सम्पादकीय : संयोजित, चयनित, नियोजित आक्रमण
कर्नाटक के हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम में एक लेख था "सुनाकुत्ता" I इसके लेखक ने इस जानवर के द्वारा किये जाने वाले शिकार के तरीकों की व्याख्या अत्यंत बारीकी से की है। लेखक के अनुसार किसी भी कुशल लड़ाकों की युद्ध नीति को इन कुत्तों के समूह चुनौती देने के साथ प्रेरणादायी भी हैं। शायद इन्हीं 'सुनाकुत्तों' को लकड़बग्घा भी कहा जाता है। इनकी चयनित, संरेखित, संयोजित, सामूहिक आक्रमण नीति के कारण इनके समूह जिस किसी जंगल में पहुँचते हैं, वहाँ के अन्य जानवरों का सफाया कुछ ही महीनों में हो जाता है यहाँ तक कि शेर भी जंगल छोड़ने के लिए मजबूर हो जाता है या मारा जाता है।इनके झुंड द्वारा जासूसी, घेराबंदी, छिपते-छिपाते आगे बढ़ना, बिगुल-बजाना, त्वरित आक्रमण और शिकार को जिंदा ही नोंच खाने की प्रणाली अत्यंत भयावह होती है।
आज कल भारत के विभिन्न हिस्सों में जिस प्रकार के दंगे- आक्रमण हो रहे हैं वे इन्हीं लकड़बग्घों की युद्ध-नीति की तरह चयनित, संरेखित, संयोजित और सामूहिक रूप से मझहबियों द्वारा हिन्दुओं पर करवाये जा रहे हैं।
पाकिस्तान और बंगला देश में वहाँ की सरकार भी इन मझबियों को लूट-पाट करने के लिए खुली छूट देती है।वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दू, बौद्ध, सिख्ख, ईसाई समुदायों को प्रताड़ना की अति से गुजरना पड़ता है। बेटियाँ घर से अपहृत करवाई जाती है। उनके धार्मिक स्थलों को ध्वस्त किया जाता है।शिकायत सुनी भी नहीं जाती है।बहुत शोर मचाने पर अगर कुछ लोगों को हिरासत में लिया भी जाता है तो मुकदमे में अपराधी को इस्लाम के नाम पर सुरक्षा और सुविधा मुहैया करा उन्हें निर्दोष बता कर फैसला उन्हीं के पक्ष में दिया जाता है। हिन्दुओं, सिखखों या ईसाईयों को तथा उनके बच्चों को भी कभी 'ईश निंदा' के बहाने तो कभी अन्य बहाने से मारा तथा लूटा जाता है। पाकिस्तान(करक) में मंदिर तोड़े जाने पर आवाजें उठी तो दुनियाँ को दिखाने के लिए दोषी कैदी मुसलमानों को कैद किया गया और उसके बाद उन्हें को रिहा करवाने के लिए हिन्दू समुदाय पर जुर्माना भरने के लिए दबाव डाला जा रहा है। बांग्लादेश के इस्लामियों के लिए हिन्दुओं के मंदिरों या बस्तियों को जलाना आम घटनाओं की रोजमर्रा की बातें हो गयी है जिस पर विश्व मानवाधिकार वालों की आँखों पर पट्टी और जुबान पर ताले लगे होते हैं। इस्लामिक देशों में जहाँ अल्पसंख्यकों कोजान के लाले पड़े होते हैं वहीं सेक्युलर या हिन्दू बहुसंख्यक हिंदुस्तान में ये ये जिहादी मज़हबी समुदाय मानवाधिकार की दुहाई, अल्पसंख्यक विशेषाधिकार की माँग करते हैं तथा उसका उपभोग करते हुए अपनी लकड़बग्घों की युद्ध-नीति को कार्यान्वित करते हैं।
गोधरा के ट्रेन में कार-सेवकों को जलाना,दिल्ली में हिंदुओं की दुकानें तथा घरों को जलाना, केरल,असम, बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार आदि अन्य जगहों पर भी हिन्दुओं के मंदिरों, घरों, दुकानों को रेखांकित कर सुनियोजित ढंग से तोड़ना, जलाना मज़हबी लकड़बग्घों की कामयाब युद्ध-नीति है।आधुनिक तकनीकियों का प्रयोग भी वे आतंकवाद की कामयाबी के लिए करते हैं।उदाहरण के लिए बंगलुरू में कारों के नम्बर हिन्दुओं के नाम से रजिस्टर्ड हैं, ये सुनिश्चित कर उसे जलाए गए हैं। जहाँ भी जिस इलाकों में ये मज़हबी बहुसंख्यक हैं वहाँ हिन्दुओं, सिख्खों, दलितों या ईसाइयों के भी बेटे, बहू-बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं। अपहरण, बलात्कार,जबरन धर्मपरिवर्तन, देहव्यापार में धकेल दिये जाने के अलावे आतंकी गुटों के लिए सेक्स-स्लेव की तरह बेच दी जाने की घटनाएं बेख़ौफ़ किये जा रहे हैं। असंख्य लकड़बग्घों की तादाद में मौजूद ये नाम के अल्पसंख्यक जिहादी इस्लामी समुदाय चतुराई से न सिर्फ भारत में बल्कि अन्य गणतांत्रिक देशों में भी कुरान में वर्णित एवं प्रतिपादित पापपूर्ण जिहादी मंसूबों को कार्यान्वित कर रहे हैं।
आवाज उठाने वाले हिन्दुओं एवं गैर-इस्लामियों की जासूसी कर, उन्हें चिन्हित कर, घृणित तरीके तथा बर्बरता से जहाँ-तहाँ मौका तलाश कर,उन्हें घेर कर जान से मार रहे हैं। झूठ फैलाना, हिन्दुओं को निशाने पर लेना, भीड़ इकट्ठे करना, अचानक घेर कर हमले, तोड़-फोड़, आगजनी, हत्यायें करना इनके पैगम्बर के बताए गए तथा कुरान के ज्ञान का प्रायोगिक रूप है। केरल में तो ये कट्टरपंथी पापी मज़हबी समुदाय, स्वर्ण, नशीले पदार्थों, लड़कियों आदि की तस्करी बेबाकी से करते हैं। आतंकवादी समुदाय के साथ मिल कर विभिन्न प्रकार के दुष्कृत्यों को करने वाले गुटों का पोषण वहाँ की सी. पी. आई. पिनाराई सरकार भी कर रही है। हास्यप्रद है कि पापी मज़हबी समुदाय की रूढ़िवादी, गन्दगी से परिपूर्ण रीति-रिवाजों पर सवाल उठाये जाने पर रोक लगाने के बजाय यहाँ के प्रशासन द्वारा सवालियों को ही कट्टरपंथी का तमगा पहना दिया जाता है। अनैतिकता पर प्रश्न किये जाने, विरोध किये जाने, या विरोध प्रदर्शन पर हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जाता है, उन्हें मार भी दिया जाता है। उदाहरण के लिए केरल के पलक्कड़ जिले में संजित की हत्या उसकी पत्नी के सामने ही चाकुओं से पचास बार गोंद-गोंद कर की गई है। दुकान पर 'नो हलाल' लिखने के लिए महिला को पीटा गया। बलात्कार पीड़ित युवतियों के विरोध का समर्थन करने वाले प्रोफेसर के खिलाफ कार्यवाही की गई आदि बहुत से घटनाओं की फेहरिस्त है जिस पर सवाल भी नहीं उठाये जाते हैं। हाल में ही वहाँ की गायब (श्रेया और श्रेजा) की गई लड़कियों को भी इन्हीं गन्दे मज़हबी के साथ अन्तिम बार सीसीटीवी में देखा गया है। कुछ इसी तरह की घटनाएँ बंगाल और अन्य मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में आम हो गईं हैं। इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले मदरसे समर्थित लभ-जिहादी, ग्रूमिंग-गैंग प्रायः प्रत्येक राज्य में सक्रिय हैं जिसके कारण गैर-इस्लामी लड़कियाँ-बच्चे और उसके परिजनों की जिंदगी खतरे में हैं। बहुतायत मामलों प्रशासन में यदि कोई मज़हबी है तो पुलिस कोई संज्ञान ही नहीं लेती है, अगर लेती है तो मामलों दबाने का, धमकियों का, केस वापस लेने का या अल्पसंख्यक विक्टिम कार्ड खेलने का ड्रामा बड़े पैमाने पर आरम्भ हो जाता है। जिहादियों का अल्पसंख्यक विक्टिम कार्ड ड्रामे का साथ वामपंथी हिन्दुविरोधी मीडिया विश्व-स्तर बड़े जोर-शोर से देती है। देखा जाए तो पूरी दुनियाँ में सबसे ज्यादा हिन्दुओं का नरसंहार हुआ है,जिसको या तो दरकिनार किया जाता है या उसे छिपाने का प्रयास किया जाता है।
ईमानदारी से यदि नरसंहार के इतिहास को खंगाला जाए तो प्रश्न उठता है कि फासिस्टवादी किसे कहा जाना चाहिए- करोड़ों हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले इस्लाम प्रचारक इस्लामियों को या पश्चिमी सभ्यता के प्रचारक "सोल्जर्स ऑफ क्रॉस' के कट्टरपंथी ईसाइयों को ? नवनिर्मित मज़हबी इस्लामियों या रिलिजन के नाम पर ईसाइयों के द्वारा किये गए हिन्दुओं के नरसंहार पर दुनियाँ के मानवाधिकार वाले चुप क्यों रह रहे हैं?
वर्तमान में भी जिस तरीके से विभिन्न स्थानों पर देश या विदेशों में हिन्दुओं, सिख्खों, जैन या बौद्धों की हत्याएँ की जा रही है, सनातन वैदिक धर्म को मिटाने के प्रयास हो रहे हैं तो स्वाभाविक सवाल यह उठता है विश्व-मानवाधिकार वाले क्या नपुंसक हैं? हिन्दू-गणतांत्रिक देश के विभिन्न हिन्दू समुदाय से भी(बौध्द, जैन, सिख्ख, पारसी, दलित, हिन्दू समस्त समुदाय तथा अन्य शान्ति के उपासकों से भी), यही प्रश्न है कि भारत-सरकार या भारत के हिन्दू क्या नपुंसक हो गए है?
अल्पसंख्यक हिन्दुओं वाले राज्यों की न्याय संस्था और पुलिस नपुंसक हो गयी है? धर्म बने नाम पर बार-बार आतताइयों द्वारा कब्जाए गए, टुकड़े किये गए, आर्यावर्त के बचे हिस्से पर एक-मात्र हिन्दू-गणतांत्रिक देश का पूरा प्रशासन तन्त्र ही नपुंसकता स्वीकार कर चुका है ? सम्पूर्ण विश्व में गन्दगी और दरिंदगी फैलाने वाले इन कट्टरपंथी जिहादियों द्वारा हिन्दुओं तथा गैर-इस्लामियों के बेटे- बेटियों का खात्मा होते हुए देख कर भी दुनियाँ और मानवाधिकार वाले चुपचाप नपुंसक, बेशर्म तमाशबीन क्यों बने हुए हैं?