Deformed spine

एक कुबड़ा चिंतन

पंजाब के किसानों का हाल बुरा है,

गहरी खाई और कुँए के बीच खड़ा है।

आंदोलन में न जाने पर जुर्माना दिया है।

आंदोलन जारी रखने के लिए भी खर्च दिया है। तमाशा ये कि गुण्डों का साथ न दो तो वे मारेंगे साथ दो तो आगे भी बिचौलियों, आढ़तियों, वामपंथियों के हाथों मरते रहेंगे। गरीब परेशान है गुण्डों, आढ़तियों, बिचौलियों और अमीरों के अमीर नुमाइंदों से।आम जनता परेशान है मौकापरस्त रंगबदलू दोगले नेताओं से । किया क्या जाए इन परेशानियों से बचने के लिए,मेडिटेशन, चिंतन,योग या गालियाँ दी जाये, मौका परस्त देश के दुश्मन नेताओं को,उनके रहनुमाओं को या चुप बैठा जाये, गूंगो या नपुंसकों की तरह ?

वर्णसंकर, दोगले नेताओं का जमावड़ा भारतीय समाज की ऐसी अंतहीन समस्या हो गयी है जिसका समाधान असम्भव सा लगता है। परंतु ये भी सच है कि 'मरता क्या न करता' I आज मध्यवर्गीय विशेषतः हिन्दुओं की स्थिति कुछ राज्यों में दयनीय है,काफी परेशानियों का सामना करते हुए अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए संघर्षरत है। जहाँ संघर्ष नहीं कर पा रहे हैं, वहाँ से पलायन के लिए मजबूर हैं।

मुफ्तखोरी की आदत कुछ 'तबकों' को ऐसी पड़ी है कि वे उसी नेता को वोट देते हैं,जो उन्हें मुफ्त की सुविधाएं देने का वादा करती है।भले ही बाद में ऐसे नेता उन्हें धोखा ही देते हैं,उन्हीं भोली भाली जनता का खून भी चूसते हैं। क्यों कि नेताओं के लिए वादा निभाना जरूरी है,यह तो पश्चिमी नकलची भारतीय संविधान में नहीं लिखा है।

क्या मुफ्त का राशन-पानी, बिजली, शिक्षा, विभिन्न-अनुदानों की खैरात ये नेता अपनी जमा पूँजी से देते हैं? नहीं! ये उन मध्यम वर्गीय लोगों की मेहनत की कमाई के टैक्स, उनका शोषण कर जमा किये गये पैसे या देश के विकास के लिए जो बजट होते हैं, उसी को खैरातों की तरह अपने चहेते तबकों के लोगों बाँटते हैं I गरीब और जरूरतमंद हिन्दुओं को यहाँ भी उपेक्षा का ही सामना करना पड़ता है। खेजड़ीवाल ऐसे कुछ नेता वर्ग विशेष के लिए कुछ ज्यादा ही उदार हैं, जहाँ धर्म देख कर हत्यारों को भी लाखों करोड़ों अनुदान टैक्स के पैसे से दिए जाते हैं और हिंदु समुदाय के अंकित शर्मा, पाटीदार, रिंकू शर्मा के अलावे मुस्लिम दंगाईयों द्वार मारे गए हिन्दुओंके परिजनों को मुआवजों की जगह, मुआवजा माँगने पर धमकियाँ दी जाती हैं। चार बीबी चौबीस बच्चों वाले घुसपैठियों,बांग्लादेशियों और विभिन्न जमातियों को उनके वोट के लोभ में मुफ्त में सारी सुविधाएं तथा विशेषाधिकार देते रहते हैं।

गरीब हिन्दू अगर मुस्लिम समुदाय के बीच अल्पसंख्यक हैं तो अकारण ही सताए जाते हैं, मौलिक सुविधाओं से वंचित डर के वातावरण में बेबस हो जीते हैं, बहू बेटियों की अस्मिता खतरे में होती है, लड़कों को दब कर रहना होता है अन्यथा ये मार दिए जाते हैं, पर खुजलीवाल वाल ऐसे जहरीले साँप सम्प्रदाय के नेता यहाँ भी हिन्दुओं को ही डंसते हैं। मुस्लिम नेता या दबंगों से हिन्दुओं को प्रताड़ना और धमकी ही मिलती है I सुविधायें तो नाममात्र ही कुछ मिलती… अगर कभी कुछ मिलती है तो सिर्फ दिखावे के लिए। उदाहरण के लिए जिहादियों ने कोंग्रेसी नेता के घर जलाने के अलावे बहुत से हिन्दुओं की गाड़ियों को जला दिया फिर दिखावे के लिए पंक्तियों में मन्दिर के सामने खड़े हो गए ताकि न्यूज में बताया जा सके कि उन्होंने मंदिर बचाया है। मंदिर बचाया किन लोगों से ? उन्हीं जिहादियों से जिन्होंने हिन्दुओं की संपत्ति के साथ पुलिस स्टेशन भी जला दिया है। दिल्ली में अगर उदार हिन्दूकिसी मुस्लिम को किराएदार रखते हैं तो ये मुस्लिम किराएदार हंगामा मचाते हैं, धमकियाँ देते हैं, मकानमालिक की बेटियों के साथ ही बदसलूकी करते है। किराए की माँग करने पर मकान मालिक या मालकिन को ही मार कर उनका घर भी लूट लेते हैं। इनमें से ज्यादातर तो पकड़े ही नहीं जाते क्योंकि मुस्लिम मोहल्लों में मजहबी लोगों द्वारा घरों या मस्जिदों में छुपा दिए जाते हैं। कहीं अगर पकड़े गए तो सारे समूह इकट्ठे हो मुस्लिम माइनॉरिटी कार्ड भजाने के लिए बिके हुए पत्रकारों के साथहो-हंगामा मचाते हैं, पुलिस को ही बदनाम करते हैं, किसी न किसी प्रकार से जमानत पर बाहर आ कर पुनः पाप, चोरी, क़त्ल आदि के ही कार्य में लिप्त हो जाते हैं। क्योंकि इन मज़हबियों का आसमानी किताब उन्हें यही पतित कार्य करना सिखाता है ताकि उन्हें जन्नत में हूरें मिले सके।

जिंदगी से परेशान लोगों को प्रायः यह कहते सुना जा सकता है कि 'मेरे एक तरफ कुँआ है, दूसरी तरफ खाई है, आगे समस्याओं की सौगातें हैं, पीछे दुश्मनों की तलवारें हैं। क्या किया जाए…? हम मध्यम वर्गीय नाम के बहुसंख्यक हैं, जो किसी भी विशेष सुविधाओं के वगैर भी सिर्फ इस्तेमाल होने के लिए मजबूर हैं ? ईमानदारी से टैक्स देने वाले बेबस हिन्दू हैं, जिनके द्वारा दिये गए मंदिरों के दान के पैसों को भी स्थानीय सरकारों द्वारा लूटा जाता है । 'कॉमन गुड कॉज' के नाम पर मदरसों और चर्च में ऐसे लोगों में चालाकी से बाँट जाता है जो हिन्दुओं, हिंदुत्ववादी विचारधारा तथा सनातन धर्म का खात्मा करना चाहते हैं…। चर्च एवं मस्जिदों का एक भी पैसा किसी हिन्दू को 'कॉमन गुड कॉज' के नाम तक नहीं दिया जाता है। कोविद काल में एक बोरी चावल के लिए या अंग्रेजी क्रिश्चियन मिशनरी में एक बच्चे की मुफ्त शिक्षा या बच्चों की फ़ीस माफ करने के लिए पूरे परिवार को हिंदू-धर्म छोड़ क्रिश्चियनिटी अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है। ये सभी नव विकसित रिलीजन या मज़हब विशेष मकसद के तहत धूर्तता से परिपूर्ण अमानवीय राक्षसी संस्कृति के समर्थक है। आये दिनों हिन्दुओं की हत्या करना इनका मज़हबी कृत्य है। संक्षेप में मस्जिदों, मदरसों तथा चर्च में हम अपनी ही मौत को आमंत्रित करने के लिए, हिन्दुओं के ही हत्यारों को तैयार करने के लिए पैसे देते हैं।

हमारे संविधान में क्या-क्या निहित है ये तो हमने नहीं पढ़ा है परन्तु इतना ज्ञातव्य है कि यह अंग्रेजों की दी गयी पश्चिमी संविधान की नकल का ही 'परोसा' है। संविधान लिखने वालों ने चाणक्य नीति, मराठा साम्राज्य, अहोम साम्राज्य, गुप्ता साम्राज्य के अलावे भी अन्य हिंदुस्तानी मिट्टी से जुड़े साम्राज्यों का गहन अध्ययन कर अगर संविधान बनाया होता तो यह यहाँ की मिट्टी, संस्कृति, सभ्यता के ज्यादा अनुकूल और मौलिक होता। परन्तु क्या किया जाये ? जो कुछ बचा है उसे तो सरकार बचाने की कोशिश करे ! 'बीती ताहि बिसारिये, आगे की सुधि लेय'।

आज पाश्चात्य एवं मध्यपूर्व की संस्कृतियों से प्रताड़ित भारत की मिट्टी की संतानें अपनी सांस्कृतिक पहचान की दुविधा में जी रही हैं, प्राचीन शिक्षा पद्धतियों को खत्म कर बच्चों को संस्कृत तथा मिट्टी की संस्कृति से दूर कर दिया गया है। चरित्र के विकास, नैतिकता के ज्ञान की जगह पश्चिमी एवं मध्य एशिया की नवविकसित सभ्यता, अर्थ की महत्ता, धोखाधड़ी, क्रूरता आदि को श्रेष्ठ समझने एवं समझाने का प्रयास कर रही है। मस्जिदों और चर्च द्वारा प्रसारित शिक्षानीति में ईसाइयत और जिहादी मानसिकता को परोस कर हिन्दुओं और हिंदुधर्म के प्रति नफरत की भावनाओं को फैलाने की भरपूर कोशिश की जाती है।भारत के गौरवशाली इतिहास एवं वेदों के ज्ञान को पढ़ाने पर रोक लगा विद्यर्थियों को अपनी मिट्टी के जड़ से जुड़े धर्म और संस्कृति से दूर करने का प्रयास किया जाता है।

शिक्षा, भाषा, संस्कृति, सभ्यता एवं उनका विकास मानव कल्याण के लिए हो तो स्वागत के योग्य है परन्तु जब नव विकसित संस्कृति अन्य पौराणिक सभ्यताओं पर प्रत्यारोपित होकर मानवीयता का विनाश करता हो तो वह सर्वथा त्यागनीय है। चारों वेद, अट्ठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद, जातक कथाओं के अलावे भी जाने कितने ज्ञान संस्कृत एवं भारतीय भाषाओं की पुस्तकों में भरे पड़े हैं, जिससे हमारे भारतीय बच्चे सभ्य और उदार समाज का निर्माण कर सकते हैं। किन्तु कुछ धूर्त और दोगले शिक्षाविदों के कारण भारत के बच्चे अपनी धरती के इन उच्च कोटि के ज्ञान, संस्कार, संस्कृति, परम्पराओं के तर्कपूर्ण ज्ञान एवं अध्ययन से ही अनजान हैं।

कुरान, बाइबल, अंग्रेजी पुस्तकें, अरबों के युद्धों की नीतियों से जो कुछ भी कोमल हृदय और अबोध मस्तिष्क को मिल रहा है, वह क्या मानवीयता के मूलभूत सिद्धांतों को विकसित करने के लिए पूर्ण समर्थ है ? कतई नहीं I यह तथ्य विचारणीय है। अराजकता, क्रूरता, हिंसक प्रवृत्तियों के पोषक किसी भी मझहब या रिलिजन का सम्पूर्ण विश्व में प्रतिकार नितान्त आवश्यक है।

विश्व कल्याण के लिए परिवर्तन प्रकृति का नियम है, जिसे जब-तब समाज की स्वीकृति भी मिलती रही है। संक्रमण काल शासकीय सत्ता धारियों के लिए परिवर्तन स्वीकार करना कठिन होता है क्योंकि उन्हें अपनी स्वार्थी वृत्तियों पर खतरा नजर आता है। धर्म, मझहब, रिलीजन, जाति, गुटबन्दी के राग अलापना, दंगे-लूटपाट आदि को बढ़ावा देना राजनीतिक पार्टियों का, दबदबा कायम रखने का हथियार बन गया है। अभिव्यक्ति की आजादी, धार्मिक स्वतंत्रता, पत्रकारिता की स्वतंत्रता, धरना प्रदर्शन, भारत में शक्तिशाली गुण्डों, वामपंथी पार्टियों, देशविरोधी ताकतों द्वारा व्यक्तिगत जागीर या हथियार की तरह हिन्दुओं के खिलाफ, सनातन वैदिक संस्कृति के खिलाफ इस्तेमाल में लाई जाती है।

गरीब और अशक्त जनता जागरूकता के बावजूद भी मुश्किलें भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं क्यों कि संविधान में निहित अधिकार और सुविधायें भी गुण्डों और नेताओं के लिए फायदेमंद हथियार बनते जा रहे हैं। उदाहरणों के रूप में विभिन्न संगीन अपराधों में लिप्त,भ्रष्टाचार में लिप्त,बलात्कार,जबरन वसूली करने वाले नेता,गुण्डे आदि खुले आम घूमते,चुनाव लड़ते,म्युनिसिपल, मुखिया, लोकसभा,राज्यसभा आदि में संवैधानिक पदों पर विराजित हो जाते हैं और देश को बर्बादी की ओर ले जाते हैं।

एक सामान्य सा तर्क है-'जब तक अपराध सिद्ध होकर, सजा नहीं मिलती,व्यक्ति निर्दोष है'। परन्तु यह तर्क सिर्फ शक्तिशाली गुण्डों और नेताओं के लिए ही है। किसी गरीब या मध्यवर्ग के व्यक्ति निरपराध हो या अपराधी किसी भी प्रकार का धब्बा या इल्जाम लगने पर जेल में डाल दिये जाते हैं, उनकी नौकरी छिन जाती है,मिलती नौकरी छूट जाती है, विद्यर्थियों का भविष्य बर्बाद हो जाता है, जमानत के लिए सैकड़ों चक्कर काटने पड़ते हैं, परन्तु गुण्डों ,देशद्रोहियों, हत्यारों आदि को बचाने के लिए,उनकी जमानत के लिए कुछ शक्तिशाली नेताओं द्वारा जमीन आसमान एक कर दिया जाता है।

न्यायिक प्रक्रिया को धत्ता दिखाते हुए, गणतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए प्रधानमंत्री मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय को भी गालियाँ देते हुए, अपराध सिद्ध होने के बावजूद स्वतंत्र घूमते हुए, असामाजिक कार्यों में लिप्त नेताओं की श्रृंखला काफी लंबी है। ये नेता आये दिनों बस अपनी बेहूदी टिप्पणियों के लिए इतने प्रसिद्ध हो चुके हैं कि नामों को गिनाने की आवश्यकता भी नहीं है।

बेबसी तो मध्यवर्गीय सभ्य हिन्दुओं, सभ्य मुस्लिमों, सभ्य ईसाइयों या किसी भी सम्प्रदाय के सभ्य एवं ईमानदारी से कर देने वाले लोगों के लिये है जो गधों की तरह जाने कितने गुण्डे, नेताओं, देशद्रोहियों, हत्यारों, जेल के कैदियों के आर्थिक खर्चों का बोझ ढोते हुए कुबड़े होते जा रहे हैं। ये कुबड़ापन कब सम्पूर्ण हिन्दुओं के साथ-साथ अन्य अच्छे धार्मिक, अच्छे रिलिजियस, अच्छे मज़हबी सम्प्रदाय के लोगों को भी रोगी बना, उन्हें गलत रास्तों या मौत के मुँह में पहुँचा देगा… पता नहीं!

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