हाँ ! उन दिनों जब मैनें एक आलेख प्रकाशित किया था "हर भारतीय हाथ को मिले काज" (Works to all Indian Hands: Govt unable or unwilling? The Counterviews; Issue 2:04; pp-16; www.thecounterviews.com) और इसका एक प्रारूप निर्मला सीतारमण जी और मोदी जी को भी भेजा था तो शायद उन्हें अच्छा नहीं लगा और इसीलिए कचरे के डब्बे में फेंक दिया होगा। आखिर सत्ता का कुछ तो असर होना चाहिए।
लेकिन फिर… वे पिछले एक वर्ष से ज्यादा समय से ८० करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन पानी क्यों बाँट रहे हैं? आखिर मोदीजी ऐसा कर क्यों रहे हैं ? इससे अच्छे तो हमारे ‘पप्पूजी’ निकले। चुनावी वादा कर लोगों को बेवकूफ बना, उन राज्यों से रफ्फू चक्कर हो लिए। एक समय के युवराज रहे उस ‘बूढ़-बच्चे’ को तो कोई याद भी नहीं दिलाता कि उन्होंने चार राज्यों के युवाओं से सरकारी नौकरी देने का वादा किया था और जब तक वह न मिले बेरोजगारी भत्ता तो तय था ही। उनका तो शासन पाँच राज्यों में था, वल्कि अभी भी वे पाँच राज्यों में या तो स्वयं के बल पर या किसी और के कंधे पर विराजमान हो सत्ता की रेबड़ी खा रहे हैं । वहाँ तो राहुल मियाँ सबों को रोजगार दे सकते थे या दे सकते हैं ।
कहते हैं "होनहार बिरवान के हॉट चिकने पात"। राहुल गांधी में वो सारे लक्षण विद्यमान हैं कि वह झूठों का बादशाह बनेगा। बहरहाल… कांग्रेस-शासित प्रदेशों में न तो युवाओं को सरकारी नौकरी मिली, न बेरोहजारी भत्ता और न ही उन्हें न्याय मिला। झूठे वादों से जूझ रहे युवाओं में तो एक समय इतना गुस्सा था कि इक्के-दुक्के लोग 'झूठबोला' पप्पू की टांग तोड़ने तक की बात कर रहे थे, लेकिन धीरे धीरे सब शांत हो गए। सबों को समझ में आ गया कि राहुल गांधी किस मिट्टी का बना है, उसके द्वारा किए गए वायदों की क्या अहमियत है । उन चुनावी वादों को चिर परिचित कोंग्रेसी 'चुनावी जुमला' #PappuPollPromises मानकर सब सह गए।
तो प्यारे देशवासियो ! जब कोई महा लोभी नेता या राजनितिक दल सत्ता के गलियारे से बाहर निकाल दिया जाता है तो उसे जनता की हर दुर्दशा दीखनें लगती है चाहे कुछ बढ़ चढ़ कर ही क्यों न दिखे। लेकिन जिस दिन ये बरसाती नेता या दल सत्ता में आ जाती है वह सबकुछ भूल कर अपनी तिजौरी भरनें लगता है। क्या बिडम्बना है कि सत्तर के दशक का ‘चप्पल छाप’ लल्लू बिना किसी ज्ञात श्रोत की आमदनी के आज सैकड़ों करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। कांग्रेस की राजमाता के विदेशी बैंक खाते में बिना किसी कमाई के अरबों की नकदी है। यह बात जब २०१३ में उजागर हुआ था तो अन्ना हज़ारे को चोर बताने वाले कोंग्रेसी नेता मनोज तिवारी को सोनिया गांधी की फटकार पडी थी कि वाशिंगटन पोस्ट के उस खबर पर लीपा पोती की जाए। इसी प्रकरण में कल का 'उड़ता पंजाब' के युवा आज भी उड़ते ही दीख रहे हैं। तो अब कोई बताए कि किस पर विश्वास किया जाए ? झूठबोले राहुल पर, पढ़े लिखे या अंगूठा छाप यदुकुमारों पर या वास्तव में देश और देशवासियों के हित में कार्यरत मोदी जी पर ?