क्या मोदी सरकार ने देश में बहुतों को मुफ्तखोर बना दिया है ?
जब से मोदीजी ने सत्ता संभाली है मुफ्तखोरी लगातार बढ़ती जा रही है और फिलहाल चरम सीमा पर है। इन्होंने विदेशों से काला धन वापस लाने की बात की तो मुफ्तखोरों ने, यहाँ तक कि राहुल गांधी और कांग्रेस के पूरे महकमें के मुँह से लार टपकनें लगा। इस मुफ्तखोरी में कांग्रेस अकेली नहीं थी।परिवार-जनित जितनी विपक्षी राजनैतिक पार्टियाँ थीं, सबों के मुँह से लार टपकनें लगा।सब दिन रात इसी फ़िराक में थे कि कब उनके बैंक अकॉउंट में १५ लाख रूपये आएँगे और इसीलिए मोदीजी को पानी पी-पी कर कोसते रहते थे। विपक्ष का हर नेता मुफ्तखोरी की चाह में सोते जागते बस एक ही राग अलाप रहे हैं "हाय मेरा १५ लाख"।आखिर मोदी जी ने ऐसा क्या कहा था कि ये मुफ्तखोर इतने अकुलाये हैं ? क्या उनहोंने इन मुफ्तखोर अमीरजादों को सचमुच यह कहा था कि विदेशों में काले धन तुम मुफ्तखोरों में बाँट देंगे ? आइये देखें ये किस्सा क्या है, मामला क्या है :-
कांग्रेस ने तो उन १५ लाख को अपनी बपोती आमदनी समझ लिया और २०१९ का अपना ‘पार्टी मैनिफेस्टो’ इसी आधार पर बनाया कि मोदीजी ने इस भ्रष्ट और गबनकारी पार्टी के लोगों को, जिनके अधिकतर नेता भ्रष्टाचार के मामलों में जमानत पर जेल की सलाखों से बाहर हैं, इन्हें १५ - १५ लाख देने की बात कही हो। इनकी तो पूरी की पूरी ‘बेल-गाड़ी’ भ्रष्टाचारियों को लिए जेल की तरफ बढ़ रही है फिर भी मुफ्तखोरी की प्यास अवश्य है।
हम कहाँ से चले और कहाँ पहुँच गए ! चले थे मोदी जी को लेकर और पहुँच गए भ्रष्टाचारियों के खेमें में। कांग्रेस को चाहने वाले देश भर के भ्रष्टाचारी तो जी भर के इस पत्रिका को कोसेंगे कि मोदीजी के सात साल बाद भी हम कांग्रेस के घोटालों की बात आखिर क्यों करते हैं और यह बात अप्रतिम है।लोग तो अब खुले आम नेहरू जी का जीप घोटाला, इंदिराजी का चुनावी घोटाला, राजीव जी का बोफोर्स घोटालो की बात करने लगे हैं और "मौन मोहन" जी की तो बात ही न करें इन्होंने तो घोटालों की बारिश में रेनकोट और छतरी में किसी तरह अपने को बचाए रखा था।
अब आइए आज के मुफ्तखोरी के असल मुद्दे पर आते हैं। दिल्ली में अधिकाँश लोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न हैं फिर भी केजरीवाल जी ने अपना चुनाव मुफ्तखोरों को केंद्र विन्दु मान कर ही लड़ा। बिजली मुफ्त पानी मुफ्त बस के यात्रा मुफ्त स्कूल मुफ्त किताब मुफ्त गरीबों के लिए राशन मुफ्त । दिल्ली के चुनावी नुस्खे से बाहर आये तो घोटालेबाजी के गुणों वाले रत्नाकरों से युक्त कांग्रेस पार्टी ने मुफ्तखोरी का एक नया नुस्खा लिखा "NYAY"। भला हो जनता का जिन्होंने अबतक राहुल बाबा के झूठे चुनावी वादों को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में देख लिया था इसीलिए उसे नकार दिया अन्यथा अभी तक भारत बिक गया होता।
मोदी सरकार के साल भर भी नहीं हो पाए थे कि देश और विश्व को चीन में निर्मित "कोरोना" ने घेर लिया।। Lockdown के दौरान जब अधिकाँश उद्योगों कारोबारों पर ताले पड़ गए तो सरकार ने गरीब कल्याण शुरू किया जिसमें गरीबों को मुफ्त में अनाज, एलपीजी गैस, वृद्ध महिलाओं के बैंक खाते में मुफ्त में नकदी आदि शुरू की गयी और मोदी सरकार का यह कदम उचित भी था।
साल २०२० के शुरुआत में आंकड़ों के हिसाब से देश में कुल ८.५ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे थे। लेकिन 2020 के माह सितम्बर की रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान १०७ देशों की गरीबों की सूचि में 2।. 9% की गरीबी से भारत ६२ वे स्थान पर है (https://rural.nic.in/sites/default/files/WorkingPaper_Poverty_DoRD_Sept_2020.pdf) । इस अनुपात से देश में कुल 38.5 करोड़ लोग गरीब होने चाहिए थे, लेकिन जब मुफ्त की खैराती बटनें लगी तो मुफ्तखोरों की संख्या लगभग 80 करोड़ हो गयी जिनके लिए सरकार को मुफ्त में राशन पानी देना पड़ा। ये आंकड़े समझ के बाहर हैं। गत वर्ष के शुरू में जहाँ देश में ८.५ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे होने चाहिए थे वहाँ अभी ८० करोड़ लोग मुफ्त की राशन ले रहे हैं। ये ७१.५ करोड़ अतिरिक्त मुफ्तखोर कहाँ से आ धमके ? लगता है मुफ्तखोरी अधिकाँश भारतीयों के डीएनए में ही है…फिर ये खैराती बाँटने वाले चाहे राहुल गांधी, केजरीवाल या मोदी सरकार ही क्यों न हो।
हमारे बहुतेरे देशवासी स्वाभिमानी भी हैं। अतः हमें यह आशा करनी चाहिए कि जो लोग गरीबी रेखा से ऊपर हैं वे स्वयं ही घोषणा करेंगे कि वे कोरोना काल में दिए जा रहे मुफ्त के राशन की सूचि से अपना एवं अपने परिवार का नाम हटा लेंगे। यह ठीक उसी तरह होगा जैसे प्रधानमंत्री के एक आह्वान पर करोड़ों देशवासी ने स्वेच्छा से LPG सिलिंडर से सब्सिडी छोड़ दिया था।