एक संदेश : सावधान
अफगानिस्तान को अगर तालिबानीयों ने अपने अधिकार में लिया है तो दुनियाँ क्यों पागल हो रही? क्या किसी भी इस्लामिक देश को आपने अफ़ग़ानिस्तानियों के लिए परेशान देखा है? क्योंकि इनके लिये इस्लाम और तालिबान एक दूसरे के पूरक हैं और इसे सभी इस्लामिक देशों का समर्थन प्राप्त है।
"खड्गधारी, जाहिल जमात है, शाशक बना मनुज का,
दंड-नीति -धारी त्रासक है, नर-तन में छिपे दनुज का।"
इनके द्वारा मानवाधिकार का गाना भी सिर्फ जिहादी इस्लाम को फैलाने के उद्देश्य से किया गया एक नाटक है।अफ़ग़ानिस्तान की आधुनिक तकनीकी से सुसज्जित फौजियों के रहते वहाँ तालिबानी जानवर प्रवेश नहीं कर सकते थे परन्तु वहाँ की फौज भी तालिबानीयों से मिली हुई है। सेक्युलर देशों से मुफ्त की सहायता प्राप्त करने के लिए, सेक्युलर देशों में घुसपैठ करने, जगह पाने, जिहाद फैलाने का यह नवीनतम सुलभ तरीका है। दशकों पहले ये सभी रेगिस्तानी इस्लामिक कबायली सम्पन्न तथा धर्म के रास्ते पर चलने वाले समुदायों को लूटने के लिए खानाबदोश लुटेरों की तरह एकजुट काम करते थे। अब ये दुनियाँ से मानवाधिकार के रूप में अतिरिक्त सहायता मुफ्त में पाने के लिए स्वयँ को प्रताड़ित दिखाने का गीत गाते जाते हैं।
किसी भी देश से मेहनती व्यक्तियों की मेहनत की कमाई को लूटने का उनका यह तरीका काबिले तारीफ है। आपस में लड़ो-झगड़ो, इस्लामी और सरिया क़ानून वाले देशों से भागने का नाटक करके ग़ैरइस्लामियों के देशों से सहानुभूति और सहायता पाओ। येन-केन प्रकारेण ग़ैरइस्लामियों तथा धर्मनिरपेक्ष देशों में प्रवेश करो। वहाँ की नागरिकता के लिए मानवाधिकार की दुहाई दे कर वहाँ की सरकार को राजी करो। जब नागरिकता मिल जाये तो अपने लिए सरिया कानून की माँग करो। फिर इस्लाम फैलाने के लिए वहाँ की खुली जमीन पर नमाज़ अदा करो, कब्रें बनाओ, रोज कसम खाओ कि इस धरती पर हम इस्लामिकों का राज बनाना है।वहाँ की औरतों बच्चों एवं पुरुषों पर घात लगाओ, लूटो, सताओ और उन्हें कुफ्र कह कर मारो। अगर कोई कानूनी कार्यवाही मुल्लियों-मुल्लों पर वहाँ की पुलिस द्वारा या नागरिकों द्वारा किया जाए तो हो हल्ला मचाओ कि धर्मनिरपेक्ष देशों में उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। फिर अल्पसंख्यक के नाम पर विशेषाधिकार की माँग करो।
इन मज़हबियों और इस्लामिकों के लिए मानवाधिकार की बातें मात्र हवा-हवाई है। अगर होता तो ये इस्लामिकों के देशों में जहाँ सरिया लॉ मौजूद है, वहाँ जा कर आराम से रहते। परन्तु सरिया लॉ वाले देशों में ये क्यों नहीं जाते हैं? वहाँ के इस्लामिक भाई इन्हें प्रवेश क्यों नहीं देते हैं? मानवाधिकार के नाम पर शरणार्थियों को नागरिकता तो वहाँ भी दिया जाना चाहिये।परन्तु ऐसा नहीं होता है।साजिशों के तहत लड़ना, पलायन करकिसी भी प्रकार से सरिया लॉ से दूर ग़ैरइस्लामियों के देश में घुसना, वहाँ इस्लामी जिहादियों की संख्या बढ़ाना, जिहाद फैलाना इनका मकसद होता है।
वस्तुतः जिन देशों में भी ये मुस्लिम शरणार्थियों के रूप में प्रवेश करते हैं, वहाँ कुरान के संदेश जो ग़ैरइस्लामियों को कुफ्र कह कर बर्बरतापूर्ण ढँग से कत्ल करने को जायज़ ठहराते है, औरतों का बलात्कार करना जिनके लिए दीन के प्रति वफादारी को बढ़ाता है, ऐसे कुकर्मों और पाप भरे तालीम अपने हृदय में बसा कर पहुँचते हैं। दिन में पाँच बार ये यही प्रण लेते हैं कि ग़ैरइस्लामियों के देश पर कैसे कब्जा किया जाए। कैसे ग़ैरइस्लामियों को लूटा-खसोटा और मारा जाए। इसलिए दुनियाँ के लोगों की इस्लामिकों के प्रति सहानुभूति स्वयँ को बेवकूफ बनाने के अलावे कोई अर्थ नहीं रखती है।
धर्म के नाम पर विभाजित पाकिस्तान में सभी हिन्दुओं, जैनों, सिख्खों आदि का लगभग सफाया हो चुका है। परन्तु हिंदुस्तान में जो विशेष रूप से हिन्दुओं के ही लिए ही था वहाँ इस्लामिकों को रहने की इजाजत सरकार द्वारा दिये जाने के कारण आज कैंसर नामक भयानक बीमारी की शक्ल को अख्तियार कर चुका है। जिसकी प्रताड़ना यहाँ के बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय भुगतने के लिए बेबस हैं। विभाजन की त्रासदियों को झेल कर भी यहाँ के धर्मनिरपेक्ष शान्ति के उपासक इस्लाम के छद्मवेशी क्रूर-कुटिल साजिशों को पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। इस्लामिकों द्वारा प्रताड़ित हिन्दू समुदाय का एक सन्देश समूचे विश्व के लिए सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक है। यह प्रत्येक गैरइस्लामिक, सेक्युलर देशों के गैरइस्लामिक नागरिकों के लिए भी इनके गिरगिटी चालों को समझना जरूरी है।
दुनियाँ वालो ! इस्लामी जिहादियों की कुटिलता को समझो! इस्लाम और पैगम्बर के गुणगान करने वाले मुस्लिम सेक्युलर देशों में शरण क्यों लेना चाहते हैं ? ये सभी इस्लामिक देशों की साझेदारी से ग्लोबल जिहाद की साजिश का हिस्सा है। शरण दोगे तो बेवकूफ ही बनोगे। फ्रांस, भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा तथा मुस्लिमों को शरण देने वाले अन्य शरणदाता देशों की तरह ही आये दिन जिहादी बर्बरता, निरंकुशता के कारण बर्बाद होओगे। इससे भी बड़ी बात कोई इस्लामिक देश इन भगौड़े इस्लामिकों को शरण क्यों नहीं देता है?
सोचो और समझो कि इस्लामी औरतों का रोना क्या है?
" छुद्रनीति से मुफ्त की सुविधा पाती विलाप के बल से।
काट गिराती राष्ट्र के तरु को घृणित जिहादी छल से।“
जिहादी इस्लामिक समुदाय अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर बनाये गए मानवाधिकार के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए उसके द्वारा दी गयी सुविधाओं का बड़ी ही चालाकी से फायदा उठाते हैं। सभी सेक्युलर तथा शान्ति पूर्ण देश के लोगों को मिटा कर वहाँ इस्लामिकों का शासन कायम करना चाहते हैं। इनकी इस्लामी औरतें भी इस्लाम फैलाने के लिए ही अनेक प्रकार के हथकंडों का प्रयोग करतीं हैं। इस्लामिकों की औरतें प्रताड़ित दिखने और रोने का नाटक करती हैं। इनका मूल मकसद होता है आसानी से ग़ैरइस्लामियों के देश में प्रवेश पाना। दूसरे देशों में जाकर जिहाद, इस्लाम, क्रूरता, बलात्कार, पाप से परिपूर्ण आसमानी किताबों के संदेशों को फैलाने में अपने इस्लामी मर्दों को सहयोग देतीं हैं। इस्लामी स्त्रियाँ भी पुरुषों के साथ ग़ैरइस्लामी स्त्रियों का शिकार करतीं हैं, उन्हें बेबस कर, उनका बलात्कार करवा कर, भयादोहन कर इन्हें इस्लाम कबूलने के लिये मजबूर करतीं हैं। ये ग़ैरइस्लामियों को शोषित कर उन्हें जान से मार देते हैं। भारत में तथा दुनियाँ भर में इनके घृणित कुकर्मों के उदाहरण भरे पड़े हैं।
इस्लामी स्त्रियाँ और मर्द किसी गैर इस्लामिकों के दोस्त नहीं होते हैं।धोखा, क्रूरता, लूट, बलात्कार, ध्वंसात्मक वृत्तियाँ इनके जीवन और इनके डी.एन.ए.में बहुत गहरे तक घुले हुए हैं। पढ़े-लिखे हों या मूर्ख, चाहे जिस किसी भी व्यापार या कार्य में ये लोग लगे हों, ये सिर्फ अपने आसमानी किताब में संग्रहित पापपूर्ण कृत्यों तथा संदेश देने वाले भेड़िये पापी के प्रति ही वफादार होते हैं। जहाँ भी रहते है क्रूर मानसिकता से ग्रस्त कुकर्मों की सिफारिशों को आत्मसात कर ध्वस्तीकरण ही फैलाते हैं। जिन-जिन देशों ने इन इस्लामिकों को शरण दी है, वहाँ ये लोग मानवाधिकार और विकास के कार्य के ग्रहण बन गए हैं। पुराणों में ऐसी प्रवृत्तियों के लोगों को दानव, असुर, राक्षसों के नाम से सम्बोधित किया गया है।
एक कहावत है--राक्षसों का सबसे छोटा राक्षस भी राक्षस ही होता है, उसे भी रक्त-माँस के स्वाद ही अच्छे लगते हैं। भारत में ये छोटे राक्षस बहुत बड़ी तादाद में हैं जो भयंकर जुर्म करके भी नाबालिगों के नाम पर सजा से बरी हो जाते हैं। इस्लाम फैलाने के तरीके लकड़बग्घों द्वारा शिकार करने के तरीकों से मेल खाते हैं। कदम आगे बढ़ाने, देशों पर कब्जा करने के तरीके कुछ निम्नप्रकार से कार्यान्वित हैं।
ये राक्षस ग़ैरइस्लामियों के देश में कभी शरणार्थियों तो कभी रोजी-रोटी के लिए पहुँचते हैं। फिर शरण माँगते हैं इसके बाद वहाँ की नागरिकता माँगते हैं।फिर सरिया लॉ की माँग करते हैं। अलग मोहल्ले बनाते हैं।आस-पास के मूल वाशिन्दों को लूटते हैं, उन्हें पलायन के लिए मजबूर करते हैं।फिर मूल वाशिन्दों को ही कहते हैं कि धरतीउनके बाप की है क्या? ये इस्लामियों की भी है। अंततः ये दावा करते हैं कि पूरी धरती सिर्फ इस्लामियों के लिए ही है क्योंकि इनके पैगम्बर ने उस आसमानी किताब में कुछ ऐसा ही लिखा था। योरोपीय, एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया लगभग सभी देशों में जहाँ भी इस्लामी लुटेरे शरणार्थियों की तरह पहुँचे वहाँ के मूल निवासियों की शांतिपूर्ण जिंदगी में भूचाल आ गया है।समूची दुनियाँ के लिये इनके प्रति सहानुभूति कर किसी भी आधार पर शरण देने की गलती करना, अपने घर में भूखे भेड़ियों को दावत देने के समान हैं। जानवरों की तरह ये अपनी तादाद बढ़ाते हैं और देश के देश, भेड़िये की तरह चबा जाते हैं ।
बर्बरता क्रूरता, बलात्कार, लूट, तोड़-फोड़, आगजनी ही मस्जिदों में इनके मौलानाओं द्वारा दी गयी तालीम हैं। इन इस्लामियों का ग़ैरइस्लामियों को लूटने का और जिहाद फैलाने का यह सबसे सुरक्षित और आसान तरीका है।
"आपस में लड़ सहानुभूति पा दूसरे देश में घुसो, जिहाद फैलाओ।"
इसलिये अफ़गानों के लिए नहीं, अपनी सुरक्षा के लिए संकल्प लेना आवश्यक है। ये सभी जिहादी आतंकी गुट एक-दूसरे से मिले हुए हैं। मुफ्त का अमेरिका से सहायता, युद्ध-सामग्री, सुरक्षा लेते रहे, अब किसी और सम्पन्न देश को झाँसे में रख कर लूटेंगे। सच्चाई यह है कि इसके सारे समुदाय अपने पैगम्बर को समर्पित रहते हुए, विकृत मानसिकता के तहत सरिया लॉ की सिफारिश करते रहेंगे। ये सभी अपने दीन और उसमें निहित बुराइयों को कभी भी न दूर करेंगे, न ही उसे गलत कहेंगे, न ही कुरान के आयतों, सूरों, हदीसों को गलत कहेंगे। न ही ये अपने पैगम्बर, कुरान, इस्लामी तालीम या तालिबानीयों को दोषी ठहरायेंगे।
ये जिहादी मुस्लिम आपस की लड़ाई की जिम्मेदारी स्वयँ की गलत नीतियों, कुरान की तालीम को नहीं, सिर्फ सेक्युलर देशों पर थोपने के आदी हैं। प्रताड़ित होने का नाटक मनुष्य कल्याण निधि जो किसी भी जरूरतमंद देशों की सहायता के लिए विश्वस्तर संग्रहित की जाती है, उस राशि को लूटने का सबसे सुलभ जरिया है । इसका उदाहरण विभिन्न देशों में जहाँ भी इस्लामी हैं, वहाँ होने वाली घटनायें हैं। अंतरराष्ट्रीय संघ से सारी सुविधाएं प्राप्त करके भी कभी मुस्लिम-समुदाय, सेक्युलर देशों या ग़ैरइस्लामियों के लिए वफादार नहीं होते हैं। इनके पैगम्बर और कुरान ने इन्हें बर्बरता-क्रूरता-बलात्कार-हत्या आदि करने की इजाजत देने के साथ उसे कार्यन्वित करने के तरीके समझायें हैं। इस किताब में ग़ैरइस्लामियों के प्रति घृणित कर्मों को करने के लिए पुरस्कार और प्रोत्साहन भी है। दुनियाँ को कभी बर्बरता तो कभी सुगमता से लूटना ही इनका मझहब इन्हें सिखाता है। ये आपसी लड़ाई में लड़ने, प्रताड़ित होने के नाटक करते हुए दुनियाँ को तब तक लूटते रहेंगे जब तक दुनियाँ इन्हें पूर्ण रूप से समझ कर, इनका तिरस्कार करना स्वीकार न ले।
इनका रोना और डरना मात्र नाटक है, अन्यथा ये इस्लाम का त्याग कर अपना पुराना धर्म, हिन्दुत्व, ईसाइयत, बौध्द आदि कोई भी उदार मानवतावादी धर्म अपना सकते हैं, परन्तु ये इस्लाम और कुरान का त्याग नहीं करना चाहते हैं। अतः इन इस्लामियों के लिए संक्षेप में यही कहा जा सकता है—
"गिरे गहन दासत्व-गत्त के पापपूर्ण इच्छा से,
घृणितकर्म औ लूट-पाट,ये करें सहज स्वेच्छा से।“
प्रत्येक मनुष्य के लिए सोचने का विषय है कि ''विश्वस्तरीयआर्थिक सहायता संघ' द्वारा बहुत से गरीब गैरइस्लामी देशों के रहते, मानवाधिकार की सुविधाएं, उदारतापूर्ण व्यवहार, युद्धस्तर के हथियारों का जखीरा इन कट्टरपंथी इस्लामिकों को प्रदान करना कहाँ तक उचित है। क्या ये विभिन्न ईस्लामिस्टों की जमातें किसी खूंखार परजीवियों की तरह नहीं हैं, जो पूरी दुनियाँ में इस्लामी-जहर फैला कर अजगर की तरह इंसानियत को निगलती जा रही है। भारत के हिन्दू निःसंदेह विभिन्न हिस्सों में इन राक्षसों द्वारा फैलाये गए जहरीले आतंकवाद तथा ध्वंसात्मक कुकृत्यों के शिकार होते जा रहे हैं, जिसकी चर्चा भी नहीं की जाती है, परिणाम-स्वरूप अपने ही देश में हिंदू असुरक्षित हो रहे हैं। कश्मीर के हिंदुओं की दुःखगाथा सर्वविदित है।