Islamic Oppression

दमन

यद्यपि पौराणिक ग्रंथों में स्त्री सत्तात्मक परिवारों, विदुषियों, प्रशासिकाओं, निर्णायकों, व्यापारियों एवं वीरांगनाओं का वर्णण है परन्तु बाद के पुरूष-प्रधान समाज में स्त्रियाँ प्रायः प्रताड़ना एवं शोषण का शिकार रही हैं। इस्लाम के जन्म लेने एवं उसके प्रचार-प्रसार के साथ ये दमन और प्रताड़ना की सीमारेखा का विस्तार बढ़ता चला गया। इस्लाम के उदय के साथ इसका अनुशरन करने वाले एक क्रूर समुदाय का भी दुनियाँ में जन्म हुआ,जो किसी भी खूंखार जंगली जानवर से ज्यादा खतरनाक एवं बर्बर साबित हो रहा है। जहाँ-जहाँ जिस किसी देश में गए; इसके अत्याचारों से वहाँ के स्थानीय समुदाय को इस्लाम की गुलामी बिना किसी तर्क-वितर्क के स्वीकारने के लिए बाध्य किया गयाहै। विरोध करने या इस्लाम अस्वीकार करने वाले समूहों को बड़ी ही क्रूरता से मारा गया,उनके स्त्री एवं बच्चों पर बेइंतहा अत्याचार किये गए हैं।।

ईरान अफगानिस्तान पाकिस्तान प्रान्तों से पारसी, हिन्दू एवं सिख्खों की औरतों को ज़बरन उठा कर इस्लामियों के हरम में रखा गया। लाखों स्त्रियों का सामूहिक बलात्कार जिहाद के रास्ते पर चलने वाले जाहिल राक्षसों द्वारा किया गया। स्त्रियों के अंगों को ये जिहादी राक्षस उनके जीते जी काट देते थे, उनके सामने ही कुत्तों को खिलाते थे। बच्चों का कलेजा स्त्रियों के मुँह में जबरन ढूँस दिया जाता था,उनके सामने मासूम बच्चों को भालों की नोंक पर उछालते थे। रेगिस्तान से आने वाले इस्लाम के अनुयायी अधिकांश जाहिल दरिन्दे, राक्षसों की बर्बरता की दास्तान स्वर्ण मन्दिर के संग्रहालय (म्यूजियम) की पेंटिंग्स में देखी जा सकती है।यही बर्बरता राजस्थान के खण्डहरों में, वीरांगनाओं की चिंताओं में,विशालकाय मंदिरों के अवशेषों में,भग्न मूर्तियों तथा भग्न तक्षशिला-नालन्दा जैसे संस्थानों के कण-कण में अंकित है। इनकी क्रूरता, बर्बरता, ध्वंसात्मक एवं पाप से परिपूर्ण कृत्यों का कार्यान्वन ही इनका ये इस्लाम मझहब है।लव जिहाद हो या अन्य किसी तरीके से स्त्रियों का अपहरण उन्हें हिजाब में बंद कर उनकी सारी स्वतंत्रता को कैद करना इन्हें पाप नहीं झूठे पुरुषत्व के बोध का एहसास दिलाता है।

ईरान, इराक,सऊदी, अफगानिस्तान में स्थानीय ग़ैरइस्लामियों का पूर्ण सफाया हो चुका है। पाकिस्तान से सारे ग़ैरइस्लामियों को खदेड़ दिया जा रहा है,मारा जा रहा है,उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिये बाध्य किया जा रहा है। उनकी स्त्रियों को आये दिन अगवा किया जा रहा।पाकिस्तान की सरकार अन्य देश में मुसलमानों के लिए मानवाधिकार की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं,परन्तु अपने देश में प्रतिदिन ग़ैरइस्लामियों की हत्याएँ, औरतों का अपहरण, बलात्कार पर चुप्पी साधे रहते हैं। वहाँ के लगभग सभी हिन्दू मंदिरों, गुरुद्वारों पर पाकिस्तान के सरकार द्वारा समर्थित, जिहादी तथा आतंकी समूहों का अवैध कब्जा है।ज्यादातर मंदिरों का नामोनिशान भी मिट चुका है।पाकिस्तान के जिहादी राक्षसों के बीच न तो कोई मानवाधिकार वाला टिक सकता है और न ही वहाँ की न्यायव्यवस्था अल्पसंख्यक समुदायों की रक्षा करती है।

वस्तुतः इनका मदरसे में पढाया गया मज़हबी ज्ञान ही इन्हें ग़ैरइस्लामियों से घृणा करना, उन्हें सताना, उनकी हत्या करना,अपहरण तथा बलात्कार आदि अनेकों पाप कृत्यों में प्रवीण होने के लिए प्रशिक्षित करती है। यही कारण है कि ये जिस किसी रूप में ग़ैरइस्लामियों के देश में पहुँचते हैं, वहाँ अपने इन्हीं संस्कारों को फैलाते हैं। बांग्लादेश में भी आये दिनों हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। प्रत्येक हिन्दू त्योहारों पर आगजनी, मंदिरों में तोड़-फोड़,लूट-पाट, हत्याएँ होती रहती है लेकिन किसी मानवाधिकार वालों की या अल्पसंख्यक सुरक्षा पर बड़े-बड़े भाषण देने वालों की जुबान नहीं खुलती है।

भारत में भी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हिन्दुओं को किसी न किसी बहाने से प्रताड़ित किया जा रहा है, मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है, उसके चढ़ावे लूटे जा रहे हैं, जिस पर सेक्युलर नामक हिजड़ों के समुदाय, हिन्दुओं के दुश्मन की जुबान नहीं खुलती है। भारत में रहने वाले कट्टरपंथी मुस्लिम और मुल्लों का काम 'खुतबा' के द्वारा प्रत्येक मुसलमान को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काना है, ताकि हत्याएँ, विध्वंस, लूट-पाट का सिलसिला जारी रहे।
इन्हें स्त्रियों की स्वतंत्रता तथा प्रगतिशीलता से इतनी नफरत है कि ये भारत में भी अपने संकीर्ण एवं पाप से परिपूर्ण घृणास्पद मंसूबों को स्त्रियों पर लादना चाहते हैं। उनके द्धारा उत्प्रेरित मुसलमानों के द्वारा ही तोड़-फोड़,लूट-पाट, हत्या, बलात्कार, लव-जिहाद, जबरन धर्म परिवर्तन करवाने ऐसे अमानवीय कृत्यों को अंजाम दिया जाता है। पकड़े जाने पर अल्पसंख्यक का विक्टिम कार्ड खेलने लगते हैं। देश-विदेशों में फैले अपने जिहादी साथियों की सहायता से जिन्ना मानसिकता वाले मुस्लिम असंवैधानिक गति-विधियों को बढ़ावा देना अपना मज़हबी कर्तव्य मानते हैं।
"कश्मीर फाइल' चलचित्र नहीं, इन पापी जिहादियों के कुकर्मों का काला चिट्ठा है।औरंजेब, ख़िलजी,टीपू तथा अन्य मुगलों के द्वारा कमोबेश ऐसे ही कुकर्म इतिहास में भरे पड़े हैं।'मोपला हत्या कांड' बंगाल में 'डायरेक्ट एक्शन' कांड तथा पूर्व पंजाब प्रान्त में 'छोटा तथा बड़ा घंघोरा' सामुहिक हत्या कांड कई बार विभिन्न जगहों पर किया गया है।

इस्लामिक समुदायों के द्वारा फैलाये गए बलात्कारी एवं विध्वंसात्मक कुकृत्यों, हत्याओं,आदि से समूची दुनियाँ परिचित होने के साथ-साथ बुरी तरह प्रताड़ित भी हो रही है। अपने मज़हबी कृत्यों को जब-तब अंजाम पहुँचाने के कारण इन्हें भी अन्य देश के संवैधानिक कानून के अनुसार सजा दी जाती है। परन्तु इन इस्लामी जिहादियों का अपना दिमाग इतना ज्यादा पकाया जा चुका है कि हठधर्मिता के कारण ये किसी सुधार को स्वीकारने के लिये तैयार ही नहीं होते हैं। कुरानों की कुछ आयतों के कारण,शब्दसः उसका अनुसरण करने के कारण पूरी दुनियाँ में उन्हें 'घृणास्पद-इस्लामी- मुस्लिम-आतंकियों' के रूप में पहचान मिली है।

ग्यारहवीं शताब्दी की कट्टर इस्लामी-मज़हबी मान्यताओं को आज के प्रगतिशील समाज में तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाना स्वाभाविक ही है। अन्य देशों के ग़ैरइस्लामियों के समुदायों में यह अस्वीकृत है। इस्लाम में इसे फैलाने के तरीकों में निरन्तर ग़ैरइस्लामियों का सामुहिक रूप से क्रूरता से कत्ल किया जाना जायज़ माना गया है। इनके चंगुल में आयी, अपहृत औरतों की जिंदगी चाहे वह ईसाई समुदाय की हो या अन्य किसी अन्य समुदाय की, समयान्तराल में मौत से भी ज्यादा भयावह रही है।

पिता,पुत्र,भाई, बच्चों के हत्यारों की गुलामी और वासना पूर्ति की साधन बनाई गयी ये औरतें शारिरिक, मानसिक,आर्थिक रूप से इतनी अपँग बना दी गयी हैं कि इससे छुटकारा पाने के लिये औरतों को कई पीढ़ियों तक संघर्ष करना होगा। सामान्य रूप से उच्च या निम्न सामाजिक स्तर वाले, अमीर-गरीब,ताकतवर या कमजोर किसी भी समाज में औरतें ही प्रताड़ित एवं शोषित रही हैं। परन्तु निम्नवर्गीय सामाजिक स्तर की औरतों का समाज में खास कर इस्लाम में दोहरा अवशोषण होता है, जिसके बारे में उन्हें बोलने की भी इजाजत नहीं दी जाती है। आज जहाँ विश्वसमुदाय की स्त्रियाँ निरंतर पुरुषों के समकक्ष कंधों से कंधा मिला कर; प्रत्येक क्षेत्र में देश के विकास तथा प्रगति योगदान दे रहीं हैं; अपने व्यक्तित्व की सजगता के कारण सम्मानीय बनी हुई हैं; वहीं इस्लाम का प्रयोग ग़ैरइस्लामियों की औरतों को 'हुक एवं क्रुक' के फार्मूले द्वारा उन्हें बुर्के में कैद करने तथा युवाओं को आतंकवादी बनाने में लगे हैं।

समय आ गया है कि दुनियाँ में विश्वसमुदाय के समक्ष प्रमाण सहित इसकी बुराइयों को बेपर्द किया जाये।
ग़ैरइस्लामियों द्वारा सामुहिक रूप से विश्व स्तर पर प्रस्ताव पास किया जाना चाहिए कि इस्लाम एक जिहादियों द्वारा फैलाया जाने वाला क्रूर,बर्बर,आतंकी राक्षसी कुकृत्यों से परिपूर्ण मझहब है जिसके कारण पूरी दुनियाँ में जघन्यतम अपराध हो रहे हैं। विश्व स्तर पर इस क्रूर मझहब का तिरस्कार किया जाना चाहिए ताकि दुनियाँ में इन्सानियत तथा मानवतावादी भावना के समर्थक अन्य समुदाय एवं पौराणिक संस्कृति और धर्म सुरक्षित रह सके। यद्यपि ये भी यथार्थ है कि विश्व मुस्लिम समुदाय में काफी लोग अपनी शांतिपूर्ण उदारवादी प्रगतिशील विचारों के लिए जाने जाते हैं,परन्तु वर्तमान में इनकी संख्या मुट्ठी भर रह गयी है। समय आ गया है कि मानव एवं विश्व कल्याण के लिये मुसलमानों को स्वयँ ही कुरान की आतंकवादी आयतों को निकाल कर उसमें परिवर्तन करने की पहल करें।

भारत में इस आतंकवादी मझहब को फैलाने के कार्य में लगे हुए काले तम्बू में रहने वाली तथा स्त्रीदमन को स्वैच्छिक अधिकार बताने वाली,हिज़ाब के समर्थन में नारे लगाने वाली औरतों के लिए तो सिर्फ इतना ही कहना काफी है।.....
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"सूर्पनखा रावण के बहिनी,
दुष्ट हृदय दारुण जस अहिनी।"
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...रूप भयंकर प्रकटत भई....।

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