Farooq abdulla speaks

मोदी जी ! मुफ़्ती-अब्दुल्ला की मुराद जानें और मानें (भाग-२)

आज विश्व के हर कोनें से आवाजें आ रहीं हैं "जिहादी गतिविधियों को रोको" । इन कट्टरवादी मुसलामानों ने स्वर्ग जैसे धरा को अपनीं राक्षसी गतिविधियों से नर्क बना दिया है । यह बात तो सही है कि इस्लाम के नाम पर इन जिहादियों ने विश्व भर में मार काट मचा राखी है। लगता है इस्लाम के धार्मिक ग्रंथों से "शान्ति, सौहार्द और समन्वय" जैसे शब्द लुप्त हो गए हैं। उदाहरण के लिए देख लीजिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक़, सीरिया, यमन, लेबनान, फिलिस्तीन, ईजिप्ट, मलेशिया, नाइजीरिया, सूडान, CAR आदि आदि जैसे दर्जनों देश जहाँ इन जिहादियों ने मानवता को शर्मसार कर रखीं हैं । जिहादियों ने दुनियाँ भर में गंद मचा रखा है। ये राक्षसों की भाँति लड़ रहे हैं ((पढ़ें ‘इस्लाम और राक्षसी प्रवृत्ति’ https://articles.thecounterviews.com/articles/islam-demonic-culture/) I सबसे विचित्र बात यह है कि आज विश्व भर में १७५ से अधिक जिहादी संगठन हैं और इन सबों का यही मानना है कि ये मुहम्मद के बताए 'कुरान' के लिए जिहाद लड़ रहे हैं। धिक्कार है ऐसे (अ)धर्म-ग्रन्थ पर जो मानवता के खिलाफ घृणा, असहिष्णुता तथा हिंसा की सीख देता है। यही राक्षसी प्रवृत्ति चीन के जिनजियांग में भी पनपने लगा था जिसे चीन ने नियंत्रित कर रखा है। गत कुछ दशकों से भारत में भी जम्मू कश्मीर, असम, केरल, बंगाल, तेलंगाना आदि के कुछ कट्टरपंथी मुसलमान अपना उग्र रूप दिखाने लगे है और भारत सरकार को देखिए कि पड़ोस में चीन का सशक्त उदाहरण भी अनुकरण करने से हिचकिचाते हैं और वह भी तब, जबकि यहाँ के कुछ कट्टरवादी नेता बार बार धमकी देते हैं कि वे चीन के साथ जाना पसंद करेंगे।

केंद्र की १९८८ -९० अस्थिर सरकार में मुफ्ती गृह मंत्री थे और जम्मू कश्मीर की इस्लामी कट्टरता के अनुयायी आतंकी समूह और उनके सहायक फ़ारूक़ अब्दुल्ला थे मुख्य मंत्री। फिर क्या था ?साजिशों की शुरुआत हो गयी। कश्मीरी पंडितों को मार भगाने के लिए “रालिभ, सालिभ या गालिभ” के नारे लगे…”कश्मीर से भागो, धर्मांतरण करो या फिर मरो”(read “Looking back at Ralive, Tsalive ya Galive : 1990 Genocide of Kashmiri Pandits” https://articles.thecounterviews.com/articles/ralive-tsalive-ya-galive-january-1990-genocide-kashmiri-pandits/) I किम्वदन्ति है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने अपने JKLF आतंकियों और मंत्रिमंडल के सहयोगियों से दबे शब्दों में कहा था “मैं कश्मीर को आज़ादी के किनारे पर ले आया हूँ और अपनी छवि के लिए त्यागपत्र दे रहा हूँ”। अब तुमलोग आज़ादी का सपना पूरा करो, मैं अप्रत्यक्ष रूप से तुम्हारे साथ हूँ”….ये थी मुफ्ती-अब्दुल्ला की १९ जनवरी १९९० की लोमड़ चाल। भला हो तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह और राष्ट्रपति वेंकट राघवन का। उन्होंने लोमड़ियों की चाल अंतिम घड़ियों में ही सही, समझ ली और रातों-रात श्री जगमोहन को J&K का नया गवर्नर नियुक्त कर मुफ्ती-अब्दुल्ला के लोमड़-चाल को विफल कर, पंडितों को मौत के घाट से बाहर निकाल लिया I फिर जो हुआ वह इतिहास है।

अब, जबकि मोदी सरकार कश्मीर को भारत के मुख्य धारा में लाने के लिए संविधान-संशोधन कर चुके हैं तो मुफ्ती अब्दुल्ला की लोमड़-भभकी जारी है। नज़रबंदी से निकलते ही अब्दुल्ला ने कहा धारा ३७० बहाल करो वरना कश्मीरी यहाँ चीन का शासन पसंद करेंगे, भारत का नहीं। मन की बात आखिर जुबाँ तक आ ही गयी। हालाँकि बाद में उन्होंने ऐसी किसी मनसा का खंडन भी किया। 

Abdulla speaks his mind

आज विश्व के ज्यादातर मुस्लिम देश चीन के समर्थक हैं, यहाँ तक कि पाकिस्तान भी। चीन जिस तरह सुचारु रूपेण जिंजयांग के उइघुर मुसलामानों का दमन, या यूं कहिए, खातिरदारी करता है, उन्हें मान्य है। आज के मुफ्ती जी की भी कुछ ऐसी ही मनसाएँ हैं। उन्हें भारत का तिरंगा नहीं भाता। वे भी उइघुर मुसलामानों के प्रति चीनी व्यवस्था के मुरीद लगतीं हैं। अब तो मुफ्ती और अब्दुल्ला दोनों ही चीन की दमनकारी नीतियों के समर्थक बन गए हैं।मैथिलि में एक कहावत है "जहिनें देवता ओहिने अक्षत"। तो अगर कश्मीरी या विश्व भर के मुसलामानों को उइघुर मुसलामानों को दिए जाने वाले चीनी व्यवस्था ही पसंद है तो किसी को कोई हर्ज़ क्यों ? फिर मोदी सरकार को मुसलामानों के प्रति चीन की नीतियों को अपनाने से उदासीनता क्यों ?

मोदीजी को चाहिए कि वे अमित शाह जी को निर्देश दें कि भारत केरूढ़िवादी व अतिवादी मुसलामानों की भी ऐसी ही खातिरदारी हो जैसा चीन में होता है। यहाँ भी चीन जैसा ही मुसलामानों के लिए लद्दाख के पठारों में या बंगाल की खाड़ी के एक छोटे से द्वीप पर धार्मिक प्रशिक्षण कैंप हो जहाँ देशहित के अनुरूप उनकी मानसिकता बनाई जाए। कुरान से जिहाद शब्द निकाल दिए जाएँ। धर्म की आड़ में कोई भी अतिवादी या विघटनकारी विचारधारा का अनुकलन न करे । १६ वर्ष से कम के मुसलामान बच्चों को मस्जिद या मदरसा में प्रवेश वर्जित हो तथा कुरान की अनैतिक अशिक्षा न मिले।। यही चीन की निति है और अगर भारत अपने ही देश में मुसलामानों की भलाई चाहता है तो उसे भी चीन की निति अपनानी ही चाहिए। यही मुफ्ती और अब्दुल्ला की मनसा भी है और चाह भी ।

Muslim Concentration camps in China

देश में रूढ़िवादी या अतिवादी मुसलामानों की तायदाद कम ही है।ऐसा कोई रिसर्च पत्र नहीं है जिसमें ऐसे लोगों का आँकलन किया गया हो। फिर भी अंदाजन ऐसे लगभग २० प्रतिशत लोग होंगे जिन्हें मुसलामानों के लिए विशेष रूप से बनाए गए प्रशिक्षण कैम्पों में रखने की आवश्यकता हो। आखिर मोदीजी कोपूरे भारतीय या कम से कम कश्मीरी मुसलामानों के प्रति चीन जैसी निति पनाने में हिचकिचाहट क्यों जो मुफ्ती अब्दुल्ला के मन की मुराद भी है?

Read More Articles ›


View Other Issues ›