
सम्पादकीय: नया साल २०२५
नए वर्ष के परिपेक्ष्य में साल की शुरुआत वेदना और ख़ुशी की अनुभूति के साथ ही हुई है। फिलिस्तीन और इज़रायल के लम्बे समय तक चलने वाले युद्ध पर विराम लगने की कुछ बातें अत्यंत अचंभित एवं अशोभनीय प्रतीत हुई खास कर इनके बीच होने वाले समझौते को लेकर। ऐसा लगा जैसे युद्ध को युद्ध स्तर पर जीतने वाला देश राजनितिक स्तर एवं अपने ही देश की जनता के दबाव में आकर समझौते के मेज पर हार गया हो ! कारण चाहे जो भी हो परन्तु अमानवीय एवं निकृष्ट जिहादी गतिविधियों में लिप्त जिहादी आतंकियों के तथा उसे समर्थन देने वाले निश्चित ही निन्दनीय हैं।
यद्यपि भारत जिहादियों के कुकर्मों को नित्यप्रति झेल ही रहा है परंतु उन्नीस सौ इकहत्तर में कुछ ऐसी ही घटना इसे भी झेलना पड़ा था जब पाकिस्तान से युद्ध में जीत जाने के बाद भी राजनीतिक मेज पर भारत युद्ध हार गया था। जीती हुई जमीन निन्यानबे हजार युद्ध बंधकों को पाकिस्तान को देने के बावजूद भी पाकिस्तानी जेल में अपने पचपन भारतीय युद्ध बंधकों को वापस रिहा नहीं करवा पाया था। राजनीतिज्ञों की गलतियों या जिहादियों का साथ देनेवाले देशों का दबाव है या मजाक, जिसमें हजारों लाखों सिपाही शहीद होते हैं, मासूम बेगुनाह जनता पिस जाती है एवं अंततः सभी अपराधी जिहादियों आतंकियों को रियायत एवं पुनः अमानवीय कृत्य करने की आजादी मिल जाती है। कुछ ऐसा ही व्यवहार इजराइल की जनता के साथ हुआ है जिन्होंने घिनौने अमानवीय बर्बर जिहादियों के कुकर्मों को झेला है। घृणित कार्य करने वाले इस्लामिक जिहादी और पापी प्रवृति वाले आतंकवादियों से समूची दुनियाँ के उदारवादी गणतांत्रिक देश परेशान हैं। अलग अलग देशों में अलग अलग नामों से प्रसिद्ध हैं जैसे ब्रिटेन में ग्रूमिंग गैंग, हिंदुस्तान में लव जिहाद आदि आदि।
निकृष्ट बलात्कारियों, अपराधियों, मसूमों की हत्या करने वाले हत्यारों, स्त्री-सम्मान का हनन करने वाले जिहादी राक्षसों को उसके कुकृत्य की सजा दिलाना किसी भी देश के सरकार की नैतिक कर्तव्य है। इन्हीं कर्तव्यों का पालन इजरायल ने किया है जिसके कारण उसे दुनियाँ की स्त्रियों और मासूम नागरिकों के लिए नैतिक दृष्टि से एक सम्मानीय देश माना जाना चाहिए I कम से कम उन सभी गैर इस्लामिक देशों को इजरायल का साथ अवश्य देना चाहिए था जिन देशों के नागरिक इस्लामी आतंकवादी जिहादी समूहों से उनके अमानवीय पापी कृत्यों के कारण अपनी ही जनता को सुरक्षित नहीं कर पा रहे हैं।
नव वर्ष में हमारी खुशी अपने छिहत्तरवें गणतंत्र दिवस मनाने से भी है। परन्तु असली गणतंत्र तभी माना जाएगा जब एक देश एक कानून हो। सामाजिक एवं जातिगत भेदभाव को संविधान में कोई स्थान नहीं दिया जाए, waqf board, places of worship act जो सिर्फ एक मजहब को खुश करने के लिए बनाया गया है उसे खत्म किया जाए। माइनॉरिटी मंत्रालय में सिर्फ उन्हीं को माइनॉरिटी होने का फायदा दिया जाए जिनकी जन संख्या 5% या उससे कम हो। टैक्स पेयर के पैसे से सिर्फ वोटर को लुभाने के लिए, फ्री की सुविधा नहीं दी जाए। नेता भी अपनी संपत्ति फ्री में बांटे । टैक्स पेयर के पैसे देश के विकास, अंदरुनी एवं वाह्य दुश्मनों से देश को सुरक्षित रखने के लिए खर्च किया जाए।
घुसपैठियों, छद्मवेशियों, दहशत गर्दों को पालने के बजाय उन्हें देश से बाहर या जेल का रास्ता दिखाया जाए, अन्यथा आए दिन मरते जवान, टुकड़ों में कटी फ्रीज और बोरियों में भरी लड़कियों को देखते हुए गणतंत्र का ढोल चाहे कितना भी बजा लो अप्रत्यक्ष रूप देश और उसके मूल वाशिंदे तथा जनसांख्यिकी परिवर्तन के कारण एक बहुसंख्यक शांतिप्रिय समाज के बच्चे और स्त्रियाँ खतरनाक असुरक्षित स्थितिमें आते जा रहे हैं। इससे पहले कि समस्या बांग्लादेश,फ्रांस, ब्रिटेन एवं अन्य कई देश की तरह विस्फोटक, आत्मघाती हो जाए गणतंत्र की रक्षा हेतु हर किसी को जागृत होकर सरकार के साथ हथियार विहीन समाज को सुरक्षित रखने के लिए एकजुट होना पड़ेगा तथा संविधान में कई कानून जो सिर्फ एक मजहब को बढ़ाने और अन्य को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं उसे खत्म करना होगा।
ये मेरे निजी विचार हैं किसी की भावना को यदि ठेस पहुँचती है तो उनके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।🙏💐🙏