"भागते भूत की लंगोटी" : पप्पू की फिरौती और लुटेरी सरकार
हमारा भारत महान हैं। यहाँ अनेकों पप्पू भरे पड़े हैं। एक पप्पू अपने बड़े भाई के साथ चुनाव लड़ा। हालाँकि उसे अपने बड़े भाई की तुलना में आधी से भी काम सीट मिली थी, मुख्य मंत्री बनने की उसकी महत्वाकांक्षा प्रबल हो गयी। उसने एक चाल चली। अपने दुश्मनों के साथ हाथ मिला कर उसने अपने बड़े भाई की पीठ में चाक़ू भोंक, उसे दरकिनार कर दिया।उसके दुश्मनों ने उसे अपने इशारे पर चलने वाला मुख्य मंत्री बना दिया। देश सख्ते में था कि इस बड़े प्रदेश का अब क्या होगा ? अच्छे-अच्छे चुटकुले बने, लतीफे निकले और पप्पू प्रदेश की अनोखी-अनोखी अटकलें लगने लगीं। लेकिन मियाँ पप्पू ने जिस तरह से अपने बड़े भाई के पीठ में छुरा भोंककर दुश्मनों के साथ मिलकर सत्ता संभाली, ऐसा लगाने लगा कि वह औरंगजेब का खानदानी है। बहरहाल, सत्ता के गलियारे के घाकूड़ चालबाजों ने पप्पू की आँखों पर घोड़े वाली पट्टी डालकर उसे गाड़ी में लगा 'घोड़ागाड़ी' की एक अघाड़ी सरकार बना ली।
" ठगवा खड़ा बजार ठगी, भाजपा सनु भाई ।
पुत्र-मोह में ठाकड़ी, भइ जनु सूर समाई।।
सूर-दृष्टि जो होय कोहु, अवनति करी कराइ ।
करै न कुर्सी-लोभ कभू, कहै सब लोग-लुगाइ।। "
Welcome the new Pappu in politics..........
पप्पू मुख्य मंत्री बन तो गया लेकिन अघाड़ी के घोड़े की लगाम और चाबुक तो घाकूड़ों के हाथ थी।दिनभर जोता जाता, चाबुक खाता और सांझ को अपने मालिकों को दंडवत लगाता। अब उसका एक नया मालिक था और नयी मालकिन भी I सत्ता के लोभ ने पप्पू को दुम हिलाता पालतू बना दिया था लेकिन मियाँ पप्पू के साथी कुत्ते भौंकते खूब थे। किसी के बाल मुड़वा दिए। किसी के ऊपर स्याही फिकवा दी । किसी ने कार्टून बना दिया तो गुंडागर्दी पर उतर आए। किसी ने उंगली उठाई तो उसके हाथ तुड़वा दिए। पत्रकारों ने आवाज़ उठाई तो उसे जेल में डाल दिया। गालियां तो ये इस कदर बकते की इनका नाम ही 'हरामखोर' पड़ गया था। तो ले दे कर पप्पू और उसका अगाडी मालिक मासूम जनता और मेहनती व्यापारियों पर आग मूत रहा था।
उसके मालिकों ने उसे एक नया काम दिया था…अफीम, गांजा और चरस का धंधा। अच्छी कमाई आ रही थी। जिसनें उंगली उठाई उसका क़त्ल करवा दिया और आत्महत्या का केस बनाकर फाइल बंद कर दिया । जिसनें आवाज़ लगाई उसके मुंह बंद कर दिए।किसी ने कुछ कहा तो उसके घर तुड़वा दिए। ऐसा अंदाज़ लगाया जा रहा था कि अफीम की कमाई का हिस्सा सबों को मिल रहा था और सब खुश थे। फिर एक अभिनेता की ह्त्या ने भानुमति का पिटारा खोल दिया। सी बीआई पीछे पड़ गयी।' हरामखोरी' तत्काल के लिए बंद करनी पड़ी। अफीम का धंधा बंद करना पड़ा। घोड़े के मुँह से घास और कुत्ते के मुँह से हड्डी छिन गया था।
अवैध धंधों के रुक जाने से अघाड़ी नेता और पुलिस के महकमें सख्ते में आते जा रहे थे। लेकिन भला हो फिल्म वालों के रईसजादों का । फिल्म की बड़ी बड़ी हस्तियों के अमीरजादों ने फिर से हरकत शुरू की। अवैध नशें का धंधा फिर चल पड़ा। धंधा सात आठ महीने तक दुरुस्त चला। सबों की जेबें गर्म हो रही थी। सभी चोर और धोखेबाज़ खुश थे लेकिन तभी एक और बिजली गिरी। बुरा हो नर्कोटिक ब्यूरो का। उन्हों ने रंगे हाथ उन रईसजादों को पकड़ा और फिर कुत्तों के मुँह से जैसे हड्डी छिन गयी। पप्पू खूब बौखलाया। सुबह शाम केंद्र की सरकार को कोसने के अलावे उसके पास कुछ नहीं था। लेकिन कहावत है चोर चोरी से जाए तो जाए लेकिन हेराफेरी से नहीं। वे फिर से अपना कोई और काला धंधा निकाल ही लेंगे।
अघाड़ी को कमाई का नया जरिया ढूंढना था। पप्पू तो आज्ञाकारी था ही। उसे अब "फिरौती की कमाई" का हुक्म मिला। अपनी ही प्रजा को लूटना था। फिर क्या था…अपनी पूरी ताकत फिरौती में लगा दी। पुलिस तंत्र का काम अब फिरौती वसूल करना था। उन्होंने तरह-तरह के षड्यंत्र रचे। किससे कितना वसूली करना था यह पुलिस के आला अधिकारी बताते थे। जिसने फिरौती नहीं दी तो उसे पहले धमकाया जाता था फिर क़त्ल। लेकिन वह री खोटी किस्मत। पप्पू की अघाड़ी का फिरौती सरकार का भी पर्दाफास हो गया। अब पप्पू और उसके अगाडी के सारे जानवर नंगे घूम रहे थे लेकिन भौंकना कम नहीं हुआ । अब देखना था आगे क्या होता है।
पप्पू और उसके मालिक हार मानने वालों में से नहीं थे। उसके नए मालकिन और पितुश्री का आदेश आया- "घूसखोरी"। अब उसने सारे सरकारी दफ्तरों में आदेश दे दिया "बिना घूस के कोइ काम नहीं होगा"। सुनने में आया है कि सरकार से हर काम कराने की मूल्य तालिका बनी है। 'रियल स्टेट' में तो मानो लूट चल रही है। अब तो सैकड़ों-हजारो करोड़ों में बात होती है। निर्भर इस बात पर है कि आसामी कितना मालदार है। अघाड़ी की गाड़ी बहुत आगे निकल चुकी है। बेचारे बालासाहेब। स्वर्ग में भी अपनी तकदीर को कोस रहे होंगे कि कैसी औलाद मिली। पूरी प्रतिष्ठा पर पानी फेर दिया ।