Difficult days for Hindus

चलते चलाते : मुश्किल में हिंदू

जातिवाद,व्यवसाय व्यवस्था ,एक-दूसरे पर निर्भर था
यह समाज भी बंधा हुआ था,आपस में ये जुड़ा हुआ था।

संविधान में चालाकी से, कुछ ऐसा बांटा हिन्दू को,
दिखा के नीचा एक-दूजे को,इसने बढ़ा दिया दूरी को।

आरक्षण के मंत्रों ने तो,अपरिचित व्यवसाय में उलझा,
कार्य-कुशलता की क्षमता को,अनजाने ही घटा दिया है।

आज सवर्ण बहुत बेबस हैं, खतरे में अस्मिता पड़ी है।
खत्म सनातन को करने को, दुश्मन घेरा डाल खड़ी है।

उठा पटक की राजनीति में, पिसती जनता घुन जैसी है।
करें प्रतिक्षा थकते - जीते, तय सरकार बदल जाती है।

मत हासिल करने के हेतु , लोभ नौकरी का ये देते,
सत्ता में ज्यों ही ये आते, मार के डन्डा युवा भगाते।

पंजाब औ बिहार की जनता, ना रो पाते, न जी पाते।
उम्मीद लिए सूनी आँखों में, असमंजस में साँसे लेते।

'ये'बेबस लाचार आमजन, अफसर,नेता बीच फंसे हैं।
जड़-जमीन भी गँवा बिचारे, दफ्तर-दफ्तर भटक रहे हैं।

दलित,सवर्ण सारे ही हिंदू , गुंडे, मुल्लों के ग्रास बने हैं।
घुसपैठिए,असंख्य आतंकी, भारत के अभिशाप बने हैं।

बढ़ी हुई मुस्लिम जनसंख्या, दंगाइयों का पर्याय बनी है।
आज यहाँ भारत में भी तो,'ये' एक कौम गद्दार बनी है।

मुश्किल में है देश का हिन्दू ,आफत चारों ओर खड़ी है,
इस्लाम और ईसाई दोनों , हिन्दुओं को खाने में लगी है।

डॉ सुमंगला झा।

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