Devil of bengal

दीदी या दानवी

बंगाल की दीदी के कपाल पर चोट लगी और उनके घायल होने की चर्चा प्रसिद्द हो गई है। इससे पहले के चुनाव में उनका पाँव टूट गया था। चुनाव जीतते ही वे स्वस्थ हो गयी एवं पुराने ढर्रे पर बंगाल में प्रशासनिक व्यवस्था चल पड़ी जो आज भी कायम है। आजकल बंगाल में टी एम् सी के गुंडों का राज है। चुनाव चाहे ग्राम पंचायत का हो, नगरपालिका, विधान सभा या लोकसभा का, बंगाल में दंगे होना आम घटना है। ज्यादातर हिन्दू परिवार का निष्काषन एवम हत्याऐं पूर्व प्रायोजित होती रहती है, विशेषतया चुनाव के दौरान राजनितिक हत्याओं की संख्या बढ़ जाती है। औरतें, जिनका प्रायः शारीरिक शोषण हो चुका होता है, उनकी तथा बीजेपी के कार्य कर्ताओं की खुले आम हत्याएँ पश्चिम बंगाल में कुछ इस कदर बढ़ गए हैं कि देश के आम जनता का ध्यान पश्चिम बंगाल की अराजकतावादी सरकार की ओर आक्रोश पूर्ण भावनाओं के साथ आकर्षित हो गया है।

अपने नाम के विपरीत ममता की क्रूरता में इतनी बढ़ोतरी हुई है कि वह अपने गुण्डों के अलावे किसी और व्यक्ति का चुनाव में नामांकन करवाने देने की बातें भी बर्दाश्त नहीं कर सकती है। बीजेपी या कोई भी स्वाधीन प्रत्याशी जो उनके विरोध में स्वंतंत्र रूप से चुनाव में नामांकन कराने की कोशिश करते हैं, उस व्यक्ति का "राम नाम सत्य है" करवाना टी. एम.सी. की सर्वश्रेष्ठ थाकथित 'दीदी' के लिए मामूली कार्य है। खुले आम ममता दीदी चुनौती देती है कि बंगाल में टी एम सी के अलावे अगर किसी ने चुनाव में भाग लेने के लिए नामांकन कराया या किसी भी व्यक्ति ने टी.एम्.सी. के अलावे किसी और को खास कर बी. जे. पी. को वोट दिया या किसी भी प्रकार से बीजेपी का सहयोग किया तो " अल्लाह कसम उसका जीना मुश्किल हो जायेगा", उसको ममता एवं ममता सरकार कभी माँफ नहीं करेगी, उसे और उसके परिवार को दर्दनाक सजा अवश्य मिलेगी।

लोगों में डर पैदा करना, अपने गुंडों द्वारा लोगों को सताना, पुलिस महकमों के द्वारा आम जनता पर अत्याचार करना और करवाना यही साबित करता है कि ममता बनर्जी 'ममता' नहीं है बल्कि 'क्रूरता' का पर्याय है। ऐसा लगता है कि नेहरू-खान-गाँधी के उत्पाद राहुल गाँधी की तरह ही यह भी झूठ - मूठ का अपने नाम बदल कर उसके साथ फर्जी बनर्जी लगा कर, कलमा पढ़ी हुई कोई बांग्लादेशी मुस्लिम ही है।

ऐसा समझने के पीछे बहुत से अन्य कारण भी हैं। .. यह मुख्यमंत्री हो कर भी अपराधी प्रवृत्तियों तथा आपराधिक पृष्टभूमि वाले बांग्लादेशी एवं रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों के अंतर्गमन को प्रतिबंधित नहीं करती है। उसके वोटर कार्ड बनवा उसे अपना वोट बैंक बनाती हैं। उनके आधार कार्ड बनवा कर केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के लिये मुहैया कराये गये सभी सुविधाएँ उन्हें निर्बाध्य रूप से उपलब्ध कराती है। इस्लामी उम्माह के तहत बांग्लादेशी मुस्लिम "शाहजहाँ शेख" जैसे बलात्कारी गुंडों को टी. एम. सी. के टिकट पर चुनाव लड़वा कर उसे जिताती हैं । बांग्लादेश के मुसलमानों को भारत सरकार की जमीनों पर तथा जनजातीय लोगों की जमीनों पर अवैध रूप बसा कर उन्हें अपनी पार्टी में सम्मान जनक ओहदे पर बिठाती है। इस्लामी उम्माह के तहत अपराधी मुसलमानों के गुनाहों पर पर्दा डालने की कोशिश करती एवं कराती है। बहुत से मुस्लिम गुण्डे ही टी.एम्.सी. के पार्टी में विधायक हैं। इन्होंने बंगलादेश एवं पश्चिम बंगाल में भी हिन्दुओं का, खास कर दलित आदिवासियों का जीना मुश्किल कर दिया है। बांग्लादेश से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भाग कर भारत में शरण लिए हुए हिन्दू शरणार्थियों के विरोध में, उनकी नागरिकता के विरोध में (जो केन्द्र द्वारा प्रदत्त है) खड़ी हो नारे लगाती है कि वह किसी भी तरह उसे बंगाल में लागू नहीं होने देगी जबकि यह (सी ए ए) उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। ममता की शह पर पश्चिम बंगाल में मुस्लिम गुण्डों का दबदबा, एवं उनकी प्रताड़ना इस तरह बढ़ी हुई हैं कि हिन्दू त्योहारों पर; शादी-विवाह के अवसर पर; हिन्दू परिवारों को इन्हीं मुस्लिम गुण्डे विधायकों एवं मुस्लिम गुंडे कार्यकर्ताओं से इजाजत लेनी पड़ती है आदि...आदि

अपनी संस्कृति एवं त्योहारों के लिए प्रसिद्द बंगाल में वर्तमान समय में सरस्वती पूजा, होली, दशहरा, दिवाली पर पत्थरबाजी, हथियारों से हमले, खून-खराबा हो रहा है। ममता की तुष्टिकरण की नीति इतनी भयानक है कि प्रायः हर चुनाव के समय, चुनाव के बाद या उसके पहले भी किसी हिन्दू मोहल्ले को निशाना बना कर दंगे द्वारा उसे खाली करवा दिया जाता है। वीरभूमि, चौबीस परगना, कूचबिहार, दिनाजपुर, (दिनहाटा)उत्तरी निवाजपुर, नोवाखाली, संदेशखाली, कलकत्त्ता की अनेकों गलियाँ, गरीब हिन्दुओं एवं उनके प्रताड़ित परिवार की गाथाओं से भरी पड़ी हैं। ममता के राज में हिन्दुओं को जाहिल मुस्लिम जमातियों द्वारा प्रताड़ना की घटनाओं पर मुस्लिम गुण्डों पर कार्यवाही करने के बजाज प्रथम दृष्टान्त वर्णन की सूचना देने वालों को एवं जानकारी देने वाले पत्रकारों को वहाँ की स्थानीय पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया या करवाया जाता है। यहाँ के संरक्षित गुण्डों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि ये केंद्रीय पुलिस बल, अर्धसैनिक बल, प्रत्यावर्तन अधिकारियों तथा केंद्रीय जाँच ब्यूरो के अधिकारियों को भी समूह में घेर कर स्थानीय हथियार, पत्थर एवं पेट्रोल बॉम्ब से घायल कर देती है। ममता-रहित ममता जो यहाँ की मुख्यमंत्री हैं वह बेशर्मी की मिसाल पेश करते हुए, गुण्डों को ही बचाने के भरपूर प्रयास में लगी रहती है। इस क्रूर ममता का यह कहना कि " बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम में कोई भेद-भाव नहीं होने देंगे" या " हम किसी भी हालत में यहाँ सी ए ए लागू नहीं होने देंगे" वस्तुतः हिन्दुओं को बंगाल में हलाल किये जाने वाले जानवरों की तरह डरा-धमका कर मूक बना कर रखने कोशिश है। किसी भी हिन्दू ने उसके खिलाफ आवाज उठाई तो उसकी आवाज और साँसें, दोनों बन्द कर, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस्लामीकरण को बढ़ावा देना एवं स्वयँ बेदाग बताने की प्रचार कला इनकी विशेषता है।

अगर आतंकवादी (हत्याओं) घटनाओं के इतिहास पर ध्यान दें तो बीजेपी के अनगिनत ( सौ से ज्यादा ) कार्यकर्त्ता बंगाल में मारे गए हैं। होम मिनिस्टर "अमित शाह" पर भी पेट्रोल बम से हमला हुआ है लेकिन तुष्टि करण की राजनीति इतनी भयावह है कि ये हिम्मती गुण्डे वहाँ की दीदी के संरक्षण में आज भी फलते-फूलते रहे हैं। सनसनीखेज खबरों में संदेसखाली के अलावे भी अराजकता वादी घटनाओं की भरमार है। हिन्दू औरतों, बच्चियों को अगवा करना, बलात्कारियों के खिलाफ कार्यवाही न कर बलात्कार को बढ़ावा देना, हिन्दुओं के मनोबल को तोड़ उन्हें पलायन के लिये बाध्य करना आदि ऐसे अपराधों को बांगलादेशी गुण्डे एवं विधायक जिस तरह से करते हैं उससे ममता दीदी के हिंदुस्तानी होने या हिन्दू होने के प्रति भी संदेह ही पैदा करता है।

इस चीफ मिनिस्टर को एवं विपक्ष (इंडि ठगबंधन ) को अवैध रूप से बसे बांगलादेशी गुण्डे, करोड़ों अवैध घुसपैठिये रोहिंग्या मुसलमानों के रहने से कभी आपत्ति नहीं हुई है, न ही किसी विपक्ष ने इस अवैध घुसपैठिये मुस्लिम की बढ़ती आबादी के विरोध में कोई आवाज निकाली है परन्तु इस्लामिक देशों में सताए गए हिन्दुओं की नागरिकता से इन्हे खुंदस है। शर्मनाक परन्तु सत्य है; बंगाल में डर का माहौल ऐसा है कि 'भेद-भाव पर' भाषण देने वाली इस क्रूर दीदी के विरोध में किसी बंगलादेशी हिन्दुओं को तो कुछ बोलने की हिम्मत नहीं ही है I हिंदुस्तान के हिन्दुओं को भी इन घुसपैठिये मुसलमानों के विरोध में कोई प्रदर्शन या रैली करने की हिम्मत या फुर्सत नहीं है।

कहावत है 'पाप का घड़ा भरने के बाद पाप भी बाहर आता है, घड़ा भी फूटता है'। सन्देश खाली में भी जब अत्याचार की हदें पार हो गयी तभी वहाँ निराश एवं संरक्षण विहीन औरतों ने मिल कर प्रदर्शन किया है। फिर क्या था? इन गुण्डों के अत्याचार एवं प्रदर्शन को प्रसारित करने वाले पत्रकारों की पत्रकारिता भी यहाँ असुरक्षित हो गयी है। वहाँ की घटनाओं को उजागर करने वाले पत्रकारों की पिटाई-प्रताड़ना, पुलिस द्वारा उन्हें घसीटकर ले जाना, प्रताड़ित औरतों के बयानों को झूठा बताना, उन्हें चुप कराने के लिए धमकाने आदि की घटनाएँ आरम्भ हो गई है। सामान्य जन भी यदि वहाँ के प्रताड़ित हिन्दुओं की दर्दनाक गाथाएं सुनें तो ह्रदय दहल जाता है लेकिन एक स्त्री के मुख्य मंत्री होने के बावजूद स्त्रियों पर होने वाले अत्याचार के प्रति महोदया असंवेदनशील हैं। इससे भी ज्यादा उनकी घिनौनी बेशर्मी है कि अत्याचारी गुण्डों को बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय तक वकीलों की सहायता जारी करती हैं। राज्यपाल का पीड़िताओं तक पहुँचने एवं उनके दुखड़े सुनने के कारण ममता राज्यपाल एवम मानवाधिकारी कार्यकर्ता स्त्रियों पर ही बौखला कर हमलावर हो गयी है। मुख्यमंत्री होते हुए इनके बेतुके बयान हमें यह सोचने या कहने के लिए स्वभाविक तौर से मजबूर करती है कि ममता बनर्जी देशद्रोही, हिन्दूद्रोही एवं स्त्रियों की अस्मत लुटवाने वाली एक डायन या दानवी जैसी है। ये दस्युरानी की तरह स्त्रियों के प्रति होते अनाचार को जानबूझ कर अनदेखा कर रही है। गुनहगार मुस्लिम गुण्डों को खुश करने के लिए उनके कुकृत्यों में ये भी सहभागिनी है। इस तरह के सन्देह का हृदय में उठना अतिश्योक्ति नहीं है क्योंकि अनगिनत आपराधिक उदाहरण पश्चिम बंगाल में भरे पड़े हैं। सच्चाई यही है कि पश्चिम बंगाल और ममता दीदी दोनों ही इस्लामिक कैंसर के असाध्य रोग से ग्रसित हो चुके हैं इसीलिए यहाँ के हिन्दू, आदिवासी, दलितों एवं उनकी औरतों की हालत पाकिस्तान एवं बांग्लादेश के हिन्दुओं जैसी ही हो गयी है।

कहावत है जिन देवताओं की पूजा करते हैं उन्हीं के संस्कार भी हमें प्रभावित करते हैं। पश्चिम बंगाल के राक्षसी के राज में दैविक संस्कार एवं सद्बुद्धि की प्रेरणा देने वाली देवी-देवताओं की पूजा की जगह आजकल बंगाल में असुरों और राक्षसों की पूजा होती है। शायद इसीलिए यहाँ दैविक संस्कृति की नहीं, राक्षसी संस्कृति का विकास हो रहा है जो वहाँ की जनता, सनातनी हिन्दू, दैविक संस्कृति के उपासकों के लिये अत्यंत खतरनाक है। वस्तुतः यह कहना भी गलत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल में दीदी नहीं दानवी का कुशासन काल चल रहा है।

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