सम्पादकीय : 'गौ रक्षा'
हिन्दू, हिंदुत्व, हिंदुतीर्थों, हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तकों की अवहेलना के साथ-साथ भारतियों के मूल संस्कृति को अपमानित करना अधकचड़े आधुनिक,पश्चिमीकरण एवं इस्लाम प्रभावित लोगों का फैशन बन गया है।
आये दिनों कुछ ऐसे वक्त्व मिडिया में छाये रहते हैं जो ज्ञान की गहराई के अभाव में अपने छिछलेपन को ही उजागर करते हैं। कहीं-कहीं कट्टरपंथी लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए आम नागरिकों को बिना स्पष्ट प्रमाण के परेशान करने के लिए भीड़ तन्त्र का सहारा ले दहशतगर्दी के लिये हावी हो जाते हैं तो कहीं-कहीं पुलिस भी अपना जेब गरम करने की ताक में नैतिकता तथा कर्तव्य को ताखे पर रख देते हैं।
कुरान या गुरुग्रंथ के अपमान की कहानी हो या मंदिरों तथा मूर्तियों का तोड़ा जाना, कलुषित-विकृत मानसिकता घटित घटनाओं के द्वारा स्वतः ही प्रमाण प्रस्तुत करती है। गौ हत्या,बीफ, कुटिपाई जैसे माँस-भक्षण के कृत्य भी हिन्दुओं के धार्मिक आस्था या मानसिकता को ठेस पहुँचाने का एक साधन है। गो-हत्या के समय जानवर-सुरक्षा संगीत गाने वाले भी भूमिगत हो जाते हैं। गो-माँस भक्षकों के कारण गायों संख्या में चिंताजनक कमी आ रही हैं अतः गो हत्या प्रतिबंधित कर उसके संरक्षण के लिए सरकार करोड़ो रुपये खर्च कर रही है। परन्तु इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग भी नियमित पर्यवेक्षण कार्य एवं गौशालाओं के रख-रखाव के प्रति उदासीन, सिर्फ तनख्वाह ले कर या अन्य तरीके से अपना तोंद-पोषण में लगे रहते हैं।
गौ-सुरक्षा की जिम्मेदारियों के प्रति जागृति तभी होती है,जब कोई बड़ी दुर्घटना प्रकाश में आती है या कोई पैसे वाला मोटा मुर्गा गलती करते हुए नजर पर आ जाता है। अन्यथा कुम्भकर्ण का वरदान गैरसरकारी,सरकारी समिति तथा पुलिस वालों पर हावी रहता है। रजिस्ट्रेशन किये गए गौशालाओं में 'कोठारी उत्थान संस्थान,जंज विकास संस्थान, लखा गाँव का अमन गौशाला, जैसुराना का रोशन गौशाला' ऐसे बहुत से हैं जिनमें में गौ-वंश का नामोनिशान नहीं है। इन फर्जी गोशालाओं को सरकारी चारागाह के साथ-साथ लाखों का अनुदान भी मिलता रहा है जिसे गटकने-गटकाने में वहाँ की स्थानीय सरकार सहायता पहुँचाती रही है। जैसलमेर में गौ-भक्षक मुसलमानों ने बहुत से फर्जी गौशाला खोल कर लाखों रुपये डकारने का शुभ कार्य सहजता से सम्पन्न किया है। हरियाणा में भी फर्जी 'महम गौशाला' के नाम पर लोग वसूली करते पकड़े गए हैं। सरकार द्वारा गौसंरक्षण का कार्य उपहासास्पद दिखाई देता है जब लावारिस गायें सड़कों पर घूमती तथा हानिकारक कचड़ों से पेट भरती दिखाई देती है।
'गो-रक्षकों' के प्रति एक सहेली के कटु अनुभव का भी साझा मेरे साथ हुआ है। अँधेरी रात में कार से टक्कर लगने के कारण स्वाभाविक रूप से एक गाय थोड़ी घायल तो थी परन्तु खतरे की कोई बात नहीं थी अतः उस गाय को लगभग सही-सलामत देख कर उन्होंने अपनी कार आगे बढ़ा ली। पीछे से आती पुलिस की गाड़ी ने उन्हें रोका और गो-रक्षकों की तरफ से धमकाना भी आरम्भ किया संयोगवश मेरी सहेली के नजदीकी रिश्तेदार उसी इलाके में पुलिस विभाग के उच्च ओहदेदार थे जहाँ इनका आना-जाना था।उसी समूह के एक पुलिस कर्मी मेरी सहेली को पहचाना और बातें आयी-गयी हो गयी। सोचने की बात है कि अगर पुलिस ने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर नहीं पहचाना होता या उसकी जगह कोई अन्य पैसे वाला होता तो उसके साथ किस प्रकार का वर्ताव किया जाता?
कहानी के दूसरे पहलू के लिए हम कह सकते हैं कि हिन्दुओं के लिए गाय न सिर्फ आर्थिक संपन्नता अपितु धार्मिक आस्थाओं का निर्वहन करने के लिए भी अत्यन्त उपयोगी है। हमारे वेदों में भी गाय के लिए एक महत्वपूर्ण माता-तुल्य अलग स्थान है। लगभग प्रत्येक अनुष्ठान पर जैसे गृह-प्रवेश, श्राद्ध आदि के अवसर पर गाय को सम्मानित कर भोजन दिया जाता है। गाय के दूध या घी को अमृत तुल्य माना जाने के कारण इसे पशुधन कहना भी अपमानित करने की तरह महसूस होता है। ऐसी स्थिति में गोवंश की कमी के प्रति चिंतित तथा गौहत्या का अस्वीकृत होना आवश्यक है।
शहरीकरण की प्रक्रिया तथा चारागाह की कमी के कारण गाय की अवहेलना भारतीय समाज में बहुत ज्यादा हो रही है। जैसलमेर में'सबका मालिक गौशाला'में चारा के पैसे तक उसके मालिक खा रहे हैं। चारे के अभाव में गाय की दयनीय मृत्यु एवं चील-कौवे द्वारा जिंदा गाय को नोच खाने का दृश्य इन् स्थानों पर हृदय विदारक है। गौ-संरक्षण के लिये उपयुक्त है कि ऐसे गरीब और व्यवसायहीन व्यक्ति को एक-एक गाय की सेवा का भार सौंपा जाए जो श्रद्धा और आदर से उसका निर्वहन करे। इस तरह लाखों रुपये संस्थान के नाम पर किसी एक के पेट में जाने के स्थान पर गाय और गरीब दोनों के पेट भरने के काम आयेंगे। इस योजना अशिक्षित युवाओं या अर्ध-वयस्कों के बीच रोजगार की समस्या भी कम होगी।
बहुत से ऐसे भी गौशाला हैं जहाँ उच्च नस्ल की तथा देशी गोवंश की गायों को श्रध्दा भाव से रखा जाता है। कई स्थानों पर उनका संवर्धन,विकास और पालन भी हो रहा है जिसे ज्यादा विकसित करने की भी आवश्यकता है। कुछ गौ रक्षकों को रोजगार के रूप में सड़कों पर घूमती गायों की सुरक्षा के कार्य में भी लगाया जा सकता है ताकि लापरवाह मालिकों पर लगाम लगाने के साथ-साथ गायों को कचड़े खाने तथा सड़कों पर गाड़ियों से टकराने से बचाया जा सके। गायों की चोरी,उसे कत्लखानों तक पहुँचाने वाले गौ-भक्षकों से इन मासूम, जनहितकारी जानवरों की रक्षा एक स्वस्थ और उदार समाज की आवश्यकता होनी चाहिए न कि मजबूरी।
गौ-पालन कुछ दशकों पहले तक सम्मान का विषय था, आज पश्चिमीकरण की मानसिकता ने गाय के स्थान पर कुत्तों को पालना एवं उस पर हजारों रुपये खर्च करना अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। स्वाभाविक रूप से फ्लैट में रहने वाले गाय पालन नहीं कर सकते, परन्तु अगर गाय का माँस न खाने वाले गाँव के अनपढ़ गरीबों को मुफ्त में अच्छी नस्ल की एक-एक गाय प्रति परिवार उपलब्ध कराई जाए तो वे अपने जीवनस्तर को सुधारने के साथ-साथ इसकी सेवा भी पूर्ण समर्पण भाव के साथ करेंगे। गौ-हित के लिए दिये गए सरकारी अनुदान का विमुद्रिकरण भी सार्वजनिक हित में होगा तथा मुफ्तखोरों के मोटे तोंद का वजन कुछ कम होगा।
गौ-पालन कुछ दशकों पहले तक सम्मान का विषय था, आज पश्चिमीकरण की मानसिकता ने गाय के स्थान पर कुत्तों को पालना एवं उस पर हजारों रुपये खर्च करना अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। स्वाभाविक रूप से फ्लैट में रहने वाले गाय पालन नहीं कर सकते, परन्तु अगर गाय का माँस न खाने वाले गाँव के अनपढ़ गरीबों को मुफ्त में अच्छी नस्ल की एक-एक गाय प्रति परिवार उपलब्ध कराई जाए तो वे अपने जीवनस्तर को सुधारने के साथ-साथ इसकी सेवा भी पूर्ण समर्पण भाव के साथ करेंगे। गौ-हित के लिए दिये गए सरकारी अनुदान का विमुद्रिकरण भी सार्वजनिक हित में होगा तथा मुफ्तखोरों के मोटे तोंद का वजन कुछ कम होगा।