Confront Jihadists

चलते चलाते :जीवन कितना सस्ता?

कहीं युद्ध तो कहीं हादसा,
मानव जीवन कितना सस्ता?

नाम दिया मजहब इस्लाम,
अन्यों का कर काम-तमाम।



लूट-पाट, जहिलता, हत्या,
घृणित-नृशंसता औ बर्बरता,

पशु समान घातक आतंकी,
बन निर्लज्ज है शोर मचाता।


दिए दुहाई ! मानवता की,
दुनियाँ से अनुदान है लेता,

पाल रहा जाहिल आतंकी,
ये जिहाद है उन्नति करता।


मूर्ख बन रहे, देश समर्थक,
क्रूर भेड़िये! पाल निर्रथक,

दुनियाँ भर में फैल निरंतर,
कैंसर- सा इस्लाम भयंकर।


भटके हैं या बिके हुए हैं?
परे बहुत ये चले गए हैं,

मानवतावादी तथ्यों से,
क्या ये अवगत नहीं हुए हैं?


विश्वमंच पर दोहरी भाषा,
आतंकतंत्र के मोहरे जैसा,

शर्मसार करता मानवता
अंतर्राष्ट्रीय संघ का नेता।


कहीं है हिन्दू, कहीं यहूदी,
कहीं ईसाई, कहीं पे यजीदी,

कहीं दलित तो कहीं विरासत,
ध्वस्तीकरण जिहादी मकसद।


पापपूर्ण इस्लाम की हरकत।
हत्या-पाप-ध्वन्स ही मजहब।

बनके सतर्क न समझ सके तो।
कल के शिकार, तुम इनके हो!
II
डॉ सुमंगला झा।

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