3 yrs of The Counterviews

सम्पादकीय : सिंहावलोकन

प्रतिमत पत्रिका की तीसरी वर्षगाँठ पर लेखन के तथ्यों का सिंहावलोकन करना स्वाभाविक एवं सामान्य सी बात है।यद्यपि विभिन्न विषयों पर पक्ष-विपक्ष की चर्चा के बावजूद पत्रिका अपनी कुछ कमियों के साथ भी प्रसारित होती रही है। आर्थिक उपार्जन की भावना से मुक्त होने के कारण यथासंभव यथार्थ-अभिव्यक्ति के मूल उद्देश्य से यह गतिमान है।
शाहीन बाग,किसान आंदोलन, कोरोना काल,अफगानिस्तान एवं श्रीलंका की राजनीतिक उथल-पुथल,अंदरूनी चुनावी परिस्थियाँ, विभिन्न अंतरिक्ष प्रक्षेपण,नेताओं के व्यक्तित्व की व्याख्यान तथा उनके कर्तव्यों के प्रति स्वगत विचारों का उद्बोधन उल्लेख भी निरंतर प्रकाशित होता रहा है।

भारत देश को भी समयांतराल में होने वाले उतार-चढ़ाव ने प्रभावित किया है। निरंतर घटने वाली विभिन्न बड़ी-छोटी घटनाओं, देश-विदेश की राजनीति, देश की सीमा पर होने वाली सुरक्षा बलों एवं सैनिकों द्वारा कार्यवाही,अंदरूनी व्यवस्थाओं -अव्यवस्थाओं, गृह-कलह एवं नेताओं पर प्रत्यावर्तन निदेशालय की जकड़न,अंदरूनी आर्थिक- सामाजिक व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों तथा प्राकृतिक आपदाओं को भारतीयों ने भी झेला है। विश्वस्तर पर कोरोना काल में स्वास्थ्य लाभ एवं पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं जिसमें भारत की सहभागिता उल्लेखनीय है। मानव कल्याण हेतु भोजन की आपूर्ति, स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता के लिए भी सभी विकसित एवं विकासशील देश एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं।इसके अलावे कुछ अप्रकाशित विषयों पर भी यह पत्रिका विचारों के उद्बोधन में संभवतः मौलिकता के साथ प्रयासरत रही है।

कुछ तथ्यों की चर्चा एवं विवेचना यथार्थवादी एवं तिक्त-कटु अभिव्यक्ति के कारण सुप्त विचारों को झकझोरने हेतु भी की गई है। इस विश्व में मानवमात्र की सुरक्षा के लिए ये एकजुटता, उदारता, कल्याणकारी योजनाओं प्रत्यारोपण सार्थक, सकारात्मक एवं सहज स्वीकार्य हो पाया है या नहीं यह एक विचारणीय तथ्य है। मानवता की भलाई के लिए, सुरक्षित रूप से विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिये मनुष्य जितना खर्च करता है उससे कहीं ज्यादा वह विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिए कर रहा है। दुष्परिणाम प्रत्यक्ष एवं जगतव्यापी है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की कूटनीति, संयुक्त राष्ट्र रूस के अंदरूनी उत्प्रेरित आंदोलन के कारण कई हिस्सों में विभाजन के बाद अनगिनत आतंकवादी समुदाय के हौसले बुलंद हो गए हैं। इनके कलुषित प्रभाव तुर्क,लीबिया, इराक,सीरिया, अजरबैजान, आर्मेनिया,अफगानिस्तान,अफ्रीकन देशों के अलावे भी कई देशों की हवा में व्याप्त विषाक्तता है। वर्तमान कालीन युद्ध यूक्रेनऔर रूस की विध्वंसात्मक गतिविधियों के लिए जिम्मेदार देशों को चिंतन करने की आवश्यकता है कि क्या युध्द ही समस्याओं का हल है? युध्द की विभीषिका ने आम नागरिकों को बेघर कर उन्हें विपरीत परिस्थितियों में अनेकानेक अकथनीय संकटों के बीच धकेल दिया है,जिसमें बच्चों एवं स्त्रियों की प्रताड़ना हृदय को दहलाने वाली है। संवाददाताओं एवं समाचार वाहिनियों के लिए इस प्रकार की खबरें संवेदनहीन टी आर पी बढ़ाने का माद्दा बन जाती है I

शरणार्थी समस्या, ऊर्जा संकट, खाद्यान्न की कमी,स्वास्थ्य समस्या, ग्लोबल वार्मिंग या विषाक्त जल-थल-वायुमंडल के लिए भी दुनियाँ के किसी न किसी हिस्से में युध्द का अनवरत जारी रहना हानिकारक ही है। घातक हथियारों का प्रयोग मानवता को शर्मसार करती है। युध्द कभी भी मानव हित में नहीं होता है फिर भी युद्ध की विभीषिका अनवरत गतिमान रहती है। कई देशों के दशानन चेहरे भी विनाशकारी परिस्थितियों की जन्मदाता हैं। इन तथ्यों पर प्रकाश डालने में पत्रिका भरसक प्रयास रत रही है। मानवाधिकार, विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी अनेक छद्मनीतियों एवं प्रपंचों से घिरी दिखाई देती है। मानवाधिकार की बातें करने वाले देशों में सबसे ज्यादा मानव एवं स्त्रियों के अधिकारों का हनन अपरोक्ष रूप से हो रहा है। विभिन्न आयोग का खोखलापन,सच्चाई को उजागर करने के लिये हिम्मत की कमी, सँवाददाताओं का अर्थलोभ, समाचारों को विशेष विचार धारा के तहत तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाना,समाचार वाहिनी का टी आर पी का लोभ, समाचार की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगता है। ज्यादातर समाचारों का प्रस्तुतिकरण भी निष्पक्ष नहीं हो पाता है। कहीं तो सत्य स्वर्णावरण से ढँका होता है तो कहीं लोभ एवं छद्म के श्यामावरण से जो कुछ दिखता है वह धुंधलके और कोहरे के कारण भ्रमित करने वाला होता है। ऐसे उहापोह भरे अनिश्चितता के वातावरण में पाठकों को स्वयँ की मेधा से समाचारों के आड़ में छिपे मनतव्य को जान कर ही सच्चाई के विभिन्न पहलुओं को विश्लेषित कर स्वीकार करना चाहिए।
आज की हालात में प्रत्येक के लिए यह प्रार्थना नित्यप्रति करना अति आवश्यक लगता है और हमें भी इस मंत्र का मनन करना चाहिए-
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम।
तत त्वं पूषन अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये।।

सुनहरे पात्र से सत्य का मुख ढँका हुआ है। हे सर्वपोषक! तू उस ढक्कन को हटा और सत्य को प्रकट कर जिससे कि सत्यधर्मनिष्ठ साधक को उसका दर्शन हो।

Read More Articles ›


View Other Issues ›