Dr Sumangala Jha

सम्पादकीय: हम युद्ध में हैं

ध्यान से देखा जाए तो समूची दुनियाँ ही युद्ध की विभीषिका को झेल रही है। कहीं वैचारिक युद्ध चल रहा है तो कहीं अपने अस्तित्व को बचाए रहने की लड़ाई है। कहीं धर्म एवं अधर्म के बीच युद्ध चल रहा है तो कहीं मानवता की सुरक्षा एवं नरपिशाचों की बर्बरता को बनाए रखने के लिए संघर्ष जारी है। नौबत तो यह आ गई है कि दबंगों, अमीरों, ताकतवर एवं बर्बर आनुवांशिकी जीवों ने कमजोरों के हिस्से का हवा,पानी,धूप, जमीन तक पर अवैध रूप से आधिपत्य जमा लिया है।

ये युद्ध की विभीषिका मानवता एवं मनुष्य जाति को कहाँ ले जायेगी पता नहीं है। कुछ ऐसे हैं जो जन्नत में शराब और शबाब पाने के ख्वाब में मासूम लोगों के खून बहा कर अपनी पिशाची प्रवृत्ति से सामाजिक वातावरण को विषाक्त कर नरक तुल्य बना रहे हैं। कुछ ऐसे हैं जो प्रकृति एवं पृथ्वी का दोहन कर, स्वर्ग सी सुंदर धरती को जिसे हम पृथ्वी माता कहते हैं, जहाँ प्रकृति का सौंदर्य हर मौसम में नए निखार के साथ आता है, उसको वातानुकूलित कमरे में बैठ कर बचाने की बातें करने हुए उसे विभिन्न प्रकार की प्रकृति गतिविधियों द्वारा क्षतिग्रस्त भी करते जा रहे हैं।

युद्ध सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर ही नहीं चल रहा है, यह देश के अंदरूनी हिस्सों में भी चल रहा है। युद्ध का मैदान बना देश कई प्रकार की त्रासदी से गुजरता हुआ देश के नागरिकों तथा स्वयं के अस्तित्व को बचाने में लगा है लेकिन वास्तव यह निरन्तर बर्बादी की ओर ही बढ़ता जा रहा है।

भारत भी कई बार युद्ध की त्रासदी झेल चुका है। अभी भी युद्ध की संभावनाओं से चारों ओर से घिरा हुआ है। अगर युद्ध होता है तो देश और देश की विकसित सामाजिक- आर्थिक व्यवस्था पर अवश्य ही असर पड़ेगा, साथ ही जान - माल के नुकसान को भी झेलना होगा जो समाज को पुनः काफी पीछे घसीट ले जायेगा जिसका भुगतान भारत के ही नागरिकों को करना होगा। समस्या की जटिलता यह भी है कि भारत के लिए सीमा पार के दुश्मनों से भी ज्यादा खतरनाक और हथियार सहित ताकतवर दुश्मन, देश के अंदरूनी हिस्सों में भी बिखरे - भरे पड़े हैं। जिन्हें पहचान कर, उन्हें खत्म किए बिना, युद्ध में देश को झोंकने से किसी भी अंदरूनी मानवता एवं मानवाधिकार के हनन की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।

पाकिस्तान या बांग्लादेश के द्वारा दी जा रही युद्ध या परमाणु बॉम्ब की धमकियाँ उनकी अपनी ताकत के अनुसार नहीं है बल्कि भारत देश में पल रहे भारत के प्रति गद्दारी रखने वालों, भारतीय पाकिस्तानियों , बंग्लादेशियों एवं विभिन्न जिहादी संगठनों के साथ - साथ वे कीटाणु बॉम्ब भी हैं जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा, विकास सनातन धर्म के दुश्मन हैं । ये विशेष शत्रु सफेदपोश, दोहरे चेहरे वाले, नकाब पोश, गद्दार प्रजातियां हैं जो किसी प्रकार से भारत देश की बर्बादी देखने के लिए बेसब्री से लालायित हैं।

युद्ध कभी भी किसी भी प्रकार से किसी के हित में नहीं होता है क्यों कि युद्ध में मानवीय सभ्यता, संस्कृति, मानवता, शिक्षा, विकास सभी विध्वंस की विभीषिका को झेलते हुए सदियों पीछे चली जाती है जिसकी आपूर्ति के लिए बचे हुए नवीन पीढ़ी को पुनः जमीनी स्तर से संघर्ष करना पड़ता है। फिर भी मनुष्यों के हृदय में उपस्थित पैशाचिक प्रवृति कभी स्व रक्षा के लिए, कभी अपने धर्म तथा स्वाभिमान की रक्षा के लिए, कभी देश की सीमाओं की रक्षा के लिए, कभी अहम की संतुष्टि के लिए तो कभी विस्तारवादी प्रवृत्ति से दबदबा कायम करने के लिए मानव को युद्ध में झौंकता रहता है। अब देखना यह है कि निरंतर युद्ध रत देशों के साथ - साथ अन्य कौन -कौन से देश युद्ध की अग्नि में स्वयं की आहुति देने के लिए स्वयं ही आगे आते हैं।
अन्ततः यही कहा जा सकता है : "अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय।"

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