त्यौहार और पलटूराम-घोटालूवाल
भारत में लगभग प्रत्येक महीना, किसी न किसी समुदाय के द्वारा त्योहार मनाया जाता है, शायद इसीलिए इसे त्योहारों का देश कहा जाना उचित ही प्रतीत होता है। बचपन में बड़ी-बूढ़ी औरतें कहा करतीं थी कि 'पञ्चमी पसारे शीर्वा उसारे' कहने का तात्पर्य होता था नाग-पंचमी से त्योहारों का सिलसिला कुछ यूँ आरम्भ होता था कि लगभग प्रत्येक सप्ताह कोई न कोई त्यौहार उत्साह से मनाया ही जाता था। प्रत्येक त्यौहार के अवसर पर कुछ विशेष खान-पान का भी महत्व होता था जिसका कुछ अंश स्थानीय जानवरों एवं चिड़ियों के लिए सुरक्षित रख उन्हें श्रद्धा और आदर के साथ अर्पित किया जाता रहा है। आजकल के आधुनिक समाज में बहुत से त्योहार तो ऐसे हैं जिसके बारे में आधुनिक बच्चों को जानकारी भी नहीं है। त्यौहार महत्वपूर्ण क्यों है इसकी जिज्ञासा अर्थहीन प्रतीत होती है। भारत में भी अब आधुनिक एवं सुशिक्षित परिवारों द्वारा कुछ गिने-चुने त्यौहार ही सार्वजनिक रूप से मनाए जाते हैं वह भी अनेकानेक व्यवधानों को झेलते हुए। कहीं-कहीं तो त्यौहार का उत्सव उत्साह के साथ आरम्भ होते ही उपद्रवियों की असुर सेना रंग में भंग डालने आ जाती है या फिर कोई असुर नेता अपने ढँग से अपना उल्लू सीधा करने के लिए कोई तुगलकी फरमान जारी कर देते हैं। मुख्य-मुख्य त्यौहारों पर भी पत्थरबाजी, पेट्रोल बॉम्ब फेंकना, आग लगाना, मूर्तियों को छतिग्रस्त करना या मंदिरों में लूट-पाट करना आम बात हो गयी है, जो किसी प्रसारण प्रबंधन पर चर्चा का विषय भी नहीं बनती है।
गणपति पूजा के बाद श्राध्द पक्ष एवं महाअमावश्या में पूर्वजों के प्रति श्रद्धा अर्पण के पश्चात अश्विन प्रतिपदा से शरदकालीन दुर्गा पूजा की जाती है। भारत के सभी राज्यों में इसे विभिन्न प्रकार से उत्साह पूर्वक मनाया जाता है; परन्तु असुरों के सन्तान जिन्हें सनातनी हिन्दुओं के त्योहारों से नफरत है वे हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित कर अपने जिहादी साजिशों का कुत्सित कृत्य प्रदर्शित करते हैं। गरबा आदि नृत्यों में भाग ले, मुल्ले युवाओं की गन्दी नीयत, हिन्दू लड़कियों को अपमानित करने की कोशिश,उनकी घृणित मानसिकता,उनके कुरान के ज्ञान को प्रदर्शित करती है। तीज, दुर्गा पूजा, करवाचौथ पर वामपंथी लोगों की जुबानें जहर उगलने, नीचता एवं ओछेपन का प्रदर्शन करने में होड़ लगाते दीख पड़ते हैं।मुख्य त्योहारों साथ ही असभ्यता के पर्याय असुर वंशियों का विधवा-विलाप भी आरम्भ हो जाता है। ईसाइयों तथा इस्लामियों को आत्मचिंतन के साथ उदारवादी मानवीय धर्म का अनुसरण कर स्वयँ का उत्थान करना चाहिए क्योंकि की उनके ओछे वक्तव्य एवं कुकर्म ही उन्हें घृणा का पात्र बनाते हैं।
विजयदशमी, कोजगरा, करवा चौथ,धनतेरस, दीपावली,भाई दूज,छठ, कार्तिक पूर्णिमा, तुलसी विवाह, आंवला एकादशी ,कार्तिक रामनवमी आदि सभी त्योहारों की मान्यता के साथ उसके संदर्भ में पौराणिक कथा-कहानियाँ भी किसी न किसी सामाजिक नैतिकता का पाठ पढ़ाती है। इसकी जानकारी कथाओं की शैली में बच्चों को पढ़ाया या सुनाया जाना समाज हित में होता है।बच्चों के अपरिपक्व मस्तिष्क में नैतिकता तथा प्रकृति संरक्षण को सहजता एवं स्वाभाविक तरीके से अपनाने की प्रवृत्ति को जागृत करता है। प्रत्येक त्यौहार से जुड़ी कहानी भारत की प्रभुत्व सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत कर उसे महान बनाती है।वर्तमान में छठ का पर्व जो प्रायः नदी तटों पर सम्पन्न होता है, राजनीतिक विवादों का विषय बना हुआ है यद्यपि सूर्य की उपासना सभी करते हैं।यह पूजा जाति धर्म के बंधन से परे है क्यों कि सूर्य प्रत्येक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है।इसमें पहले अस्ताचल गामी सूर्य को पुनः आने वाले प्रभात को उदयाचल सूर्य को अर्घ्यदान करते हैं।इस पूजा के साथ अनेक कथा कहानियाँ एवं मान्यतायें जुड़ी हुई है। कुछ प्रार्थना निम्नलिखित हैं।
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*नमो नमस्तेऽस्तु सदा विभावसो*
*सर्वात्मने सप्तहयाय भानवे ।*
*अनन्तशक्तिर्मणिभूषणेन*
*ददस्व भुक्तिं मम मुक्तिमव्ययाम्।।*
भावार्थ-- *हे सूर्यदेव ! आप सर्वात्मा हैं । आपके रथ में सात घोड़े लगे हुए हैं । आप प्रकाशमान सूर्यदेव को बारंबार नमस्कार है। मणिमय आभूषणों से विभूषित आप अनन्त शक्ति से सम्पन्न हैं। मुझे भोग तथा अक्षय मोक्ष प्रदान करें।
लोक आस्था के महा पर्व छठ पूजा के अवसर पर अस्तलगामी सूर्य हम सभी के लिए सिद्धिकारक हो। ...
.....उदित होने वाले सूर्य को अर्पित अर्ध्य जीवन संचरण की उत्तरोत्तर ऊँचाई की ओर गतिशीलता को भी दर्शाता है।
....ध्येयः सदा सवृति मण्डल,
नारायण सरसिजाशन सन्निविष्ट
केयूरवान मकर कुण्डलवान किरीट
हर्री हिरण्यमय वाकुरधृतशंखचक्र....
..एहि सूर्य सहस्त्रांसो तेजोराशिजगत्पते,
अनुकम्पयो मा भगवते, गृहाण अर्ध्य दिवाकरः।
'ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय,
धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात।.......
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तमोमय महाभीम सोमसूर्य विमार्दन,
हेमतारा प्रदानेन मम शांति प्रदो भव।
एक भोजपुरी गीत में प्रत्येक जाति और धर्म के लोगों को छठ के सूर्य के अर्ध्य हेतु बारात में जाने वाले लोगों को देखने के लिए उन्हें प्रतीक्षारत एवं कुछ उपहार अर्पित करते दिखाया गया है।प्रामाणिक रूप से सारे सनातन हिन्दू त्यौहार सम्पूर्ण समाज को पारस्परिक जरूरतों से बाँधते हुए उन्हें एकजुट करता है। विभेदनकारी नीतियाँ तो धूर्त, चतुर, कपटी नेताओं द्वारा उनके अपने फायदे के बनाई है, जिसे सामान्य भोले नागरिक समझ नहीं पाते हैं।
एक कहावत है कि लकीर को बड़ा या छोटा दिखाने के दो तरीके हैं ,एक लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच दो या फिर अपनी लकीर को बड़ी लकीर दिखाने के लिए दूसरी लकीर को मिटा कर छोटी कर दो। भारत भूमि में प्रस्फुटित लगभग सभी धर्मों ने उद्दात्त मानवीय भावनाओं का पोषण कर विश्व स्तर पर श्रेष्ठता स्वयँसिद्धता से स्थापित की है ।
इस संदर्भ में रिलिजन या मज़हब को देखा जाये पायेंगे कि रेगिस्तानी दरिंदों द्वारा फैलाया गया जघन्य पापपूर्ण बर्बर मज़हब एवं पश्चिमी के धूर्त पादरियों का रिलिजन पुरातन संस्कृति-सभ्यता को धवस्त कर जबरन फैलाया गया है।रिलिजन या मज़हब में अधार्मिक मान्यताओं का पोषण ही उन्हें छिछला एवं तिरस्कार के योग्य बनाता है। सनातन त्योहारों के महत्त्व को गहराई से न समझ पाने के कारण ये सदैव अपने दुष्कर्मों का परिचय देते रहते हैं। अपने मजहब या रिलिजन में भी हिन्दुओं की नकल कर उत्सव तो कभी -कभार मनाने लगे हैं लेकिन त्योहारों की गूढ़ता को समझना अभी भी उनके पल्ले नहीं पड़ता है इसलिए राक्षसी- व्यवहार, घृणित-मानसिकता, जहरीले बयानबाजी करते हुए स्वयँ की असभ्यता का परिचय देते नहीं थकते हैं। मुसलमानों और ईसाईयों के दुष्कर्मों की चर्चा तो आये दिन समाचार की सुर्खियों में होते ही हैं। कुछ दूषित मानसिकता के पत्रकार भी हैं जो ईद को खुशबू और दिवाली को प्रदूषण फैलाने वाला त्यौहार बता कर अपनी नीचता का परिचय देते हैं।नेताओं में भी खेजरीवाल जैसे कुछ कालनेमि उभर कर सामने आ जाते हैं जो गिरगिट की तरह रंग बदल-बदल कर वक्तव्य देते रहते हैं।भोली जनता को चूना, वोट और नोट हासिल कर येन-केन-प्रकारेण सत्ता में बने रहना ही इनका मूल मन्तव्य है।
हिन्दुओं,मंदिरों और सरकारी जमीनों पर वक्फबोर्ड के अवैध कब्जे को बढ़ावा देने,अप्रवासी हिन्दुओं को दिल्ली से भगा, घुसपैठिये बंगलादेशी मुसलमानों, रोहिंज्ञाओं को बसाने के साथ ही इमामों एवं मौलानाओं को मोटी तनख्वाह देने वाले खेजरीवाल; समय-समय पर हिन्दू-हितैषी दिखने की कोशिश करने लगते हैं। हत्यारे ताहिर हुसैन के परिवार को करोड़ों रुपये देने वाले, दंगाई अमानतुल्ला खान की रहनुमाई करने वाले तथा मुस्लिम बलात्कारी को सिलाई मशीन, गुजारे का भत्ता देने वाले, दीवाली के पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले खेजरीवाल जब लक्ष्मी गणेश का चित्र नोटों पर छापने की बात करने लगे तो आश्चर्यजनक और हास्यस्पद ही लगता है। सत्ता में रहते हुए अवैध कार्य करने वालों से मोटी रकम वसूल कर, घोटालेबाजों को बचाने में लगे हुए, इस जैसे चालाक घोटालूराम ने तो बिहार के पलटू राम को भी पीछे छोड़ दिया है। ये तय है कि आई आई टी की पढ़ाई भोसड़े दिमाग वाला नहीं कर सकता है लेकिन ऐसी तेजस्विता किस काम की जो देश की सनातन उत्कृष्ट संस्कृति के साथ जनता को भी मुसीबतों के गर्त में धकेलने में लगी हो !
पलटूराम नीतीश जी ने सुशासन का तमगा एवं जेडीयू का साथ न देने की कसम तोड़, बिहार में जंगलराज की वापसी में योगदान दे दिया है। इन्होंने बिहार की जनता को धोखा दे उन्हें खतरे में डाला है; परन्तु लोमड़ के दिमाग वाले खेजरीवाल ने स्वयँ को पाक-साफ बताते हुए, अपने गिरगिटी रंग, घोटाले की नीति,विज्ञापन, झूठे वादों एवं वक्तव्यों से सभी घुटे हुए राजनीतिज्ञों को चालबाजी में पीछे छोड़ दिया है। आधी-अधूरी रामायण एवं कृष्ण कथा पढ़-सुन कर ये खाँसने वाले चश्मिश राजनीति में स्वयँ को राम और कृष्ण समझने लगे हैं। शायद इसीलिए कहा गया है कि चोरों का दिमाग बहुत ज्यादा सक्रिय होता है। ये जनाब मीडिया, पुलिस,ई डी, सी आई डी, सी बी आई, के अलावे कोंग्रेस के चतुर खिलाड़ी को भी झाँसे में डाल अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। कभी किसी सवाल का सीधा जवाब इनके पास नहीं होता है। हिन्दुओं की दुकानों ,घरों, गाड़ियों को जलाने वाले कुछ मानसिक रोगी हत्यारे मुसलमानों की तरह ही खेजरीवाल भी गलत दिशा में भटके हुए, सक्रिय, झूठे, मँजे हुए, अतिनिपुन अभिनेता हैं जिनके सामने बॉलीवुड के सभी अभिनेता हल्के हैं।
फिल्मों के अभिनेता तो सिर्फ पर्दे पर अभिनय करते हैं परन्तु खेजरीवाल वास्तविक जीवन में उन सभी प्रसिद्ध अभिनेताओं से भी श्रेष्ठ अभिनय करते हैं। ऐसे राजनितिज्ञों के लिये हिन्दू त्यौहार भी राजनीतिक वोट भुनाने का मुद्दा है, जिसके लिए घोटालूवाल रंगबदलूवाल भी बन जाते हैं। वस्तुतः जैसे ईरान की अमौहाजी का नाम 'गिन्नीज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' में दुनियाँ के सबसे गन्दे आदमी के रूप में शामिल हो गया है वैसे ही 'फ्री के वादों वाला,अनेकानेक घोटाला वाले खेजरीवाल का नाम भी 'अतुलनीय-धूर्त, चतुर-गिरगिटी घोटालूराम' जैसी उपाधि से खेजरीवाल को भी सम्मानित करना चाहिए।