चलते - चलाते : नया साल
ईसाई के नए साल का, हम भी स्वागत करते हैं।
लेकिन इसमें नया कहाँ है,इस पर विचार भी करते हैं।
ठिठुर ठंड में रहे हैं प्राणी, कितने जम मर जाते हैं,
भूख-प्यास से व्याकुल हो कर,रोज पलायन करते हैं।
दो हजार बाइस में भी तो, क्या-क्या आफत है आयी,
युद्ध-क्षेत्र बन आयी दुनियाँ,कहाँ पर है खुशियाँ छाई?
कोरोना भी रूप बदलती, मिलने फिर सबसे आयी,
नए साल में नए ढँग से, पुनः सताने यह आयी।
ईसाई के नए साल में, चलो मौन हम रखते हैं,
मारे गए युध्द में जो हैं, उन्हें समर्पित करते हैं।
सीमा पर मरने वालों को! आज नमन हम करते हैं,
कोरोना से बचे जनों का, भी हम स्वागत करते हैं।
आतंकी के उत्पातों से, जो सैनिक हैं गुजर गए,
लवजिहाद की हो शिकार,जो बालायें हैं,मृतक मिले,
आओ इनकी दुःखद मौत से,आज सबक कुछ लेते हैं,
बचा सकें भोली बिटियों को,शपथ ग्रहण कुछ करते हैं।
सजा मिले जाहिल-बर्बर को, ऐसी उम्मीद जगाते हैं,
अंधी-बहरी न्याय प्रणाली ! बजा मृदङ्ग जागते हैं।
एक दशक था आरक्षण का, क्यों इतने दिन लागू है?
न्याय मिले सवर्ण जाति को,यह भी सुनिश्चित करते हैं।
मातृभूमि की गरिमा को भी जो जन धूमिल करते हैं,
नकाबपोश उन गद्दारों को, क्यों न उजागर करते हैं ?
करो प्रतीक्षा और भी कुछ दिन सारे त्यौहार मनाएंगे।
गरिमामय खुशियों का मौसम सब मिल नाचें-गायेंगे।
उत्तरायण सूरज होने पर,संक्रांति त्यौहार मनाएंगें।
भारत के हर कोने में तब खुशियाँ सभी मनाएंगें।
फसल देख कर सारे प्राणी, उम्मीद नए पा जाते हैं।
भारत के हर एक राज्य में, जम कर धूम मचाते हैं।
जब बसन्त भारत में छाए, फूल खिले चहुँ ओर दिखे,
उन्मादित हो पशु-पक्षी भी, विचरित होते नित्य दिखे।
खुशियों से हो ओत-प्रोत, हर जीव-जंतु संतुष्ट दिखे,
नया साल हो तभी सार्थक,संसार सुरक्षित जभी दिखे।
डॉ सुमंगला झा।