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आज के रक्तबीजों का वध कैसे हो ?

माँ दुर्गा का अवतार कब हुआ था यह तो निश्चित रूप से पता नहीं लेकिन भगवान् राम ने देवी शक्ति की और भगवान् कृष्ण ने स्वयं और अर्जुन से भी माँ भगवती की आराधना किया और कराया था। उस समय का महिषासुर अलग अलग देवी देवताओं का वरदान लेकर उसका दुरूपयोग कुछ इस तरह किया कि स्वयं देवता गण भी उसके प्रकोपों से त्रस्त हो गए। फिर भगवान् विष्णु तथा त्रिलोकीनाथ की कृपा से सभी देवताओं ने मानव कल्याण के लिए माँ भगवती का आवाहन और आराधना की और सबों ने अपनी अपनी शक्ति प्रदान कर अपने अस्त्र शास्त्र दिए और महिषासुर मर्दन का प्रयोजन बताया । यह तो महिषासुर संग्राम के समय ही जगद्जननी को पता चला कि उस असुर के रक्त बूँद से एक और असुर उत्पन्न हो जाता था। अतः माँ दुर्गा ने महादेव की स्तुति कर माता काली का आवाहन किया और फिर रक्तबीज का समूल वध कर विश्व शान्ति की स्थापना की।

उपरोक्त विवरण एक ऐसे समयांतराल का है जो कालचक्र में स्पष्ट रूपेण उद्धृत नहीं है लेकिन आज का रक्तबीज ? कलियुग में एक अलग ही राक्षस पैदा हुआ था जो स्वयं तो मर गया लेकिन रक्तबीज छोड़ गया है जिसकी प्रवित्ति भी कुछ वैसी ही है । यह मानव धर्म का शत्रु है। आज विश्व में एक वैसी ही राक्षसी वृत्ति का उद्भव हो गया है I इसका विनाश कैसे हो ?

सातवीं सदी में एक ऐसा राक्षस उत्पन्न हुआ जिसे अरब क्षेत्र के अनेकानेक देवी देवताओं के अनुष्ठान व पूजा करने वालों से अत्यंत घृणा थी । उसने अपना ही एक अलग राक्षस धर्म बनाया और उन देवी देवताओं की पूजा करने वालों को वाध्य कर दिया कि या तो वे लोग उसकी राक्षसी धर्म को अपनाएँ या फिर उनका वध कर दिया जाएगा। उस राक्षस ने समस्त अरब जातियों का संहार कर दिया। उनके मंदिरों को ध्वस्त कर डाले, उनकी देवी देवताओं को तोड़ डाला और जिन्होंने राक्षसी धर्म को अपनानें से इंकार किया उन सारे लोगों का नरसंहार कर दिया और उनके बहू बेटियों का अपहरण कर अपनी सेना की विलासिता में वैश्यावृत्ति में झोंक दिया।

वह राक्षस स्वयं तो मर गया लेकिन अपना राक्षसी धर्म छोड़ गया है जिससे आज विश्व मानवता त्रस्त है। तलवार के बल पर उसके अनुयायी भी अपना खलीफत बनाकर अन्य धर्मावलम्बियों को वैसे ही सताते रहे जैसे सातवीं सदी का वह राक्षस जिसे वे और उनके ख़लीफ़े अपना पैगम्बर मानते थे। उन ख़लीफ़ों ने भी वही नरसंहार करना शुरू कर दिया जो उनके पैगम्बर करते थे। अन्य धर्मावलम्बियों का मार काट, उनके स्त्रियों का अपहरण और अन्य देशों-प्रदेशों में राक्षसी धर्म का थोपना। उनके वंशज भी राक्षस ही बने। उन्होनें ईसाईयों और यहूदियों का भी बहुत प्रतारण किया तथा पारसियों का तो लगभग समूल विनाश।

उन्होंने भारतवर्ष में भी बहुत मार-काट मचाया, हिन्दुओं पर अत्यधिक अत्याचार किया लेकिन हिन्दू धर्म का नाश नहीं कर सके। हिन्दू धर्म की जड़ें काफी गहरी हैं ।आज हिन्दू फिर से फल फूल रहे हैं। उनका विश्व शांति का मन्त्र पुनः दिक्दिगन्त गूँज रहा है लेकिन आज के रक्तबीजों को उन हिन्दू धर्मावलम्बियों से उसी तरह की घृणा है जैसा उसके पैगम्बर राक्षस को अन्य धर्मों से था।

राक्षसी धर्म को मानने वाले आज बहुतेरे देश हैं। उनका मानना है दूसरे धर्मों को नष्ट करो और विश्व में राक्षसी धर्म फैलाओ। साल २०१४ में एक इराकी राक्षस अल बग़दादी ने विश्व खलीफत की घोषणा की और विश्व के लगभग सारे राक्षस एक जुट हो गए। एक धर्म युद्ध सा आरम्भ हुआ जो अब तक चल रहा है। यह पापी राक्षसों के पापकृत्य के समर्थक अधर्म और मानवीयता के समर्थक धर्म के बीच युद्ध है। राक्षस अल बग़दादी तो मारा गया लेकिन वह महिषासुर जैसे ही रक्तबीज छोड़ गया है जिसे जितना मारो वह फिर से उत्पन्न हो जाता है। उन्हों ने विश्व भर में मार काट मचा रखी है। हाल ही में उनहोंने येजीदी मूल के लोगों का नरसंहार कर हजारों बहू-बेटियों का ठीक उसी तरह यौन शोषण किया जैसा उनके पैगम्बर राक्षस ने किया था। भारत के कश्मीर प्रान्त में भी उनहोंने राक्षसी धर्म-क्षेत्र बनाने के लिए मार काट मचा रखी है।

ये राक्षस अपने ही वन्धु वान्धवों के शरीर में आत्मघाती विस्फोटक / बम बांधकर दूसरों के बीच विस्फोट कर देते हैं। इनको बचपन से ही कुछ इस तरह मतिभ्रष्ट किया जाता है कि अन्य धर्मावलम्बियों को मारने के लिए ये कुछ भी कर गुजरते हैं। इन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि अगर ये दूसरे धर्म के लोगों को आत्मघात से मारेंगे तो इनको नर्क में भी यौन शोषण के लिए छह दर्जन हूरें मिलेंगी। ये बेवकूफ इतना भी नहीं समझते कि स्वर्ग या नर्क में कोई दैहिक रूप नहीं होता, आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। फिर इन हिजड़ों को अगर सैकड़ों हूरें मिल भी गयीं तो ये क्या करेंगे ? व्यर्थ में ही उनहोंने अपना अमोल जीवन दूसरों से घृणा करने में ही गँवा दी। खुद तो मारा ही गया और अपने आत्मजों को रोता छोड़ गया।
इस राक्षसी अधर्म की यह प्रवृत्ति अभी भी जारी है। हाल के ही वर्षों में ईराक अफगानिस्तान सीरिया आदि देशों में इनका मर्दन हुआ है लेकिन यह बेशर्मों की जाति है, मार खानें का आदी है।

आज कल अफ्रिका के बहुतेरे देश और भारत उनके निशाने पर है। भारत में भी राक्षसी धर्म के बहुतेरे वंशज हैं जो मन ही मन चाहते हैं कि हिन्दू धर्म का विनाश हो जाए। अभी भारत में उनकी संख्या कम है अतः खुले आम वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं।वे अपने साथ बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लगभग ५ करोड़ से अधिक राक्षसों के वंशजों को भी रखे हुए हैं और अपनी जनसंख्याँ दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ाए जा रहे हैं। ये राक्षस आशा करते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब उनकी जनसंख्याँ इतनी हो जाएगी कि हिन्दुओं का अंत कर सकें। हिन्दुओं में आपस में फूट और राजनैतिक ईर्ष्या कुछ इतनी अधिक है कि वे यह समझ कर भी चेतना नहीं चाहते। अगर यहाँ का विकृत प्रजातंत्र ऐसे ही चलता रहा तो हिन्दुओं का विनाश उसी तरह होगा जैसा पारसियों का हुआ था।

इस रक्तबीज से विश्व का कल्याण कैसे हो ? माँ भगवती का शायद पुनः आह्वान करना होगा। लेकिन हम भविष्य पर ही टकटकी लगाए नहीं रह सकते। अपनीं सुरक्षा के लिए सिर्फ सरकार या दूसरों पर आश्रित नहीं रह सकते। अगर प्रजातंत्र की सरकार किन्हीं भी कारणों से इन राक्षसों का विनाश करने में असमर्थ रहती है तो हमें इनके विरूद्ध अस्त्र-शस्त्र उठाना ही होगा।

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