Dr Sumangala Jha, Chief Editor

सम्पादकीय : पेंटिंग (चित्रकारी)

चित्रकारी ऐसी कला है जो वस्तुतथ्यों के साथ चित्रकार के व्यक्तित्व एवं उसकी मनोभावों को भी चित्रपट पर प्रदर्शित करती है। भारत के महान चित्रकारों की संख्या बताना अत्यंत कठिन है परंतु ज्यादातर चित्रकारों ने भारतीय गरिमा, मर्यादा, संस्कृति, सभ्यता दार्शनिकता की चित्रात्मक अभिव्यक्तिअत्यंत उदात्तता से की है।मूर्तिकारों की पत्थरों पर नक्काशीदार मूर्तिकला तो आज भी अतुलनीय एवं हैरतअंगेज ही है, आज के युग में भी उन सख्त पत्थरों पर इतनी सटीक, बारीक नक्काशी करना असम्भव सा प्रतीत होता है। पेंटिंग उसकी तुलना में सहज ही आसान है किंतु कल्पना की उड़ान को सटीकता एवं सहजता से पट पर उतारना, चित्रकारों की मनोदशाओं की भी व्याख्या करता है। धार्मिक एवं दार्शनिक प्रवृत्ति के लोगों का झुकाव उद्दात विचारों से परिपूर्ण होते हैं एवं ये पौराणिक देवी-देवताओं के कथाओं को चित्रों में उतारते हैं जो उनकी मनोदशा के सौंदर्यीकरण की सटीक अभिव्यक्ति होती है। पाश्चात्य कलाकार अपने महान शाशकों के साथ ही अनेकों सामाजिक एवं चारित्रिक विकृतियों को भी चित्रपट पर रंगों के माध्यम से ढालते रहे हैं जो उनकी बारीक एवं अनकही कहानियों को व्यक्त करते हैं यद्यपि ऐसे कलाकार भारत में भी बहुतेरे हैं परन्तु उनकी चर्चा अनावश्यक है। वस्तुतः चित्रकारी का इतिहास अत्यंत प्राचीन है एवं सभी तथ्यों की व्याख्या भी फिलहाल असंभव है।

फिलहाल चित्रकारी की चर्चा से तात्पर्य यहाँ दो प्रकार के राजनीतिक चित्रकारों की मनोवृत्तियों के वर्णन से है जो भारत माता की चित्रकारी कर उनके प्रति अपनीआस्था,सम्मान एवं स्वयँ की मनोदशाओं को अभिव्यक्त करते हैं। सरसरी तौर परबहुत से राजनीतिक कलाकार विभिन्न पार्टियों में अपनी बयानबाजी द्वारा भारत के विभिन्न राज्यों का शब्दचित्र बनाते रहते हैं जो अंदरूनी प्रदर्शनी तक ही सीमित रहता है। इन कलाकारों की मानसिकता का प्रदर्शन भी भारतीय सीमा केअंतर्गत ही उपेक्षित या सराहनीय रहते हैं अतः विश्वस्तरीय दृष्टिकोण न ज्यादा फायदेमंद होते हैं न ही ज्यादा हानिकारक। परन्तु दो कलाकार ऐसे हैं जो भारत माता, भारतीयता, भारत की गणतांत्रिकी का शब्दचित्र विदेशों में ऐसा बनाते हैं कि एक के लिए मुँह से वाह! निकलता है तो दूसरे के लिए आह!।

एक कलाकार जहाँ स्वयँ के चमकते ,सशक्त, भव्य व्यक्तित्व की तरह ही भारत की गरिमा को चार चाँद लगा, उन्हें विश्वमंच पर सशक्त, प्रतिष्ठित एवं पूजनीय बना आते हैं वहीं एक विकृति के शिकार, कलुषित मानसिकता से परिपूर्ण छुद्रता का प्रतीक व्यक्ति स्वयँ के ओछे व्यक्तित्व की तरह प्रत्येक विदेशी प्रदर्शनी में भारत की छवि को न सिर्फ धूमिल करने का प्रयत्न करता है बल्कि यथासंभव अपनी कलंकित वंशावली की कालिमा की छपाई भी कर आता है। मजे की बात है कि दोनों ही प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्ति हैं एक अपनी दृढ़ता एवं सुकर्मों के आधार पर प्रतिष्ठित हैं तो दूसरा अपने फूहड़पन कुकर्मों के कारण हास्य का पात्र। ये दोनों कौन हैं इन्हें पहचानने की जिम्मेदारी नागरिकों की है अतः नाम बताना व्यर्थ है।

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