह ही कुचल दिया गया होता।यद्यपि अल्पसंख्यक की उपाधि वाले मुस्लिमबहुल का जनसंख्या विस्फोटक तथा सीमावर्ती क्षेत्रों से आये मुल्ले घुसपैठियों के कारण हिन्दुओं की संपत्ति एवँ स्त्रियों की सुरक्षा आज पहले से भी ज्यादा प्रश्नवाचक स्थिति में है तथापि इन्हें नियंत्रित करने के लिए आवजें तो उठ रही है, जो कोंग्रेस शासन काल में कभी नहीं उठाई गई थी।कोंग्रेस की लगाम शायद शातिर मुल्लों एवं आतंकियों के समर्थक, इस्लामीकरण का विस्तार करने वाले देश के हाथों में ही रहा है,इसलिए हिन्दुओं का भला चाहनेवाले विचारों से भी इन्हें नफरत है।

राहुल विंची की कंटेनर यात्रा अपने प्रपितामह के द्वारा तोड़े गए भारत के टुकड़ों को जोड़ने की कोशिश के स्थान पर सभी विदेशी रहनुमाओं एवं भ्रष्टाचारियों को जोड़ने वाली यात्रा बन कर रह गयी है। कोंग्रेस के परिवारवादी पार्टी के हृदय में जलन और असंतोष की भावना का कुलबुलाहट अत्यंत स्वाभाविक है क्यों कि लूट के माल से जेब भरने की न छूटने वाली लत में आंशिक व्यवधान आ गया है।बी जे पी ने अपने शासन काल में जहाँ 'ओ आई सी' देशों का करोड़ों का कर्ज चुकाया है वहीं रक्षा-क्षेत्र, खाद्यान्न, दवाइयों के अलावे भी अन्य बहुत से क्षेत्रों में देश को आत्मनिर्भर बनाया है। राशन-सुरक्षा, कोरोना मैनेजमेंट, वैक्सीन उत्पादन, सीमावर्ती दुश्मन देशों को धूल चटाने, आँखों में आँखें मिला कर देश के स्वाभिमान को जगाने के साथ गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने का कार्य किया है। सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता, रोजगार की स्वायत्तता एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गतिशीलता ने भारत का अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में सम्मान बढ़ाया है। अनेकानेक प्रशंसनीय अभियान में जल-थल-वायु सेना का सशक्तिकरण भी शामिल है जो कइयों के हृदय में शूल सा चुभ रहा है। देशहित के कई साहसिक निर्णय जिसमें नेहरू-माइनो के भ्रष्टाचारी चमचे करोड़ों का गबन कर मातोश्री का बैंक-रकम बढ़ा सकते थे उसमें कुछ व्यवधान आया है। विरोधियों के तकलीफों का कारण भ्रष्टाचारियों का वस्त्राहरण एवं आतंकवादियों की स्वेच्छाचरिता पर अंकुश लगाना भी है।

आतंकवादियों से आंशिक राहत के कारण जहाँ देश हितैषियों को खुशी हुई है वहीं कोंग्रेस की छद्मनीतियों का सार्वजनिक होना, छद्मवेशी आतंकियों पर नकेल कसा जाना, कोंग्रेस एवं एक विशेष समुदाय के कुड़कुड़ाहट का कारण बना हुआ है। बढ़-चढ़ कर मानवाधिकार बातें करने वाले देश एवं समुदायों के पक्षपाती रवैयों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाए गए हैं। स्वयँ के हित में भारत के द्वारा लिए गये कई निर्भीक निर्णय, वक्तव्यों ने एकाधिकार की चाहत रखने वालों एवं दोहरीकरण की नीतियों पर चलने वाले देशों को भी बेनकाब किया है। परिणाम-स्वरूप स्थानीय छद्मवेशी खूँखार दुश्मनों के बीच देश हितैषियों एवं हिन्दू हितैषी नेताओं को भारत देश में भी जान का खतरा बना हुआ है एवं वे मारे भी जा रहे हैं।कई आतंकवादी समूह जिन्हें विदेशों से आर्थिक सहायता एवं हथियार मिलते हैं,देश के विभिन्न राज्यों में फिलहाल सुप्तावस्था का अभिनय कर हिन्दुओं की हत्या करने के लिये मौके की तलाश में हैं। राउलविंची में विद्यमान अनुवांशिक खूनी राजनीति, सत्ता लोलुपता स्वाभाविक रूप उभर रही है। इसमें मददगार साबित होने वाले कुनबे, कंकड़ पत्थर फेंकने वाले समुदाय,देश विरोधियों, हिन्दू-विरोधियों गोहत्यारों एवं विदेशी सहयोग से उत्प्रेरित सुप्तआतंकियों का जुटान आवश्यक है। शायद इसीलिए सभी मोदी विरोधी पार्टियों एवं सनातनी हिन्दू विरोधियों से मिल कर राहुल विंची एक खतरनाक कुनबा तैयार कर रहे हैं । ऐसा लगता है कि ये बचे-खुचे भारत को तोड़ने की साजिश में या इस्लामकरण में पाकिस्तानी,पी एफ आई,आई एस आई एस आदि आतंकवादियों के रहनुमा हैं।

चीन एवं पाकिस्तान के बहकावे में आ कर या उपार्जित अर्थलोभ से 'भारत तोड़ो' अभियान का दुः स्वप्न देखने की आसक्ति रखने वाले लोग, भारतभूमि के एकीकरण, सुदृढ़ीकरण, सशक्तिकरण के लिए चिन्ता जनक है। प्रत्येक देशभक्त नागरिकों को, खासकर हिन्दुओं को सर्तकता से जनजागरण का कार्य करना होगा ।हिन्दुओं की संकुचित महत्वाकांक्षा तो यह देख कर ही जाना जा सकता है कि हजारों साधुओं की हत्या दिवस को शौर्य दिवस के रूप में मना कर संतुष्ट हो रहे है। वह भी इन्हें जब (रामजन्मभूमि) पाँच एकड़ जमीन के हस्तांतरण के बाद एवं चार सौ साल के निरंतर संघर्ष के बाद मिला है।

वर्तमान में भी हिन्दुओं एवं हिन्दू धर्म के प्रति कुटिल भावना रखने वालों ने जाने कितने मंदिरों को बंगाल, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु,राजस्थान में धोखे से तोड़ा है गिनती भी नहीं की गई है न ही भारत वर्ष के सभी हिन्दुओं का उधर ध्यान ही गया है। मंदिर विध्वंस के विरोध में आवाज उठाने वाले स्थानीय हिन्दुओं को मुआवजा या मंदिर के लिए स्थान मुहैया कराना तो दूर की बात उन्हें निरंतर प्रताड़ित किया जा रहा है। इसे विडंबना ही कहा जाये कि हिंदू अपने धर्म एवं अधिकारों के पर सजग, सशक्त एवं संगठित नहीं हैं।कोंग्रेस की सरकार की कूटनीतियों को भी देखा जाए तो पायेंगे कि सरकार के कई निर्णयों में हिन्दुओं को ही कई प्रकार से खत्म किया गया है,जिसमें कई युध्द भी हैं जिसमें जीत का सेहरा बाँध कर भी भारत या हिन्दुओं के हित में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। आज एक ज्वलंत प्रश्न हमारे सम्मुख है कि वैदिक सनातन विरोधी गतिविधियों के प्रति अनभिज्ञता, एकजुटता के अभाव में क्या हिन्दू अपनी संस्कृति, सभ्यता एवं आनुवंशिकी की रक्षा कर पाएंगे ?

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