Election in India

चुनावी ऋतु की अगवानी

कई राज्यों में चुनाव का मौसम मॉनसून की तरह ही आने वाला है। वर्षाऋतु की प्रतीक्षा मनुष्यों के अलावे अन्य जीव-जंतुओं तथा पेड़ पौधों को भी होती है।मृतप्राय या ग्रीष्म की सख्त गर्मी की ताप से व्याकुल जीवनदायी ऋतु धरती के कण कण में नवजीवन का संचार करती है। शिकार और शिकारी जीवों की सक्रियता जीवनचक्र तथा प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के लिए वर्षा ऋतु अत्यंत आवश्यक होता है । कई शिकारी जीव-जन्तु ऋतु और वातावरण के अनुसार अपने रंग भी बदल लेते हैं ताकि शिकार को आसानी से छल कर दबोचा जा सके। कुछ ऐसी ही प्रकृति हमारे देश के शिकारी नेताओं की है। समय, जगह, पर्यावरण, शिकार के समूहों की प्रकृति के अनुरूप परिवेश और परिधान धारण कर चुनावी-ऋतुकाल में 'ये' व्यक्तित्व विशेष शिकारी शिकार करने निकल पड़े हैं। बेचारी भोली जनता तो उन बेबस शाकाहारी पशुओं की तरह ही हैं जिन्हें पता ही नहीं चलता है कि छद्मवेशी शिकारियों का कब कौन सा झुण्ड, घातक नरभक्षी/परभक्षी उन्हें अपने जबड़ों में दबोच लेगा।

परिवेशानुरूप रंगबदलुओं में से कुछ नेताओं के नाम तो इतने प्रसिद्ध हैं कि जनता जनार्दन उन्हें उनके गुणों के अनुरूप अनेक नामों से अलंकृत और विभूषित करते हैं।

ये नेता चुनावों के दौरान मंदिरों में हिन्दू वेषधारी, मस्जिदों में टोपी पहन नमाज़ अदा करते तथा गिरिजाघरों में पादरी के समक्ष घुटने टेकते नज़र आते हैं। इन शिकारी नेताओं के लिए झूठे वादों तथा मुफ्त की सुविधाओं का लोभ दे जनता को बेवकूफ बनाना, साम-दाम-दण्ड-भेद से चुनाव जीतना, जीतने के बाद जनता को जी भर कर निचोड़ना-चबाना ही मूल-उद्देश्य होता है। इन रंगबदलुओं के कलुषित एवं हास्यप्रद चरित्रों का सनसनी खेज पर्दाफाश आये दिनों विभिन्न संचार साधनों द्वारा प्रकाशित-प्रसारित होते ही रहते हैं।खेजड़ीवाल एक उदाहरण हैं जिनके शासन काल में करोड़ों के बिजली और पानी के बिल बकाया होने के कारण कंपनियों का बंटाढार हो रहा है।

खुलेआम गुंडागर्दी, हत्याकांड, वसूलीकाण्ड, विभिन्न आर्थिक घोटाले, अवैध हथियारों, विस्फोटक सामग्रियों, स्वर्ण तथा नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले नेताओं ने शर्म और सभ्यता का परिधान उतार कर बेशर्मी का नंगा नाच करना अपना हथियार बना लिया है।बेतुके बयानबाज़ी, सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना, बाहर के प्रचार-प्रसार-संचारसाधनों से सम्पर्क स्थापित कर देश तथा मोदीजी बदनाम करने की जी तोड़ कोशिश करना ही अपना कर्तव्य निश्चित कर लिया है। भारत की बहुसंख्यक जनता देखती-सुनती-समझती भी है फिर भी ये रंगा सियारकी चालबाजियों में फँस जाती है। भारतीय गणतंत्र के लोग वस्तुतः काठ की हांडी की तरह ही है जो छद्मवेशी मुलम्मा चढ़ाने वालेजनता को भ्रमित कर बेशर्मी से सामने आ कर सभ्य दीखने का अभिनय करने वाले नेताओं की चालों में आ जाते हैं। कुछ समझदार जनता को इनके चोंचले, घपले और नौटंकी देख कर ऐसा लगता है कि इन्हें जनता के आशीर्वाद की नहीं बल्कि गरीब-भोली जनता के जूतों से मरम्मत किये जाने की आवश्यकता है।

कुछ नेताओं के लिए जनता के बीच भाषण देना मात्र जहर उगल कर, झूठ बोल कर विषाक्तता फैलाना ही ध्येय होता है। इसमें ओवैसी का प्रमुख स्थान है। इनके भड़काऊ भाषाओं के कारण ऐसा लगता है कि ये हिंदुस्तान नहीं पाकिस्तान,बलात्कारियों, लुटेरों, देश के दुश्मनों के साथ हैं। इनकी पसंद के सारे प्रावधान पाकिस्तान अफगिस्तान में मौजूद हैं, जहाँ जाकर इन्हें सुकून की साँस लेनी चाहिए लेकिन वहाँ जाने के बजाय ये हिंदुस्तान में हिंदुओं के विरोधमें जहर बोते रहते हैं। ये हिन्दुओं और हिंदुस्तान के दुश्मन हैं जिन्हें यहाँ शरण दे कर भारत के पूर्ववर्ती नेहरू परिवार ने बहुत बड़ी अक्षम्य गलती की है। हिन्दुओं तथा देशभक्त मुसलमानों को भी इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।अपने व्यक्तित्व को ऊँचा कर, बड़प्पन या उदारता के साथ देश-सेवा, जनता की सेवा, गरीबों की सेवा करने का कार्य न करने की चाहत रखने वाले लुटेरे, गुण्डे, देशविरोधी ग़द्दार दुश्मन देशों के हाथों बिके हुए नेता का काम मात्र दुष्प्रचार करनाहोता है। ये सफेद पोश डकैत नेताओं का काम देशभक्तों, कर्मठों, ईमानदारों को गालियाँ देना, उन्हें नीचा दिखाना,समाज हित में किये गए काम के बारे में गलतफहमी फैलाना है। ये मौसमी चोलाधारक-ग़द्दार, वर्णसंकर, नेहरू वंशजों के तलवेचट्टू, आतंकवाद के हिमायती, टुकड़े-टुकड़े गैंग समर्थक, रक्तपिपासु झुंड किसी भी हिंसक जानवर या नर-भक्षियों से ज्यादा खतरनाक हैं।

जनता को स्वयँ की सुरक्षा एवं विकास हेतु तालिबानीयों के समर्थक, कुटिल-क्रूर-कलंकितों को पहचान कर उन्हें सत्ता से दूर रखना होगा। पाँव पर कुल्हाड़ी मारें या कुल्हाड़ी पर पाँव कटने वाली वस्तु पाँव ही होती है।समझदार जनता इस गलतफहमी में न रहें कुल्हाड़ी का हत्था लकड़ी का है इसलिए वह सगा है।हिन्दुओं के एकजुटता के अभाव एवं असावधान रहने के कारण मुसलमानों के हिमायती नेता भी आसानी से हिन्दुओं को ही काटता, कटवाता और जलाता है। बाँटने वाले बहुत हैं इसलिए बँट कर रहना, कटना और जलना है या एक जुट हो सुरक्षित रहना है, ये हिन्दुओं पर निर्भर करता है। हिंदुस्तान सेक्युलर तभी तक है जब तक हिन्दू बहुसंख्यक हैं।सतर्कता जरूरी है अन्यथा यहाँ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के घुसपैठिये आतंकियों के समूह कत्लेआम मचाने की ताक में हथियारों के साथ न जाने कितने मस्जिदों तथा गद्दारों के घरों में छुपे बैठे हैं, पता लगाना मुश्किल है।

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