Temples converted to mosques

इस्लाम और राक्षसी प्रवृत्ति

राक्षस,असुर, दैत्य, दानव और राक्षसी वृत्ति या पाशविक प्रवृत्ति एक विचारधारा है जो दैविक शक्तियों के साथ ही उत्पन्न हुआ था। एक ओर जहाँ दैविक शक्तियाँ, मानव या यूं कहिए समस्त जीव-कल्याण, परोपकार तथा धर्म के प्रति समर्पित थीं; वहीं राक्षस जीवों / मनुष्यों को कष्ट, दुःख, संताप आदि से त्रस्त करने में और अकारण या निज दम्भ, अहंकार या स्वार्थ के लिए या फिर अपने वर्चस्व के लिए दूसरों को आहत या नरसंहार करना भी नहीं छोड़ते थे। ऐसी ही एक विचारधारा इस्लाम में है जिसके संस्थापक मुहम्मद ने अपने ही जाति कुरैश समेत दर्जनों अरब जनजाति का इसलिए नरसंहार कर दिया क्योंकि उसे छल-बल या तलवार के जोर पर इस्लाम फैलाना था। मुहम्मद द्वारा लिखे / लिखाए गए कुरान में इस्लाम के नाम पर गैर-मुस्लिम को प्रताड़ित करना, उनके औरतों बच्चों को बंधक बना लेना या मुहम्मद के नाम पर धर्मान्धता फैलाना आदि वैध ठहराया गया है।

रावण एक प्रखर विद्वान् था लेकिन उसकी कुछ पाशविक प्रवृत्तियों ने उसे राक्षस बना दिया। हमारे लगभग सारे ग्रंथों में ऐसे अनेकों दानवों का वर्णन है जो जन्म और प्रौढ़ावस्था में तो सिद्ध मानव थे लेकिन अधर्म, पिशाची और पाशविक प्रवृत्ति अपनाकर दानव बन गए। पूजा-पाठ करने वाले साधू-संतों व देवी-देवताओं से उन्हें सख्त चिढ होती थी (पढ़ें "पिशाची किताब" https://articles.thecounterviews.com/articles/demonic-book-quran/)। माना जाता है वे मनुष्यों को भी खा जाते थे। कलियुग में मुहम्मद द्वारा बनाए इस्लाम में भी बहुतेरे ऐसी ही कुप्रथाएं हैं जिसे राक्षसी प्रवृत्ति का माना जा सकता है। अरब जनजातियों का जबरन धर्म परिवर्तन और ऐसा न करने वालों का नरसंहार, उनकी महिलाओं का उत्पीड़न तथा उनके मंदिरों और मूर्तियों का तोड़-फोड़ को किसी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता...न ही तत्कालीन वर्षों में और न ही आज । फिर आंशिक रूप से ध्वस्त किए अन्य धर्मों के मंदिरों, पारसियों के अग्निवासरों, ईसाइयों के गिरिजाघरों, बौद्धों के पगौड़ों आदि को जिस तरह अपना मस्जिद बनाया यह तो अत्यंत घृणित था और आज भी इसे घृणित ही माना जाता है (read 'Islam and Many Ayodhyas of World' https://articles.thecounterviews.com/articles/islam-and-many-ayodhyas-of-world/) और सबसे नींदनीय है आधुनिक युग में उन कुकृतियों को सही ठहराना...जो आज के मुसलमान कर रहे हैं। यह बिलकुल समझ के परे है कि इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा हिन्दू धर्म के प्रतीकात्मक मंदिरों (जैसे राम जन्मभूमि कृष्ण जन्मभूमि, ज्ञानवापी आदि) के कुछ अंशों को तोड़कर बनाए मस्जिदों को, जिनसे करोड़ों हिन्दुओं की आस्थाएँ जुड़ीं हैं, मुट्ठी भर भारतीय मुसलमान क्यों बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं।

आधुनिक काल में विद्वानों का मानना है कि भगवान एक ही है जो पूरे ब्रह्माण्ड का सर्वेसर्वा है उसे हम चाहे जिस भी नाम से पुकारना चाहें। यहीं द्वैत और अद्वैतवाद भी आता है जिसकी व्याख्या अन्यत्र है। उस परमात्मा ने जिस तरह से सृस्टि की रचना की और उसका पालनहार बना है, हिन्दू उस सर्वेसर्वा को आदि काल से ही तीन मुख्य रूप में जानते है; पहला सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा, दूसरा उसके पालक विष्णु तथा तीसरा जीव मात्र के उत्पत्ति व विनाशकर्ता शिव-महेश; हालांकि ये तीनों एक ही हैं। उसी सर्वेसर्वा को आज कोई ऑलमाइटी, कोई अल्लाह तो कोई कुछ और नाम से पुकारते हैं। युगों युगों से ही मनुष्य मात्र अनेकों मूर्ति पूजन (जैसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इष्टदेव, सूर्यदेव, अग्निदेव वायु देव श्रष्टादेव आदि) द्वारा अनेकानेक पूजा विधि व्यवहारों से जुड़े रहे हैं। इन्होंने किसी मनुष्य के द्वारा यह सन्देश नहीं भेजा कि तुम अगर मेरे अलावा किसी और देवता को मानोगे तो मैं तुम्हें दंड दूंगा (जैसा कुरान में मुहम्मद ने कहा है )। वैदिक काल से ही विश्व के सारे देवी-देवताओं, या यूँ कहिए विश्व भर के देवताओं या "विश्वेदेवाः" का प्रावधान है जिससे मानव धर्म जुड़ा है। वे ईश को किसी भी रूप में पूज सकते हैं चाहे वह आर्यों (हिन्दुओं ) व अनेकों अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा मूर्ती-पूजन हो या निराकार रूप का मंत्रो द्वारा प्रतिष्ठापन । सर्वेसर्वा को किसी एक रूप में पूजने या न पूजने से कोई द्वेष विद्वेष नहीं था। अनेकों धर्म ग्रंथों जैसे वेदों पुराणों अवेस्ता तोरा पाकृत त्रिपिटका तथा कुछ हद तक बाइबिल में भी ऐसी ही आस्थाएँ वर्णित हैं।

सातवीं सदी से इस्लाम नामक एक ऐसा राक्षसी धर्म आ गया है जो किसी और धर्मावलम्बियों (जैसे ईसाई, यहूदी, पारसी या मूर्ति पूजन करने वालों) से घृणा करता है और असहिष्णुता रखता है। आश्चर्य की बात यह है कि ये लोग भारत वर्ष में ही, जहाँ वैदिक युग से ही हिन्दुओं की आस्था मूर्ति पूजन और मंदिरों से रही है, अपनी घृणास्पद, राक्षसी मानसिकता और प्रवृत्ति रखते हैं जो किसी भी तरह मान्य नहीं है। राक्षसी प्रवृत्ति वालों ने भारतवर्ष या आर्यावर्त के कई टुकड़े किए जैसे अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान बांग्लादेश जिसमें उन्होंने अधर्म को राष्ट्रीय मानसिकता का द्योतक बना दिया, जहाँ हिन्दुओं का प्रतारण तथा देवी देवताओं के प्रतिमाओं तथा मंदिरों का तोड़-फोड़ एक आम बात हो गयी है। ये राक्षस नहीं जानते की इनकी यही प्रवृत्ति इन्हें ले डूबेगी। इसीलिए करोडो लोगों का यह भी मानना है की भारत हिन्दू धर्म या भारतीय धर्म वाला एक राष्ट्र बने जहाँ मानवता का बोलवाला हो और राक्षसी प्रवृत्ति का ह्रास (पढ़ें 'भारत एक हिन्दू राष्ट्र: क्यों हो या क्यों न हो'; https://articles.thecounterviews.com/articles/india-hindu-nation-rashtra-indian-religions/) ।

कुरान मानवता के विपरीत है। यह मुसलामानों को उकसाता है कि अन्य धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम कबूलवाओ या फिर मार दो जैसा मुहम्मद ने किया था। उसने पूरे अरब जनजाति का विनाश कर दिया। फिर इस्लाम ने यहूदियों व ईसाईयों को प्रताड़ित किया और लगभग पूरे पारसियों का नरसंहार किया I इतना ही नहीं, उन्होंने भारत में ही हिन्दुओं को प्रताड़ित किया और आज भी इस्लाम थोपने के लिए पूरे विश्व में जिहाद द्वारा मार-काट कर रहा है; चाहे वह काश्मिरी पंडितों के रलीव, सॉलिव या गालिव के मार्फ़त हो या फिर यजीदियों के Convert, Flee or Die में। जो राक्षसी वृत्ति अरब में मुहम्मद द्वारा थोपा गया था, वह आज विश्व के ५७ देशों में लगभग जबरन फैला दिया गया है। इस्लाम का सबसे कुत्सित रूप उनके कुरआन में है जिसमें अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति अनादर, घृणा, असहिष्णुता, कट्टर धर्मान्धता और फासीवादी मानसिकता भरी हो (read Islamic hate, intolerance, bigotry and fascism; https://articles.thecounterviews.com/articles/islamic-intolerance-bigotry-fascism-global-caliphate/)। इस्लाम का प्रसार इसी तरह से होता आ रहा है और इसीलिए सवाल उठ रहे हैं की कुरान को भारत जैसे प्रजातांत्रिक और धर्म निरपेक्ष देश में प्रतिबंधित क्यों नहीं किया जाता है (read '60 hateful and intolerant verses of Quran' https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-1/) and https://articles.thecounterviews.com/articles/60-hateful-intolerant-verses-quran-part-2/)।

हमारे पौराणिक ग्रन्थों में भले ही हिन्दू या हिंदुत्व शब्द की चर्चा कहीं नहीं हो परन्तु धर्म और अधर्म को मानवता से जोड़कर मानव हित में सभी धर्मग्रंथों में विभिन्न लघु-कथा एवं घटनाओं द्वारा बताया गया है। कुछ हास्यपद एवं रोचक तथ्य कहानियों में जिस तरह पिरोए गए हैं वे लेखन कला में चार चाँद लगा देते हैं। वैदिक ऋचाओं तथा पौराणिक कहानियों से यह सत्य प्रतिपादित है कि दुनियाँ में सनातन वैदिक धर्म-संस्कृति-सभ्यता का विस्तार बहुत बड़े भूभाग पर था तथा इसके अलावे अन्य कोई भी धर्म-संस्कृति-सभ्यता संसार में नहीं थी। समयान्तराल में विकसित माया, ज़ोरोस्ट्रियन, यहूदी, जैन, बौद्ध, ताओ, ईसाई, सिख्ख आदि मानवतावादी उद्दात्त विचारों को प्रतिपादित करते हुए, उदार,सहयोग, दया तथा शांतिपूर्ण वातावरण को बनाये रखने, मानव उत्थान हेतु ही विकसित हुए हैं। इन सभी धर्मों में लूट-पाट, आगजनी, हत्या, बलात्कार, घृणा-पोषण, परधन अवशोषण, भ्रष्टाचार, परस्त्रीगमन, स्त्रीहरण एवं हिंसात्मक व्यवहारों को पाप माना गया है और यही कुप्रवृत्ति आदि काल से ही राक्षसों में व्याप्त थीं। बाली ने जब राम से अपना अपराध पूछा तो रामचंद्र ने सहज बानी में कहा था --

"अनुज बधू,भगिनी, सुतनारी।सुनु सठ कन्या सम ए चारी।
इन्हेहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई।ताहि बधे कछु पाप न होई।"

पुराणों में वर्णित सारे पाप-कृत्य इस्लामी मज़हबी समाज में सहजता से स्वीकृत हैं। ग़ैरइस्लामियों की औरतों को विभिन्न अमानवीय तरीकों से अपमानित कर उनके साथ अनाचार, दुर्व्यवहार, बलात्कार आदि कुकर्म करते हुए इन्हें न शर्म आती है, न ही इन्हें स्वयँ से या अपने दुष्कर्मों से घृणा होती है। ग़ैरइस्लामियों की अकारण हत्या करना तो इन जाहिलों के लिये इनके मझहब में जन्नत में इन्हें 72 हूरों को प्राप्त करने का ही साधन है। कई तथ्यों के आधार पर इस्लाम-अनुयायी समूह को क्रूर-राक्षस-मझहबी अधर्मी तो कहा जा सकता है लेकिन इस्लाम को धर्म कहना सर्वथा अनुचित ही होगा, यह सिर्फ और सिर्फ अधर्म है। कथाओं के आधार पर ऐसे उदाहरण पौराणिक पुस्तकों में भरे पड़े हैं। रामायण में जहाँ राक्षसीप् रवृतियों वाले राक्षसों का संहार किया गया है वहीं महाभारत का युद्ध धर्म स्थापना के लिए अधर्म पर चलने वालों तथा अधर्म समर्थकों के संहार का महाकाव्य है। इन महान ग्रंथों में आत्मरक्षा, गौरक्षा, स्त्रीरक्षा, साधुसंतों एवं अबोधों की रक्षा तथा मानव कल्याण के निमित्त राक्षसी प्रवृतियों से ग्रसित आतताइयों के सँहार लिए युध्द आखिरी विकल्प के रूप में प्रस्तुत है।

अत्यंत रोमांचक तथ्य ये भी है कि पौराणिक कहानियों में ऋषियों के श्राप से ही अनैतिक कार्य करने वाले जीव- जंतु, साधु, मुनि, ज्ञानी, मनुष्य जो अकारण ही किसी को कष्ट देते थे; राक्षसों तथा अन्य पशु योनि में पैदा हुए हैं।
इस तथ्य की चर्चा शिव-पार्वती संवाद में है जहाँ कुकर्मियों द्वारा साधू जनों को अकारण ही भयग्रसित (अशोभनीय वेशभूषा या प्रताड़ना द्वारा) करने के कारण, क्रूर एवं पाप प्रवृतियों में लिप्त राक्षस बनने का श्राप मिला था।

"ऋषि अगस्त की शाप भवानी,
राक्षस भयउ रहा मुनि ज्ञानी"

इसी प्रकार रामायण में कई राक्षस और राक्षसियों का जिक्र है जिन्हें शापमुक्ति के बाद राक्षस योनि से छुटकारा मिल गया है। इनमें से कई राक्षसों को पता था कि वे किसके हाथों मारा जाकर अपने वर्तमान राक्षसी प्रवृतियों के पाप युक्त अशुभ शरीर से मुक्ति पाएंगे। स्थूलशिरा महर्षि के शाप से राक्षस बना कबन्ध लंबे समय से अपनी मुक्ति के लिए भगवान विष्णु के मनुष्य अवतार,राम-लक्ष्मण की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि उनके हाथों अग्निहोत्र अंत्येष्टि के पश्चात वह सुंदर स्वरूप में स्वर्गलोक जा सके। उसी प्रकार हनुमान की परीक्षा लेने वाली सुरसा, छाया को हस्तगत कर नभचरों का शिकार करने वाली सिंहिका तथा लंकिनी भी शाप मुक्ति के लिए हनुमान की पतिक्षा कर रही थी।
लंकिनी को शक्तिमद में चूर चरम पाप की पराकाष्ठा पर पहुँचने वाले रावण, उसके परिवार एवं अन्य पापी राक्षसों का, उसकी सुवर्ण नगरी लंका के सर्वनाश-समय का भी ज्ञान था। तो क्या आज राक्षस तुल्य इस्लाम को पता है कि इसका अंत कब और कैसे होगा ? शायद नहीं। यह तो विश्व भर में अपनी अधिपत्य कायम करने को सोच रहा है।

रावण रूपी कई राक्षस जैसे ओसामा बिन लादेन, अल बगदादी आदि मारे जा चुके हैं लेकिन इनका कुल रक्तबीज जैसा बन गया है। अब प्रश्न ये उठता है कि राक्षसी प्रवृतियों वाले जिहादी मुस्लिम राक्षसों को अपने पापकर्मों से, शापित महाराक्षस की गुलामी से तथा उसके द्वारा बनाये गए और थोपे गए मझहब से कब मुक्ति मिलेगी ? कब वे सतसंग आत्मसात का पुण्यात्मा इन्सान बन जायेंगे जैसे कि आजकल वसीम रिजवी बन गए हैं। इन सब का वध कैसे हो (पढ़ें आज के रक्तबीजों का वध कैसे हो ?; https://articles.thecounterviews.com/articles/get-rid-jihadist-demons-islamist/) ?

यूँ कुछ दोष तो क्रोधी ऋषियों का भी बनता है जिनके श्रापों के कारण विभिन्न प्रकार के भयंकर-भयंकर राक्षस इस देव-भूमि आर्यावर्त में मनुष्यों, साधु-संतों का नरसंहार करने तथा स्त्रियों की मान-मर्यादा का सर्वनाश करने के लिए पैदा होकर पसर गए हैं। इनकी राक्षसी प्रवृत्ति आज विश्व भर में अपने जिहादी रूप में मानवता का ह्रास करने को उन्मुक्त दिखाई दे रहा है जिसका निदान करना आवश्यक है। भारत के सनातनियों ने शान्ति का राग बहुत अलाप लिया ,अब आवश्यकता है राक्षसी प्रवृत्तियों का ह्रास के लिए प्रयत्नशील होने की और शस्त्र उठाने की।

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