'जंतर-मंतर"
‘जन्तर-मंतर’ शब्द काफी प्रचलित है। मेरे ऐसे ग्रामीण लोगों को इस शब्द का परिचय शायद बचपन से ही है। उस समय इस शब्द का अर्थ होता था ऐसा कुछ भी करना या होना जिससे असंभव जैसा प्रतीत होने वाला कोई भी कार्य स्वतः ही हो जाए। यह जादू-टोना, टोना-टोटकाया किसी को मिर्गी का दौरा भी पड़े तो लोग कहते थे, जन्तर-मंतर करवा लो ।जंतर-मंतर के बारे में पढ़ा था कि यह एक खगोलीय वेधशाला है जहाँ से विभिन्न ग्रहों की गति व दशा को देखा जा सकता है।ये तो बाद में पता चला कि ‘जन्तर-मंतर’ जगह का भी नाम है जहाँ धरना-प्रदर्शन का कार्य किया जाता है। 'ये' धरना प्रदर्शन राजनीतिक मुद्दों पर, हिंसात्मक बर्ताव के विरोध में, भ्रष्टाचार विरोध के लिये… तो कभी स्वार्थगत तथ्यों को मुद्दा बना कर भी किया जाता है। आजकल, खास कर मोदी सरकार के दुबारे सत्ता में वापस आने पर तो यह विपक्षियों का फैशन ही बन गया है। ज्यादातर मुद्दे सरकार विरोधी तो हैं ही, देश विरोधी तथा देश को बदनाम और कमजोर बनाने के लिए गढ़े गये हैं। आये दिनों प्रियंका, राहुल, सुरजेवाला, खेड़ा,'आप' तथा कम्युनिस्ट आदि के नेताओं की बयानबाजी से स्पष्ट है कि ये भ्रष्टाचारियों को समर्थन देने, लोकतंत्र के नाम पर दंगाइयों के बचाव के लिये, देशविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए धरना प्रदर्शन करवाते रहते है।
कोंग्रेसियों के काले करतूतों की पोल ज्यों-ज्यों खुलती जाती है, अत्याचारियों, दंगाइयों, कर-चोरों पर ज्यों-ज्यों शिकन्जे कसते जाते हैं, भ्रष्टाचारी और लुटेरे वामपंथियों की तिलमिलाहट बढ़ती जाती है। विपक्षियों के पास सिर्फ एक ही मुद्दा रह गया है, मोदीजी को हटाओ अन्यथा ये चोरों, डाकुओं, लुटेरों विदेशी जासूसों, तस्करों, धोखाधड़ी करने वालोंतथा भगौड़ों को, जो विपक्षियों के अजीज हैं, देश की जनता के समक्ष बेपर्द कर देंगे।
आये दिनों स्त्रियों और किसानों के हित की बात करने वाली प्यारी प्रियंका भूल जाती हैं कि उनके पति ने भी किसानों के जमीन हथियाये हुए हैं। जहाँ-जहाँ वामपंथियों की सरकारें हैं वहाँ भ्रष्टाचार, लूट, अराजकता चरमसीमा पर मौजूद हैं। प्रताड़ित प्रदर्शनकरियों की बातें नहीं सुनी जाती हैं न ही पुलिसकर्मियों में इतनी जुर्रत है कि एफ आई आर दर्ज कर कोई कार्यवाही करे। प्रदर्शनकारी यदि बीजेपी के कार्यकर्ता हो, राष्ट्रीय स्वंयसेवी संघ या कोई भी प्रताड़ित हिन्दू समूह हो तो उन पर पानी की बौछारें, लाठीचार्ज, उन्हें जेल भेजने की कार्यवाही तत्परता एवं बेरहमी से किया जाता है।
तमिलनाडु में 'डी एम के' के सत्ता में आने के बाद हिन्दुओं और मंदिरों के प्रति आपराधिक घटनाओं में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है, बहुत से मंदिरों को वहाँ की सरकार ने तुड़वा दिया है। मंदिरों को तोड़े जाने के कारण दुःखी आक्रोशित हिन्दू प्रदर्शन करियों को भी जेल में डलवा कर उनकी आवाजों को कुचल दिया गया है। हिन्दुविरोधी इन कृत्यों पर किसी राजनीतिक पार्टियों ने कोई चर्चा करनी या पत्रकारों ने वहाँ की सरकार से किसी प्रकार के प्रश्न करने का प्रयत्नभी नहीं किया है। हाल में कामाक्षी अम्मान मंदिर में अत्यंत घृणित व्यक्तियों द्वारा अनैतिक तथा अभद्र कुकर्म किये गए हैं, जिसके प्रति कार्यवाही करने में पुलिस भी लापरवाही कर रही है। बंगाल और दिल्ली की स्थिति तो वामपंथी विचारधारा वाले लोगों की जीत के बाद होने वाले दंगे, आगजनी आदि की घटनाओं के कारण चिन्ता का विषय बन चुका है। केरल में अराजकता बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। हिन्दू हाशिये पर आते जा रहे हैं। अल्पसंख्यक के नाम पर मुस्लिम, ईसाइयों के लिए विशेष आरक्षण, विशेष सुविधाओं की व्यवस्था शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में की गई है। इस मुद्दे पर सवाल उठाने वाले वकीलों पर कोर्ट ने सुनवाई करने के बजाय, जुर्माना थोप दिया है। हिन्दुओं तथा पिछड़े वर्ग की आवाजों को कुचल कर यहाँ की सरकार तस्करों, आतंकियों, मुल्लों, ईसाइयों को खुश करने में लगी हुई है।आये दिनों बात-बात पर धरना देने वाले विभिन्न राज्यों में हिन्दू विरोधी गतिविधियों पर चुप रहते हैं, प्रताड़ितों की आवाज भी कुचल देते हैं।
देश का हित चाहने वाले लोग इस विषय पर धरना क्यों नहीं देते कि इतने सारे रोहिंज्ञाओं को देश के भीतर प्रवेश क्यों दिया गया है? मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हिंदुओं के परिवार स्त्रियाँ असुरक्षित क्यों हैं? उनकी सुरक्षा के लिए वहाँ की सरकार कुछ क्यों नहीं कर रही है ? रोहिंज्ञाओं, उइगर घुसपैठियों को हिंदुस्तान से बाहर क्यों नहीं निकाला गया है? क्या देश मुस्लिम घुसपैठियों का अड्डा है ? संतावन इस्लामिक देशों के रहते ये इस्लामिक घुसपैठिये, इस्लामिक देशों में क्यों नहीं जाते हैं? हिन्दुओं को सरकार हिंदुस्तान में भी सुरक्षित नहीं रख पा रही है ? क्या यह निंदनीय नहीं है?
ऐसा लगता है सभी वामपंथी नेता, इस्लामी और ईसाई जन्तर-मंतर के भूतों से ग्रसित हो चुके हैं। कभी अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार के विरोध में धरने पर बैठने वाला खेजड़ीवाल आज पूर्ण तन्मयता से भ्रष्टाचार में लिप्त हो सत्ता की मलाई खाते हुए जनता के टैक्स के पैसे को व्यक्तिगत संपत्ति की तरह धड़ल्ले से गुलछर्रों में उड़ा रहे हैं। चंदे में एक भी रुपैया दान नहीं देने वाले चोरों के समूह राम मंदिर के चंदे के पैसे पर सवाल जाने किस बेशर्मी से उठाते हैं, यह सोचनीय विषय है।
बात-बात पर हंगामा करने वाली "आप'' कोंग्रेस' अखिलेश तथा गाँधी-माइनो परिवार दिल्ली, बॉम्बे में हज हाउस, जालंधर में चर्च तथा पुणे में पुणेश्वर मंदिर की जमीन पर कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद मस्जिद कैसे और किसके पैसों से बनाई जा रही है इस पर भी चर्चाऔर प्रश्नोत्तर कोई पत्रकार भी न करता है। कभी कोई इन मुद्दों पर भी हंगामा भी करें तो शायद लोकतंत्र खतरे में आ जायेगा, शायद इसीलिए शातिर मानसिकता के नेताओं द्वारा ये सारे कार्य चुपचाप तीव्र गति से चल रहे हैं।ऐसे लोगों की पार्टी को देशद्रोही पार्टी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। पत्रकारों के लिए भी उचित होगा कि वामपंथी पार्टियों से प्रश्न करें कि टैक्स के पैसों से किसी ईसाई के लिये चर्च या इस्लामियों के लिये हज हाऊस क्यों बनाये जा रहे हैं ? जबकि सरकार को उनसे कोई आमदनी भी नहीं होती है, न ही देश के विकास में ये संस्थान कोई योगदान देते हैं। बामपंथियों, बिचौलियों, टिकैत के अलावे भी जाने कितनों पर 'जन्तर-मंतर' के भूत ने कब्जा जमाया हुआ है। चीन, पाकिस्तान, कनाडा आदि देशों के जन्तर मंतर का प्रभाव ही है कि देश के विपक्षी नेताओं ने घटिया बयानबाज़ी, घपलेबाजी, घोटालेबाजी तथा देशविरोधी कार्यक्रमों में दुश्मन देशों का साथ देना अपना परमप्रिय, आनन्ददायी कर्तव्य समझ रखा है। इन्हें गरीबों को मौत के मुँह में धकेल कर सिर्फ अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में रमें रहना अच्छा लगता है। वामन्थियों को बीजेपी, मोदी या "राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ" इसीलिए अच्छे नहीं लगते क्योंकि देश को लूटने तथा इससे देश को कमजोर बनाने की कलुषित मनोवृत्ति को आघात पहुंचता है। चीन, पाकिस्तान या जिहादियों के इशारे पर नाचने वाली देशविरोधी पार्टियों को न जनता से कोई प्यार है न ही देश की प्रगति या विकास से। ये ढोंगी, मतलब-परस्त, हिन्दू तथा हिंदुत्व विरोधी होने के साथ ही देश को खोखला करने वाले देश के अंदरूनी दुश्मन हैं जिन पर विदेशी जन्तर-मंतर का प्रभाव है। काश कोई ऐसा मंत्र भी होता जो ' जन्तर-मंतर' पर धरना देने वाले नेताओं के सिर से देशविरोधी कार्य करने की प्रेरणा देने वाले भूत-भूतनी का साया उतार देता और उन्हें देशहित में सोचने, कुछ करने की प्रेरणा दे पाता।